कनका आपन हथेली पूरा खोल देहली, फेरु कहे लगली, “हमार घरवाला शनिचर के अइसन तीन गो दारू के बड़का बोतल खरीदेलें. दू-तीन दिन ले ई पियेलें. जब बोतल खाली हो जाला, त फेरु काम पर चल जालन. खाये बदे कबो एतना पइसा ना होला. हम आपन आ आपन बच्चा के पेट कइसे भरत बानी, ई हमही जानत बानी. ई सब कम रहे, कि अब हमार घरवाला के एगो आउर बच्चा चाहीं. ई जिनगी से त हम तंग आ गइल बानी!” उनकर चेहरा पर उदासी साफ देखाई देत रहे.
कनका (नाम बदलल बा) गुडलूर आदिवासी अस्पताल (जीएएच) में बइठल बारी. ऊ डॉक्टर से मिले के खातिर इंतजार करत बारी. कनका बेट्टा (24 बरिस) कुरुम्बा आदिवासी हई. ई अस्पताल उधगमंडलम (ऊटी) से 50 किलोमीटर दूर गुडलूर शहर में बा. इहंवा गुडलूर आउर पंथालूर तालुका के 12 हजार से जादे आदिवासी आबादी ईलाज बदे आवेला. तमिलनाडु के नीलगिरी जिला के ई अस्पताल में एह घरिया 50 गो बेड बा.
दुबर-पातर कनका एकदम झड़ल रंग के लुगा पहिनले बारी. उनकर एके गो बच्चा बा, दू बरिस के लइकी. ओकरे खातिर एहिजा आइल बारी. पिछरा महीना अस्पताल से 13 किलोमीटर दूर आपन बस्ती में एगो नियमित जांच के बखत स्वास्थ्यकर्मी कनका लइकी के वजन देख घबरा गइली. ओकर वजन 7.2 किलो (दू बरिस के बच्चा के वजन 10 से 12 किलो बढ़िया मानल जाला) रहे. ऊ स्वास्थ्यकर्मी एह अस्पताल से जुड़ल नीलगिरी के हेल्थ वेलफेयर एसोसिएशन (अश्विनी) में काम करेली. कम वजन के चलते ऊ गंभीर रूप से कुपोषित हो गइल बारी. स्वास्थ्यकर्मी कनका से लइकी क लेके तुरंत अस्पताल जाए के निहोरा कइली.
कनका के आपन घर चलावे बदे बहुत संघर्ष करे के पड़ेला. अइसन हालात में उनकर लइकी कुपोषित हवे त कवनो अचरज के बात नइखे. उनकर मरद, इहे कोई 20 से 30 बरिस के बीच के उमिर के, खेतिहर मजूर बारन. अगल-बगल चाय, कॉफी, केला आ मरिचा के बगइचा में हफ्ता में कुछ रोज मजूरी करिके 300 रुपया कमा लेवलन. कनका कहतारी, “ऊ घर के खरचा खातिर महीना के खाली 500 रुपइया देवेले. ओह पइसा से हमरा पूरा घर चलावे के होला."
कनका आउर उनकर घरवाला उनकर चाचा आउर चाची के संगे रहेले. दुनो लोग दिहाड़ी मजदूर बा, उमर 50 से बेसी होई. पूरा परिवार के पास दुगो रासन कार्ड बा. एह कार्ड पर सब महीना मुफत 70 किलो चावल, दु किलो दाल, दु किलो चीनी आउर दु लीटर तेल मिलेला. कनका कहतारी, “कबो-कबो घरवाला दारू पिए बदे रासन के चाउर बेच देवेलन. फेर त खाए के भी लाला पड़ जाला."
राज्य के पोषण से जुड़ल कार्यक्रम भी कनका आउर उनकर लइकी के खुराक बदे पूरा ना पड़ेला. गुडलूर में आपन शहर के लगे समेकित बाल विकास योजना (आइसीडीएस) बालवाड़ी में कनका आउर दोसर गर्भवती आ लड़कोरी के सब हफ्ता एगो अंडा मिलेला. एकरा इलावा उनका हर महीना सूक्खल सथुमावू (गेहूं, हरियर चना, मूंगफली, चना आउर सोया के दलिया) के दू किलो के पैकेट देहल जाला. तीन बरिस से कम उमिर के लइकन के भी सथुमावु मतलब दलिया के पैकेट मिलेला. तीन बरिस के बाद बच्चा लोग के आईसीडीएस सेंटर जाए के कहल जाला. उहंवा उनकरा सभ के बिहनिया के कलेवा, दुपहरिया के खाना आ सांझ में गुड़ आउर मूंगफली मिले के होला. गंभीर रूप से कुपोषित बच्चा के रोज मूंगफली आउर गुड़ अलग से देहल जाला.
जुलाई 2019 से सरकार नयका महतारी के ‘अम्मा उट्टचाठु पेट्टगम पोषण सामग्री’ किट देवे शुरू क देले बिया. एह किट में 250 ग्राम घी आ 200 ग्राम प्रोटीन पाउडर बा. लेकिन अश्विनी में सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यक्रम समन्वयक के काज करेवाली 32 बरिस के जीजी एलमैन के ई किट ना भावे. उनकर कहनाम बा, 'पैकेट घर के अलमारी में पड़ल बा. असल बात ई बा कि आदिवासी लोग आपन खाना में दूध आ घी ना डालेला. घी के ऊ लोग छूवेला भी ना. एकरा अलावा ऊ लोग के प्रोटीन पाउडर आउर हरियर रंग के आयुर्वेदिक पाउडर खाए के तरीका नइखे मालूम. एहसे ऊ लोग एकरा के हटा के एक ओरी रख देवेला."
एगो बखत रहे जब नीलगिरी के आदिवासी समुदाय आसानी से जंगल में जाके खाए के सामान बटोर सकत रहे. गुडलूर के आदिवासी समुदाय के संगे काम करत 40 बरिस के मारी मार्सल ठेकैकारा के कहनाम बा, “आदिवासी लोग कंद-मूल, जामुन, हरियर पत्ता, आउर मशरूम के एकट्ठा करेवाला प्रकार के बारे में बहुत जानकारी बा. ई बरिस भर मछरी पकड़ेलन या फिर छोट-छोट जानवर सभ के भी भोजन खातिर शिकार करेलन. अधिकतर घरन में बरसात के दिन खातिर कुछ गोश्त के आग पर सुखावल जाला. लेकिन, वन विभाग ए लोग के जंगल में जाए पर पाबंदी लगा देले बा.
वन अधिकार अधिनियम 2006 के अनुसार आम संपत्ति संसाधन प समाज के अधिकार देहला के बादो आदिवासी लोग आपन खानपान के पूरा करे खाती पहिले जइसन जंगल से सामान जुटा ना पावत बा.
गाँव में घटत कमाई, बढ़त कुपोषण के कारण बनत बा. आदिवासी मुनेत्र संगम के सचिव के. टी. सुब्रमण्यम के कहनाम बा, “पछिला 15 बरिस से आदिवासी के दिहाड़ी मजूरी मउका में कमी आइल बा. इहंवा के जंगल संरक्षित मुदुमलाई वन्यजीव अभयारण्य बन गइल बा. अभयारण्य के भीतर के बगइचा आ जागीर– जहंवा सब आदिवासी लोग के काम मिलत रहे, बेच दिहल गइल बा. या त दोसरा जगहा ले जाइल गइल बा. एह कारण ऊ लोग बगीचा आ खेत में अस्थायी काम खोजे के मजबूर हो गइल बा.
सूमा (काल्पनिक नाम) गुडलूर आदिवासी अस्पताल (जीएएच) के ओही वार्ड में आराम करत बारी जहंवा कनका इंतजार में बइठल बारी. सूमा 26 बरिस के हई. ऊ पास के पंथलूर तालुका के पनियन आदिवासी हई. हाले में उनका तीसर लइकी भइल ह. एकरा से पहिले उनकर दुगो, दू आउर 11 बरिस के लइकी बा. उनकर लइकी ए अस्पताल में नइखे भइल, बलुक ऊ जचगी के बाद के देखभाल आउर नसबंदी खाती इहंवा आइल बारी.
उनकरा आपन बस्ती से इहंवा पहुंचे में जीप से एक घंटा लागेला. बस्ती से आवे में बहुते पइसा खरचा होखे से परेशान ऊ कहतारी, “हमार डिलीवरी पहिले होखे के चाहत रहे, लेकिन पइसा ना रहला से ए अस्पताल में डिलीवरी ना करा पवनी. गीता (अश्विनी के स्वास्थ्यकर्मी) चेची (दीदी) हमनी के आवे-जाए आउर खाना खाती 500 रुपया देले रहली. बाकिर हमार मरद सभ पइसा शराब में उड़ा देलन. त हम घरे में रह गइनी. तीन दिन बाद जब दरद बेसंभार हो गइल त अस्पताल जाए के सोचे के परल. बाकिर अस्पताल जाए में बहुत देर हो गइल रहे, एहसे घरवा से सटले प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) में जचगी भइल.” अगिला दिने पीएचसी के नर्स 108 (एम्बुलेंस सेवा) नंबर पर फोन कइल गइल. आखिर में सूमा आउर उनकर परिवार के जीएएच खाती निकले के परल.
चार बरिस पहिले सूमा के सतवां महीना में आईयूजीआर के चलते बच्चा गिर गइल रहे. आईयूजीआर मतलब अइसन हालत जेमे कोख में बच्चा (भ्रूण) छोट रहेला, या ऊ जेतना बढ़े के चाहीं ओतना से ना बढ़ेला. अधिकतर ई हालत पोषण के कमी, महतारी में खून आउर फोलेट के कमी के चलते होखेला. सूमा अगिला बार जब पेट से भइली, ओहू घरिया उनका पर आईयूजीआर के असर पड़ल आ. एहिसे उनकर बच्चा के जन्म के बखत बहुत कम वजन (1.3 किलो, जबकि आदर्श वजन 2 किलो) रहे. बच्चा के उम्र के हिसाब से वजन जेतना होए के चाहीं, ओकरा से बहुत नीचे बा. आउर एकरा के पोषण चार्ट में 'गंभीर रूप से कुपोषित' के रूप में चिन्हल गइल बा.
जीएएच में मेडिसिन स्पेशलिस्ट के रूप मे काम करेवाली 43 बरिस के डा. मृदुला राव के कहनाम बा, “अगर माई कुपोषित बिया त बच्चा भी कुपोषित हो जाई. सूमा के बच्चा के माई कुपोषण के बोझ उठावे के पड़ सकेला; उनकर शारीरिक, बौद्धिक आउर न्यूरोलॉजिकल विकास उनकर उमर के बाकी बच्चा के मुक़ाबले धीमा होई."
सूमा के रिकॉर्ड बतावता कि तीसर बेर पेट से भइला बखत उनकर वजन सिरिफ पांच किलो बढ़ल. ई वजन सामान्य वजन के गर्भवती महिला खाती तय वजन से आधा से भी कम बा. जब ऊ 9 महीना के गर्भ से रहस, त ऊ खाली 38 किलो के ही रहस.
वन अधिकार अधिनियम 2006 में देहल गइल साझा संपत्ति संसाधन प सामुदायिक अधिकार के बाद भी स्थानीय आदिवासी के आपन खाय के जरूरत पूरा करे खाती पहिले नियर जंगल से संसाधन जुटावे में परेशानी होखत बा
जीएएच के स्वास्थ्य एनिमेटर (प्रसार कार्यकर्ता) 40 बरिस के गीता कन्नन याद करत बारी, “ हम सप्ता में कई बेर गर्भवती महतारी आउर बच्चा से मिले जात रहनी. हम देखत रहनी कि लइका आपन दादी के गोदी में बेफिकिर होके बइठल बा, खाली कच्छा पहिनले बा. घर में खाना ना बनत रहे. पड़ोसी लोग बच्चा के खाना खियावत रहे.” ऊ आगे बतावत बारी, “सूमा लेटल पड़ल रहत रहस, बहुते कमजोर लागत रहस. हम सूमा के आपन अश्विनी सथुमावु (रागी आ दाल पाउडर) देत रहनी. उनका के कहत रहनी कि आपन आ आपन बच्चा के सेहत खातिर ठीक से खाए के चाहीं, काहे से ऊ बच्चा के आपन दूध पियावत रहस. बाकिर सूमा आपन जिनगी से उबिया गइल रहस. ऊ बतवले रहस कि अबहियों उनकर मरद आपन कमाई के जादे हिस्सा शराब पीये में खर्च करतारे.” गीता कुछ देर रुक के कहली, "अब त सूमा भी शराब पीये लागल बारी."
वइसे त ई गुडलूर के घर-घर के कहानी ह, बाकिर ए ब्लॉक में सेहत में लगातार सुधार देखाई देत बा. अस्पताल के रिकार्ड बतावे ला कि 1999 में जच्चा यानी मातृ मृत्यु दर MMR) अनुपात 10.7 (हर 100,000 जिंदा जनम) फीसदी से 2018-19 तक गिर के 3.2 हो गइल रहे. इहे ना, एही दौरान शिशु मृत्यु दर (IMR) 48 (प्रति 1,000) हो गइल रहे.) से गिरके 20 तक हो गइल बा. राज्य योजना आयोग के जिला मानव विकास रिपोर्ट 2017 ( DHDR 2017 ) के मानल जाव, त नीलगिरी जिला के आईएमआर 10.7 बा. ई राज्य के औसत दर 21 से कम बा. गुडलूर तालुका के आईएमआर 4.0 बा.
डॉ. पी. शैलाजा देवी पछिला 30 बरिस से गुडलूर के आदिवासी मेहरारू लोग संगे काम करत बारी. ऊ बतावत बारी, “ई आंकड़ा पूरा कहानी नइखे बतावत.” ऊ कहली, “एमएमआर आउर आईएमआर जइसन मौत के संकेतक में सुधार भइल बा, बाकिर रोग बढ़ गइल बा. हमनी के मौत आउर बेमारी में भेद करे के होई. कुपोषित महतारी कुपोषित बच्चा के जन्म दिही, जवना के बेमारी होखे के बहुत खतरा बा. एह तरह से बढ़े वाला तीन बरिस के बच्चा के भी डायरिया जइसन बेमारी से मौत हो सकता, आउर ओकर बुद्धि के विकास धीमा पड़ जाई. अगिला पीढ़ी के आदिवासी अइसने होई."
एकरा अलावा, एह इलाका के आदिवासी समुदाय सभ में सामान्य मौत के दर बढ़त शराब के लत के कारण कम आंकल जा रहल बा. ई बढ़ती आदिवासी समुदाय में भारी मात्रा पर होखत कुपोषण के ढंक सकेला. (जीएएच शराब के लत आ कुपोषण के आपस के संबंध पर एगो परचा तइयार करे में लागल बा. अभी एकरा सब के सामने नइखे लाएल गइल.) जइसन कि डीएचडीआर 2017 के रिपोर्ट में भी कहल गइल बा, "मौत दर काबू में होखला के बाद भी, हो सकेला पोषण के स्तर में सुधार ना होखे.”
प्रसूति आउर स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. श्यामलाजा (60 बरिस) कहेली, “एक ओरी जब दस्त आ पेचिश जइसन मौत के कारण पर काबू करे के कोशिश होखत बा, सभ प्रसव के संस्थागत बनावल जात बा, समाज में शराब के लत बढ़ला से इ सभ कोशिश माटी में मिल गइल. हमनी जवान महतारी आउर उनकर बच्चा में कुपोषण के उप-सहारन स्तर देख रहल बानु. इहे ना, उनकर पोषण संबंधी स्थिति भी खराब देखाई देता.'' डॉ. श्यामलाजा जनवरी 2020 में जीएएच से आधिकारिक तौर प रिटायर हो गइल बारी. पर आज भी ऊ रोज अस्पताल आवेली, मरीज से भेंट आ अपना सहयोगियन से केस पर चरचा करेली. उ देखेली, “अब तो 50 फीसदी बच्चा अब मध्यम चाहे गंभीर रूप से कुपोषित बारे. ऊ याद करत बारी, “दस साल पहिले (2011-12) मध्यम कुपोषण 29 फीसदी आ गंभीर कुपोषण 6 फीसदी रहे. ई बढ़त बहुत जियादा हलकान करे वाला बा.”
कुपोषण के असर के बारे में बतावत डॉ. राव आगे कहेली, “पहिले जब महतारी ओपीडी में जांच खाती आवत रहली त उ लोग अपना बच्चा के संगे खेलत रहली. अब मन मसुअइले इहंवा-उहंवा बइठल बारी. लइका सभ भी सुस्त एके जगहा पड़ल बारन. अइसन उदासीनता के कारण ओह लोग के लइकन आ आपन पोषण से जुड़ल देखभाल में कमी होत जाता.”
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 ( NFHS-4 , 2015-16) पता चलल कि नीलगिरी के देहात 6 से 23 महीना के बीच के 63 प्रतिशत बच्चा के पूरा आहार ना मिलेला. उहंई 6 महीना से 5 साल तक 50.4 प्रतिशत बच्चा में खून के कमी भी होखेला (हीमोग्लोबिन 11 ग्राम प्रति डेसीलीटर से कम– न्यूनतम 12 सही मानल जाला). गंउवा के लगभग आधा (45.5 प्रतिशत) महतारी खून के कमी से जूझत बारी, जेकरा से उनकर पेट में पल रहल बचवा पर बुरा असर पड़ेला.
शैलजा बतावेली, “हमनी के लगे अभी भी इसन आदिवासी मेहरारू लोग आवेला, जिनका में खून के भारी कमी होखेला– हर डेसीलीटर में बस 2 ग्राम हीमोग्लोबिन! जब रउआ एनीमिया के जांच करत बानी त हाइड्रोक्लोरिक एसिड डाल के खून डाल देहल जाला. एहसे ई न्यूनतम 2 ग्राम प्रति डेसीलीटर पढ़ सकेला. ई एकरा से भी कम हो सकता, लेकिन हमनी के उ नाप नइखी सकत.''
एनीमिया आ मातृ मृत्यु के बीच बहुत गहिराह नाता बा. जीएएच के स्त्री रोग आ प्रसूति जानकार डॉ. नम्रिता मैरी जॉर्ज (31 साल) इशारा करत कहेली, “एनीमिया के चलते बच्चा पैदा होत समय ज्यादा खून बहना, हार्ट अटैक आ मौत हो सकता. ऊ बतावत बारी, “एहसे कोख में बच्चा के विकास पर असर होला, आउरी जन्म के समय कम वजन के चलते नवजात शिशु के मौत हो जाला. बच्चा पनपे में नाकाम रहेला आ लंबा बखत तक कुपोषण के स्थिति पैदा हो जाला.”
काचा उमिर में बियाह आ कोख में जल्दी बच्चा आवे से बच्चा के सेहत खतरा में पड़ जाला. एनएफएचएस-4 के मुताबिक नीलगिरी के गंउवा में 21 प्रतिशत लइकी लोग क बिया बस 18 साल में हो जाला. बाकिर इहंवा के स्वास्थ्यकर्मी के दलील बा कि उ लोग के संगे काम करेवाली अधिकतर आदिवासी लइकिन के बियाह 15 साल के उमर में या पहला माहवारी होते ही कर देहल जाला. डॉ. श्यलाजा मानत बारी कि हमनी के ऊ लोग के मनावे के चाहीं कि ऊ लोग बियाह आ बच्चा में एतना जल्दी ना करे. “जब लइकी पूरा व्यस्क होखे से पहिले ही, 15 चाहे 16 बरिस के उमर में गर्भवती हो जाई, त उनकर खराब पोषण नवजात शिशु के सेहत पर बुरा असर पड़ी.”
शायला चेची (‘दीदी’), जवना से मरीज आ सहयोगी दुनु जने सहायता लेवेलें, आदिवासी महिला लोग के समस्या खातिर एगो एनसाइक्लोपीडीया बारी. ऊ एगो गंभीर बात कहत बारी, “परिवार के सेहत पोषण से जुड़ल बा. गर्भवती आ दुध पियावे वाली महिला के पौष्टिक भोजन के कमी से दोगुना खतरा बा. मजदूरी बढ़ गइल बा, लेकिन पइसा परिवार तक ना पहुंचत बा.' उ कहली, “हमनी के अइसन कई मामला जानत बारी, जवना में पुरुष आपन 35 किलो राशन के चाउर बटोर के बगल के दोकान में बेच के शराब खरीदेले. ओह लोग के लइकन में कुपोषण कइसे ना बढ़ी?”
अश्विनी के मानसिक स्वास्थ्य सलाहकार 53 साल के वीणा सुनील बतवली, “हमनी के आपन समाज के लोग संगे, कवनो विषय प जवन भी मुलाकात होई, उ आखिर में एही समस्या के संगे खतम हो जाई: परिवार में बढ़त दारू के लत.”
एह इलाका के आदिवासी समुदाय सभ में जादे कट्टुनायकन आ पनियान बारें, इनहन के बिसेस रूप से कमजोर आदिवासी समूह के रूप में पहिचान कइल गइल बा. आदिवासी अनुसंधान केंद्र, उधगममंडल के ओर से कइल गइल एगो अध्ययन में पता चलल कि, ए लोग में से 90 प्रतिशत से जादा लोग बगीचा आ खेत-खलिहान में मजूरी करेवाला बा. इहंवा के अउरी समुदाय सभ में, खास कर के इरुलार, बेट्टा कुरुम्बा आ मुल्लू कुरुम्बा बारें, जिनहन के अनुसूचित जनजाति में शामिल कइल गइल बा.
मारी ठेकैकारा बतावली, “हमनी के जब 1980 के दशक में पहिला बेर इहंवा आइल रहनी, तब 1976 के बंधुआ मजदूर व्यवस्था (उन्मूलन) अधिनियम के बावजूद पनिया समाज के लोग धान, बाजरा, केला, काली मिरिच आ साबुदाना के बागान प बंधुआ मजूरी करत रहले. “उ लोग घना जंगल के बीच छोट-छोट बागान में काम करत रहे. आ एह बात से अनजान रहे कि जवना जमीन प उ काम करत बारन, ओकरा पर ऊ लोग के कोई हक नइखे.
मारी अपना घरवाला स्टेन ठेकैकारा के साथे मिल के आदिवासी लोग के परेशानी दूर करे के कोशिश करेली. एही सिलसिला में ऊ लोग 1985 में अकॉर्ड (सामुदायिक संगठन, पुनर्वास और विकास के लिए कार्यवाही के नींव रखलक. समय के साथ चंदा से चले वाला एनजीओ, संगठनन के एगो नेटवर्क बनवले बा– संगम (परिषद) के स्थापना कइल गइल. संगम के आदिवासी मुनेत्र संगम के छत्रछाया में ले आवल गइल. एकरा आदिवासी लोग चलावे आ कंट्रोल करेला. संगम आदिवासी जमीन के वापस लेवे, चाय बागान बनावे आ आदिवासी बच्चा खाती स्कूल बनावे में कामयाब भइल बा. अकॉर्ड नीलगिरी में एसोसिएशन फॉर हेल्थ वेलफेयर (अश्विनी) के भी शुरुआत कइलस. एहि के बाद 1998 में गुडलूर आदिवासी अस्पताल के स्थापना भइल. अब एकरा में छह गो डाक्टर, एगो प्रयोगशाला, एक्स-रे रूम, फार्मेसी आ ब्लड बैंक बा.
डॉ. रूपा देवदासन या करत बारी, “80 के दसक में इहंवा के सरकारी अस्पताल में आदिवासी संगे दूसरा दरजा के नागरिक नियर व्यवहार होखत रहे. ऊ लोग भाग जात रहले. सेहत के हालत विकट रहे: गर्भ के बखत मेहरारू लोग मरत जात रहे. बचवा सभ के दस्त लागत रहे, आ ओकर मौत हो जात रहे.'' उ आ उनकर पति डॉ एन देवदासन आदिवासी इलाका में घर-घर घूमे वाला अश्विनी डाक्टरन में सबसे आगू रहले. ऊ बतवली, “हमनी के कवनो बेमार चाहे गर्भवती मेहरारू के घर में भी ना घुसे दिहल जात रहे. बहुते बातचीत आ समझइला पर समुदाय के लोग हमनी प भरोसा करे लागल.”
सामुदायिक चिकित्सा अश्विनी के मूल मंत्र बा. एह में 17 स्वास्थ्य एनिमेटर (स्वास्थ्यकर्मी) आ 312 स्वास्थ्य स्वयंसेवक बारें– सभे खुद आदिवासी बारन. ई लोग गुडलूर आके पंथालूर तालुका में घूमेला, घर-घर जाके सेहत आ पोषण के बारे में बतावेला.
टी.आर.जानू अब पचास बरिस के हो गइली. ऊ मुल्लू कुरुम्बा समुदाय से हई. उनकरा अश्विनी में पहिला प्रशिक्षित स्वास्थ्य एनिमेटर में से एक मानल जाला. पंथालूर तालुका के चेरंगोडे पंचायत के अय्यांकोली बस्ती में इनकर ऑफिस बा, आ आदिवासी परिवारन में डायबिटीज, ब्लड प्रेशर आ टीबी के बेर-बेर नियम से जांच करेली. प्राथमिक चिकित्सा के साथे-साथे सामान्य स्वास्थ्य आ पोषण के सलाह भी देवेली. गर्भवती आ दुध पियावे वाली महतारी के भी जानकारी रखेली. उनकर कहनाम बा, “गांव में मेहरारू लोग आपन गर्भ ठहरला के कई महीना के बा के बाद प्रजनन स्वास्थ्य के सलाह खाती हमनी से मिलेली. फोलेट के कमी होखला पर गर्भ के पहिला तीन महीना में ही गोली देवे के होई, जेसे कोख में बचवा के विकास ना रुके, ना त इ काम ना करी.'
अइसे त सूमा जइसन नया मेहरारू खाती आईयूजीआर के रोकल ना जा सकल. हमनी के मुलाकात के कुछ दिन बाद अस्पताल में उनकर ट्यूबल लाइगेशन पूरा हो गइल बा, आ ऊ आ उनकर परिवार घरे जाए खातिर पैकिंग कर रहल बा. एह लोग के नर्स आ डाक्टर लोग ओरी से पोषण संबंधी परामर्श दिहल गइल बा. उनका घरे जाए खातिर आ अगिला हफ्ता खाना खरीदे खातिर भी पइसा थमा दिहल गइल बा. जीजी एलामाना जब ऊ लोग जात बाड़े त कहले कि, अबकी बेर हमनी के उम्मेद बा कि निर्देश के मुताबिक पइसा के इस्तेमाल कइल जाई.
पारी आ काउंटरमीडिया ट्रस्ट देश भर में गंउवा के किशोरी आउर जनाना के केंद्र में रख रिपोर्टिंग करेला. राष्ट्रीय स्तर पर चले वाला ई प्रोजेक्ट ' पापुलेशन फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया ' के पहल के हिस्सा बा. इहंवा हमनी के मकसद आम जनन के आवाज आ ओह लोग के जीवन के अनभव के मदद से महत्वपूर्ण बाकिर हाशिया पर पड़ल समुदायन के हालत के पड़ता कइल बा.
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अनुवाद : स्वर्ण कांता