अज़लान अहमद, बदरंग दीवारों वाले दो मंज़िला मकान की ऊपरी मंज़िल पर, अपने कमरे के एक कोने में फ़ोन के साथ बैठे हैं. उनके हाथ कांप रहे हैं और वह कश्मीरी भाषा में अपनी मां चीखते हुए पुकारते हैं, “मै गो ख़भर क्या [पता नहीं मुझे क्या हो रहा है].” वह सिरदर्द और बदन दर्द की शिकायत करते हैं. उनकी मां, सकीना बेगम, गिलास में पानी लाने के लिए रसोई की ओर दौड़ती हैं. अज़लान के चीख़ने की आवाज़ सुनकर, उनके पिता बशीर अहमद कमरे में आते हैं और उन्हें सांत्वना देने की कोशिश करते हैं, और कहते हैं कि डॉक्टरों ने उन्हें सूचित किया था कि नशा मुक्ति के लक्षण इसी प्रकार के होंगे.

सकीना बेगम और बशीर (गोपनीयता को सुनिश्चित करने के लिए सभी नाम बदल दिए गए हैं) ने समय गुज़रने के साथ, 20 वर्षीय अज़लान के कमरे में ताला लगाकर सुरक्षित रखना शुरू कर दिया है, और उनके घर की सभी 10 खिड़कियों बंद रखी जाती हैं. यह कमरा रसोई के क़रीब है, जहां से उनकी मां अज़लान पर हमेशा नज़र बनाए रख सकती हैं.  52 वर्षीय सकीना बेगम कहती हैं, “अपने बेटे को बंद रखना दुखदायी है, लेकिन मेरे पास कोई और चारा नहीं है." ऐसा इस डर से है कि उनका बेटा अगर घर से बाहर निकलता है, तो वह फिर से ड्रग्स की तलाश शुरू कर देगा.

अज़लान, बेरोज़गार है और उसने स्कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी. अज़लान को हेरोइन की लत लगे हुए दो साल हो चुके हैं. उसने चार साल पहले जूते के पॉलिश से नशे की शुरुआत की, फिर अफ़ीमयुक्त मादक औषधि तथा चरस का सेवन करने लगा, और अंत में उसे हेरोइन की लत लग गई.

नशे की लत अज़लान के परिवार के लिए एक बड़ा झटका है, जो दक्षिणी कश्मीर के अनंतनाग ज़िले के चुरसू इलाक़े में रहते हैं. धान की खेती करने वाले 55 वर्षीय किसान, बशीर कहते हैं, “हमारे पास जितनी भी मूल्यवान वस्तुएं थीं, ड्रग्स ख़रीदने के लिए वह उन सभी को बेच चुका है – अपनी मां की कान की बालियों से लेकर अपनी बहन की अंगूठी तक." उन्हें अपने बेटे की नशे की लत के बारे में बहुत बाद में जाकर तब पता लगा, जब अज़लान ने उनका एटीएम कार्ड चुरा लिया और उनके खाते से 50,000 रुपए निकाल लिए. वह बताते हैं, “जो मेहमान हमारे घर में ठहरते थे वे भी शिकायत करते कि उनका पैसा यहां चोरी हो रहा है."

लेकिन समस्या की गंभीरता का अंदाज़ा तब हुआ, जब कुछ महीने पहले बशीर ने देखा कि उनका बेटा हेरोइन ख़रीदने के लिए अपनी 32 वर्षीय बहन की अंगुली से अंगूठी निकाल रहा है. वह कहते हैं, “अगले ही दिन मैं उसे इलाज के लिए श्रीनगर के नशामुक्ति केंद्र ले गया. मैं अपने बेटे पर आंख मूंदकर भरोसा करता था और कभी नहीं सोचा था कि एक दिन लोग उसे नशेड़ी कहेंगे."

Left: A young man from the Chursoo area (where Azlan Ahmad also lives) in south Kashmir’s Anantnag district, filling an empty cigarette with charas.
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Right: Smoking on the banks of river Jhelum in Srinagar
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बाएं: दक्षिणी कश्मीर के अनंतनाग ज़िले के चुरसू इलाक़े (अज़लान अहमद भी यहीं रहते हैं) का एक युवक चरस को एक खाली सिगरेट में भर रहा है. दाएं: श्रीनगर में झेलम नदी के तट पर धूम्रपान करते हुए

यह नशामुक्ति केंद्र, चुरसू से लगभग 55 किलोमीटर दूर, श्रीनगर के करन नगर इलाक़े में श्री महाराजा हरि सिंह (एसएमएचएस) अस्पताल में है. कश्मीर में अज़लान जैसे ड्रग्स से पीड़ित बहुत से लोग इलाज कराने के लिए यहीं आते हैं. इस केंद्र में 30 बेड और एक ओपीडी है, और यह श्रीनगर के सरकारी मेडिकल कॉलेज के मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान (आईएमएचएएनएस) द्वारा चलाया जा रहा है.

नशामुक्ति केंद्र आने वालों में से क़ैसर दार (बदला हुआ नाम) भी हैं, जो उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा ज़िले के रहने वाले हैं. जींस और पीली जैकेट पहने 19 वर्षीय क़ैसर, मनोचिकित्सक को दिखाने के लिए अपनी बारी का इंतज़ार करते हुए सुरक्षा गार्ड के साथ मज़ाक़ करते हैं. जब अंदर जाने का समय आता है, तो उनकी मुस्कान ग़ायब हो जाती है.

एक दोस्त द्वारा चरस की लत लगा दिए जाने से पहले, क़ैसर मज़े से क्रिकेट और फुटबॉल खेला करते थे, तब वह कुपवाड़ा के गवर्नमेंट कॉलेज में एक छात्र थे. अज़लान की तरह ही उन्होंने भी हेरोइन का नशा शुरू करने से पहले विभिन्न नशीले पदार्थों (ड्रग्स) का प्रयोग किया. क़ैसर के पिता राज्य सरकार द्वारा चलाए जा रहे एक प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक हैं और लगभग 35,000 रुपए मासिक कमाते हैं. क़ैसर कहते हैं, “मैंने कोरेक्स [खांसी का सिरप] और ब्राउन शुगर लेना शुरू कर दिया था, और अब हेरोइन की लत लग गई. एक ख़ुराक लेने के बाद मुझे ख़ुशी महसूस हुई, ऐसा लगा जैसे कि मुझे अपने सभी दुखों से छुटकारा मिल गया हो. मैं और ख़ुराक पाने के लिए तरसने लगा. मैं सिर्फ़ दो ख़ुराकों में नशेड़ी बन गया.”

एसएमएचएस अस्पताल के नशामुक्ति केंद्र के मनोचिकित्सक कहते हैं कि हेरोइन की लत पूरे कश्मीर में महामारी की तरह फैल चुकी है. आईएमएचएएनएस के प्रोफ़ेसर डॉ. अरशद हुसैन बताते हैं, "इसके लिए कई कारक ज़िम्मेदार हैं - घाटी के हालात, बेरोज़गारी, परिवारों का टूटना, शहरीकरण और तनाव इसके कुछ सामान्य कारण हैं."

और कुछ का कहना है कि कश्मीर में नशीली पदार्थों के फैलाव में तेज़ी 2016 के बाद आई है. नशामुक्ति केंद्र के प्रमुख, डॉक्टर यासिर राथर कहते हैं, “हेरोइन की लत में तेज़ी से वृद्धि 2016 के बाद शुरू हुई है, जब हिज़बुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी का [8 जुलाई, 2016 को सुरक्षा बलों द्वारा] एनकाउंटर किया गया था. हमने 2016 में 489 मरीज़ों को देखा था. साल 2017 में, ओपीडी में कुल 3,622 रोगी आए, जिनमें से 50 प्रतिशत हेरोइन का नशा करने वाले थे."

A growing number of families are bringing their relatives to the 30-bed Drug De-addiction Centre at the Shri Mahraja Hari Singh Hospital in Srinagar
PHOTO • Muzamil Bhat
A growing number of families are bringing their relatives to the 30-bed Drug De-addiction Centre at the Shri Mahraja Hari Singh Hospital in Srinagar
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श्रीनगर के श्री महाराजा हरि सिंह अस्पताल में स्थित 30 बेड वाले नशामुक्ति केंद्र में ऐसे परिवारों की संख्या बढ़ती जा रही है जो अपने रिश्तेदारों को यहां लेकर आते हैं

डॉक्टर राथर बताते हैं कि यह संख्या साल 2018 में 5,113 तक पहुंच गई थी. वर्ष 2019 में, नवंबर तक, इस नशामुक्ति केंद्र में कुल 4,414 मरीज़ आए, जिनमें से 90 प्रतिशत हेरोइन के नशेड़ी थे. लेकिन, लत के बढ़ने का मुख्य कारण है वह बताते हैं कि “आसान उपलब्धता, आसान उपलब्धता और आसान उपलब्धता."

डॉक्टर हुसैन बताते हैं कि नशा आमतौर पर खुशी प्राप्त करने के लिए ड्रग्स के उपयोग से शुरू होता है. नशामुक्ति केंद्र के एक मनोचिकित्सक, डॉक्टर सलीम यूसुफ़ इसमें अपनी बात जोड़ते हैं, “परम आनंद का अनुभव आपको ख़ुराक में वृद्धि के लिए उकसाता है. फिर एक दिन आप ड्रग पर पूरी तरह निर्भर हो जाते हैं, और आप या तो ओवरडोज़ (सीमा से अधिक ख़ुराक) की वजह से मर जाते हैं या समस्याओं में घिर जाते हैं. नशा करने वालों में मिज़ाज में परिवर्तन, एंग्ज़ायटी, और अवसाद हो सकता है, और वे ख़ुद को अपने कमरे तक ही सीमित रखना पसंद करते हैं.”

अज़लान के माता-पिता भी इसे अच्छी तरह जानते हैं. सकीना बेगम बताती हैं कि वह उनसे बहुत लड़ता था. एक बार जब उसने रसोई घर में लगी खिड़की के शीशे तोड़ दिए थे, तो हाथ में टांका लगाने के लिए उसे डॉक्टर के पास ले जाना पड़ा था. वह कहती हैं, “ड्रग ही उससे यह सब करा रहा था."

हेरोइन का दुरुपयोग विभिन्न तरीक़ों से किया जा सकता है - नसों में इंजेक्शन देकर शरीर में पहुंचाना, पाउडर की शक्ल में सूंघना या धूम्रपान करना. हालांकि, इंजेक्शन से सेवन करने पर सबसे अधिक नशा होता है. डॉ. राथर कहते हैं, हेरोइन के लंबे समय तक इस्तेमाल से अंततः मस्तिष्क की कार्यप्रणाली बदल जाती है. यह एक महंगी लत  है - ड्रग का एक ग्राम आम तौर पर 3,000 रुपए से अधिक का होता है, और कई नशेड़ियों को एक दिन में कम से कम दो ग्राम की ज़रूरत होती है.

इसलिए, कुलगाम ज़िले के एक 25 वर्षीय टैक्सी ड्राइवर, तौसीफ़ रज़ा (बदला हुआ नाम) ने हेरोइन पर जब रोज़ाना 6,000 रुपए खर्च करने शुरू कर दिए, तो उनकी 2,000 रुपए की दैनिक आय कम पड़ने लगी. उन्होंने अपने उन अच्छे दोस्तों से उधार लेना शुरू कर दिया, जो उन पर शक नहीं करते थे, और नशे के आदी अपने अन्य दोस्तों से यह झूठ बोलकर पैसा लेना शुरू किया कि उन्हें सर्जरी कराने के लिए पैसे की ज़रूरत है. इस तरह से उन्होंने जो 1 लाख रुपए जुटाए थे उससे वह इंजेक्शन द्वारा हेरोइन का नशा करने लगे.

Patients arriving at the De-Addiction Centre’s OPD are evaluated by psychiatrists and given a drug test. The more severe cases are admitted to the hospital for medication and counselling
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नशामुक्ति केंद्र की ओपीडी में आने वाले मरीज़ों का जायज़ा मनोचिकित्सकों द्वारा लिया जाता है और उन्हें ड्रग की जांच कराने के लिए कहा जाता है. जिनकी हालत ज़्यादा गंभीर होती है, उन्हें चिकित्सा और परामर्श के लिए अस्पताल में भर्ती कर लिया जाता है

तौसीफ़ ने ड्रग्स लेना इसलिए शुरू कर दिया था, क्योंकि उनके दोस्त इसका सेवन कर रहे थे. वह याद करते हैं, “इसलिए मैंने भी इसे आज़माने के बारे में सोचा. जल्द ही, मुझे भी इस नशे की लत पड़ गई. जिस दिन मुझे ड्रग्स नहीं मिलते थे उस दिन मैं अपनी पत्नी को पीटा करता था. मैंने तीन साल तक हेरोइन ली, जिससे मेरा स्वास्थ्य घटने लगा. मुझे हर वक़्त उल्टी जैसा महसूस होता रहता था और मांसपेशियों में तेज़ दर्द होने लगा. मेरी पत्नी मुझे एसएमएचएस अस्पताल लेकर आई, तभी से मेरा यहां इलाज चल रहा है.”

नशामुक्ति केंद्र की ओपीडी में आने वाले मरीज़ों का जायज़ा मनोचिकित्सकों द्वारा लिया जाता है और उन्हें ड्रग की जांच कराने के लिए कहा जाता है. जिनकी हालत ज़्यादा गंभीर होती है उन्हें चिकित्सा तथा परामर्श के लिए अस्पताल में भर्ती कर लिया जाता है. श्रीनगर के सरकारी मेडिकल कॉलेज में मनोचिकित्सा विभाग की डॉक्टर इक़रा शाह कहती हैं, “एक सप्ताह के बाद, जब हम लक्षणों का मूल्यांकन करते हैं और पाते हैं कि उपचार से वह ठीक हो रहा है, तो हम उसे छुट्टी दे देते हैं."

डॉक्टर दवाओं के सहारे नशे की लत छुड़ाते हैं. डॉ. यूसुफ़ कहते हैं, “एक बार जब आप ड्रग्स लेना बंद कर देते हैं, तो आप अत्यधिक पसीने, कंपकंपी, मतली, अनिद्रा, मांसपेशियों और शरीर में दर्द महसूस करेंगे." डॉक्टर हुसैन बताते हैं कि नशीली दवाओं की लत के कारण ऐसे कई मरीज़ जो पागल होने लगे थे उन्हें आईएमएचएएनएस में भर्ती कराया गया है.

कश्मीर में महिलाएं भी नशे की आदी हैं, लेकिन श्रीनगर के नशामुक्ति केंद्र में उनका इलाज नहीं किया जाता है. डॉ. यूसुफ़ कहते हैं, “लड़कियों द्वारा हेरोइन तथा अन्य मादक पदार्थों का सेवन करने के भी मामले हैं, लेकिन उनकी संख्या कम है. चूंकि हमारे पास उनके लिए इलाज की कोई सुविधा नहीं है, इसलिए हम ओपीडी में उनका इलाज करते हैं और उनके माता-पिता को उनकी देखभाल करने के लिए कहते हैं." डॉक्टर, माता-पिता को अपने बच्चे को संभालने की सलाह देते हैं, उन्हें नशीली दवाओं के दुरुपयोग के बारे में परामर्श देते हैं, और उन्हें यह सुनिश्चित करने के लिए कहते हैं कि उनका बच्चा समय पर दवाएं ले और अलग-थलग न हो.

दिसंबर 2019 तक, श्रीनगर का नशामुक्ति केंद्र कश्मीर में एकमात्र जगह थी जहां नशे के आदी लोगों का इलाज किया जाता था. यह संस्थान आईएमएचएएनएस से ​​जुड़े 63 कर्मचारियों द्वारा मैनेज किया जाता है, जिसमें 20 मनोचिकित्सक, छह नैदानिक ​​मनोवैज्ञानिक, 21 रेज़िडेंट डॉक्टर, और 16 नैदानिक ​​मनोविज्ञान के शोध छात्र शामिल हैं. डॉक्टर हुसैन के मुताबिक़, सरकार ने इस साल राज्य में तीन और नशामुक्ति केंद्र शुरू किए हैं, जो बारामूला, कठुआ, और अनंतनाग में स्थित हैं, और ज़िला अस्पतालों के मनोचिकित्सकों ने अपनी ओपीडी में नशे की लत के शिकार लोगों को देखना शुरू कर दिया है.

Left: A young boy in a village on the outskirts of Srinagar using heroin.
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Right: In Budgam,  a young man ingesting heroin
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बाएं: श्रीनगर के बाहरी इलाक़े में स्थित एक गांव में एक नौजवान हेरोइन ले रहा है. दाएं: बडगाम में, एक युवक हेरोइन का सेवन कर रहा है

कश्मीर में अपराध शाखा के अधिकारियों का कहना है कि साल 2016 के बाद, नियंत्रण रेखा के उस पार से चरस, ब्राउन शुगर, और अन्य ड्रग्स की ज़्यादा खेप आने लगी. (कोई भी ज़्यादा कुछ नहीं बताना चाहता और न ही इसके कारणों के बारे में आधिकारिक तौर पर कुछ कहने को तैयार है.) परिणामस्वरूप ड्रग्स को ज़ब्त करने के मामले बढ़े हैं. जम्मू-कश्मीर पुलिस के 2018 के अपराध राजपत्र में इस बात का हवाला दिया गया है कि उस वर्ष लगभग 22 किलो हेरोइन ज़ब्त की गई थी. हेरोइन के अलावा, पुलिस ने 248.150 किलो चरस और लगभग 20 किलो ब्राउन शुगर भी ज़ब्त की थी.

पुलिस द्वारा नियमित रूप से जारी की गई प्रेस विज्ञप्ति में दावा किया गया है कि हज़ारों एकड़ अफ़ीम की फ़सल, जो अफ़ीम से बनने वाले मादक पदार्थों और हेरोइन का स्रोत है, को पूरे कश्मीर में नष्ट कर दिया गया है और नशीली दवाएं बेचने वाले गिरफ़्तार किए गए हैं. लेकिन ज़मीन पर समस्या बनी हुई है. पुलवामा ज़िले के रोहमू के 17 वर्षीय मैकेनिक, मुनीब इस्माइल (बदला हुआ नाम) कहते हैं, “मेरे इलाक़े में, हेरोइन सिगरेट की तरह उपलब्ध है. इसे प्राप्त करने में मुझे ज़्यादा कठिनाई नहीं होती.” नशामुक्ति केंद्र के अन्य नशेड़ी भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि ड्रग्स हासिल करना आसान है. इसे बेचने वाले, जो स्थानीय लोग हैं, मौखिक रूप से लेन-देन करते हैं. वे युवा पुरुषों (और महिलाओं) को पहले मुफ़्त में धूम्रपान कराकर, उन्हें नशे की लत लगाते हैं और फिर जब वे इसके आदी हो जाते हैं, तो उन्हें नशीली दवाएं बेचना शुरू कर देते हैं.

नशामुक्ति केंद्र के एक मनोचिकित्सक अपना नाम गोपनीय रखने का अनुरोध करते हुए बताते हैं कि दक्षिणी कश्मीर के एक इलाक़े में नशे के शिकार लोग ड्रग का इस्तेमाल करने के लिए खुलेआम एक डीलर के घर जाते हैं. वह कहते हैं, “उन्होंने मुझे बताया कि पुलिस को भी इस घर के बारे में पता है, लेकिन वे कुछ नहीं करते." इस तरह के घर पूरी घाटी में मौजूद हैं. (कवर फ़ोटो में एक आदमी धूम्रपान करने के बाद, बडगाम ज़िले में एक घर के बाहर नशे में टहलता हुआ दिख रहा है.)

हालांकि, श्रीनगर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, हसीब मुग़ल का कहना है कि नशा एक चिकित्सीय समस्या है. उन्होंने इस रिपोर्टर को दिए एक साक्षात्कार में कहा, “इसका इलाज डॉक्टरों द्वारा ही किया जाना है. नशीली दवाओं के दुरुपयोग को नियंत्रित करने के लिए कश्मीर में अधिक से अधिक नशामुक्ति केंद्र बनने चाहिए."

Left: A well-known ground  in downtown Srinagar where addicts come for a smoke. Right: Another spot in Srinagar where many come to seek solace in drugs
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 Another spot in Srinagar where many come to seek solace in drugs
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बाएं: श्रीनगर के डाउनटाउन इलाक़े का एक मशहूर मैदान, जहां नशेड़ी धूम्रपान करने के लिए आते हैं. दाएं: श्रीनगर की एक और जगह, जहां बहुत से लोग नशा करने आते हैं

जून 2019 में, राज्य सरकार ने सार्वजनिक प्रतिक्रिया आमंत्रित करने के बाद, जम्मू और कश्मीर के लिए पहली बार नशामुक्ति नीति को अंतिम रूप दिया. इसे चरणों में लागू किया जा रहा है. पिछले दो दशकों में जम्मू-कश्मीर में नशीले पदार्थों के इस्तेमाल से जुड़े विकारों में तेज़ी से वृद्धि को नोट करते हुए, दस्तावेज़ में कहा गया है, “हाल के वर्षों में किए गए अध्ययनों से नशीले पदार्थों के इस्तेमाल के तरीक़े में एक ख़तरनाक बदलाव देखने को मिला है, जैसे कि महिला उपयोगकर्ताओं की संख्या में वृद्धि, पहली बार इस्तेमाल करने वालों की घटती आयु, घुलने वाले नशीले पदार्थों का बढ़ता इस्तेमाल, इंजेक्शन के माध्यम से अफ़ीमयुक्त पदार्थों का सेवन, और इसके साथ ही नशे से संबंधित मौतें (अधिक ख़ुराक लेने और दुर्घटनाओं के कारण).”

नीति में मादक द्रव्यों के सेवन को नियंत्रित करने के लिए सरकारी मेडिकल कॉलेजों, पुलिस, इंटेलिजेंस विंग, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, स्वास्थ्य सेवा निदेशालय, और एड्स नियंत्रण सोसायटी सहित 14 राज्य एजेंसियों के साथ-साथ, नशामुक्ति पर काम करने वाले गैर-सरकारी संगठनों को भी सूचीबद्ध किया गया है.

इस समस्या से निपटने के लिए धार्मिक संगठनों और स्कूलों की मदद भी मांगी गई है. जून 2019 में, श्रीनगर के एक शौचालय में एक युवक की नशीली दवाओं से जुड़ी संदिग्ध मौत के बाद, उपायुक्त शाहिद इक़बाल चौधरी ने मस्ज़िदों के धार्मिक प्रचारकों से “बढ़ती नशाखोरी के ख़िलाफ़ पुरज़ोर तरीक़े से बोलने” का आग्रह किया था. इस घटना के बाद, हुर्रियत नेता और श्रीनगर की जामा मस्ज़िद के मुख्य इमाम, मीरवाइज़ उमर फ़ारूक़ ने कहा था कि बड़ी संख्या में युवाओं का नशे की ओर आकर्षित होना गंभीर मसला बनता जा रहा है. फ़ारूक़ ने कहा था, “आसान पैसा और आसान उपलब्धता, माता-पिता की अनभिज्ञता, और क़ानून लागू करने वाली एजेंसियों की निष्क्रियता, इन सभी का इसमें योगदान है. हमें इस ख़तरे को दूर करने के लिए इन सभी मोर्चों पर काम करने की आवश्यकता है.”

लेकिन फ़िलहाल यह ‘ख़तरा’ बरक़रार है और अज़लान (जो अब भी घर क़ैद है) के परिवार जैसे कई परिवार अपने बेटों को पटरी पर लाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं. बशीर कहते हैं, “मैंने जब अज़लान को वहां भर्ती कराया था, तब से मैंने नशामुक्ति केंद्र में हफ़्तों बिताए हैं. आज भी, मुझे घर आकर अज़लान को देखने के लिए काम छोड़ना पड़ता है. मैं आर्थिक रूप के साथ-साथ शारीरिक रूप से भी थक चुका हूं. अज़लान की लत ने मेरी कमर तोड़ दी है.”

अनुवाद: मोहम्मद क़मर तबरेज़

Shafaq Shah

Shafaq Shah is a Srinagar based freelance journalist.

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Translator : Mohd. Qamar Tabrez
dr.qamartabrez@gmail.com

Mohd. Qamar Tabrez is the Translations Editor, Hindi/Urdu, at the People’s Archive of Rural India. He is a Delhi-based journalist, the author of two books, and was associated with newspapers like ‘Roznama Mera Watan’, ‘Rashtriya Sahara’, ‘Chauthi Duniya’ and ‘Avadhnama’. He has a degree in History from Aligarh Muslim University and a PhD from Jawaharlal Nehru University, Delhi.

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