धड़गांव इलाका के अकरानी तालुका में एगो तपत दुपहरिया में शेवंता तड़वी (काल्पनिक नाम) छोट बकरी के झुंड के पाछु-पाछु भागत बारी. रउदा से बचे खातिर ऊ आपन कोरा (लुगा के पल्लू) से माथा तोप लेहली. बकरी के बचवा सभ कबो झाड़ी में, कबो केहू के खेत में घुस जात बारन. ऊ परेशान होके जब आपन लाठी जमीन पर मारेली, झट देन सभ वापस झुंड में आ जालन. शेवंता कहतारी, “हमरा ए लोग पर पूरा नजर राखे के होला. छोट-छोट बचवा जादे शरारती होखेला. ऊ केनहू भाग जाला.'' ऊ मुस्कुराइत बारी, "अब इहे लोग हमार लइकन जइसन बारे."
शेवंता जंगल तरफ जात बाड़ी. इहंवा से उनकर घर चार किलोमीटर से जादे होई. ऊ नंदुबार जिला के हरणखुरी गांव में रहेली. गंउवा में उनकर बस्ती के ‘महाराजपाड़ा’ कहल जाला. जंगल में इहंवा ऊ आपन बकरी चरावे लगली. चहकत चिरई आ हवा में सरसर झूमत पेड़ के बीच अकेले, निफिकर एगो मेहरारू. वनजोति (बांझिन- मतलब जे मेहरारू बच्चा ना जन सकत बा), दलभद्री (अभागी), दुष्ट (टोनही) जइसन बेर-बेर के जहर बूझल बोली से दूर. उनकर बियाह के 12 बरिस हो गइल, बाकिर लोग अबहु उनका ताना मारेला.
ऊ खिसिया के पूछेली, “जे मरदन लइका ना पैदा कर सके, ओह खातिर बांझिन जइसन जहर बुझल बोली काहे नइखे?”
शेवंता अब 25 बरिस के बारी. उनकर बियाह 14 बरिस जइसन बाली उमिर में हो गइल रहे. मरद रवि (32 बरिस) खेतिहर मजदूर हवे. काम मिलला पर 150 रुपया रोज के मजूरी मिल जाला. उहो के दारू के लत लागल बा. महाराष्ट्र के आदिवासी बहुल इलाका में रहे वाला ई लोग भील समुदाय से बा. शेवंता दबल आवाज़ में बतावेली कि पिछला रात रवि (काल्पनिक नाम) उनकरा के फेरु से पीटले रहले. ऊ कंधा उचकावत कहेली, “ई हमरा ला कोई नया बात नइखे. हम ओकरा के एगो लइका नइखीं दे सकत, ऐह खातिर हमार जिनगी नरक हो गइल बा. डॉक्टर कहेले कि हमार बच्चादानी में दिक्कत बा, एहिसे हम माई नइखी बन सकत."
धड़गांव के सरकारी अस्पताल में 2010 में शेवंता के गर्भपात भइल रहे. ओहि बेरा पता चलल कि उनका पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओएस) हवे. शेवंता के हिसाब से एकर मतलब खराब कोख होला. ओह घरी ऊ तीन महीना के पेट से रहस, आ उनकर उमर खाली 15 बरिस रहे.
पीसीओएस हार्मोन से जुड़ल एगो विकार (दिक्कत) ह. ई बच्चा जने के उमिर वाली कुछ मेहरारू लोग में पाइल जाला. एकरा चलते माहवारी गड़बड़, बेबखत, या लंबा चलेला. एह में एंड्रोजन यानी मरद-हार्मोन बढ़ जाला. खाली इहे ना, पीसीओएस होला पर जनाना के ओवरी यानी अंडाशय के आकार बढ़ जाला. एह विकार के कारण प्रजनन से जुड़ल समस्या, गर्भपात या, समय से पहिले जचगी जइसन परेशानी हो सकेला.
भारत के प्रसूति आ स्त्री रोग से जुड़ल सोसाइटी फेडरेशन के अध्यक्ष डॉ. कोमल चवन बतावत बारन कि पीसीओएस के इलावे एनीमिया, सिकल सेल (जन्मजात रक्त विकार), साफ-सफाई के कमी आउर यौन संचारित बेमारी भी मेहरारू के बेऔलाद होए खातिर जिम्मेदार बा.
शेवंता के मई 2010 के दिन आज भी साफ-साफ याद बा. ओहि दिन उनकर गर्भ गिरल रहे. ओकरे बाद पता चलल कि उनका पीसीओएस बा. खेत जोते घरी सूरज माथा पर चमकत बा. ऊ इयाद करत बारी, “सबेरे से पेट में दरद होखत रहे. हमार मरद हमरा संगे डॉक्टर लगे जाए से मना क देले रहले, एहसे हम दरद के भुलाई के काम प चल गइनी.” दुपहरिया तक दर्द बेसंभार भ गइल रहे. ऊ कहली, “हमरा खून आवे लागल. लुगा खून से सना गइल रहे.” ऊ तनी रुक के सांस लेहली, फेरो बतइली, “हम समझ ना पवनी का होखता.” एकरा बाद ऊ बेहोश हो गइल रहस. तब लगे के खेत में काज करत मजदूर लोग उनकरा के दु किलोमीटर दूर धड़गांव अस्पताल ले गइले.
पीसीओएस के पता चलला के बाद से उनकर जिनगी अन्हार हो गइल.
उनकर मरद ई माने से मना कर देलें कि शेवंता के कोनो अइसन बीमारी बा जवना चलते कोख हमेशा खातिर सूना हो जाला. "जबले ऊ डाक्टर से ना मिलिहें, कइसे पता चली हमर कोख काहे नइखे भरात?" शेवंत पूछत बारी. शेवंता के दरद समझे के जगहा ऊ ओकरा संगे बेर-बेर जबरन आ असुरक्षित संबंध बनावेलन. कबो-कबो संबंध बनावे घरिया चोट (यौन हिंसा) भी करेलन. शेवंता कहली, “अतना बरदाश्त कइला के बाद भी जदी हमरा पीरियड हो जाला, त ऊ आग-बबूला हो जालन. एह चलते ऊ (संबंध के बखत) आउर ज्यादती करेलन. ऊ तनिक फुसफुसा के कहेली, "ऊ घरिया हमरा बहुत दरद होखेला. उहंवा कबो जरेला, कबो बहुते खुजली होखेला. ई सब 10 बरिस से चलत रहे. पहिले त हम रोवत रहनी, फेर आंसू सूख गइल."
उनकरा लागेला कि सून कोख, लोगवा के जहर बुझल बोली, लांछन, असुरक्षा आ अकेलापन करम में बद देहल गइल बा. ऊ याद करत बारी, “बियाह के पहिले हम बहुत बकर-बकर करत रहनी. पहिल बेर इहंवा अइनी त मुहल्ला के मेहरारू लोग के हमरा संगे संगी-सहेली जइसन व्यवहार रहे. बियाह के दु बरिस बाद भी जब हमर गोद ना भरल, त ऊ सभ लोग हमरा से मुंह फेर लेहलक. अब केहू आपन लइका के हमरा पास फटके ना देवेला. ऊ लोग के नजर में हम अब पापिन हईं. हमरा समाज में हर जगह से बेलगा देहल जाला.”
ईंटा के बनल एगो खोली के घर में कोना में इंटा के चूल्हा बा. ओहि पर कुछु बरतन सजावल रखल बा. पूरा खोली भांय भांय करत बा. शेवंता के रोज इहे डर लागल रहेला कि घरवाला दोसर बियाह कर लिहें. ऊ कहेली, “हमरा लगे कतहू जाए के कोई नइखे. हमार माई-बाबूजी फूस के झोपड़ी में रहेले. ऊ 100 रुपया में दोसरा के खेत में काम करेले. हमार चारो छोट बहिन आपन जिनगी में मगन बारी. ससुराल के लोग हमरा घरवाला के बियाह बदे लइकी देखावत रहेला.” शेवंता ठंडा सांस छोड़त बोलत बारी, “ऊ हमरा के छोड़ दिहे त हम कहंवा जाइब?"
शेवंता के बरिस भर में 160 दिन खेत में मजूरी के काम मिल जाला, जवना से ऊ रोज के 100 रुपया कमा लेवेली. कबो-कबो किस्मत साथ देवेला त महीना में 1000-1500 रुपया के कमाई भी हो जाला. बाकिर जादे कमावल उनकरा हाथ में नइखे. ऊ बतवली, “हमरा लगे राशन कार्ड नइखे. चाउर, जवार के आटा, तेल आ मिरचा पाउडर में महीना के 500 रुपया खरच हो जाला. बाकी पइसा हमार मरद छीन लेला. घर के खर्चा खातिर भी पइसा ना देवेला, मेडिकल इलाज के त बाते भुला जाईं. पूछला प मारपीट करेला. पता ना ऊ शराब प खर्चा करे के अलावे आपन कमाई के का करेला.”
एगो समय रहे जब उनका लगे 20 गो बकरी रहे. उनकर मरद एक-एक क के उ सबके बेचत गइलें. अब खाली 12 गो बकरी बाचल बारी.
घर में नून-तेल के दिक्कत होखला के बादो शेवंता आपन बच्चा जने से जुड़ल दिक्कत के इलाज खातिर पइसा बचा के रखली. ओह पइसा से ऊ बस्ती से 61 किलोमीटर दूर शहादे शहर के एगो निजी डॉक्टर से आपन इलाज करवावे लगली. ऊ 2015 में तीन महीना आउर 2016 में तीन आउर महीना ओवुलेशन के उत्तेजित करे बदे क्लोमिफेन थेरेपी करवली. एह सब में 6,000 रुपया लाग गएल. ऊ हमरा से बतावतारी, “तब धड़गांव के अस्पताल में कवनो दवाई ना रहे, एहसे हम आपन माई संगे शहाडे के प्राइवेट क्लीनिक गइल रहनी.”
जब 2018 आइल, ऊ धड़गांव के ग्रामीण अस्पताल में उहे इलाज मुफ्त में भइल. बाकिर अफसोस, तीसर बेर भी इलाज फेल हो गइल. हताश शेवंता एकरा बाद इलाज के बारे में सोचल बंद क देहली. भींजल आंख से ऊ कहेली, “हमार बकरी अब हमार लइका बारी सन."
हर मामला में इलाज अलग-अलग होखेला, डॉ. संतोष परमार बताव तारे. ऊ धड़गांव ग्रामीण अस्पताल में स्त्री रोग विशेषज्ञ आ ग्रामीण स्वास्थ्य अधिकारी बारन. ई अस्पताल में हर दिन आसपास के 150 गांवन से मरीज आवेला. इहंवा रोज 400 से जादे मरीज ओपीडी में रजिस्ट्रेशन करावेला. परमार बतावत बारन, “क्लोमीफीन साइट्रेट, गोनैडोट्रॉपिंस आउर ब्रोमोक्रिप्टिन जइसन दवाई कुछ लोग पर ही असर करेला. बाकी मामिला में, इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) आ इंट्रायूटेरिन इन्सेमिनेशन (IUI) नियर नया विकसित प्रजनन तकनीक लाय के जरूरत ह."
परमार के कहनाम बा, “धड़गांव अस्पताल में वीर्य के जांच, शुक्राणु के गिनती, खून आउर पेशाब के जांच आउर जननांग के जांच जइसन मूल जांच हो सकत बा. बाकिर बांझपन (प्रजनन से जुड़ल परेशानी) के एडवांस इलाज इहंवा त का, नंदुरबार सिविल अस्पताल में भी नइखे.” ऊ आगे कहले, "एहिसे बच्चा चाहेवाला जोड़ा बहुत हद तक निजी क्लिनिक प निर्भर बा, जहंवा हजारों रुपया खरचा करे के होखेला." अस्पताल में परमार एकमात्र स्त्री रोग विशेषज्ञ बारे. ऊहे गर्भनिरोधक सेवा से लेके मां के सेहत आउर नवजात शिशु के देखभाल तक के काम संभालेले.
‘हेल्थ पॉलिसी एंड प्लानिंग’ पत्रिका के 2009 के एगो लेख में कहल गइल बा, “भारत में बांझपन केतना बरिस पहिले स ह, एह बात के सबूत, ‘बहुत कम आउर पुरान’ बा.”राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे ( NFHS-4 ; 2015-16) के मानल जाए त, 40-44 बरिस के 3.6 फीसदी मेहरारू में पावल गइल ऊ लोग के कबो बच्चा ना भइल. जनसंख्या स्थिर करे पर ध्यान देवे के कारण, बच्चा जने से जुड़ल परेशानी के रोकथाम आ देखभाल जइसन काम जनस्वास्थ्य सेवा के एगो उपेक्षित आ कम प्राथमिकता वाला काम ही रहल.
शेवंता के ई सवाल एकदम जायज बा, “अगर सरकार बच्चा रोके बदे कंडोम और दवाई भेजतिया, त इहंवा बांझपन के मुफ़्त इलाज के सुविधा काहे नइखे दे सकत?”
इंडियन जर्नल ऑफ कम्युनिटी मेडिसिन के एगो अध्ययन में पावल गइल कि जादे जिला अस्पताल सभ में प्रबंधन के रोकथाम आ प्रबंधन करे बदे बुनियादी ढांचा आ निदान के सुविधा रहे. बाकिर जादे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHCs), प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) में ई सुविधा ना रहे, 94 प्रतिशत पीएचसी आउर 79 प्रतिशत सीएचसी में वीर्य जांच सेवा ना रहे. अइसे त 42 प्रतिशत जिला अस्पताल में उन्नत प्रयोगशाला सेवा रहे, बाकिर सीएचसी के मामला में खाली 8 फीसदी रहे. जिला अस्पताल में मात्र 25 प्रतिशत में डायग्नोस्टिक लेप्रोस्कोपी आउर 8 प्रतिशत अस्पताल में हिस्टेरोस्कोपी उपलब्ध रहे. क्लोमीफ़ीन से ओवुलेशन इंडक्शन 83 प्रतिशत जिला अस्पताल में आउर 33 प्रतिशत में ही गोनैडोट्रॉपिंस के सुविधा रहे. जांच में इहो पता चलल कि सर्वेक्षण में शामिल स्वास्थ्य केंद्र के कवनो कर्मचारी के प्रजनन के परेशानी के ठीक करे में कवनो सेवा में प्रशिक्षण नइखे मिलल. इंडियन जर्नल ऑफ कम्युनिटी मेडिसिन 12 गो राज्य में 2012-13 के बीच ई अध्ययन कइले रहे.
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के नासिक चैप्टर के पूर्व अध्यक्ष डॉ. चंद्रकांत संकलेचा नोट करतारे, “इलाज तक पहुंचल एगो मुद्दा बा, बाकिर ग्रामीण स्वास्थ्य ढांचा में स्त्री रोग जानकार के अनुपस्थिति एकरा से जादे गंभीर मुद्दा बा. बांझपन के दूर करे में काबिल आ प्रशिक्षित स्टाफ आ टेक उपकरण के जरूरत बा. बाकि सरकार के प्राथमिकता महतारी के सेहत आउर नवजात शिशु के देखभाल बा. एहिसे पीएचसी चाहे सिविल अस्पताल में बांझपन के सस्ता इलाज देहल आर्थिक रूप से मुश्किल बा."
शेवंता के बस्ती से पांच किलोमीटर दूर गीता वलावी बरिसपाड़ा में आपन फूस के झोपड़ी के बहरी खाट (चरपाई) प राजमा सुखावे बदे फैलावत बारी. गीता 30 बरिस के बारी. उनकर बियाह 17 बरिस पहिले 45 बरिस के सूरज (काल्पनिक नाम) से भइल रहे. सूरज खेतिहर मजदूर बारन. ऊ बहुते शराब पियेलन. इहो लोग भील समुदाय के हवे. उहंई के रहे वाला आशा (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) के बहुत निहोरा कइला पर ऊ 2010 में आपन जांच करवावे गइलन. जांच में पता चलल के उनकरा शुक्राणु के संख्या बहुते कम बा. एकरा से कुछ बरिस पहिले 2005 में दुनो लोग एगो लइकी के गोद लेले रहे. बाकिर परेशानी ई रहे कि गीता के सास आउर मरद ओकरा के बच्चा ना होवे के कारण बहुते दुख देवत रहे. ऊ बतावत बारी, “ऊ बच्चा ना होवे के सब दोष हमरा कपार पर मढेले. जबकि कमी उनकरा में बा, हमरा में नइखे. बाकिर हम औरत हईं, एहिसे हम केहु आउर से बियाह नइखी क सकत.''
गीता (काल्पनिक नाम) 2019 में आपन एक एकड़ खेत से 20 किलो राजमा आउर एक क्विंटल जवार के कटाई कइली. ऊ गुस्सा में कहली, “ई लोग घर में खाली बइठ के खाए ला बा. हमार मरद खेत में कुछ ना करेले. खेत पर मजूरी करके ओकरा जवन भी कमाई होला, ऊ शराब पीये आउर जुआ खेले में उड़ा देवेला.'' गीता आपन गुस्सा के दबाए बदे दांत कस लेहली, “उनकरा बस मुफ्त में रोटी तोड़े के बा!”
ऊ कहेली, “नशा में घरे आवेलन त हमरा के लात मारेलन, कबो त लाठियो से पीटेलन. जब ऊ नशा में ना होखेलन, त हमरा से एकदमे ना बोलेले.” बरिसन से चलत आवत ई जोर-जुलुम के चलते उनकर पीठ आउर कंधा दरद से पीड़ात रहेला.
गीता बतवलि, “हम आपन देवर के बेटी के गोद लेले बानी, बाकिर हमार मरद आपन बच्चा चाहतारे, उहो बेटा. एहसे ऊ आशा ताई के कहलो पर कंडोम ना लगावेलन, दारू भी पियल ना बंद करतारे.” आशा ताई हर हफ्ता उनकर सेहत के बारे में पूछताछ करे बदे आवेली. आउर सलाह देले बारी कि उनकर मरद के कंडोम के इस्तेमाल करे के चाही. काहे कि गीता के संबंध बखत दर्द, घाव, पेशाब में जलन, सफेद पानी आवे आउर पेट के निचला हिस्सा में दर्द के शिकायत बा. ई सभ यौन संचारित बेमारी, प्रजनन तंत्र में संक्रमण के संकेत ह.
आशा ताई गीता के इलाज करावे के सलाह देले बारी. बाकिर ऊ अपना पर धियान देहल बंद क देले बारी. अब ऊ इलाज ना करवावे के चाहत बारी. ऊ मायूसी होके कहेली, “अब डॉक्टर के मिले, चाहे इलाज करावे से का फायदा?” गीता आगे पूछतारी, “दवाई से हमार देहिया के दरद त चल जाई, बाकिर ओकरा से का होई. का हमार मरद पियल बंद क दिहे, का ऊ हमरा के मारल-पीटल बंद क दिहे?”
डॉ. परमार हर हफ्ता कम से कम चार से पांच गो अइसन जोड़ा से मिलेलन जिनकरा बच्चा नइखे होत. इहंवा शराब के कारण मरद के शुक्राणु के संख्या कम होखल, बच्चा ना होए के पीछे के बड़ा कारण बा. ऊ कहले, “पुरुष में कई तरह के कमी के कारण भी बांझपन होला. ई बारे में समाज में जानकारी ना होखे के कारण मेहरारू संगे बेरहमी बरतल जाला. बाकिर जादे त मेहरारू लोग अकेले ही आवेली. पुरुष खातिर ई जरूरी बा कि ऊ समझदारी देखावस आउर आपन जांच करवावस, ना कि एकर कुल दोष मेहरारू पर डाल देस.”
आबादी के स्थिर रखे पर ध्यान देहे बदे बच्चा जने से जुड़ल समस्या के रोकथाम आ जरूरी इलाज जनस्वास्थ्य सेवा के जरूरी लिस्ट में नइखे. बच्चा ना होखे में पुरुष के शारीरिक दोष के बारे में जानकारी के कमी के कारण मेहरारू संगे जुलुम होखेला
डॉ. रानी बांग पिछला तीन दशक से अधिका समय से पूर्वी महाराष्ट्र के गढ़चिरोली आदिवासी पट्टी में प्रजनन स्वास्थ्य के मुद्दा प काम करत बारी. ऊ कहेली, “बांझपन मेडिकल मुद्दा से जादे सामाजिक बा.” ऊ कहत बारी, “मरद में बांझ होवल एगो बड़ समस्या बा. बाकिर बांझिन होखल खाली मेहरारू के समस्या मानल जाला. एह सोच के बदले के जरूरत बा."
हेल्थ पॉलिसी एंड प्लानिंग पत्रिका में छपल लेख में लेखक लोग के कहनाम बा, "भले ही बहुत कम मेहरारू आ जोड़ा बांझपन के शिकार बा, ई प्रजनन स्वास्थ्य आउर अधिकार के बड़ा मुद्दा बा." लेख में कहल गइल बा, “बांझपन के सबसे बड़का आ दोसर कारण नर आ मादा दुनों से जुड़ल बा. बांझिन होए के डर मेहरारू लोग में जादे होला. इनहन के पहिचान, हैसियत आ सुरक्षा सब पर एकर असर पड़े ला. ई लोग के लांछन आ अकेलापन के सामना करे के पड़ेला. मेहरारू घर आ समाज में आपन बात कहे आ अपना शर्त पर जिए के मौका खो देवेली."
गीता अठवां तक पढल बारी. उनकर बियाह 13 बरिस के उमर में 2003 में हो गइल रहे. कबो ग्रेजुएट होए के उनकर सपना रहे. अब ऊ चाहत बारी कि उनकर 20 बरिस के बेटी लता (काल्पनिक नाम) के आपन सपना पूरा होखे. बेटी धड़गांव के एगो जूनियर कॉलेज में 12वीं में पढ़ेली. गीता कहतारी, “त का भइल, अगर ऊ हमरा कोख से ना जनमली. हम नइखी चाहत कि उनकर जिनगी हमरा नियर बरबाद हो जाए.''
एगो जमाना रहे जब गीता के सजे-संवरे में मजा आवत रहे. “हमरा बाल में तेल लगावल, शिकाकाई से धोवल आउर बस आईना निहारल अच्छा लागत रहे.” चेहरा प टैल्कम पाउडर लगावे, बाल के स्टाइल करे आउर साड़ी के बढ़िया से लपेटे खाती उनका कवनो खास मौका के जरूरत ना रहत रहे. बाकिर बियाह के दु बरिस बाद भी बच्चा ठहरे के कोई निशानी ना दिखाई देहलक. ई बात पर सास आउर मरद उनका के नीचा देखावे बदे "छिनाल" कहे लगले. फेरो गीता भी अपना पर ध्यान देवेला छोड़ देहली. ऊ पूछत बारी, "हमरा आपन बच्चा ना भइला से बुरा नइखे लागत; अब हम आपन बच्चा ना पैदा कइल चाहतानी. बाकिर सुंदर देखाई देवे के इच्छा कइल गलत काहे बा?"
गीता के एक तरीका से समाज से लगभग बेलगा दिहल गइल बा. अब बियाह होखे, छठी होखे चाहे दोसर कवनो शुभ मौका, उनका ना नेवतल जाला. ऊ बतावत बारी, “लोगवा खाली हमर मरद आ ससुराल वाला के बोलावेला. ऊ लोग के नइखे पता कि हमार घरवाला में कमी बा, हम बांझिन नइखी. बाकिर पतो होखित, त का उनका के बुलावल बंद कर देहल जाइत?”
पारी आ काउंटरमीडिया ट्रस्ट देश भर में गंउवा के किशोरी आउर जनाना के केंद्र में रख रिपोर्टिंग करेला. राष्ट्रीय स्तर पर चले वाला ई प्रोजेक्ट ' पापुलेशन फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया ' के पहल के हिस्सा बा. इहंवा हमनी के मकसद आम जनन के आवाज आ ओह लोग के जीवन के अनभव के मदद से महत्वपूर्ण बाकिर हाशिया पर पड़ल समुदायन के हालत के पड़ता कइल बा.
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अनुवाद : स्वर्ण कांता