डॉक्टर ह कहिथे, “ये ह नोनी आय.”

ये आशा के चऊथा लइका होही – फेर ये ह आखिर तय नई होय हवय. वो ह स्त्री रोग विशेषज्ञ ला अपन दाई कांताबेन ला ढांढस देवत सुन सकत रहिन. “दाई, तंय झन रो, जरूरत परही त आठ अऊ आपरेसन करहूँ. फेर जब तक ले वो ह बाबू जनम नई दिही, मंय इहिंच हवंव. ये मोर जिम्मेवारी आय.”

येकर पहिली, आशा के तीन झिन लइका मन मं सब्बो नोनी रहिन, वो सब्बो के जनम आपरेसन ले होय रहिस. अऊ अब ये डॉक्टर ले अहमदाबाद सहर के मणिनगर इलाका के एक ठन निजी क्लिनिक मं भ्रूण लिंग जाँच परिच्छन के फइसला सुनत रहिन. (ये तरीका के परिच्छन कानूनन जुरुम आय, फेर इहाँ भारी होथे.) वो ह चऊथा बेरा गरभ ले रहिन. वो ह कांताबेन के संग 13-14 कोस दुरिहा , खानपार गाँव ले इहाँ आय रहिन. दाई-बेटी दूनो दुखी रहिन. वो मन जानत रहिन के आशा के ससुर वोला गरभपात करे नई देवय. कांताबेन ह कहिथे, “ये हमर बेस्वास के खिलाफ आय.”

कहे के मतलब : ये आशा के आखिरी गरभ नई होही.

आशा अऊ कांताबेन ह चरवाहा मन के भारवाड़ समाज ले हवंय, जऊन मन मेढ़ा-छेरी चराथें. फेर, अहमदाबाद जिला के ढोलका तालुका मं – जिहाँ खानपार हवय, 271 घर मन मं अऊ 1500 के अबादी (जनगणना 2011) वाले ओकर गाँव मं अधिकतर लोगन मं गाय अऊ भैंस कमती पालथें. पारम्परिक समाजिक फेरफार मं ये समाज ला चरवाहा जात मन मं सबले तरी मं राखे जाथे अऊ ये ह गुजरात मं अनुसूचित जनजाति मं रखे गे हवय.

*****

कांताबेन, खानपार के नानकन खोली मं, जऊन मेर हमन वो ला अगोरत हवन, भीतर आय बखत अपन साड़ी के पल्लू ला मुड़ी ले हटा देथे. ये गाँव अऊ तीर-तखार के कुछेक दीगर माइलोगन मन, अपन जनम करे के सेहत ले जुरे दिक्कत ऊपर गोठ-बात करे बर आ चुके हवंय – फेर, गोठ-बात सेती ये कऊनो सुभीता के बिसय नई ये.

'You don’t cry. I will do eight more caesareans if needed. But I am here till she delivers a boy'

‘दाई, तंय झन रो, जरूरत परही त आठ अऊ आपरेसन करहूँ. फेर जब तक ले वो ह बाबू जनम नई दिही, मंय इहिंच हवंव’

कांताबेन कहिथें, "ये गाँव मं, छोटे बड़े मिलके 80 ले 90 भारवाड़ परिवार हवंय. संगे संग, हरिजन [दलित], वागडी, ठाकोर घलो रहिथें, अऊ कुम्हार मं के कुछेक घर हवंय. फेर सबले जियादा भारवाड़ परिवार हवंय.” कोली ठाकोर गुजरात मं एक बड़े जात के मंडली आय – फेर ये मन दीगर राज के ठाकुर मं ले अलग आंय.

उमर मं करीबन 50 बछर के कांताबेन बताथें, “हमर नोनी मन के बिहाव जल्दी हो जाथे, फेर जब तक ले वो मन 16 धन 18 बछर के नई होय जांय अऊ ससुराल जय सेती तियार नई हो जावेंय,” तब तक ले अपन ददा के घरेच मं रहिथें. ओकर बेटी आशा के बिहाव घलो जल्दी हो गे रहिस, 24 बछर के उमर तक ले वो तीन ल इका के महतारी होगे अऊ अब वो ह चऊथा लइका के आस करत हवय. इहाँ बालपन मं बिहाव समान्य बात आय अऊ समाज के जियादातर माईलोगन मन ला अपन उमर, बिहाव के बछर धन पहिली लइका होय बखत अपन उमर, येकर बारे मं सफ्फा-सफ्फा कुछु मालूम नई ये.

कांताबेन कहिथें, “मोला त ये घलो सुरता नई के मोर बिहाव कब होय रहिस, फेर अतका सुरता जरुर हवय के मंय हर दूसर बछर गरभ ले हो जावत रहंय.” ओकर आधार कार्ड मं लिखाय तारीख ह ओकर सुरता जइसने बेस्वास के काबिल हवय.

तऊन दिन उहाँ रहय माइलोगन मन ले एक झिन, हीराबाई भारवाड़ कहिथें, “मोर नो झिन नोनी हवंय अऊ ओकर बाद 10 वां लइका बाबू होईस. मोर बेटा कच्छा 8 मं हवय. मोर बेटी मन ले छे झिन के बिहाव हो गे हवय, दू के होय बाकि हवय. हमन दू-दू झिन के बिहाव एके बेर कर देन.” खानपार अऊ ये तालुका के दीगर गाँव मं ये समाज के माईलोगन के कतको बेर अऊ सरलग गरभ धरे आम बात आय. हीरा बेन बताथें, “हमर गाँव मं एक झिन माई लोगन रहिस, जेकर 13 गरभपात के बाद एक ठन बेटा होय रहिस. ये ह पागलपन आय. इहाँ के लोगन मन ला जब तक ले बाबू नई होय जाय, तब तक ले गरभ होय ला देवत रहिथें. वो कुछु घलो नई समझंय, वो मन ला बाबू चाही. मोर सास के आठ लइका रहिन. मोर काकी के 16 रहिन, ये ला तुमन काय कइहू.”

40 बछर के रमिला भारवाड़ कहिथें, “ससुराल वाला मन ला बाबू चाही. अऊ फेर तंय अइसने नई करस, त तोर सास ले लेके तोर ननद अऊ तोर परोसी तक, हरेक तोला ताना मारही. आज के बखत मं लइका मन ला पाले पोसे असं नई ये. मोर बड़े बेटा कच्छा 10 मं दू बेर फेल हो गे हवय अऊ अब तीसर बेर परिच्छा देवत हवय. येला सिरिफ हम माईलोगन मन समझथन के ये लइका मं ला पाले पोसे के का मतलब आय. फेर हमन काय कर सकथन?”

बाबू होय के चाह परिवार के फइसला मं सबले पहिली रहिथे, जेकर सेती माईलोगन करा जनम ले जुरे कुछेक तरीका बांचथे. रमिला कहिथें, “काय करबो जब भगवान ह हमर भाग मं बेटा के अगोरा ह लिखे हवय? बेटा ले पहिली मोर घलो तीन झिन बेटी रहिन. पहिली हम सब्बो ला बेटा के अगोरा रहिस, फेर अब जिनिस मन अलग हो सकथें.”

1,522 के अबादी वाले परोसी गाँव, लाना के बासिन्दा रेखाबेन जुवाब देथें, “काय अलग? काय मोर चार झिन नोनी नई रहिन?” हमन जऊन माई लोगन मं ला गोठियावत रहेन, वो मन के मंडली अहमदाबाद सहर के 17 कोस के दायरा मं बसे, ये तालुका के खानपार, लाना अऊ अंबलियरा गाँव मं के बस्ती ले आय हवंय. अऊ अब वो मन न सिरिफ ये पत्रकार ले बात करत हवंय, आपस मं गोठियावत घलो हवंय. रेखाबेन ह रमिला के ये विचार उपर सवाल करिस के सायद हालत बदलत हवय: वो ह पूछथें, “मंय घलो सिरिफ एक बाबू के अगोरा मं रहेंव, मंय काय नई करंय? हम भारवाड हवन, हमर बर एक बेटा होय जरूरी आय. गर हमर सिरिफ नोनी होहीं, त वो मन हमन ला बाँझ कहिथें.”

'The in-laws want a boy. And if you don’t go for it, everyone from your mother-in-law to your sister-in-law to your neighbours will taunt you'

‘ससुराल वाला मन ला बाबू चाही. अऊ फेर तंय अइसने नई करस, त तोर सास ले लेके तोर ननद अऊ तोर परोसी तक, हरेक तोला ताना मारही’

समाज के मांग के बारे मं रमिलाबेन के बेधड़क बात के बाद घलो, अधिकतर माईलोगन खुदेच समाज के दबाव अऊ सांस्कृतिक परम्परा सेती – ‘बाबू पहिली’ लाद लेथें. इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ हेल्थ साइंसेज़ एंड रिसर्च मं छपे 2015 के एक अध्ययन के मुताबिक, अहमदाबाद जिला के ग्रामीण इलाका मं 84 फीसदी ले जियादा माईलोगन मन कहिन के वो ला बाबू चाही. शोध पेपर मं कहे गे हवय के माईलोगन मन मं पसंद के कारन आय के “मरद मं भारी कमाय के ताकत रहिथे, खास करके खेती-बारी मं, वो अपन परिवार ला आगू बढ़ाथे, वो ह अपन विरासत के हासिल करेईय्या होथे.”

दूसर डहर, शोध पेपर के मुताबिक नोनी मन ला पइसा सेती बोझा समझे जाथे, जेकर कारन हवय: “दहेज के रिवाज, बिहाव के बाद वो ह अपन घरवाला के परिवार के हो जाथें; अऊ [ओकरे संगे-संग] बीमारी अऊ बुढ़ापा मं अपन दाई ददा के जिम्मेवारी नई उठाय पावेंय.”

*****

3,567 के अबादी वाले तीर के अंबलियारा गाँव के 30 बछर के जीलुबें भारवाड़ ह कुछेक बछर पहिली, ढोलका तालुका के कोठ (जऊन ला कोठा घलो कहे जाथे) के तीर एक सरकारी अस्पताल मं नसबंदी करवाय रहिस. फेर ये नसबंदी ह वो हा चार लइका के जनम के बाद करवाय रहिस. जब तक ले मोला दू झिन बाबू नई होइस, मोला अगोरे ला परिस. मोर बिहाव 7 धन 8 बछर के उमर मं हो गे रहिस, फिर जब मंय बालिग हो गेंय, त मोला ससुराल भेज दीन. वो बखत मोर उमर 19 बछर के रहे होही. येकर पहिली के मंय अपन बिहाव के कपड़ा बदले सकतें, मंय गरभ ले हो गेंव. ओकर बाद, ये ह करीबन हर दूसर साल होवत रहय.”

गरभ निरोध के गोली खाय धन कापर-टी लगवाय के बारे मं वो ह भरोसा मं नई रहिन. वो ह जोर के अवाज मं कहिथें, “मंय तब बहुते कम जानत रहंय, गर मंय जियादा जानतें, त सायदे मोर अतका लइका नई होतिन. फेर हम भारवाड़ मन ला माताजी (मेलाड़ी दाई, कुल देवी) जऊन कुछु देथें तऊन ला धरे ला परथे. गर मंय दूसर लइका जनम नई करतें, त लोगन मन कतको बात करतिन. वो मन सोचतिन के मंय कऊनो दीगर ला खोजे  ला धरे हवंव, अइसने बात मन ले कइसे निपटा जाय?”

जीलुबेन के पहिली लइका बाबू रहिस, फेर परिवार के कहना रहिस के वो ह एक ठन अऊ जनम करेय – अऊ वो ह दूसर के रद्दा देखत सरलग दू नोनी के महतारी हो गे. ये नोनी मन मं एक झिन न बोल सकय अऊ न त सुन सकय. वो ह कहिथें, "भारवाड़ मन के आगू हमन ला दू झिन बाबू चाही. आज कुछु माईलोगन मन ला लागथे के एक बाबू अऊ एक नोनी होय ह बनेच आय, फेर हमन येकर बाद घलो माताजी के आशीष के उम्मीद करथें.”

Multiple pregnancies are common in the community in Khanpar village: 'There was a woman here who had one son after 13 miscarriages. It's madness'.
PHOTO • Pratishtha Pandya

खानपार गाँव के ये समाज मं कतको बेर गरभ धरे आम बात आय: ‘इहाँ के एक झिन माईलोगन रहिस, जेकर13 गरभपात के बाद एक ठन बेटा होय रहिस. ये ह पागलपन आय’

दूसर बेटा के जनम के बाद – एक दीगर माइलोगन के सलाह ले, जऊन ला गरभ रोके के बढ़िया गियान रहिस – जीलूबेन ह आखिर मं अपन ननद संग, कोठ जेक नसबंदी करवाय के फइसला करिस. वो ह बताथें, “मोर घरवाला घलो मोला कहिस के मंय ये करवा लेवंव. वो घलो जनत रहिस के वो कतक कमाके घर लाय सकथें. हमर करा कमई के कऊनो बढ़िया जरिया घलो नई ये. हमर करा देखभाल सेती सिरिफ इही मवेसी हवंय.”

ढोलका तालुका के समाज, सौराष्ट्र धन कच्छ के भारवाड़ चरवाहा मन ले बनेच अलग हवंय. ये मंडली मन करा मेढ़ा अऊ छेरी मन के बड़े बड़े गोहड़ी हो सकत हवंय, फेर ढोलका के अधिकतर भारवाड़ सिरिफ कुछेक गाय धन भैंस पोसथें. अंबलियारा के जयाबेन भारवाड़ कहिथें, “इहाँ हरेक परिवार मं सिरिफ 2-4 मवेसी हवंय. येकर ले हमर घर के जरूरत मुस्किल ले पूरा होथे. येकर ले कऊनो आमदनी नई होवय. हमन ओकर चारा के बेवस्था करथन. कभू-कभू लोगन मं हमन ला धान के बखत कुछु धान दे देथें – नई त, हमन ला वो घलो बिसोय ला परथे.”

अहमदाबाद के बासिंदा मालधारी संगठन के अध्यक्ष, भावना रबारी कहिथें, “ये इलाका के मरद मन सड़क, भवन बनाय, अऊ खेती जइसने कतको बूता मं रोजी मजूरी करथें.” ये संगठन गुजरात मं भारवाड़ मन के हक के सेती काम करथे. बूता मिले के अधार ले वो मन रोजी 250 ले 300 रूपिया कमाथें.”

For Bhawrad women of Dholka, a tubectomy means opposing patriarchal social norms and overcoming their own fears

ढोलका के भारवाड़ माइलोगन मन बर, नसबंदी कराय के मतलब आय मरद समाज के बनाय नियम के विरोध करे अऊ अपन खुद के डर ऊपर काबू करे

जयाबेन ह बताइस के मरद “बहिर जाथें अऊ मजूरी करथें. मोर मरद सीमेंट के बोरी डोहारथे अऊ 200-250 रूपिया पाथे.” अऊ वोकर बड़भाग के तीर मं एक ठन सीमेंट कारखान हवय जिहां अधिकतर दिन बूता मिल जाथे. ओकर परिवार करा, इहाँ के दूसर लोगन मन जइसने, बीपीएल (गरीबी रेखा ले तरी) रासन कार्ड घलो नई ये.

जयाबेन, दू बाबू अऊ एक नोनी के बाद घलो अपन गरभ ला रोके सेती गरभ निरोध गोली धन कापर-टी अपनाय ला डरथें. वो ह न त आपरेसन करवाय चाहत हवंय. “मोर सब्बो जचकी घर मं होइस, मंय वो सब्बो ओऊजार ले भारी डेराथों जेकर उपयोग वो मन करथें. मंय आपरेसन के बाद, एक ठाकोर के घरवाली ला दिक्कत झेलत देखे हवंव.

“येकरे सेती हमन अपन मेलाड़ी दाई ले पूछे के फइसला करेन. मंय ओकर इजाजत बगेर आपरेसन सेती नई जय सकवं. माताजी ह मोला बढ़त रुख ला काटे के इजाजत काबर दिही? फेर ये बखत जिनिस मन बनेच महंगी हवंय. अतका सारा लोगन मन के पेट कइसे भरबो? त मंय माताजी ले कहेंव के मोर करा भरपूर लइका हवंय, फेर मंय आपरेसन ले डेरावत रहंय. मंय वोला बदें, माताजी ह 10 बछर तक ले मोर देखभाल करिस. मोला एको दवई नई लेय परिस.”

*****

ये विचार के ओकर घरवाला घलो नसबंदी कराय सकत रहिन, जयाबेन के संगे-संग उहाँ जमा, समाज के दीगर सब्बो माईलोगन बर अचरज के बात रहिस.

देस के मरद मन के इच्छा मरद नसबंदी डहर नई होवय. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत मं, 2017-18 मं होय कुल 14,73,418 नसबंदी मं मरद मन के नसबंदी सिरिफ 6.8 फीसदी रहिस, फेर माई लोगन मन के नसबंदी 93.1 फीसदी रहिस.

सब्बो नसबंदी के अनुपात मं मरद मन के नसबंदी के चलन अऊ मान, आज के तुलना मं 50 बछर पहिली जियादा रहिस, जऊन मं 1970 के दसक मं भारी गिरावट आईस, खास करके 1975-77 के आपातकाल का बखत जबरदस्ती नसबंदी कराय के बाद ले. विश्व स्वास्थ्य संगठन के बुलेटिन मं छपे एक शोध पेपर के मुताबिक, ये अनुपात 1970 मं 74.2 फीसदी रहिस,  जऊन ह घटके सिरिफ 4.2 फीसदी रहि गे.

परिवार नियोजन ला बड़े पैमाना मं माईलोगन मन के जिम्मेवारी के रूप मं देखे जाथे.

जीलुबेन ये मंडली के एकेच महतारी आंय जऊन ह नसबंदी करवाय हवय. वो ह सुरता करथें के ये करवाय के पहिली, “मोर घरवाला ले कुछु घलो अपनाय ला कहे के कऊनो सवालेच नई रहिस. मोला पता घलो नई रहिस के वो हा आपरेसन करवाय सकत हवय. वइसे घलो, हमन कभू अइसने जिनिस के बारे मं बात नई करेन.” फेर, वो ह बताथें के ओकर घरवाला अपन मरजी ले कभू कभू ढो लका ले ओकर बर “500 रूपिया मं तीन” आपातकालीन गर्भनिरोध के गोली बिसो के लावत रहिस. ये ह ओकर नसबंदी ले ठीक पहिली के बछर के बात आय.

राज के सेती राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के फेक्ट शीट (2015-16) बताथे के गुजरात के गाँव इलाका मन मं परिवार नियोजन के सब्बो तरीका मन मं पुरुष नसबंदी के हिस्सा सिरिफ 0.2 फीसदी हवय. महिला नसबंदी, कापर-टी अऊ गोली समेत दीगर सब्बो तरीका के खामियाजा माईलोगन ला भुगते ला परथे.

फेर, ढोलका के भारवाड़ माइलोगन मन बर, नसबंदी कराय के मतलब आय मरद राज वाले परिवार अऊ समाज के बनाय नियम के खिलाफ जाय अऊ संगे संग अपन खुद ऊपर काबू पाय.

The Community Health Centre, Dholka: poor infrastructure and a shortage of skilled staff add to the problem
PHOTO • Pratishtha Pandya

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, ढोलका: खराब बुनियादी ढाचा अऊ काबिल करमचारी के कमी दिक्कत ला अऊ बढ़ाथे

कांताबेन के 30 बछर के बहू, कनकबेन भारवाड़ कहिथें, “आशा [मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता] कार्यकर्ता हमन ला सरकारी अस्पताल मं ले जाथें, फेर हमन सब्बो डरे हवन.“ वो मन सुने रहिन के “आपरेसन बखत एक झिन माई लोगन ह उहिंचे मर गे रहिस. डॉक्टर ह गलती ले कऊनो अऊ नस ला काट दीस अऊ आपरेसन टेबल मं ओकर मऊत हो गे, ये घटना ला अभी बछर भर नई होय हवय.”

फेर ढोलका मं गरभ धरे घलो खतरा ले भरे हवय. सरकार के  सामूहिक आरोग्य केंद्र (सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, सीएचसी) के एक झिन डॉक्टर का कहना आय के असिच्छा अऊ गरीबी सेती माईलोगन मन सरलग गरभ ले हो जाथें अऊ दू लइका के मंझा मं उचित समय घलो नई होय. वो ह बताथें, कऊनो माई लोगन ह टेम के टेम जाँच नई कराय ला नई आवेंय. केंद्र के आय के बखत अधिकतर माईलोगन मन पोसन के कमी ले जुरे दिक्कत अऊ खून के कमी वाली रहिथें.” ओकर अनुमान हवय के “इहाँ अवेइय्या करीबन 90 फीसदी माइलोगन मं हीमोग्लोबिन 8 फीसदी ले कमती मिले हवय.”

खराब बुनियादी ढांचा अऊ सरकारी अस्पताल मं काबिल करमचारी के कमी दिक्कत ला अऊ घलो खराब कर देथे. कऊनो सोनोग्राफी मसीन नई ये, अऊ लंबा बखत ले कऊनो स्थायी स्त्री रोग विशेषज्ञ धन एनेस्थेटिस्ट जरूरत परे ले नई मिलय. एके एनेस्थेटिस्ट सब्बो छे पीएचसी (प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र), एक सीएचसी, अऊ ढोलका के कतको निजी अस्पताल मन मं धन क्लिनिक मं काम करथे अऊ मरीज मन ला येकर बर वो ला उपरहा देय ला परथे.

वोती, खानपार गाँव के तऊन खोली मं, माईलोगन मन के अपन सरीर उपर काबू करे के कमी ले बगियावत, जोर के अवाज ये गोठ बात के मंझा मं सुने ला परथे. एक बछर के लइका ला अपन कोरा मं धरे एक जवान महतारी रिस मं आके पूछथे: “तोर काय मतलब आय के कऊन फइसला करही? मंय फइसला  करहूँ. ये मोर देह आय, कऊनो अऊ काबर फइसला करही? मोला पता हवय के मोला दूसर लइका नई चाही. अऊ मंय गोली खाय ला नई चाहों. गर मंय गरभ ले होगें, त काय होइस, सरकार करा हमर बर दवई हवय, हावे कि नई? मंय दवई [इंजेक्टेबल गर्भनिरोधक] ले लिहूँ. सिरिफ मंय फइसला करहूँ.”

फेर, ये एक दूरलभ अवाज अवाज आय. येकरे बाद घलो, जइसने के रमिला भारवाड़ ह गोठ-बात के सुरुमं कहे रहिस: अब जिनिस मन थोकन बदलत चुके हवंय.” खैर, सायदे अइसने होय हो, थोर बहुत.

ये कहिनी मं सामिल सब्बो माईलोगन मन के नांव वो मं के निजता बनाय सेती बदल देय गेय हवंय.

संवेदना ट्रस्ट के जानकी वसंत ला ओकर मदद सेती खास तऊर ले धन्यवाद .

पारी अऊ काउंटरमीडिया ट्रस्ट के तरफ ले भारत के गाँव देहात के किशोरी अऊ जवान माइलोगन मन ला धियान रखके करे ये रिपोर्टिंग ह राष्ट्रव्यापी प्रोजेक्ट ' पापुलेशन फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया ' डहर ले समर्थित पहल के हिस्सा आय जेकर ले आम मइनखे के बात अऊ ओकर अनुभव ले ये महत्तम फेर कोंटा मं राख देय गेय समाज का हालत के पता लग सकय .

लेख ला फिर ले प्रकाशित करे ला चाहत हवव ? त किरिपा करके zahra@ruralindiaonline.org मं एक cc के संग namita@ruralindiaonline.org ला लिखव

अनुवाद: निर्मल कुमार साहू

Pratishtha Pandya

Pratishtha Pandya is a poet and a translator who works across Gujarati and English. She also writes and translates for PARI.

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Antara Raman is an illustrator and website designer with an interest in social processes and mythological imagery. A graduate of the Srishti Institute of Art, Design and Technology, Bengaluru, she believes that the world of storytelling and illustration are symbiotic.

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P. Sainath is Founder Editor, People's Archive of Rural India. He has been a rural reporter for decades and is the author of 'Everybody Loves a Good Drought'.

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Nirmal Kumar Sahu has been associated with journalism for 26 years. He has been a part of the leading and prestigious newspapers of Raipur, Chhattisgarh as an editor. He also has experience of writing-translation in Hindi and Chhattisgarhi, and was the editor of OTV's Hindi digital portal Desh TV for 2 years. He has done his MA in Hindi linguistics, M. Phil, PhD and PG diploma in translation. Currently, Nirmal Kumar Sahu is the Editor-in-Chief of DeshDigital News portal Contact: sahuanp@gmail.com

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