ଗୟାବାଈ‌ ‌ଚଭନ୍‌‌ ‌କହିଲେ,‌ ‌“ପ୍ରଥମେ‌ ‌ସେମାନେ‌ ‌କହିଲେ‌ ‌ଯେ‌ ‌କାର୍ଡରେ‌ ‌ଷ୍ଟାମ୍ପ୍‌‌ ‌ବାଜିନି‌ ‌।‌ ‌ତା’ପରେ‌ ‌ମୁଁ‌ ‌ଏଥିରେ‌ ‌ଷ୍ଟାମ୍ପ୍‌ ‌ମାରିବା‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌ସବୁ‌ ‌କାଗଜପତ୍ର‌ ‌ପ୍ରସ୍ତୁତ‌ ‌କଲି‌ ‌‌।‌‌ ‌କିନ୍ତୁ‌ ‌ସେମାନେ‌ ‌ମୋତେ‌ ‌କୌଣସି‌ ‌ରାସନ‌ ‌ଦେଇନାହାଁନ୍ତି”।‌

ଏପ୍ରିଲ୍‌‌ ‌୧୨‌ ‌ରେ,‌ ‌ଯେତେବେଳେ‌ ‌ମୁଁ‌ ‌ପୁଣେ‌ ‌ମ୍ୟୁନିସିପାଲିଟି‌ ‌କର୍ପୋରେସନ୍‌ର‌ ‌ଠିକା‌ ‌କର୍ମଚାରୀ‌ ‌ଗୟାବାଈଙ୍କୁ‌ ‌ଭେଟିଥିଲି,‌ ‌ସେତେବେଳେ‌ ‌ସେ‌ ‌ଲକ୍‌‌ ‌ଡାଉନ୍‌‌ ‌ସମୟରେ‌ ‌ପରିବାର‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌ଖାଦ୍ୟ‌ ‌କିଣିବାକୁ‌ ‌ନେଇ‌ ‌ଚିନ୍ତିତ‌ ‌ଥିଲେ‌ ‌‌।‌ ‌‌ସେ‌ ‌ଦାରିଦ୍ର‌ ‌ସୀମାରେଖା‌ ‌ତଳେ‌ ‌(ବିପିଏଲ)‌ ‌ରହୁଥିବା‌ ‌ପରିବାରମାନଙ୍କୁ‌ ‌ଦିଆଯାଇଥିବା‌ ‌ହଳଦିଆ‌ ‌ରାସନ‌ ‌କାର୍ଡରେ‌ ‌ପିଡିଏସ୍‌‌ ‌(ସର୍ବସାଧାରଣ‌ ‌ବଣ୍ଟନ‌ ‌ପ୍ରଣାଳୀ)‌ ‌ଆଉଟଲେଟରୁ‌ ‌ରାସନ‌ ‌ପାଇବାରେ‌ ‌ଅସମର୍ଥ‌ ‌ହେଲେ‌ ‌‌।‌ ‌ପୁଣେର‌ ‌କୋଥ୍ରୁଡର‌ ‌ଶାସ୍ତ୍ରୀ‌ ‌ନଗର‌ ‌ଅଞ୍ଚଳରେ‌ ‌ଥିବା‌ ‌ତାଙ୍କ‌ ‌ଘର‌ ‌ପାଖ‌ ‌ଦୋକାନରେ‌ ‌ଦୋକାନୀ‌ ‌ତାଙ୍କୁ‌ ‌କହିଥିଲେ‌ ‌ଯେ‌ ‌ତାଙ୍କ‌ ‌କାର୍ଡ‌ ‌ବୈଧ‌ ‌ନୁହେଁ।‌ ‌‘‘ସେ‌ ‌କହିଲେ‌ ‌ଯେ‌ ‌ରାସନ‌ ‌ପାଇବା‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌ମୋର‌ ‌ନାମ‌ ‌ତାଲିକାରେ‌ ‌ନାହିଁ।’

‌୪୫‌ ‌ବର୍ଷ‌ ‌ବୟସ୍କା‌ ‌ଗୟାବାଈ,‌ ‌୧୪‌ ‌ବର୍ଷ‌ ‌ପୂର୍ବେ‌ ‌ପିଏମସିରେ‌ ‌ଝାଡ଼ୁଦାର‌ ‌ଭାବରେ‌ ‌କାମ‌ ‌କରିବା‌ ‌ଆରମ୍ଭ‌ ‌କରିଥିଲେ‌ ‌‌।‌ ‌‌ସେ‌ ‌କାରଖାନା‌ ‌କର୍ମଚାରୀ‌ ‌ଭାବରେ‌ ‌କାମ‌ ‌କରୁଥିବା‌ ‌ତାଙ୍କ‌ ‌ସ୍ୱାମୀ‌ ‌ଭିକା‌ ‌ଦୁର୍ଘଟଣାରେ‌ ‌ଅକ୍ଷମ‌ ‌ହୋଇଯିବାର‌ ‌ଏକ‌ ‌ବର୍ଷ‌ ‌ପରେ‌ ‌କାମ‌ ‌କରିବା‌ ‌ଆରମ୍ଭ‌ ‌କରିଥିଲେ‌ ‌।‌ ‌ବର୍ତ୍ତମାନ‌ ‌ସେ‌ ‌ତାଙ୍କ‌ ‌ପରିବାରର‌ ‌ଏକମାତ୍ର‌ ‌ରୋଜଗାରିଆ‌ ‌ସଦସ୍ୟ‌ ‌‌।‌ ‌ତାଙ୍କର‌ ‌ବଡ‌ ‌ଝିଅ‌ ‌ବିବାହିତ,‌ ‌ସାନ‌ ‌ଝିଅ‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ପୁଅ‌ ‌ଦୁହେଁ‌ ‌ଅଧାରୁ‌ ‌ସ୍କୁଲ୍‌‌ ‌ଛାଡିଛନ୍ତି‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ରୋଜଗାର‌ ‌କରୁନାହାଁନ୍ତି।‌ ‌ଗୟାବାଈ‌ ‌ତାଙ୍କର‌ ‌ମାସିକ‌ ‌ଟ.‌ ‌୮,୫୦୦‌ ‌ଆୟରେ‌ ‌ଘର‌ ‌ଚଳାଉଥିଲେ।‌ ‌ଶାସ୍ତ୍ରୀ‌ ‌ନଗର‌ ‌ଚଲ୍‌ରେ‌ ‌ଥିବା‌ ‌ତାଙ୍କ‌ ‌ଟିଣ‌ ‌ଛାତର‌ ‌ଘର‌ ‌ଭଙ୍ଗାରୁଜା‌ ‌ଅବସ୍ଥାରେ‌ ‌ଅଛି‌ ‌‌।‌ ‌‌ସେ‌ ‌କହିଥିଲେ,‌ ‌"ଏହା‌ ‌ମୋର‌ ‌ଅବସ୍ଥା,‌ ‌କିନ୍ତୁ‌ ‌ମୁଁ‌ ‌ରାସନ‌ ‌ପାଉ‌ ‌ନାହିଁ।"‌

ରାସନ‌ ‌ଦୋକାନକୁ‌ ‌ତାଙ୍କର‌ ‌ନିରର୍ଥକ‌ ‌ଯାତ୍ରା‌ ‌କେବଳ‌ ‌ଲକଡାଉନ୍‌ ‌କାରଣରୁ‌ ‌ନୁହେଁ‌ ‌‌।‌ ‌ସେ‌ ‌କହିଛନ୍ତି,‌ ‌“ସେମାନେ‌ ‌[ଦୋକାନୀମାନେ]‌ ‌ମୋତେ‌ ‌ଛଅ‌ ‌ବର୍ଷ‌ ‌ହେବ‌ ‌ରାସନ‌ ‌ଦେଇନାହାଁନ୍ତି।’’‌ ‌ସେ‌ ‌ଆଶା‌ ‌କରିଥିଲେ‌ ‌ଯେ‌ ‌ଲକଡାଉନ୍‌ ‌ସମୟରେ‌ ‌ସେମାନେ‌ ‌ଦୟା‌ ‌କରିବେ‌ ‌‌।‌

ମାର୍ଚ୍ଚ‌ ‌୨୫‌ ‌ରେ‌ ‌ଲକ୍‌ଡାଉନ୍‌‌ ‌ଆରମ୍ଭ‌ ‌ହେବାର‌ ‌ଦୁଇ‌ ‌ସପ୍ତାହରୁ‌ ‌ଅଧିକ‌ ‌ସମୟ‌ ‌ପରେ‌ ‌ଗୟାବାଈ‌ ‌ରହୁଥିବା‌ ‌କଲୋନୀରେ‌ ‌ଥିବା‌ ‌ଅନେକ‌ ‌ପରିବାର‌ ‌ସ୍ଥାନୀୟ‌ ‌ପିଡିଏସ୍‌ ‌ଦୋକାନରୁ‌ ‌ଖାଦ୍ୟ‌ ‌ସାମଗ୍ରୀ‌ ‌କିଣିବାକୁ‌ ‌ଅସମର୍ଥ‌ ‌ହୋଇଥିଲେ‌ ‌‌।‌ ‌‌ଜାତୀୟ‌ ‌ଖାଦ୍ୟ‌ ‌ସୁରକ୍ଷା‌ ‌ଅଧିନିୟମ‌ ‌(୨୦୧୩)‌ ‌ରେ‌ ‌ଅନ୍ତର୍ଭୁକ୍ତ‌ ‌ରାସନ-କାର୍ଡ‌ ‌ଧାରକମାନଙ୍କ‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌ସବସିଡି‌ ‌ଯୁକ୍ତ‌ ‌ଶସ୍ୟ‌ ‌ଉପଲବ୍ଧ‌ ‌ହେବ‌ ‌ବୋଲି‌ ‌କେନ୍ଦ୍ର‌ ‌ସରକାରଙ୍କ‌ ‌ଆଶ୍ୱାସନା‌ ‌ସତ୍ତ୍ୱେ‌ ‌ଦୋକାନୀମାନେ‌ ‌ସେମାନଙ୍କୁ‌ ‌ଫେରାଇବା‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌ବିଭିନ୍ନ‌ ‌କାରଣ‌ ‌ଦର୍ଶାଇଛନ୍ତି।‌

ଯେତେବେଳେ‌ ‌ଲକ୍‌‌ ‌ଡାଉନ୍‌‌ ‌ଲାଗୁ‌ ‌ହେଲା,‌ ‌ଅନେକ‌ ‌ମହିଳା‌ ‌ରିହାତି‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ମାଗଣା‌ ‌ଖାଦ୍ୟଶସ୍ୟକୁ‌ ‌ଆଶା‌ ‌କରିଥିଲେ-‌ ‌ସେମାନଙ୍କର‌ ‌କିଞ୍ଚିତ୍‌‌ ‌ଆୟ‌ ‌ମଧ୍ୟ‌ ‌ବନ୍ଦ‌ ‌ହୋଇ‌ ‌ଯାଇଥିବାରୁ‌ ‌ସେମାନେ‌ ‌ଖୁଚୁରା‌ ‌ଦୋକାନରୁ‌ ‌କିଣିପାରିବେ‌ ‌ନାହିଁ‌

ଭିଡିଓ‌ ‌ଦେଖନ୍ତୁ:‌ ‌ଏମିତି‌ ‌ରାସନ୍‌‌ ‌କାର୍ଡ‌ ‌କ’ଣ‌ ‌ଦରକାର‌ ‌?‌

ଗୟାବାଈଙ୍କ‌ ‌ଚଲ୍‌ର‌ ‌ଅନ୍ୟ‌ ‌ବାସିନ୍ଦାମାନଙ୍କ‌ ‌ମଧ୍ୟରୁ‌ ‌ଅନେକେ‌ ‌ଦୋକାନୀଙ୍କ‌ ‌ପ୍ରତିକ୍ରିୟାର‌ ‌ତାଲିକା‌ ‌ଦେଇଛନ୍ତି‌ ‌:‌ ‌ଜଣେ‌ ‌ପଡୋଶୀ‌ ‌କହିଛନ୍ତି,‌ ‌‘‘ମୁଁ‌ ‌ଦୋକାନକୁ‌ ‌ଗଲି,‌ ‌ମୋତେ‌ ‌କୁହାଗଲା‌ ‌ଯେ‌ ‌ମୁଁ‌ ‌ଆଉ‌ ‌ମାସିକ‌ ‌ରାସନ‌ ‌ପାଇବି‌ ‌ନାହିଁ‌ ‌।’’‌ ‌ଅନ୍ୟ‌ ‌ଜଣେ‌ ‌କହିଥିଲେ,‌ ‌“ଦୋକାନୀ‌ ‌କହିଲେ‌ ‌ଯେ‌ ‌ମୋର‌ ‌ଆଙ୍ଗୁଠି‌ ‌ଛାପ‌ ‌ମେଳ‌ ‌ଖାଉ‌ ‌ନାହିଁ‌ ‌[ସିଷ୍ଟମରେ‌ ‌ଥିବା‌ ‌ରେକର୍ଡ]‌ ‌‌।‌ ‌ମୋର‌ ‌ଆଧାର‌ ‌କାର୍ଡ‌ ‌ରାସନ‌ ‌କାର୍ଡ‌ ‌ସହିତ‌ ‌ସଂଯୁକ୍ତ‌ ‌ହୋଇନି‌।‌”‌ ‌ତାଙ୍କ‌ ‌ପରିବାରର‌ ‌ଆୟ‌ ‌ତାଙ୍କ‌ ‌ରାସନ‌ ‌କାର୍ଡର‌ ‌ଆୟ‌ ‌ସୀମାଠାରୁ‌ ‌ଅଧିକ‌ ‌ବୋଲି‌ ‌କହି‌ ‌ଜଣେ‌ ‌ମହିଳାଙ୍କୁ‌ ‌ଫେରାଇ‌ ‌ଦିଆଯାଇଥିଲା।‌ ‌ସେ‌ ‌କହିଲେ‌ ‌,‌ ‌ଯେଉଁମାନେ‌ ‌ଖାଦ୍ୟ‌ ‌ଶସ୍ୟ‌ ‌କିଣି‌ ‌ପାରିବେ‌ ‌ନାହିଁ‌ ‌ସେମାନେ‌ ‌କିପରି‌ ‌ରାସନ‌ ‌ପାଇବେ?‌ ‌’’‌

୪୩‌ ‌ବର୍ଷ‌ ‌ବୟସ୍କା‌ ‌ଅଲକା‌ ‌ଡାକେ‌ ‌କହିଥିଲେ,‌ ‌“ଦୋକାନୀ‌ ‌ମୋତେ‌ ‌କହିଲା‌ ‌ସେ‌ ‌ମୋତେ‌ ‌କିଛି‌ ‌ଦେଇ‌ ‌ପାରିବେ‌ ‌ନାହିଁ।‌ ‌ମୁଁ‌ ‌ବର୍ତ୍ତମାନ‌ ‌ସୁଦ୍ଧା‌ ‌ତିନିବର୍ଷ‌ ‌ଧରି‌ ‌କୌଣସି‌ ‌ରାସନ‌ ‌ପାଇ‌ ‌ନାହିଁ‌ ‌‌।‌ ‌‌’’‌ ‌ସେ‌ ‌ଏକ‌ ‌ଘରୋଇ‌ ‌ବିଦ୍ୟାଳୟରେ‌ ‌ସଫେଇ‌ ‌କର୍ମଚାରୀ‌ ‌ଭାବରେ‌ ‌କାମ‌ ‌କରି‌ ‌ମାସିକ‌ ‌ଟ.‌ ‌୫୦୦୦‌ ‌ରୋଜଗାର‌ ‌କରନ୍ତି‌ ‌।‌

ଅଲକାଙ୍କ‌ ‌ପରିସ୍ଥିତି‌ ‌ସମ୍ପର୍କରେ‌ ‌ସ୍ଥାନୀୟ‌ ‌କାର୍ଯ୍ୟକର୍ତ୍ତା‌ ‌ଉଜ୍ୱଲା‌ ‌ହାୱଲେ‌ ‌କହିଲେ,‌ ‌‘‘ଯଦିଓ‌ ‌ତାଙ୍କ‌ ‌ପାଖରେ‌ ‌ବିପିଏଲ୍‌ ‌ହଳଦିଆ‌ ‌କାର୍ଡ‌ ‌ଅଛି,‌ ‌ତଥାପି‌ ‌ସେ‌ ‌ରାସନ‌ ‌ପାଆନ୍ତି‌ ‌ନାହିଁ‌ ‌‌।‌ ‌‌ଦୋକାନୀ‌ ‌ତାଙ୍କ‌ ‌ଉପରେ‌ ‌ଚିତ୍କାର‌ ‌କରେ‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ତାଙ୍କୁ‌ ‌ଚାଲି‌ ‌ଯିବାକୁ‌ ‌କୁହେ‌ ‌।‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ସେ‌ ‌ସେହି‌ ‌କାର୍ଡକୁ‌ ‌ବୈଧ‌ ‌କରିବାର‌ ‌ପ୍ରତିଶ୍ରୁତି‌ ‌ଦେଇ‌ ‌ପ୍ରତ୍ୟେକ‌ ‌ମହିଳାଙ୍କ‌ ‌ଠାରୁ‌ ‌ଟ.‌ ‌୫୦୦‌ ‌ନେଇଛନ୍ତି‌ ‌।‌ ‌କିନ୍ତୁ‌ ‌ସେମାନେ‌ ‌ରାସନ‌ ‌ପାଉ‌ ‌ନାହାଁନ୍ତି‌ ‌।‌ ‌”‌

ମାର୍ଚ୍ଚ‌ ‌୨୬‌ ‌ରେ‌ ‌କେନ୍ଦ୍ର‌ ‌ଅର୍ଥମନ୍ତ୍ରୀଙ୍କ‌ ‌ଦ୍ୱାରା‌ ‌ଘୋଷିତ‌ ‌ରିଲିଫ୍‌ ‌ପ୍ୟାକେଜ୍‌ ‌ର‌ ‌ଅଂଶ‌ ‌ଭାବରେ‌ ‌ପ୍ରତିଶ୍ରୁତି‌ ‌ଦିଆଯାଇଥିବା‌ ‌ମାଗଣା‌ ‌ପାଞ୍ଚ‌ ‌କିଲୋ‌ ‌ଚାଉଳ‌ ‌ଅଲକା‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ଗୟାବାଈଙ୍କୁ‌ ‌ଦିଆଯାଇନଥିଲା‌ ‌‌।‌ ‌‌କାର୍ଡଧାରୀଙ୍କ‌ ‌ମାସିକ‌ ‌ଶସ୍ୟ‌ ‌ଆବଣ୍ଟନ‌ ‌ବ୍ୟତୀତ‌ ‌ଏହା‌ ‌ପ୍ରଦାନ‌ ‌କରାଯିବାର‌ ‌ଥିଲା‌ ‌‌।‌ ‌‌ଏପ୍ରିଲ୍‌ ‌୧୫‌ ‌ରେ‌ ‌ରାସନ‌ ‌ଦୋକାନଗୁଡିକ‌ ‌ଚାଉଳ‌ ‌ବଣ୍ଟନ‌ ‌କରିବା‌ ‌ପରେ‌ ‌ଧାଡି‌ ‌ଲମ୍ବା‌ ‌ହୋଇଗଲା‌ ‌।‌ ‌କିନ୍ତୁ‌ ‌ମାଗଣା‌ ‌ଚାଉଳ‌ ‌ସହିତ‌ ‌ପ୍ରତି‌ ‌ପରିବାରକୁ‌ ‌ଦିଆଯିବାକୁ‌ ‌ଥିବା‌ ‌ମାଗଣା‌ ‌ଏକ‌ ‌କିଲୋ‌ ‌ଡାଲି‌ ‌ଏପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ‌ ‌ପିଡିଏସ୍‌‌ ‌ଆଉଟଲେଟରେ‌ ‌ପହଞ୍ଚି‌ ‌ପାରି‌ ‌ନାହିଁ‌ ‌‌।‌ ‌କୋଥ୍ରୁଡର‌ ‌ଏକ‌ ‌ରାସନ‌ ‌ଦୋକାନୀ‌ ‌କଣ୍ଟିଲାଲ‌ ‌ଡାଙ୍ଗୀ‌ ‌କହିଛନ୍ତି,‌ ‌“ଯଦିଓ‌ ‌ମାଗଣା‌ ‌ଚାଉଳ‌ ‌ଆସିଯାଇଛି,‌ ‌ତଥାପି‌ ‌ଆମେ‌ ‌ଡାଲିକୁ‌ ‌ଅପେକ୍ଷା‌ ‌କରିଛୁ”।‌

ଯେତେବେଳେ‌ ‌ଲକଡାଉନ୍‌ ‌ଲାଗୁ‌ ‌ହେଲା,‌ ‌ଶାସ୍ତ୍ରୀ‌ ‌ନଗରର‌ ‌ଅନେକ‌ ‌ମହିଳା‌ ‌ସବ୍‌ସିଡି‌ ‌କିମ୍ବା‌ ‌ମାଗଣା‌ ‌ଶସ୍ୟ‌ ‌ଉପରେ‌ ‌ଭରସା‌ ‌କରୁଥିଲେ‌ ‌-‌ ‌ସେମାନଙ୍କର‌ ‌ସ୍ୱଳ୍ପ‌ ‌ଆୟ‌ ‌ଆସିବା‌ ‌ବନ୍ଦ‌ ‌ହୋଇଯାଇଥିବାରୁ‌ ‌ସେମାନେ‌ ‌ଖୁଚୁରା‌ ‌ମୂଲ୍ୟ‌ ‌ଦେଇପାରିବେ‌ ‌ନାହିଁ‌ ‌‌।‌ ‌ରାସନ‌ ‌ଦୋକାନରୁ‌ ‌ତାଙ୍କୁ‌ ‌ଫେରାଇ‌ ‌ଦିଆଯିବାରେ‌ ‌ବିରକ୍ତ‌ ‌ହୋଇ‌ ‌ଏକ‌ ‌ମହିଳା‌ ‌ଗୋଷ୍ଠୀ‌ ‌ମହିଳା‌ ‌କୋଥ୍ରୁଡ‌ ‌ନିକଟସ୍ଥ‌ ‌ଏରାଣ୍ଡୱାନେରେ‌ ‌ଥିବା‌ ‌ଏକ‌ ‌ପିଡିଏସ୍‌ ‌ଦୋକାନ‌ ‌ବାହାରେ‌ ‌ବିରୋଧ‌ ‌କରିବାକୁ‌ ‌ନିଷ୍ପତ୍ତି‌ ‌ନେଇଥିଲେ‌ ‌।‌ ‌‌ସେମାନେ‌ ‌ସେମାନଙ୍କର‌ ‌ରାସନ‌ ‌କାର୍ଡ‌ ‌ସହ‌ ‌ଏକତ୍ରୀତ‌ ‌ହୋଇ‌ ‌ଦୋକାନୀଙ୍କ‌ ‌ଠାରୁ‌ ‌ରାସନ‌ ‌ଦାବି‌ ‌କରି‌ ‌ଥିଲେ‌ ‌‌।‌

ନେହରୁ‌ ‌କଲୋନୀରେ‌ ‌ରହୁଥିବା‌ ‌ଘରୋଇ‌ ‌ସହାୟିକା‌ ‌ଜ୍ୟୋତି‌ ‌ପାୱାର‌ ‌କ୍ରୋଧରେ‌ ‌କହିଥଲେ:‌ ‌“ମୋ‌ ‌ସ୍ୱାମୀ‌ ‌ତାଙ୍କ‌ ‌ରିକ୍ସା‌ ‌ଚଳାଇ‌ ‌ପାରିବେ‌ ‌ନାହିଁ‌ ‌[ଲକ୍‌ଡାଉନ୍‌‌ ‌ସମୟରେ]‌।‌ ‌‌ଆମେ‌ ‌କିଛି‌ ‌ପାଉ‌ ‌ନାହୁଁ‌ ‌‌।‌ ‌ମୋର‌ ‌ମାଲ୍‌କିନ୍‌ ‌[ନିଯୁକ୍ତିଦାତା]‌ ‌ମୋତେ‌ ‌ମୋର‌ ‌ଦରମା‌ ‌ଦେଉ‌ ‌ନାହାଁନ୍ତି‌ ‌।‌ ‌ଆମେ‌ ‌କ’ଣ‌ ‌କରିପାରିବୁ‌ ‌?‌ ‌ଏହି‌ ‌ରାସନ‌ ‌କାର୍ଡର‌ ‌ଉପଯୋଗ‌ ‌କ’ଣ?‌ ‌ଆମେ‌ ‌ଆମ‌ ‌ପିଲାମାନଙ୍କ‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌ଉପଯୁକ୍ତ‌ ‌ଖାଦ୍ୟ‌ ‌ପାଉନାହୁଁ।‌ ‌”‌

PHOTO • Jitendra Maid
Gayabai Chavan (left) and Alka Dake were turned away by shopkeepers under the pretext that their BPL ration cards were invalid
PHOTO • Jitendra Maid

ଗୟାବାଈ‌ ‌ଚଭନ‌ ‌(ବାମ)‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ଅଲକା‌ ‌ଡାକେଙ୍କୁ‌ ‌ତାଙ୍କ‌ ‌ଦୋକାନୀମାନେ‌ ‌ଏହି‌ ‌ବାହାନା‌ ‌ଦେଖାଇ‌ ‌ଫେରାଇ‌ ‌ଦେଇଥିଲେ‌ ‌ ଯେ‌ ‌ସେମାନଙ୍କର‌ ‌ବିପିଏଲ୍‌‌ ‌ରାସନ‌ ‌କାର୍ଡଗୁଡ଼ିକ‌ ‌ଅମାନ୍ୟ‌ ‌ହୋଇଯାଇଛି‌

ଲୋକମାନଙ୍କୁ‌ ‌କାହିଁକି‌ ‌ଫେରାଇ‌ ‌ଦିଆଯାଉଛି‌ ‌ବୋଲି‌ ‌ପଚରାଯିବାରୁ‌ ‌କୋଥ୍ରୁଡରେ‌ ‌ଗୋଟିଏ‌ ‌ରାସନ‌ ‌ଦୋକାନର‌ ‌ମାଲିକ‌ ‌ସୁନୀଲ‌ ‌ଲୋଖଣ୍ଡେ‌ ‌କହିଛନ୍ତି,‌ ‌"ଆମେ‌ ‌ନିର୍ଦ୍ଧାରିତ‌ ‌ନିୟମ‌ ‌ଅନୁଯାୟୀ‌ ‌ରାସନ‌ ‌ବଣ୍ଟନ‌ ‌କରୁଛୁ‌ ‌‌।‌ ‌‌ଷ୍ଟକ୍‌ ‌ଆମ‌ ‌ପାଖରେ‌ ‌ପହଞ୍ଚିବା‌ ‌ପରେ‌ ‌ଖାଦ୍ୟ‌ ‌ଶସ୍ୟ‌ ‌ବିତରଣ‌ ‌କରୁଛୁ।‌ ‌କିଛି‌ ‌ଲୋକ‌ ‌ଗହଳି‌ ‌ଯୋଗୁଁ‌ ‌[ଲମ୍ବା‌ ‌ଧାଡି]‌ ‌ଅସୁବିଧା‌ ‌ଭୋଗୁଛନ୍ତି।‌ ‌କିନ୍ତୁ‌ ‌ଆମେ‌ ‌ଏହା‌ ‌ବିଷୟରେ‌ ‌କିଛି‌ ‌କରିପାରିବୁ‌ ‌ନାହିଁ।‌ ‌"‌

ପୁଣେରେ‌ ‌ରାଜ୍ୟର‌ ‌ଖାଦ୍ୟ,‌ ‌ନାଗରିକ‌ ‌ଯୋଗାଣ‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ଉପଭୋକ୍ତା‌ ‌ସୁରକ୍ଷା‌ ‌ବିଭାଗର‌ ‌ଅଧିକାରୀ‌ ‌ରମେଶ‌ ‌ସୋନାୱାନେ‌ ‌ମୋ‌ ‌ସହ‌ ‌ଫୋନ୍‌ରେ‌ ‌କଥାବର୍ତ୍ତା‌ ‌କରି‌ ‌କହିଛନ୍ତି,‌ ‌‘‘ପ୍ରତ୍ୟେକ‌ ‌ରାସନ‌ ‌ଦୋକାନକୁ‌ ‌ଆବଶ୍ୟକ‌ ‌ଷ୍ଟକ୍‌ ‌ଯୋଗାଇ‌ ‌ଦିଆଯାଇଛି।‌ ‌ତେଣୁ‌ ‌ପ୍ରତ୍ୟେକ‌ ‌ନାଗରିକଙ୍କୁ‌ ‌ପର୍ଯ୍ୟାପ୍ତ‌ ‌ପରିମାଣର‌ ‌ଖାଦ୍ୟ‌ ‌ଶସ୍ୟ‌ ‌ମିଳିବା‌ ‌ଆବଶ୍ୟକ‌ ‌[ସେମାନଙ୍କର‌ ‌ଅଧିକାର‌ ‌ଅନୁଯାୟୀ]‌ ‌‌।‌ ‌‌ଯଦି‌ ‌ଏଥିରେ‌ ‌କୌଣସି‌ ‌ଅସୁବିଧା‌ ‌ଅଛି,‌ ‌ତେବେ‌ ‌ଲୋକମାନେ‌ ‌ଆମ‌ ‌ସହିତ‌ ‌ଯୋଗାଯୋଗ‌ ‌କରିବା‌ ‌ଉଚିତ୍‌ ‌‌।‌’’‌

ଏପ୍ରିଲ‌ ‌୨୩‌ ‌ରେ‌ ‌ଗଣମାଧ୍ୟମକୁ‌ ‌ଦେଇଥିବା‌ ‌ବିବୃତିରେ‌ ‌ମହାରାଷ୍ଟ୍ରର‌ ‌ଖାଦ୍ୟ‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ନାଗରିକ‌ ‌ଯୋଗାଣ‌ ‌ମନ୍ତ୍ରୀ‌ ‌ଛଗନ‌ ‌ଭୁଜବଳ‌ ‌ଶସ୍ୟ‌ ‌ବଣ୍ଟନରେ‌ ‌ଅନିୟମିତତା‌ ‌ବିଷୟରେ‌ ‌କହିଥିଲେ।‌ ‌ସେ‌ ‌କହିଥିଲେ‌ ‌ଯେ‌ ‌ଏଭଳି‌ ‌ଅନିୟମିତତା‌ ‌ତଥା‌ ‌ଲକଡାଉନ୍‌ ‌ନିୟମ‌ ‌ପାଳନ‌ ‌ନକରିବା‌ ‌କାରଣରୁ‌ ‌ରାସନ‌ ‌ଦୋକାନ‌ ‌ମାଲିକଙ୍କ‌ ‌ବିରୋଧରେ‌ ‌ଦୃଢ଼‌ ‌କାର୍ଯ୍ୟାନୁଷ୍ଠାନ‌ ‌ଗ୍ରହଣ‌ ‌କରାଯାଇଛି‌ ‌-‌ ‌ମହାରାଷ୍ଟ୍ରରେ‌ ‌୩୯‌ ‌ଦୋକାନୀଙ୍କ‌ ‌ବିରୋଧରେ‌ ‌ମାମଲା‌ ‌ରୁଜୁ‌ ‌କରାଯାଇଛି‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ଏବଂ‌ ‌୪୮‌ ‌ଟି‌ ‌ଦୋକାନର‌ ‌ଲାଇସେନ୍ସ‌ ‌ବାତିଲ‌ ‌କରାଯାଇଛି।‌

ପରଦିନ‌ ‌ରାଜ୍ୟ‌ ‌ସରକାର‌ ‌ଘୋଷଣା‌ ‌କରିଛନ୍ତି‌ ‌ଯେ‌ ‌ଏହା‌ ‌ଚାଉଳ‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ଗହମକୁ‌ ‌ଗେରୁଆ-କାର୍ଡ‌ ‌ଧାରକ‌ ‌(ଦାରିଦ୍ର‌ ‌ସୀମାରେଖା‌ ‌ଉପରେ‌ ‌ବା‌ ‌ଏପିଏଲ୍‌ ‌ପରିବାର‌ ‌ଉପରେ)‌ ‌ତଥା‌ ‌ଯେ‌ ‌କୌଣସି‌ ‌କାରଣରୁ‌ ‌ବାତିଲ‌ ‌ହୋଇଯାଇଥିବା‌ ‌ହଳଦିଆ‌ ‌ବିପିଏଲ୍‌‌ ‌କାର୍ଡ‌ ‌ପରିବାରକୁ‌ ‌ତିନିମାସ‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌ସବସିଡି‌ ‌ହାରରେ‌ ‌ଚାଉଳ‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ଗହମ‌ ‌ବଣ୍ଟନ‌ ‌କରିବ‌ ‌।‌

ଏପ୍ରିଲ୍‌ ‌୩୦‌ ‌ରେ,‌ ‌ଅଲକା‌ ‌ହଳଦିଆ‌ ‌କାର୍ଡରେ‌ ‌ରାସନ‌ ‌ଦୋକାନରୁ‌ ‌ଦୁଇ‌ ‌କିଲୋ‌ ‌ଚାଉଳ‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ତିନି‌ ‌କିଲୋ‌ ‌ଗହମ‌ ‌କିଣିଥିଲେ‌ ‌‌।‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ମେ‌ ‌ମାସର‌ ‌ପ୍ରଥମ‌ ‌ସପ୍ତାହରେ,‌ ‌ଗୟାବାଈ‌ ‌ତାଙ୍କ‌ ‌ପରିବାର‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌୩୨‌ ‌କିଲୋ‌ ‌ଗହମ‌ ‌ଏବଂ‌ ‌୧୬‌ ‌କିଲୋ‌ ‌ଚାଉଳ‌ ‌କିଣିଥିଲେ‌।‌

କେଉଁ‌ ‌ସରକାରୀ‌ ‌ଯୋଜନା‌ ‌ସେମାନଙ୍କ‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌ଏହି‌ ‌ସହାୟତା‌ ‌ଆଣିଛି‌ ‌-‌ ‌କିମ୍ବା‌ ‌ଏହା‌ ‌କେତେ‌ ‌ଦିନ‌ ‌ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ‌ ‌ଚାଲିବ‌ ‌ତାହା‌ ‌ଗୟାବାଈ‌ ‌କିମ୍ବା‌ ‌ଅଲକା‌ ‌କେହି‌ ‌ଜାଣି‌ ‌ନାହାଁନ୍ତି।‌

ଅନୁବାଦ:‌ ‌ଓଡ଼ିଶାଲାଇଭ୍‍‌

Jitendra Maid
jm539489@gmail.com

Jitendra Maid is a freelance journalist who studies oral traditions. He worked several years ago as a research coordinator with Guy Poitevin and Hema Rairkar at the Centre for Cooperative Research in Social Sciences, Pune.

Other stories by Jitendra Maid
Translator : OdishaLIVE

This translation was coordinated by OdishaLIVE– a dynamic digital platform and creative media and communication agency based out of Bhubaneswar. It handles news, audio-visual content and extends services in the areas of localization, video production and web & social media.

Other stories by OdishaLIVE