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पर्यावरणाचा रं सत्यानाश केला,
वाघदेवा, जंगल वाचवाया तू धाव रं
आपल्या घराचा रं सत्यानाश केला,

वाघदेवा, जंगल वाचवाया तू धाव रं

उन्होंने नष्ट कर दिया है पर्यावरण को,
हे बाघ देवता, आओ और बचाओ हमारे वनों को
उन्होंने बर्बाद कर दिया है हमारे घरों को,

हे बाघ देवता, आओ और बचाओ हमारे वनों को

प्रतिलिपि

ये हैं प्रकाश भोईर जो वाघ देवा से अपने समुदाय और जंगल के अन्य प्राणियों को उनकी भूमि के विनाश से बचाने के लिए प्रार्थना कर रहे हैं।

प्रकाश मल्हार कोली आदिवासी समाज से हैं। वह उत्तरी मुंबई के गोरेगांव की हरी आरे कॉलोनी के केल्तीपाड़ा में रहते हैं। वह बताते हैं कि उनका जन्म यहीं हुआ था और उनका परिवार पिछली कई पीढ़ियों से यहीं रह रहा है। 47 वर्षीय प्रकाश, बेस्ट (बीईएसटी) स्टाफ बसों का रखरखाव और मरम्मत का कार्य करते हैं।

प्रकाश भोईर : जंगल को बचाने के बजाय , वे प्रकृति को नष्ट कर रहे हैं। इसलिए आपको बचाव में आना होगा और हमारी मदद करनी होगी।

लगभग 3,200 एकड़ में फैले आरे के इलाक़े (कई लोग इसे जंगल कहते हैं) में 27 पाड़ा थे। ये लगभग 10,000 आदिवासी समुदायों के लोगों का घर था।

लेकिन आरे के आसपास का क्षेत्र धीरे-धीरे सिकुड़ रहा है। यहां कई परियोजनाओं को लागू किया जा रहा है। इसकी शुरुआत मिल्क (दूध) कॉलोनी या डेयरी प्रसंस्करण इकाई से हुई, और बाद में भूमि अधिग्रहण के तहत एक फिल्म सिटी (या फिल्म शूटिंग के लिए एक परिसर), एक फिल्म स्कूल, और राज्य रिज़र्व पुलिस के लिए भूमि को भी शामिल कर लिया गया।

दशकों से लोग पुरानी मुंबई के वेटनरी कॉलेज से अनापत्ति प्रमाणपत्र लेने के लिए संघर्ष कर रहे थे, ताकि पास के नवसाचा पाड़ा में नगर निगम से बिजली और पानी के कनेक्शन मिल सकें। पानी का कनेक्शन अभी तक नहीं मिला है। नवसाचा पाड़ा के एक निवासी, राकेश सिंघवन इन सभी संघर्षों के बारे में बता रहे हैं।

राकेश सिंघवन : हमारे घर के ठीक बगल से लाइन [ बिजली ] गुज़रती है। वहां एक पुराना लाल इलेक्ट्रिक [ जंक्शन ] बॉक्स भी है , जैसे ही आप ऊपर चढ़ेंगे , वहीं पर है। क्वार्टर में रहने वाले मालिकों के लिए बिजली , हमारे दरवाज़े से होकर गुज़रती है। रोशनी [ बिजली ] उनके लिए है , हमारे लिए नहीं। वे नहीं चाहते कि हम यहां रहें , ही वे हमारे लिए बिजली की सप्लाई देना चाहते हैं...

Prakash Bhoir (left) of Keltipada questions the 'development' on his community's land.
PHOTO • Aakanksha
Rakesh Singhvan (right) of Navsachapada points to how the 'development has bypassed the Adivasi communities
PHOTO • Aakanksha

केल्तीपाड़ा के प्रकाश भोईर (बाएं) अपने समुदाय की भूमि पर विकास पर सवाल उठाते हैं। नवसाचा पाड़ा के राकेश सिंघवन (दाएं) बताते हैं कि ‘विकास’ ने आदिवासी समुदायों को कैसे दरकिनार किया है

इन परियोजनाओं में से सबसे हालिया और शायद सबसे विवादास्पद है मुंबई मेट्रो के लिए प्रस्तावित लाइन 3 के लिए एक कार शेड। मुंबई मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एमएमआरसीएल) इस लाइन का निर्माण कर रही है।

इस कार शेड के लिए 30 हेक्टेयर या लगभग 75 एकड़ ज़मीन का अधिग्रहण करने का प्रस्ताव है। इसके निर्माण के लिए, शहर में खुले स्थानों और पेड़ों के आवरण के लिए लगभग 2,600 पेड़ों की कटाई शामिल है। परिणामस्वरूप, नागरिकों ने विरोध करना और जनहित याचिकाएं दाखिल करना शुरू कर दिया है।

इस माह, 4 अक्टूबर, 2019 को मुंबई हाईकोर्ट ने पेड़ों को काटने के लिए नगर निगम के पेड़ विभाग के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को ख़ारिज कर दिया।

वनों की कटाई का विरोध करने वालों में पाड़ा (बस्ती) के आदिवासी शामिल हैं। हमने केल्तीपाड़ा के प्रकाश और प्रमिला भोईर, प्रजापुरपाड़ा की आशा भोये, और नवसाचा पाड़ा के राकेश सिंघवन से बात की, जिन्हें आरे में ‘विकास’ का खामियाजा भुगतना पड़ा है। प्रकाश का कहना है कि उनके समुदाय को पता ही नहीं था कि उनके इलाक़े में मेट्रो परियोजना की शुरुआत की जा रही है।

प्रकाश : शुरू में हमें इस बात का अंदाज़ा भी नहीं था कि यहां मेट्रो परियोजना आने वाली है। और हां , यह सीधे हमारे बस्तियों से शुरू नहीं हुआ। उन्होंने यह काम एक कोने से शुरू किया, जैसे कि नंबर 19 प्रजापुरपाड़ा से। आशा भोये और अन्य आदिवासी हमारे प्रजापुरपाड़ा में रहते हैं। शुरुआत में उन्हें कई सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। एक और बात यह है कि हम में से कुछ ही लोगों ने अपने खेत खोए हैं। लेकिन खेतों के बिना भी हम अपने जंगल लगातार खोते जा रहे हैं। इसलिए भले ही हमारे पास खेती हो , लेकिन जंगल हमारा है। यहां 27 बस्तियां हैं और लोगों को जंगल से हर प्रकार की चीजें मिलती हैं, जो उन्हें जीवित रहने में मदद करती हैं। यही कारण है की जब मेट्रो का काम शुरू हुआ , तो हम सबने इसका सबसे पहले विरोध किया था। हमने उनसे कहा कि उन्हें यहां यह काम नहीं शुरू करना चाहिए क्योंकि बहुत सारे पेड़ों को काटना पड़ेगा , कई लोग अपने खेतों को खो देंगे , आदिवासी अपने घरों को खो देंगे। इसलिए इसे [ मेट्रो ] यहां नहीं आना चाहिए।

यह सब 2017 में प्रजापुरपाड़ा से शुरू हुआ। स्थानीय लोगों का अनुमान है कि 70 आदिवासी परिवारों ने मेट्रो परियोजना में अपने घर खो दिए। पाड़ा की संख्या अब 27 से घटकर 15 हो गई है। आशा भोये एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और आदिवासी नेता हैं। पहले वह अपने घर के बाहर बैठकर अपने पड़ोसियों और अपने खेतों को देख सकती थीं। लेकिन अब वह सामने बन रहे मेट्रो निर्माण स्थल की दीवार से रूबरू होती हैं। ड्रिलिंग मशीन की तेज़ आवाज़ों के बीच वह बताती हैं कि कैसे उनके लोगों से ज़मीनें ले ली गईं।

The Mumbai Metro car shed proposes to take over 75 acres of Aarey. This has triggered citizens’ protests and litigation
PHOTO • Aakanksha

मुंबई मेट्रो कार शेड ने आरे की 75 एकड़ ज़मीन का अधिग्रहण करने का प्रस्ताव रखा है। इसकी वजह से नागरिकों द्वारा विरोध और मुक़दमे दायर करना शुरू हो गया है

आशा भोये : सबसे पहले, जब उन्होंने सर्वेक्षण किया , तो उन्हें हमारी बस्ती को प्रजापुरपाड़ा के रूप में दर्ज करना चाहिए था , लेकिन उन्होंने एक गलती की और सारिपूत नगर लिखा , जो प्रजापुरपाड़ा के बगल में स्थित है।

प्रजापुरपाड़ा के पास ही सारिपूत नगर एक झुग्गी बस्ती है।

आशा : आदिवासी जहां रहते हैं , वह स्थान पाड़ा [ बस्ती ] है। यह कस्बा या शहर नहीं हो सकता। उन्होंने उस क्षेत्र का सर्वेक्षण किया और कहा कि वे मेट्रो परियोजना के लिए यह ज़मीन लेने जा रहे हैं और हम लोगों को मुआवज़े के रूप में दूसरा घर देंगे। आदिवासियों ने उनसे घर के बदले घर के बारे में सवाल किया और कहा कि हमारे पास खेत भी हैं और यह भी पूछा कि यहां के इतने सारे पेड़ों का क्या होगा ? उन्होंने कहा कि इस सब पर एक बैठक में चर्चा की जाएगी और जो भी आपके पास है , उसका भुगतान किया जाएगा।

मई 2017 में, उन्होंने कुछ घरों को ध्वस्त कर दिया। लोग अपने घरों को छोड़ना नहीं चाहते थे, लेकिन बुलडोज़रों ने उन्हें विकल्प विहीन बना के छोड़ दिया।

आशा : और फिर , हमने अपनी ये ज़मीन खो दी। वे हमसे पूछने के लिए भी नहीं आए। उन्होंने आकर इस परिसर [ दीवारों ] को खड़ा कर दिया। फिर हमने यह कहते हुए मुक़दमा दायर किया कि यह हमारी ज़मीन है और इन लोगों ने इसे बलपूर्वक लिया है। लेकिन उन्होंने इस बात से साफ़ मना कर दिया। फिर उन्होंने दावा किया कि एक भी आदिवासी उस ज़मीन पर नहीं रहता है जिसे उन्होंने अधिग्रहित किया है और वहां कोई पेड़ नहीं हैं , और यह पूरी तरह से एक झुग्गी बस्ती थी। उन्होंने कोर्ट में यह बात कही। और यह सब केवल चर्चा में है [ जो उन्होंने हमें बताया ] उन्होंने लिखित में कुछ नहीं दिया है। और हम भी इस बात से अनजान थे कि हमें उन्हें इसे लिखित रूप में देने के लिए कहना चाहिए था। हमने उनसे लिखित में नहीं लिया।

आशा का कहना है कि उन विस्थापितों को नौकरी देने का भी वादा किया गया था, जो उन्हें कभी नहीं मिली। इसके बजाय, विस्थापित आदिवासियों से कई बार आईडी प्रूफ मांगा गया। उन्हें कलेक्टर के कार्यालय से ‘परियोजना से प्रभावित व्यक्ति’ प्रमाण पत्र नहीं मिला है, जिससे उन्हें सरकार से रोज़गार और अन्य लाभ मिलते।

आशा : 7/12 रिकॉर्ड भूमि का रिकॉर्ड होता है, जिसमें संपत्ति के मालिक का नाम , उसके आकार का उल्लेख होता है , यह सब [ दस्तावेज़ पर ] लिखा होता है। उनका दावा है कि यह सरकारी ज़मीन है। अब , आप देख सकते हैं , यहां के आदिवासी ज्यादा शिक्षित नहीं हैं। इसलिए वे इन सभी प्रक्रियाओं को नहीं जानते हैं। और अब सरकार हमसे कह रही है कि अगर यह तुम्हारी ज़मीन है , तो अपना 7/12 रिकॉर्ड दिखाओ। वे हमें यह साबित करने के लिए कह रहे हैं कि हम आदिवासी हैं। हम आदिवासी हैं , हम उन्हें अपना जाति प्रमाण पत्र दिखा सकते हैं। फिर वे कहने लगे , ‘ अपने कपड़े को देखो। तुम आदिवासी हो ही नहीं सकते ...

Left: Asha Bhoye: 'But who is counting the trees that were cut earlier?'
PHOTO • Aakanksha
Right: Pramila Bhoir: 'I believe that trees should not be felled…'
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बाएं: आशा भोये: लेकिन जो पेड़ पहले काटे गए थे , उनकी गिनती कौन कर रहा है ?’ दाएं: प्रमिला भोईर: ‘मेरा मानना है कि पेड़ों को गिराना नहीं चाहिए...

प्रकाश भी अपनी नाराज़गी व्यक्त करते हैं

प्रकाश : प्रमाण देना सरकारों का काम है। हम प्रमाण [ दस्तावेज़ और रिकॉर्ड ] नहीं बना सकते।

वह मेट्रो कार शेड के लिए वैकल्पिक स्थानों की ओर इशारा करते हैं

प्रकाश : हमने ज़मीन के दूसरे स्थानों का भी सुझाव दिया जहां वे कार शेड का निर्माण कर सकते हैं। लेकिन हमारी कोई नहीं सुनता। हम आदिवासियों ने एक मोर्चा भी निकाला जिसमें लोगों ने अपनी मांगों को रखा। मेट्रो की मांग के लिए एक भी मोर्चा नहीं निकाला गया है। एक भी नहीं।

कई लोग आदिवासियों और आरे के समर्थन के लिए सामने आए हैं। 29 अगस्त, 2019 को, बृहन्मुंबई महानगरपालिका के वृक्ष प्राधिकरण द्वारा मेट्रो शेड के लिए आरे कॉलोनी में 2,600 से अधिक पेड़ों को काटने या स्थानांतरण करने के प्रस्ताव को मंज़ूरी देने के बाद, नागरिक इस प्रस्ताव का विरोध कर रहे हैं। लेकिन, 44 वर्षीय आशा पूछती हैं कि उन पेड़ों के बारे में क्या जो पहले ही काटे जा चुके हैं?

आशा : लेकिन पहले ही काटे जा चुके पेड़ों को कौन गिन रहा है ?

आशा का छोटा भूखंड, जो एक एकड़ से भी कम है, मेट्रो परियोजना के लिए ले लिया गया है। वह मौसमी सब्ज़ियां और फल, आलू, केला, नींबू, लौकी इत्यादि बेचकर रोज़ाना 200 से 300 रुपये कमा लेती थीं, जिसे वह ख़ुद उगाती थीं। वह कहती हैं कि उनके परिवार को उनकी ज़मीन का कोई मुआवज़ा नहीं मिला है।

आशा : मेरे पति और मेरी बेटी घर पर ही थे। वे इसी तरह का शोर सुन सकते थे जैसे हम अभी सुन रहे हैं। यह पेड़ों को काटने की मशीनें हैं। शुक्रवार को शाम के 4 बज रहे थे। इन मशीनों के साथ 10-15 लोग आए थे। मेरे पति और मेरी बेटी भागकर उनके पास गए और उनसे पूछा कि वे क्या करने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि उनके पास पेड़ों को काटने की अनुमति है। मैं आरे में थी , लेकिन मुझे घर पहुंचने में लगभग 10 मिनट लगे। तब तक पेड़ काटे जा चुके थे। उन्होंने पेड़ों को काट दिया था , जिसके कारण बहुत ही शोर शराबा मचा हुआ था।

उनके पति किसन भोये ने भी दो साल पहले अपना छोटा सा जनरल स्टोर खो दिया था। वह एक दिन में 1,000 से 3,000 रुपये तक कमाते थे। उनका मामला बॉम्बे हाईकोर्ट में अभी लंबित है।

आशा : दो साल पहले मुख्य सड़क पर हमारी एक दुकान थी। उन्होंने उसे गिरा दिया और तब से यह आदमी [ मेरे पति ] घर पर है। हम जो कुछ भी दुकान से कमाते थे और जो सब्ज़ियां उगाते थे, उसी बचे हुए पैसे से अब जीवन गुज़ारना पड़ेगा। उन्होंने उस [ दुकान ] के साथ - साथ इस [ ज़मीन ] को भी ले लिया है। उन्होंने कहा था कि वे हमें दूसरी दुकान देंगे , कांजूर में [ उत्तरी मुंबई के कांजूर मार्ग इलाक़े में ] उन्होंने दुकान दी , लेकिन जब हम वहां गए , तो देखा कि वह कितनी गंदी थी। शटर टूटा हुआ था और यह वास्तव में बाहरी क्षेत्र में स्थित था। हम वहां व्यापार कैसे कर सकते थे ? अब घर संभालना बहुत मुश्किल हो गया है। हमने कुछ सब्ज़ियां बेचकर गुज़ारा किया। अब आप ही बताइये , हम अपना घर कैसे चलाएं ?

Left: The Adivasis of Aarey have for long cultivated their shrinking famlands right next to a growing city.
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Right: Trees marked for chopping
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बाएं: आरे के आदिवासी एक बढ़ते शहर के ठीक बगल में लंबे समय से अपनी सिकुड़ती हुई भूमि पर खेती करते आए हैं। दाएं: काटने के लिए चिह्नित किए गए पेड़

आज, प्रजापुरपाड़ा में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के रूप में, आशा हर महीने 3,000 रुपये कमाती हैं।

आशा काफी कुछ झेल चुकी हैं और अब क़ानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। वह निश्चय कर चुकी हैं कि अब वह नहीं रुकेंगी।

आशा : यदि आप विकास करना चाहते हैं , तो करें। लेकिन अगर आप इसे आदिवासियों के जीवन के बदले कर रहे हैं , तो यह सही नहीं है , है ना ? आप आदिवासियों के खेत छीन रहे हैं , उन्हें डरा रहे हैं , उन्हें उनके घरों से बेदख़ल कर रहे हैं और फिर उनकी ज़मीन पर , क्या आप विकास करेंगे ? आप उन्हें एक घर देंगे और उनसे कहेंगे कि वे इसे ले लें , लेकिन अगर आप उनका खेत छीन लेंगे , तो हम कैसे जाएंगे ? क्या आप इसे हमारा विकास कह सकते हैं ? क्या यह हमारे लिए है ? आप हमारी जान ले रहे हैं और फिर दावा कर रहे हैं कि आप हमारे लिए विकास ला रहे हैं ? हमारे पास तो कोई गांव है और ही दूसरा घर। यही हमारी दुनिया है। हमारे पास जो कुछ भी है , यहीं है। हम यहां से कहां जाएंगे ?

प्रकाश हमें कुछ सोचने के लिए छोड़ देते हैं:

प्रकाश : इंसान स्वयं को बुद्धिमान समझता है। मैं इस पर गंभीरता से सवाल करता हूं। उसे लगता है कि उसने विभिन्न खोजें की हैं , उसने पुल , मॉल , महानगरों का निर्माण किया है , और यहां तक ​​ कि उसे लगता है कि वह मंगल ग्रह पर पहुंच रहा है। इसलिए हमें लगता है कि हम बहुत चालाक हैं। लेकिन मुझे लगता है कि हम विनाश की ओर दौड़ रहे हैं। और मुझे लगता है कि अगर यह लोकतंत्र है , तो लोगों को सुनना चाहिए। लोग इतने बड़े पैमाने पर बोल रहे हैं कि इससे नुकसान और विनाश होगा। फिर वे क्यों नहीं सुनते ? मुझे यह बहुत अजीब लगता है।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार, 7 अक्टूबर को आरे में एमएमआरसीएल द्वारा पेड़ों की कटाई पर अक्टूबर 2021 तक के लिए रोक लगा दी। हालांकि, तब तक 2,600 पेड़ों में से कई पहले ही काटे जा चुके थे।

प्रमिला भोईर, एक कृषक और गृहिणी, और प्रकाश की पत्नी को 7 अक्टूबर को बायकुला पुलिस स्टेशन में दो दिनों के लिए बंद कर दिया गया था। वह अन्य नागरिकों के साथ पेड़ों की कटाई का विरोध कर रही थीं।

प्रमिला : वे पेड़ों को काट रहे थे , इसलिए हम पेड़ों की रक्षा के लिए वहां गए थे। हम वहां पुलिस पर हमला करने नहीं गए थे , हम लड़ने नहीं गए थे। आप पढ़े - लिखे हो , मैं गंवार हूं। फिर भी , मेरा मानना है कि पेड़ों को गिराना नहीं चाहिए ....

पश्चलेख: सोमवार , 21 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उसने आरे कॉलोनी में मेट्रो कार शेड के निर्माण पर स्थगन (स्टे) का आदेश नहीं दिया था , और पेड़ गिराने के ख़िलाफ़ अंतरिम आदेश को 15 नवंबर , 2019 तक बढ़ा दिया था।

श्रेय और विशेष धन्यवाद:

अतिरिक्त वाइस ओवरः ज़हरा लतीफ़, ऊर्ना राउत

अनुवादः मेधा काले, ज्योति शिनोली, ऊर्जा

साउंड लेवलिंग / ऑडियो इंपुटः होपुन सैकिया, हिमांशु सैकिया

हिंदी अनुवादः अमित कुमार शर्मा

Aakanksha
aakanksha@ruralindiaonline.org

Aakanksha (she uses only her first name) is a Reporter and Content Editor at the People’s Archive of Rural India.

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Translator : Amit Kumar Sharma