आज से बहुत बरिस पहिले दलित लेखिका, मुक्ता सालवे मांग महार समुदाय के अधिकार के बात उठइली.  ‘मांग-महारन के दुख’ नाम के उनकर लिखल एगो निबंध 15 फरवरी, 1885 के छपल. ई निबंध मराठी पत्रिका ज्ञानोदय में आइल. आपन एह आक्रामक लेख में ऊ धर्म के ठिकेदारन के वाद-विवाद खातिर ललकरली, “अइसन धरम जेह पर खाली एगो आदमी बिशेष के अधिकार होखे, आउर बाकी के वंचित रखल जाए, ओह धरम के एह धरती से समूल नाश हो जाए के चाहीं, हमनी के दिल में अइसन (भेदभाव करे वाला) धरम के अभिमान लेशमात्र भी ना आवे के चाहीं.”

मुक्ता सालवे जब आपन मांग महार लोगन खातिर कलम उठइली, तब ऊ खाली 15 बरिस के रहस. उनकर विचारोत्तेजक लेख के हिस्सा से अंदाजा लगावल जा सकेला कि ओह घरिया ब्राह्मण शासक वर्ग आउर पूरा समाज दलित लोग के कइसन दमन करत रहे. महाराष्ट्र में उनकरे जइसन, गायिका कडूबाई खरात भी भइली. खरात आलंदी के आध्यात्मिक नेता सभ के चुनौती देहली. आध्यात्म आउर धरम पर उनकरा संगे होखे वाला बहस में धरम के ठिकेदार लोग हार गइल. कडूबाई आम आदमी के दुख, तकलीफ आउर संघर्ष के गीत गावेली. उनकर गीत में गहराई आउर दरशन होखेला. बराबरी के बात होखेला. बाबासाहेब आंबेडकर खातिर आभार होखेला.

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काखेत पोरगं हातात झाडनं डोईवर शेणाची पाटी
कपडा न लत्ता, आरे, खरकटं भत्ता
फजिती होती माय मोठी

माया भीमानं, भीमानं माय सोन्यानं भरली ओटी
मुडक्या झोपडीले होती माय मुडकी ताटी
फाटक्या लुगड्याले होत्या माय सतरा गाठी
पोरगं झालं सायब अन सुना झाल्या सायबीनी
सांगतात ज्ञानाच्या गोष्टी

सांगू सांगू मी केले, केले माय भलते कष्ट
नव्हतं मिळत वं खरकटं आणि उष्टं
असाच घास दिला भीमानं
झकास वाटी ताटी होता

तवा सारंग चा मुळीच पत्ता नव्हता
पूर्वीच्या काळात असंच होतं
बात मायी नाय वं खोटी
माया भीमानं, मया बापानं,
माया भीमानं माय, सोन्यानं भरली ओटी

गोदी में लइका, हाथ में झाड़ू
माथा पर गोबर के टोकरी
फटल-पुरान रहे हमर सिंगार
मजूरी में मिले बचल निवाला
बिस्वास करीं, ऊ जिनगी रहे एगो अपमान
हमर भीम जी, हमर भीम जी,
उनकर मिलल मेहरबानी
खाली झोली भर देहलन
टूटल मड़इया में, टूटल रहे दरवाजा
फाटल लुगा में दसियो गांठ रहे लागल
ऊ सब कुछ बदल देहलन
उनकर मिलल मेहरबानी
बेटा-पुतोह साहेब बन गइलें
दुनिया से हमरा मिलवइलें
हमनी केतना मुस्किल सहनी,
कोल्हू के बैल जेका हमनी खटनी
खाए में बचल रोटी के टुकड़ा,
जूठ थाली में बचल कौर भी ना रहे
बाकिर भीम जी के मेहरबानी,
भूखल पियास मिटवलन
खूब नीमन थाली आउर कटोरी में
कवि सारंग ना रहस उहंवा
हमनी के जीवन के इहे दशा
झूठ नइखी कहत, बबुआ
हमर भीम जी, हमर बाबूजी,
उनकर मेहरबानी भइल
जिनगी अंजोर हो गइल

PHOTO • Courtesy: TISS Tuljapur
PHOTO • Courtesy: TISS Tuljapur

कुछ बरिस पहिले, टाटा इंस्टीच्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, तुलजापुर में भइल डॉ. आंबेडकर मेमोरियल लेक्चर में कडूबाई खरात आउर उनकर एकतारी

डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर खातिर आभार जाहिर करे वाला हजारन गीत लिखल आउर गाइल गइल बा. बाकिर कुछे गीत हमनी के दिल के करीब बा. ई सभे गीत एतना पसंद कइल गइल बा कि अब हमनी के स्मृति के हिस्सा हो गइल बा. कडूबाई खरात के ई गीत के भी उहे कद हासिल बा. एकरा लोग बहुते जादे पसंद करेला. उनकर घर आ दिल में ई गीत बस गइल बा. घर घर में गावल जाए वाला बाबासाहेब आंबेडकर के गीत में इहो शामिल हो गइल बा.

एह गीत के चरचा में आवे के पीछे कई गो कारण बा. एक एक भाव खातिर सही शब्द, सादगी भरल बुलंद आवाज, कमाल के ध्वनि आउर वाद्ययंत्र, आउर सबसे जादे कडूबाई खरात के बेमिसाल आवाज. एगो सरल प्राणी, जी टीवी, कलर्स चैनल पर जलसा महाराष्ट्रचा जइसन टीवी शो पर आवे वाला बुलंद शख्सियत. सभे कोई उनकरा के खूब देखलक, सराहलक. बाकिर कडूबाई के एह शोहरत आ चकाचौंध से भरल जिनगी के पीछे के अन्हार के बारे में हमनी बहुत कम जानेली. कडूबाई के जिनगी उनकरे नाम लेखा रहल. (कडू के मतलब मराठी में कड़वा होखेला. मराठवाड़ा में लइकी लोग के इहे नाम से पुकारे के परंपरा रहल. मानल जात रहे कि एह से, ‘बुरा नजर’ वाला दूर रही.)

तुकारम कांबले कडूबाई के बाबूजी रहस…

कडूबाई के जिनगी बहुते गुरबत में बीतल, 16 बरिस में बियाह हो गइल, उनकर दुर्भाग्य इहंवे ना रुकल, कुछे बरिस में घरवाला के दिल के दौरा पड़े से मौत हो गइल. अकेला जिनगी आउर तीन गो लरिका. उनकरा दू गो लइका आउर एगो लइकी रहे. सभे के जिम्मेदारी अब उनकरे कंधा पर आ गइल. पेट भरे खातिर बाबूजी के एकतारी उठा लेली. दरवाजे दरवाजे जाके गाए लगली. पहिले ऊ पारंपरिक भजन-कीर्तन (भक्ति गीत) गावत रहस. वैदिक काल में गार्गी आ मैत्रेयी, विदुषी विद्वान मेहरारू) दोसर पंडित सभ से शास्त्रार्थ कइले रहस. एहि तरहा, कडूबाई आलंदी मंदिर के अंगना में धरम के ठिकेदार लोग संगे बहस कइली. बहुते बरिस तक ऊ भक्ति गीत गावत रहली. बाकिर एकरा से दू बखत के रोटी बड़ी मुस्किल से नसीब होखे. उनकरा कवनो उपाय ना सूझल त जालना जिला (महाराष्ट्र) में आपन गांव छोड़के औरंगाबाद जाए के फैसला कइली.

PHOTO • Imaad ul Hasan
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कडूबाई औरंगाबाद-बीड बाइपास रोड लगे आपन एगो मड़ई बनइली. गैरां के जमीन पर बनल टीन के छत वाला मड़इए उनकर घर बन गइल. बौद्ध धरम अपना चुकल कडूबाई बतइली कि कइसे दुनिया में रहे आउर एकर सामना करे में बाबासाहेब के प्यार, करुणा, प्रेरणा आउर ऊर्जा सहारा बनल

बाकिर औरंगाबाद में ऊ कहंवा रहिहन? कडूबाई एकरो रस्ता खोज लेहली. औरंगाबाद-बीड बाइपास लगे गैरां जमीन (पशुअन के चरे वाला सरकारी मैदान) पर आपन एगो छोट मड़ई बनइली. इहंवा पानी आउर बिजली जइसन सुविधा ना रहे. कडूबाई अबहियों उहंवे रहेली. सुरू सुरू में मीरा उमाप कुछ दिन खातिर कडूबाई के आपन मंडली में रख लेली. बाकिर उंहवा से मिले वाला पइसा तीन लरिकन के पाले-पोसे खातिर पूरा ना पड़त रहे. कडूबाई बतावत बाड़ी, “एक बेर का भइल कि पानी-बूंदी पड़े लागल. हफ्तन तक सूरज के मुंह देखे के ना मिलल. हमर त हाथ-गोड़ बंध गइल. काम खातिर बहिरा निकले में मुस्किल हो गइल. तीनों लरिका भूख से छटपटाए लगलन. हमरा से रहल ना गइल. घरे घरे जाके भजन गावे सुनावे लगनी. ओहि में से एगो मेहरारू हमरा कहली, ‘ताई, बाबासाहेब के एगो गीत सुनाव.’ हम खूब मन से गीत सुनइनी. एकरा बाद आपन तकलीफ आउर लरिकन के हाल भी बतइनी. ऊ तुरंते रसोई में गइली आउर घरे खातिर जे राशन लइले रहस, ओह में से कुछ हमरा झोली में डाल देहली. ऊ राशन से हमार लरिका सभ के महीना भर पेट भरल. हमर बच्चा सभे के भूख ऊ समझ गइल रहस.”

“आंबेडकर के गीत से हमनी के पेट भरे लागल. हमार जिनगी पूरा तरह से बदल गइल. हम भजन-कीर्तन गावे के बंद कर देनी आउर बाबासाहेब के देखावल रस्ता पर चल पड़नी. जब 2016 आइल त हम हिंदू धरम छोड़ देहनी, आउर फेरु आपन मतंग जाति भी त्याग देहनी. एकरा बाद हम बुद्ध के शरण में चल गइनी.”

कडूबाई संगे ना त उनकर बाबूजी रहस, ना घरवाला. ऊ एकदम अकेला पड़ गइल रहस. बाकिर आगे के सगरे संघर्ष में एकतारी के ताकत आउर कडूबाई के सुरीला आवाज उनकरा संगे हमेसा रहल. बाबूजी आउर घरवाला के गइला के बाद ऊ अपना के टूटे से बचा लेहली.

जिनगी के लड़ाई में कडूबाई के संगे दू गो चीज हमेसा रहल: एकतारी आउर उनकर मीठ आवाज. बाबासाहेब के प्यार, करुणा, प्रेरणा आउर उर्जा के सहारे ऊ दुनिया के सामना कइली.

दुआरिए-दुआरिए जाके गाए, भिक्षा मांगे से लेके महाराष्ट्र में आज एगो सेलिब्रिटी बने तक के उनकर सफर बहुत उल्लेखनीय रहल. एकतारी 30 बरिस से जादे बखत से उनकरा संगे बा.

वीडियो देखीं: ‘बाबासाहेब हमर लरिका सभे के पाललन, गावत बाड़ी’

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सबसे हाल में एकतारी के जिक्र अजंता के गुफा (महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिला में) में गुफा नंबर 17 में मिल सकेला. गुफा के देवाल पर एह वाद्ययंत्र के बड़ खूबसूरत पेन्टिंग बनावल बा. महाराष्ट्र के सभे जाति समूह में अलग अलग वाद्ययंत्र पसंद कइल जाला. एह सभ के कवनो अनुष्ठान आउर सांस्कृतिक बेड़ा-मौका पर बजावल जाला. जइसे कि मांग लोग हलगी बजावेला, डक्कलवार लोग किंगरी , धनगर गजी ढोल , देवी यलम्मा के भक्त लोग चोंडक , गोसावी डवरु आउर महार जाति के लोग ढोलकी तुणतुणे बजावेला.

प्रोफेसर डॉ. नारायण भोसले मुंबई विश्वविद्यालय में इतिहास पढ़ावेलन. ऊ बतावत बाड़न कि गोसावी समुदाय में डवरु वाद्ययंत्र बजावे के परंपरा बा. एहि से ओह लोग के ‘डवरू-गोसावी’ के नाम से पहचानल जाला. भट्ट समुदाय मातृसत्ता के बारे में भजन गावेला आउर ‘भाट’ कहावेला. ऊ लोग तुणतुणें आउर संबल बजावेला.

एकतारी आउर तुणतुणे देखे में एक्के जइसन लागेला. बाकिर हर वाद्ययंत्र के आवाज, बजावे के तरीका आउर बनावे के प्रक्रिया अलग अलग बा. मांग आ महार में एकतारी संगे भजन गावे के जे परंपरा रहे, ऊ ऊंच जात में ना देखाई देवेला, या होखी भी त बहुते दुर्लभ बा. ई सभ रोज के जीवन में अलग अलग मौका पर आउर सामाजिक आ धार्मिक आयोजन के मौका पर बजावल जाला.

एकतारी के बारे में जानल-मानल शाहीर संभाजी भगत कहत बाड़ें, “एकतारी दुखी मन के पीड़ा जाहिर करे में बहुत मदद करेले. जइसे ई सुर ताल, ‘डिंगनाग, डिंगनाग… ’ केहू के तकलीफ जाहिर करत बा. रउआ जब एकतारी सुनम, त लागी कि भारतीय शास्त्रीय संगीत के एगो खास राग, भैरवी सुनत हईं. एकतारी संगे जेतना भजन गावल जाला, लगभग सभे के भैरवी में रचल गइल बा. ई भैरवी से सुरु आउर भैरवी पर अंत होखेला.”

हिंदू धरम में भक्ति परंपरा के दू गो पंथ हवे: सगुण (जहंवा देवी देवता के मूरति पूजल जाला) आउर निर्गुण (जहंवा देवी देवता के कवनो मूर्त रूप ना होखे). सगुण परंपरा में देवी-देवता के मूरति आउर मंदिर जरूरी होखेला. बाकिर, निर्गुण में कवनो मंदिर चाहे मूरति के स्थान नइखे. भक्ति परंपरा के माने वाला लोग भजन गावेला. ओह लोग खातिर, संगीते भगवान के पूजा हवे. ऊ लोग इहे गीत-संगीत के लोग तक पहुंचावेला आउर एकरे देवी-देवता के पूजा मानेला. बौद्ध धरम अपनावे के पहिले महाराष्ट्र में महार लोग कबीर आ ढगोजी-मेघोजी के मानत रहे.

आकाश पांघरुनी
जग शांत झोपलेले
घेऊन एकतारी
गातो कबीर दोहे

गगन तरे
दुनिया सुत रहल बा
एकतारी संगे
कबीर दोहा गा रहल बाड़ें

कबीर के सगरे भजन एकतारी पर गावे-बजावे जाए लागल. उनकर मिहनत, जिनगी के अनुभव, फलसफा, आउर जगत के देखे के एगो अलग नजरिया एह गीतन में मिल जाई.

वीडियो देखीं: ‘एकतारी पर रउआ कवनो गीत गा सकिले’

कबीर शोषित, हाशिए पर पड़ल लोग खातिर एगो आध्यात्मिक आ संगीत से भरल प्रेरणा के जरिया बाड़न. खानाबदोश आउर संत-फकीर लोग उनकर संदेस के हाथ में एकतारी लेले दुनिया के कोना-कोना में पहुंचइलक. कबीर पर शोध कर रहल पुरुषोत्तम अग्रवाल के कहनाम बा कि कबीर के जादू हिंदी पट्टी आउर पंजाब तक नइखे चलल. एकर असर उड़िया आ तेलुगु भाषी इलाका, आ गुजरात महाराष्ट्र तक बा.

महाराष्ट्र आ एकर सीमा के पार आंध्र, कर्नाटक, गुजरात आउर मध्य प्रदेश जइसन प्रदेश में, 1956 के पहिले, महार आउर दोसर जाति के ‘अछूत’ मानल जात रहे. ऊ लोग कबीर के अनुनायी रहे, कबीरपंथी रहे. महाराष्ट्र के महान संत तुकाराम भी कबीर के मानत रहस. अइसन मानल जाला कि कबीर आउर कबीरपंथी परंपरा के प्रभाव के चलते एकतारी एह समुदाय के घर-घर तक पहुंच गइल.

दलित परिवार, खास करके महार आउर ऐतिहासिक रूप से दोसर अछूत जाति के लोग एकतारी संगे गावे के परंपरा के पालन करेला. ई वाद्ययंत्र आज भी उपयोग में बा. इहंवा कवनो परिवार में मौत होखला पर एकतारी पर ही भजन गावल जाला. महार समुदाय के लोग जे भजन गावेला ओह में कबीर के जीवन दर्शन बा, जिए के तरीका बतावल गइल बा. एह में जिनगी के राग, मोह माया, नीमन काम करे के महत्व आउर मौत अंतिम सत्य बा, अवश्यंभावी बा जइसन बात समझे जाने के मिलेला.

कडूबाई कबीर के भजन गावत बारी, ‘गगन में आग लगल बा भारी’
आउर तुकाराम अभंग गावत बाड़ें

विठ्ठला तुझे धन अपार
करीन नामाचा या गजर
धन चोरला दिसत नाही

डोळे असून ही शोधत राही

ओ विट्ठल! राउर नाम के महिमा अपरंपार बा
हम राउर नाम जपत बानी
एगो चोर एकरा नइखे देख सकत
बाकिर आंख रहत ऊ एकरा पीछे भागत बा

कडूबाई जइसन केतना गावे वाला लोग अइसने गीत गइलक. बाकिर डॉ. आंबेडकर के सामाजिक न्याय आंदोलन के बढ़त असर के चलते ऊ लोग दोसरो गीत गावे लागल.

मध्य प्रदेश के एगो नामी गवैया बाड़ें, प्रह्लाद सिंह टिपनिया. ऊ एकतारी पर दुआरी-दुआरी जाके कबीर के भजन आउर दोहा गावेलन. प्रह्लाद बलाई जाति से बाड़ें. एह समुदाय के स्थिति महाराष्ट्र के महार जइसन बा. बलाई समुदाय के लोग मध्य प्रदेश के बुरहानपुर, मालवा आ खंडवा इलाका में आउर महाराष्ट्र के सीमा पर बसल बा. डॉ. आंबेडकर जब दलितन पर होखे वाला जातीय अत्याचार के खोल के बतइलन, त ऊ बलाई समुदाय के ही जिकिर कइले रहस. हमनी अगर राज्य के सलाना आमदनी के खंगाली, त पाएम कि महार लोग आज से सौ बरिस पहिले, खेत-जमीन नापे, गांव के रखवारी करे के काम करत रहे. ऊ लोग के गांव-ज्वार में नाता रिस्तेदारन के मौत के खबर देवे के भी काम रहे. ओह घरिया के समाज में महार लोग इहे सभ करत रहे. मध्य प्रदेश में बिलकुल इहे जिम्मेदारी बलाई समुदाय के देहल गइल. ओह घरिया गांव के रखवाला के बलाई पुकारल जात रहे. अंग्रेजन के राज में इहे जाति के महार नाम रखल गइल. अइसन कइसे भइल? खंडवा आ बुरहानपुर में अंग्रेजी सरकार देखलक कि मध्य प्रदेश के बलाई आउर महाराष्ट्र के महार लोग एके जइसन बा- ओह लोग के जिनगी, रीति रिवाज, समाज के नियम-कायदा आउर मिहनत मजूरी सभ. एहि से महार जाति से जुड़ल लोग के मध्य प्रदेश में बलाई पुकारे जाए लागल. एह जाति के पहचान 1942-43 में, फेरु से कागज पर महार के रूप में दरज कइल गइल. बलाई के इहे कहानी बा.

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कडूबाई अब महाराष्ट्र के एगो चर्चित नाम बाड़ी. एकतारी 30 बरिस से अधिक समय से उनकरा संगे बा

प्रह्लाद सिंह टिपनिया, शबनम विरमणी ( द कबीर प्रोजेक्ट ) एकतारी पर कबीर के भजन गावेला.

भारत के एकतारी बाजा कई इलाका में पावल जाला. भजन गावे आउर फकीर जेका जगह जगह घूमे वाला लोग संगे एकरा देखल जा सकेला. इहे कोई 100 से 120 सेमी लंबा, एकतारी के आउर कइयक गो नाम बा. कर्नाटक में एकरा ‘एकनाद’, पंजाब में ‘तंबी’, बंगाल में ‘बाउल’ आउर नगालैंड में ‘ताती’ पुकारल जाला. आंध्र प्रदेश आउर तेलंगाना में एकर नाम ‘बुरा वीणा’ बा. छत्तीसगढ़ के आदिवासी लोग गाना गावे आउर नाचे घरिया एकतारी बजावेला.

एकतारी में खोखला, चपटा आउर सूखल लउकी के तूंबा रहेला. एकर ऊपरी हिस्सा काट के ओह पर खाल चढ़ावल रहेला. एह तूंबा में एगो वेलू , लंबा खोखला बांस, फंसा देहल जाला. वेलू में जगहा जगहा ऊपर नीचे छेद करके खूंटी लगाके तार कसल रहेला. एकरा दाहिना हाथ में पकड़ के, दहिना तर्जनी चाहे मध्यमा अंगुरी से बजावल जाला.

एकतारी (एक तार से बजे वाला बाजा) के डिजाइन आउर बनावे के तरीका दोसर ढेरे तार वाला वाद्ययंत्र के तुलना में आसान बा. लौकी, बांस आउर डोरी कहूं भी  आसानी से मिल जाला. लौकी से बनल एकतारी सबसे अच्छा गूंज पैदा करे वाला मानल जाला. एकरा अफ्रीका के साज आउर बाजा में खूब इस्तेमाल कइल जाला. एकतारी आवाज में पहिल सुर पैदा करेला, आउर लय भी. गायक आपन आवाज के एकर सुर संगे मिला सकेला आउर गीत के ध्वनि के गति भी दे सकेला. ई एगो पुरान आउर देसी स्वर वाद्ययंत्र हवे. सुरु में एकतारी के डोरी भी खाल (चमड़ा) के बनावल जात रहे. कर्नाटक में, यलम्मा देवी के पूजा में अबहियो चमड़ा के तार वाला एकतारी बजावल जाला. एकरा लोग झुंबरुक’ कहेला. एह तरह से कहल जा सकेला कि पहिल बेर सुर आउर ताल तब निकलल रहे जब चमड़ा से ढ़ंकल तूमड़ी पर कसल चमड़ा के तार के छेड़ल गइल. उहंवा के ई पहिल बाजा (वाद्ययंत्र) मानल जाला. खेती-किसानी वाला समाज अइला पर जब धातु के ईजाद भइल, त एहू में धातु के तार लगावल जाए लागल. एकरा बाद दुनिया भर में एगो तार वाला कइएक बाजा के आविष्कार भइल. एकरा बजावल जाए लागल. गली गली घूमे वाला घूमक्कड़ आउर खानाबदोश लोग एकरा पर गीत गाए लगलन. एह तरह से एकतारी जिनगी के राग आउर रंग से जुड़ गइल.

मानल जाला कि भारत में जब भक्ति आंदोलन भइल, भजन गायक आउर संत लोग एकतारी के सबले जादे इस्तेमाल कइलक. बाकिर इतिहास खंगालल जाव, त ई बात पूरा तरह से सच नइखे. कबीर, मीराबाई आउर कुछ सूफी संत लोग गावे घरिया एकतारी बजावत रहे. बाकिर महाराष्ट्र में, नामदेव से तुकाराम तक केतना कवि आउर संत-फकीर लोग बा जे ताल (झांझ), चिपली (धातु के प्लेट संगे लकड़ी के झांझर) आउर मृदंग (हाथ से बजावे वाला ढोलक) पर गावत रहे. बहुते अइसन पुरान चित्र आउर फोटो बा जे में संत आपन हाथ में वीणा लेले दिखावल गइल बाड़ें.

मराठी विश्वकोष के हिसाब से: “भारतीय संगीत में वीणा एक पुरान तार वाला वाद्य यंत्र हवे. वैदिक मंत्रोच्चारण घरिया सुर के गिनती एकरे से कइल जात रहे.” अइसे त नामदेव आउर तुकाराम जइसन संत के तस्वीर में हमनी एकरा देख सकिले. बाकिर, तुकाराम के लिखल कवनो अभंग में एकर जिकिर नइखे. हां, एह में ताल, चिपली आउर मृदंग जइसन दोसर बहुते वाद्ययंत्र के जिकिर जरूर मिल जाई.

तुकाराम के हाथ में वीणा वाला फोटो उनकर ब्राह्मणवादी छवि प्रस्तुत करेला.

वीडियो देखीं: ‘वामनदादा के प्रतिभा के कवनो मुकाबला नइखे’

रोज के जिनगी के हर पहलू पर सर्वण मानसिकिता हावी रहल बा. देवी देवता, सांस्कृतिक परंपरा आउर लोग के दोसर संवेदना के ब्राह्मणवादी विचारधारा के लोग हथिया लेले बा. एहि से उनकर मूल रूप आउर चरित्र बदल गइल. जइसहीं भारत पर अंग्रेजन के राज आइल, पेशवा के पतन हो गइल. पेशवा राज खत्म होखे से ब्राह्मणवादी ताकत कमजोर होखे लागल. समाज में आपन एह स्थिति के भरपाई करे खातिर ब्राह्मण लोग समाज के संस्कृति आउर रिवाज के हथिया लेलक. एह प्रक्रिया में, मजदूर वर्ग के कला के कई रूप आउर वाद्ययंत्र के, तेजी से उभर रहल सर्वण ताकत हथिया लेलक.

मजदूर वर्ग के एह कला आउर वाद्ययंत्र पर से अधिकार खत्म हो गइल. आउर अंत में जे लोग एकरा बनइले रहे, ओहि लोग के कला आउर संगीत के एह दुनिया से बेदखल कर देहल गइल.

मृदंग , वारकरी परंपरा में इस्तेमाल होखे वाला ढोल, चमड़ा से बनल एगो द्रविड़ वाद्ययंत्र मानल जाला. एगो हाथ से बजावे वाला ढोलक. एकरा दक्षिण भारत के अछूत लोग बनावत रहे. दोसरा ओरी, वीणा के नाता भागवत परंपरा से हवे. एकरा उत्तर भारत में जादे बजावल जाला. संभव बा कि इहे लोग वीणा के वारकरी संप्रदाय से भेंट करइले होखे. एकतारी, संबल, टिमकी, तुणतुणे आउर किंगरी भारत के वंचित आउर शोषित समुदाय के हाथ से तैयार होखे वाला वाद्य यंत्र हवे. जबकि वीणा, संतूर आउर सारंगी- भारतीय शास्त्रीय संगीत में इस्तेमाल होखे वाला वाद्ययंत्र बा. मानल जाला कि ई सभ वाद्ययंत्र फारस में बनल आउर सिल्क रूट से भारत पहुंचल. सबसे मशहूर वीणा कलाकार पाकिस्तानी हवें. भारतीय शास्त्रीय संगीत के परंपरा उहंवा के हाथ में सुरक्षित बा. पाकिस्तान के क्वेटा में अइसन केतना कलाकार लोग बा जे वीणा आउर संतूर जइसन वाद्य यंत्र बनावेला. एकर जादे करके इस्तेमाल ब्राह्मणवादी शास्त्रीय संगीत में कइल जाला. भारत में कानपुर, अजमेर आउर मिराज के मुस्लिम कारीगर एकरा तैयार करेलन.

हमनी के देश में वंचित आउर उत्पीड़ित समुदाय मूल रूप से चमड़ा के सामान आउर बहुते तार वाला उपकरण बनावेला. संगीत आउर कला के ब्राह्मणवादी परंपरा के ई ओह लोग के सांस्कृतिक विकल्प रहे. सांस्कृतिक जीवन के अपना मुट्ठी में करे खातिर ब्राह्मण लोग शास्त्रीय संगीत आउर नाच के सहारा लेलक.

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कडूबाई एकतारी संगे जे गीत गावेली, ऊ सुंदर आउर मीठ लागेला. एकतारी संगे उनकर आवाज में सादगी आउर गहराई साफ झलकेला. एकरा साथे गावत-गावत ऊ कहीं गहरे डूब जाएली.

बिलास घोगरे, प्रह्लाद शिंदे, विष्णु शिंदे आउर कडूबाई खरात जइसन आंबेडकरी शाहीर आपन एकतारी पर सड़क पर घूम घूम के, घरे घरे जाके भीम गीत गइलें, ‘आईं, ई कहानी सुनीं’. गावत बा. दुनिया भर में खानाबदोश, फकीराना तबियत के लोग के एकतारी ही सहारा बनल बा.

वीडियो देखीं: ‘हमरा अंधविश्वास से छुटकारा मिलल’

एकतारी अछूत लोग के गीत-संगीत संसार के अटूट हिस्सा हवे. ई एह लोग के आध्यात्मिक विकास के भी एगो जरूरी साधन रहल. विज्ञान जब आगू बढ़ल, त नया वाद्ययंत्र बनल. लोक परंपरा आउर लोक वाद्ययंत्र के रुप बदल गइल, जइसे कि एकतारी. कडूबाई हाथ में एकतारी लेके गावे बजावे वाला शायद अंतिम कलाकार होखिहन. हाल के बखत में एकतारी के छोड़के आंबेडकरी गवैया लोग ब्राह्मणवादी आउर आधुनिक संगीत जादे गावत बा.

आंबेडकर पर बनल नया गीत, ‘वाट माझी बघतोय रिक्शावाला’ जइसन लोकप्रिय मराठी गीत पर गावल जा रहल बा. अइसन बात नइखे कि आधुनिक संगीत या वाद्ययंत्र के इस्तेमाल ना करे के चाहीं, बाकिर सवाल ई हवे कि, का ई सुर राउर वाद्ययंत्र के शैली संगे फिट बइठत बा? का एकरा से सही संदेश जात बा? का ई जनता के मन तक पहुंचत बा? का जे गीत गावल जात बा, ओकर मर्म आम लोग समझत बा? आधुनिक वाद्ययंत्र समाज में तैयार होखत बा. हमनी के एकर इस्तेमाल संगीत के दू कदम आउर आगे ले जाए खातिर करे के चाहीं. बाकिर आजकल भीम गीत फिल्मी धुन पर बनल आउर गावल जात बा. खूब तेज आउर शोर मचावे वाला गीत. गीत कर्कश हो गइल बा. एह गीतन में आंबेडकर के कवनो गहरा दर्शन नइखे. एह में बस प्रसंशा आउर पहचान के दावा मिली. चेतना जगइले आउर दर्शन समझले बिना एह गीत पर लोग खाली नाच सकेला. अइसन गीत जादे दिन तक याद ना रखल जाई. ई लोग के दिल तक ना पहुंच सके, ना ही ई  जादे दिन तक टिक सकेला.

कडूबाई के आवाज हजारन बरिस के गुलामी के खिलाफ फूंकल गइल एगो बिगुल बा. कडूबाई जनता के गायक बाड़ी. गुरबत आउर बदहाली से निकलके आइल बाड़ी. उनकर गीत हमनी के जाति आउर धरम, छूआछूत आउर दासता के क्रूरता आउर अमानवीयता के अहसास करावेला. एकतारी से ऊ आपन परिवार आ समाज के समृद्ध विरासत के आगू बढ़ावत बाड़ी. उनकर एकतारी गीत हमनी के मन के छू लेवे वाला बा.

मह्या भिमाने माय सोन्याने भरली ओटी
किंवा
माझ्या भीमाच्या नावाचं
कुंकू लावील रमाने
अशी मधुर, मंजुळ वाणी
माझ्या रमाईची कहाणी

हमार भीम से हमनी के जिनगी सोना हो गइल
चाहे
हमार भीम के नाम पर
राम लगइलन कुमकुम (सिंदूर)
केतना मीठ आउर सुरीला आवाज
ई हमार रमाई के कहानी बा

कडूबाई के गीत से एगो आम आदमी आंबेडकर के जीवन दर्शन आसानी से समझ सकेला. एह गीत में आंबेडकर खातिर आभार बा, जिनगी के रोज के मारामारी आउर लड़ाई बा, कष्ट बा, गहिर आध्यत्मिकता बा… जिनगी के गहिर समझ बा. कुछे लोग क्रूर जाति बेवस्था के खिलाफ खड़ा भइल, आवाज उठइलक, एकरा खातिर संघर्ष कइलक. ऊ लोग एक ओरी त सामाजिक बेवस्था के विरोध कइलक, आउर दोसर ओरी आपन आवाज आउर वाद्ययंत्र से हमनी के परंपरा आ इतिहास के जिंदा रखलक. कडूबाई अइसने सिपाही हई. ऊ आंबेडकर के परंपरा के हरकारा हई.

ई कहानी मूल रूप से मराठी में लिखल गइल रहे.

ई मल्टीमीडिया फीचर ‘मराठवाड़ा के प्रभावशाली शाहीर, नैरेटिव्स’ नाम के संग्रह के हिस्सा बा. इंडिया फाउंडेशन फॉर द आर्ट्स के ओरी से उनकर अभिलेखागार आ संग्रहालय कार्यक्रम के तहत पीपुल्स आर्काइव ऑफ रूरल इंडिया के सहयोग से चले वाला एगो परियोजना हवे. एकरा गोएथे- इंस्टीट्यूट/मैक्स मूलर भवन, नई दिल्ली के आंशिक सहयोग से संभव कइल गइल.

अनुवाद: स्वर्ण कांता

Keshav Waghmare
keshavwaghmare14@gmail.com

Keshav Waghmare is a writer and researcher based in Pune, Maharashtra. He is a founder member of the Dalit Adivasi Adhikar Andolan (DAAA), formed in 2012, and has been documenting the Marathwada communities for several years.

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Illustration : Labani Jangi

Labani Jangi is a 2020 PARI Fellow, and a self-taught painter based in West Bengal's Nadia district. She is working towards a PhD on labour migrations at the Centre for Studies in Social Sciences, Kolkata.

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Editor : Vinutha Mallya

Vinutha Mallya is Consulting Editor at People’s Archive of Rural India. She was formerly Editorial Chief and Senior Editor at PARI.

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Translator : Swarn Kanta

Swarn Kanta is a journalist, editor, tech blogger, content writer, translator, linguist and activist.

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