ये कहिनी बदलत मऊसम ऊपर लिखाय पारी के तऊन कड़ी के हिस्सा आज जऊन ह पर्यावरन रिपोर्टिंग के श्रेणी मं साल 2019 के रामनाथ गोयनका अवार्ड जीते हवय.

53 बछर के ज्ञानू खरात, मंझनिया ईंटा ले बने अपन घर के भुईंय्या मं बइठत कहिथें, “गर मंय ये कहिहूँ, त लोगन मन मोला बइय्हा कहहिं. फेर 30-40 बछर पहिली, बरसात के महिना मं (तीर के नरूवा मं) मछरी मन हमर खेत मं भर जावत रहिन. मंय वो मन ला अपन हाथ ले धरत रहेंव.”

ये ह मंझा जून महिना के बखत आय अऊ हमर ओकर घर आय के थोकन बेर आगू 5,000 लीटर पानी के एक ठन टैंकर खरात बस्ती मं आय हवय. ज्ञानूभाऊ, ओकर घरवाली फुलाबाई, अऊ ओकर आठ कम एक कोरी लोगन के संयुक्त परिवार के सब्बो लोगन मन बरतन, मटकी, डब्बा अऊ ड्रम मन मं पानी भरे मं लगे हवंय. पानी के ये टैंकर हफ्ता भर बाद आय हवय, इहाँ पानी के भारी मारामारी हवय.

“तुमन ला बेस्वास नई होही, 50-60 बछर पहिली इहाँ अतक पानी बरसत रहय के आंखी ला खोल के रखे ह मुस्किल हो जावय,” 75 बछर के गंगुबाई गुलीग अपन घर के लीम तरी बइठे हमन ला बताथे. करीबन 3,200 अबादी वाले ओकर गांव, गौडवाडी, संगोला तालुका के खरात बस्ती ले करीबन डेढ़ कोस दूरिहा हवय.”इहाँ आवत तुमन रद्दा मं बमरी के रूख मन ला देखेव? उहाँ के जम्मो जमीन मं बढ़िया किसिम के मूंग के उपज होवत रहिस. मुरुम (बेसाल्टी चट्टान) बरसात के पानी ला जमा करके रखे रहय अऊ पानी के धार हमर खेत मन ले निकरत रहय. एक एकड़ मं लगे सिरिफ चार धारी ले 4-5 बोरा अनाज (2-3 क्विंटल) मिल जावत रहिस. माटी अतक बढ़िया रहिस.”

अऊ 80 बछर के हौसाबाई अलदर, गौडवाडी ले कुछेक दूरिहा मं बसे अलदर बस्ती मं, अपन परिवार के खेत मं बने दू ठन चूंवा ला सुरता करथें, बरसात के बखत दूनो चूंवा (करीबन 60 बछर पहिली) पानी ले भरे रहय. हरेक मं दू ठन मोठ (बइला मन ले खींचे रहट) होवत रहिस, अऊ चरों एके संग चलंय. दिन होय धन रात, मोर ससुर पानी निकारत रहय अऊ ज़रूरतमंद लोगन ला देवत रहय. अब त कऊनो मटका भरे घलो नई कहे सकय. सब्बो कुछु उल्टा होगे हवय.

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अपन संयुक्त खरात परिवार के संग, ज्ञानू (सबले जउनि डहर) अऊ फुलाबाई (फेरका के डेरी डहर): वो ह तऊन दिन ला सुरता करथे जऊन बखत ओकर खेत मं मछरी तइरत रहेंय

महाराष्ट्र के सोलापुर जिला के संगोला तालुका अइसने कतको कहिनी ले भरे परे हवय, फेर ये ह मानदेस मं हवय, जऊन ह एक ठन ‘वृष्टिछाया’ इलाका आय (जिहां परवत से बरसात वाले हवा चलथे). ये इलाका मं सोलापुर जिला के संगोले (जऊन ला संगोला घलो कहे जाथे) अऊ मालशिरस तालुका; सांगली जिला के जत, आटपाडी, अऊ कवठेमहांकाल तालुका; अऊ सतारा जिला के माण अऊ खताव तालुका सामिल हवंय.

बढ़िया बरसात अऊ दुकाल के चक्र इहां लंबा बखत ले चलत आवत हवय, अऊ लोगन मन के दिमाग मं भारी पानी के सुरता तइसने बने हवय जइसने के पानी के कमी के सुरता. फेर अब ये गांव मन ले ये किसिम के बनेच अकन खबर आवत हवंय के कइसने “सब्बो कुछु उल्टा हो गे हवय,” कइसने भारी पानी गिरे ह जुन्ना जमाना के बात बन गे हवय, कइसने जुन्ना तरीका ह बदल गे हवय. इहीच नई, गौडवाडी के निवृत्ति शेंडगे कहिथें, “बरसात ह अब हमर सपना मं आय ला घलो बंद कर दे हवय.”

गौडवाडी के एक ठन मवेसी शिविर मं, जेठ के तिपत मंझनिया अपन बर पान बनावत, 83 बछर के विठोबा सोमा गुलीग कहिथें(लोगन मन जऊन ला मया ले तात्या कहिथें),” ये भुईंया, जिहां ये बखत शिविर चलत हवय, कऊनो जमाना मं अपन बाजरा सेती नामी रहिस, मंय घलो कऊनो जमाना मं इहाँ खेती करे हवंव....” वो ह संसो करत कहिथे, अब सब्बो कुछु बदल गे हवय. बरसात हमर गांव ले रिसागे हवय.”

तात्या, जऊन ह दलित होलार समाज ले हवंय, अपन सरी जिनगी गौडवाडी मं बिताय हवय, जइसने के ओकर परिवार के 5-6 पुस्त मन बिताय रहिन. ये ह एक ठन कठिन जिनगी रहिस. 60 बछर पहिली वो अऊ ओकर घरवाली, गंगुबाई कुसियार काटे सेती सांगली अऊ कोल्हापुर आ गे रहिन, जिहां वो मन लोगन के खेत मं मजूरी करिन अऊ अपन गाँव के तीर-तखार के सरकारी खेत मन मं बूता करिन. वो ह कहिथें, “हमन अपन चार एकड़ जमीन सिरिफ 10-12 बछर पहिली बिसोय रहेन. तब हमन ला बहुते जियादा मिहनत करे ला परत रहिस.”

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जेठ मं गौडवाडी के एक ठन मवेसी शिविर मं, विठोबा गुलीग धन तात्या कहिथें, ‘बरसात हमर गांव ले रिसागे हवय’

फेर, अब तात्या मानदेस मं सरलग सुक्खा के फिकर करत हवंय. वो ह कहिथें के 1972 ले सुक्खा के बाद बढ़िया बरसात के मऊसम के चक्र कभू समान्य नई होईस. “ये ह हरेक बछर कमतियात जावत हवय. हमन ला न त (भरपूर) वलिव (मानसून के पहिली) के पानी मिलय अऊ न त अकरस के पानी. अऊ घाम दिनों दिन बढ़त जावत हवय. फेर बीते बछर (2018) हमन ला कम से कम बने वलीव के पानी मिले रहिस, ये बछर... अब तक ले कुछु घलो नई. भूईंय्या ह कइसने जुड़ाही?”

गौडवाडी के कतको दीगर सियान मन 1972 के दुकाल ला अपन गांव मं के एक के बाद एक बरसात अऊ सुक्खा ला महत्तम बखत के रूप मं सुरता करथें. तऊन बछर, सोलापुर जिला मं सिरिफ 321 मिलीमीटर पानी बरसे रहिस (भारत के मऊसम विभाग का आंकड़ा के हवाला ले इंडियावाटर पोर्टल दिखाथे) - जऊन ह 1901 के बाद सबले कम रहिस.

गंगुबाई सेती, 1972 के दुकाल के सुरता भारी मिहनत (भारी कठिन मिहनत) अऊ भूख के सुरता कराथे. वो ह कहिथे, “हमन (दुकाल बखत, मजूरी सेती) सड़क बनाय रहेन, चूंवा कोड़े रहेन, पखना टोरे रहेन. देह मं ताकत रहिस अऊ पेट मं भूख रहिस. मंय 12 आना (75 पइसा) मं 100 क्विंटल गहूं पिसे के काम करे रहेंव. ओकर बाद बखत ह भारी खराब हो गे.”

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2018 मं संगोला मं 20 बछर मं सबले कम बरसात होय रहिस अऊ तालुका के गांव मं भूजल एक मीटर ले घलो खाल्हे मं चले गे

मवेसी सिविर मं चाहा के दुकान मं बइठे 85 बछर के दादा गडदे कहिथे, “दुकाल अतके जियादा रहिस के मंय अपन आठ कम एक कोरी मवेसी संग 10 दिन तक ले रेंगत रहनी अऊ कोल्हापुर पहुंच गेंय. मिराज रोड मं लीम के सब्बो पाना झर गे रहय. ओकर सब्बो डारा-पाना मवेसी अऊ मेढ़ा मन खा ले रहिन. वो ह मोरजिनगी के सबले बड़े खराब दिन रहिस. ओकर बाद ले जिनगी कभू सोझ नई होय सकिस.”

लंबा बखत तक ले दुकाल परे सेती, 2005 मं इहाँ के लोगन मन अलग माणदेश जिला के मांग करे सुरु कर दे रहिन, जऊन मं तीन जिला – सोलापुर, सांगली, अऊ सतारा – ले अलग कर के सब्बो दुकाल वाले ब्लॉक सामिल होंय. (फेर ये अभियान ह आखिर मं तब सिरा गे, जब येकर कुछु नेता मन इहाँ के सेती सिंचाई योजना जइसने मुद्दा डहर धियान देय लगिन).

फेर ये 1972 के दुकाल रहिस, जऊन ला गौडवाडी के कतको लोगन मन चिन्हारी जइसने सुरता करथें, सोलापुर के सरकारी वेबसाइट के आंकड़ा ले पता चलथे के जिला मं 2003 मं येकर ले घलो कम (278.7 मिमी) अऊ 2015 मं (251.18 मिमी) बरसात होय रहिस.

महाराष्ट्र के कृषि विभाग के रेनफॉल रिकॉर्डिंग एंड ऐनालिसिस पोर्टल के मुताबिक, 2018 मं, संगोला मं सिरिफ 241.6 मिमी पानी गिरे रहिस, जऊन ह 20 बछर मं सबले कम हवय; तऊन बखत सिरिफ 24 दिन पानी गिरे रहिस. विभाग के ये घलो कहना आय के ये ब्लॉक मं समान्य बरसात करीबन 537 मिमी होही.

येकरे सेती जियादा पानी के बखत ह कम धन नंदावत जावत दिखत हवय, फेर सुक्खा दिन, घाम अऊ पानी के कमी के महिना मन बढ़त जावत हवंय.

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फसल बरबाद होय अऊ बढ़त घाम सेती माटी भारी जल्दी सूखत हवय

ये बछर जेठ मं, गौडवाड़ी के मवेसी सिविर मं गरमी 46 डिग्री तक ले हबर गे रहिस. हद ले जियादा गरमी सेती हवा अऊ माटी सूखे ला लगे हवय. न्यूयॉर्क टाइम्स के जलवायु अऊ ग्लोबल वार्मिंग ऊपर एक ठन इंटरैक्टिव पोर्टल के आंकड़ा ले पता चलथे के 1960 मं; जेन बखत तात्या 24 बछर के रहिस, तऊन बखत संगोला मं 144 दिन अइसने रहिस, जब गरमी 32 डिग्री सेल्सियस तक ले हबर जावत रहिस. आज ये आंकड़ा बढ़के 177 हो गे हवय, अऊ गर वो ह 100 बछर तक ले जिंयत रही, त साल 2036 तक ले ये ह 193 दिन तक ले हबर जाही.

मवेसी सिविर मं बइठे तात्या सुरता करथे, “पहिली, सबू कुछु बखत मं होवत रहिस. मृगवर्षा (मृग नक्षत्र लगे के संग) हमेसा 7 जून के आवत रहिस अऊ अतका बढ़िया पानी गिरत रहिस के भिवघाट (पानी के धार) के पानी पूस (जनवरी) तक ले रहत रहिस. तंय जब रोहिणी (नक्षत्र, जेठ के आखिर मं) अऊ मृग के पानी मं बीजा बोथस, त अकास ले तोर फसल जिंयत रहिथे. फसल घलो पोठ होथे अऊ जऊन ह ये किसिम के अनाज ला खाथे, ओकर सेहत बढ़िया रहिथे. फेर अब, मऊसम पहिली जइसने नई ये.”

मवेसी सिविर मं ओकर संग बइठे दीगर किसान येकर हामी भरथें. समे मं पानी नई गिरे के बढ़त आंकड़ा ले सब्बो फिकर मं हवंय. तात्या बताथें, बीते बछर, पंचांग (चंद्रमा के कैलेंडर ऊपर बने हिंदू पंचांग) ह कहिथे ‘घावील तो पावील’ - ‘जेन ह बखत मं बोही, उहीच बढ़िया फसल लुही’. फेर बरसात अब कभू-कभार होते, येकरे सेती सब्बो खेत मन ला नई पुरय.”

सड़क के वो पार, सिविर मं अपन डेरा मं बइठे खरात वस्ती के बासिंदा 50 बछर के फुलाबाई खरात घलो – वो ह धनगर समाज (घुमंतू जनजाति मन के सूची मं रखे गे) ले आंय, अऊ तीन भइसा अपन संग लाय हवंय- “सब्बो नछत्र मं समे मं पानी गिरे” के सुरता कराथें. वो ह कहिथें, “सिरिफ धोंड्याचा महीना ( हिंदू पंचांग मं हरेक तीन बछर मं एक उपरहा महिना/मलमास) आय ले बरसात ह चुपेचाप चले जावत रहिस. अवेइय्या दू बछर हमन ला बढ़िया बरसात मिलत रहिस, फेर बीते कतको बछर ले अइसने नई होवत हवय.”

मऊसम के ये बदलाव ला देखत येकर मुताबिक होय ला, कतको किसान मन अपन खेती के करे बखत ला घलो बदल दे हवंय. संगोला सेती खेती के खास तरीका के बारे मं इहां के किसान मन कहिथें के इहाँ सियारी के बखत मं मटकी (मूंग), हुलगे (करिया चना), बाजरा, अऊ तुअर (राहेर) के खेती होवत रहिस; अऊ उन्हारी के बखत मं गहूं, मटर, अऊ जुवार, जोंधरा अऊ जुवार के धुपकल्ला किसिम के खेती खास करके चारा फसल के रूप मं करे जाथे.

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डेरी: फुलाबाई खरात कहिथें, ‘फेर बीते कतक बछर ले बरसात कलेचुप हवय...’ जउनि: गंगुबाई गुलीग कहिथें, 1972 के बाद ले हालत अऊ खराब होवत चले गे’

अलदर वस्ती के हौसाबाई कहिथें, “बीते 20 बछर मं, मोला ये गाँव मं कऊनो एके घलो मइनखे नई मिलिस, जऊन ह (देसी) मटकी बोवत होवय. बाजरा अऊ रहर के देसी किसिम के घलो इहीच हाल आय. गहूं के खपली किसम अब नई बोय जाय, अऊ न त हुलगे धन तिल.”

बरसात ढेरिया के आथे – जेठ के आखिर मं धन असाढ़ के सुरु मं, अऊ जल्दी चले जाथे. भादों मं अब मुस्किल ले बरसथे. येकरे सेती इहाँ के किसान हरुना संकर किसिम डहर जावत हवंय. येकर बोय ले लेके लुये तक मं 2.5 महिना के बखत लाग जाथे. नवनाथ माली कहिथे, “पांच महिना के लंबा बखत मं पाके, बाजरा, मटकी, जुवार अऊ राहेर के किसिम मन नंदावत जाय ला धरे हवंय, काबर माटी मं भरपूर नमी नई ये.” वो ह , गौडवाडी के एक कोरी दीगर किसान मन के संग कोल्हापुर के एमिकस एग्रो समूह के सदस्य आंय, जऊन ह एसएमएस के जरिया ले, पइसा लेके मऊसम के अनुमान ला बताथे.

दीगर फसल मं अपन किस्मत अजमाय सेती, कुछेक किसान इहाँ करीबन 20 बछर पहिली अनार के खेती करे ला आय रहिन. राज सरकार से मिले सब्सिडी ह वो मन के मदद करिस. बखत बीते के संग, वो मन देसी किसिम ला छोड़ के संकर, गैर-देसी किसिम लगाय लगिन. माली कहिथे, “हमन सुरु मं (12 बछर पहिली) एकड़ पाछू 2-3 लाख रूपिया कमायेन. फेर बीते 8-10 बछर ले, बगीचा मं तेल्या (जीवाणु ले अइलाय) रोग लगत हवय. मोला लागथे के ये बदलत मऊसम के सेती आय. बीते बछर, हमन ला अपन फल 25-30 रूपिया किलो मं बेचे ला परे रहिस. हमन प्रकृति के मर्ज़ी ला काय कर सकथन?”

मानसून के पहिली अऊ मानसून के बाद बरसेइय्या पानी ह घलो फसल के तरीका ला बनेच जियादा असर करे हवय. संगोला मं मानसून के बाद के बरसात - अक्टूबर से दिसंबर तक - मं सफ्फा-सफ्फा कमी आय हवय. कृषि विभाग के आंकड़ा के मुताबिक, 2018 मं ये ब्लॉक मं मानसून के बाद सिरिफ 37.5 मिमी बरसात होय रहिस, फेर बीते दू दसक मं – साल 1998 ले 2018 के मंझा मं – इहाँ अऊसतन 93.11 मिमी बरसात होय रहिस.

माणदेशी फ़ाउंडेशन के संस्थापक, चेतना सिन्हा के कहना आय, “जम्मो माणदेश इलाका सेती सबले चिंता करे के बात मानसून आय के पहिली अऊ बाद के बरसात के गायब हो जाय आय.” ये फाउंडेशन देहात के माइलोगन मन के संग खेती, करजा अऊ उदिम जइसने मुद्दा ऊपर काम करथे. (फाउंडेशन ह ये बछर 1 जनवरी ले राज मं पहिली मवेसी सिविर, सतारा जिला के माण ब्लॉक के म्हसवड़ मं सुरु करिस, जऊन मं 8,000 ले जियादा मवेसी रखे गे रहिन.) “लहूंटत मानसून हमर जिनगी जइसने हवय, काबर खाय के अऊ मवेसी मन के चारा सेती हमन उन्हारी फसल उपर आसरित रहिथन. लहूंटत मानसून ह 10 धन ओकर ले जियादा बखत तक ले नई होय सेती माणदेश के देहात अऊ दीगर समाज मन के उपर दूरिहा तक ले असर परे हवय.”

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चारा के कमी सेती संगोला मं, सुक्खा महिना मं मवेसी सिविर के आंकड़ा बढ़त हवय

फेर इहाँ खेती के तऊर-तरीका मं बदलाव के सबले बड़े कारन सायद कुसियार के भारी खेती आय. महाराष्ट्र सरकार के वित्त अऊ सांख्यिकीय निदेशालय के आंकड़ा बताथे के 2016-17 मं, सोलापुर जिला मं 1,00,505 हेक्टेयर जमीन मं 6,33,000 टन कुसियार के उपज होय रहिस. कुछेक समाचार रपट के मुताबिक, ये बछर जनवरी तक, सोलापुर अक्टूबर मं सुरु होय कुसियार पेराई बखत सबले आगू रहिस, तऊन बखत जिला के 7 कम दू कोरी पंजीकृत सक्कर मिल (सक्कर आयुक्त दफ्तर के आंकड़ा) मन एक करोड़ टन ले जियादा के कुसियार पेरे रहिन.

सोलापुर के पत्रकार अऊ जल संरक्षण कार्यकर्ता रजनीश जोशी कहिथें के सिरिफ एक टन कुसियार ला पेरे सेती करीबन 1,500 लीटर पानी के जरूरत परथे, येकर मतलब आय के कुसियार पेराई के बीते बछर मं - अक्टूबर 2018 ले जनवरी 2019 तक – अकेल्ला सोलापुर जिला मं कुसियार सेती 15 मिलियन क्यूबिक मीटर ले जियादा पानी बऊरे गे रहिस.

सिरिफ एक नगदी फसल सेती अतक जियादा पानी बऊरे ले, दीगर फसल सेती रहे पानी के स्तर पहिली ले कम बरसात अऊ अपासी के कमी ले जूझत ये इलाका मं अऊ घलो तरी मं चले जाथे. नवनाथ माली का अनुमान हवय के 1,361 हेक्टेयर मं बसे गांव, गौडवाडी (जनगणना 2011), जेकर अधिकतर जमीन मं खेती होवत हवय, सिरिफ 300 हेक्टेयर मंइच अपासी के सुविधा हवय – बाकि जम्मो जमीन अकास भरोसा हवंय. सरकारी आंकड़ा मन के मुताबिक, सोलापुर जिला मं 7,74,315 हेक्टेयर के कुल अपासी मं 2015 मं सिरिफ 39.49 फीसदी अपासी रहिस.

किसान मन के कहना आय के फसल के नुकसान (कम पानी सेती हरुना किसिम के फसल लेय) के संगे संग बढ़त घाम हा माटी ला अऊ जियादा सुक्खा कर दे हवय. हौसाबाई कहिथें के अब माटी मं ओद्दा “छे इंच गहिर घलो नई ये.”

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नवनाथ माली के अनुमान हवय के सिरिफ गौडवाडी मं 150 बोर हवंय, जऊन मं कम से कम 130 सूखा गे हवंय

धरती के भीतरी के पानी तरी जावत हवय. भूजल सर्वेक्षण अऊ विकास एजेंसी के पानी के कमी के अंदेसा वाले रपट बताथे के 2018 मं, संगोला के सब्बो 102 गांव मन मं जमीन भीतरी के पानी एक मीटर ले घलो जियादा खाल्हे मं चले गीस. जोतीराम खंडागले कहिथें, “मंय बोर करवाय के कोसिस करेंव, फेर 750 फीट गहिर मं घलो पानी नई ये. जमीन पूरा पूरी सूखा गे हवय.” ओकर करा करीबन चार एकड़ जमीन हवय अऊ वो ह गौडवाडी मं सलून घलो चलाथे. वो ह आगू कहिथे, “बीते कुछेक बछर ले सियारी अऊ उन्हारी, दूनो सीजन मं बढ़िया उपज के कऊनो गारंटी नई ये.” माली के अनुमान हवय के सिरिफ गौडवाडी मं, 150 निजी बोर हवंय, जऊन मं कम से कम 130 सूखा गे हवंय – अऊ लोगन मं पानी सेती हजार फीट तक ले कोड़ावत हवंय.

भारी पइमाना मं कुसियार के खेती डहर झुकाव ह घलो किसान मन ला खाय के फसल ले दूरिहा कर दे हवय. कृषि विभाग के मुताबिक, 2018-19 के उन्हारी सीजन मं सोलापुर जिला मं सिरिफ 41 फीसदी जुवार अऊ 46 फीसदी जोंधरा के खेती होय रहिस. राज के 2018-19 के आर्थिक सर्वे मं कहे गे रहिस के जम्मो महाराष्ट्र मं जतका रकबा मं जुवार के खेती करे जावत रहिस, वो मेर ले अब 57 फीसदी कमतिया गे हवय अऊ जोंधरा मं 65 फीसदी के घटत आय हवय. अऊ दूनो फसल के उपज मं करीबन 70 फीसदी के घटती आय हवय.

दूनो फसल मइनखे के संगे संग मवेसी मन के चारा के महत्तम जरिया आय. पोपट गडदे के अनुमान हवय के चारा के कमी ह सरकार (अऊ दीगर) ला संगोला मं सुक्खा महिना मं मवेसी सिविर लगाय ला मजबूर करे हवय – साल 2019 मं अब तक 50,000 मवेसी संग 150 सिविर. वो ह दुग्ध सहकारी समिति के निदेशक अऊ गौडवाडी मं मवेसी सिविर सुरु करेइय्या मइनखे आंय. अऊ ये सिविर मं मवेसी काय खाथें? उही कुसियार जऊन (एक अनुमान मुताबिक) हेक्टेयर पाछू 29.7 मिलियन लीटर पानी पी लेथे.

त अइसने करके, सांगोला मं एक-दूसर ले जुरे कतको बदलाव चलत हवंय, जऊन ह प्रकृति के हिस्सा आंय, फेर येकर ले घलो बड़े बात ये आय के ये ह मनखे डहर ले होय हवय. ये मं सामिल हवय कम होवत बरसात, बरसात के कमतियात दिन, बढ़त गरमी, भारी गरमी के जियादा दिन, मानसून के पहिली अऊ बाद मं बरसात के एक दम ले गायब हो जाय, अऊ माटी मं ओद्दा के कमी. संग मं फसल के तरीका मं बदलाव – हरुना वाले जियादा किसम अऊ येकर कारन फसल के रकबा मं कमी, देसी किसम मं कमी, जुवार जइसने खाय वाले अनाज अऊ कुसियार जइसने नगदी फसल के खेती के संग ख़राब अपासी, कमतियात जमीन भीतरी के पानी – अऊ घलो बनेच अकन.

गौडवाडी के मवेसी सिविर मं बइठे तात्या ले जब ये सवाल करे गीस के ये सब्बो बदलाव के पाछू काय कारन आय, त वो ह मुचमुचावत कहिथे,” भगवान करे इंदर देंवता हमर मन ला पढ़े सकतिस! मइनखे जब लालची होगे हवय, त बरसात कइसने होही? मइनखे ह जब अपन आदत-बेवहार ला बदल डरे हवय, त प्रकृति ह अपन आदत-बेवहार ला बना के कइसने रखे सकही?”

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संगोला सहर के बहिर सुक्खा परे माण नदी मं बने जुन्ना बांध

अपन बखत अऊ महत्तम जानकारी देय सेती लेखिका ह शहाजी गडहिरे अऊ दत्ता गुलीग के अभार जतावत हवय.

जिल्द फोटू : संकेत जैन/पारी

पारी के बदलत मऊसम ऊपर लिखाय देश भर ले रिपोर्टिंग के ये प्रोजेक्ट, यूएनडीपी समर्थित तऊन पहल के हिस्सा आय, जऊन मं आम जनता अऊ ओकर जिनगी के गुजरे बात ला लेके पर्यावरन मं होवत बदलाव के रिकार्ड करे जाथे

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अनुवाद: निर्मल कुमार साहू

Medha Kale
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Medha Kale is based in Pune and has worked in the field of women and health. She is the Translations Editor, Marathi, at the People’s Archive of Rural India.

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Sharmila Joshi is former Executive Editor, People's Archive of Rural India, and a writer and occasional teacher.

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Translator : Nirmal Kumar Sahu

Nirmal Kumar Sahu has been associated with journalism for 26 years. He has been a part of the leading and prestigious newspapers of Raipur, Chhattisgarh as an editor. He also has experience of writing-translation in Hindi and Chhattisgarhi, and was the editor of OTV's Hindi digital portal Desh TV for 2 years. He has done his MA in Hindi linguistics, M. Phil, PhD and PG diploma in translation. Currently, Nirmal Kumar Sahu is the Editor-in-Chief of DeshDigital News portal Contact: sahuanp@gmail.com

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