उज्जर घाम में आपन घर के बरामदा में ठाड़ सलहा खातून कहतारी, “अब पहिले जइसन बात नइखे रह गइल. आज के जमाना के मेहरारू के बढ़िया से पता बा, गरभ रोके खातिर कवन उपाय करे के चाहीं.'' सलहा खातून के ईंट आउर माटी के घर के देवाल समुदर जइसन हरियर रंग के बा.
बिहार के मधुबनी जिला के हसनपुर गांव में मेहरारू लोग परिवार नियोजन आउर माहवारी के बारे में सलहा आउर शमा से सलाह लेवे खातिर आवेली. शमा, सलहा के भतीजा के घरवाली हई. गांव के मेहरारू लोग सलहा आ शमा पर बहुते भरोसा करेला. बाकिर शमा आ सलहा के एह काम खातिर औपचारिक रूप से नइखे लगावल गइल.
हसनपुर के मेहरारू लोग दू गो लरिका के बीच अंतर कइसे रखल जा सकेला, टीका कब आउर कहंवा लगवावे के बा, जइसन बात जाने खातिर आवेली. कुछ के सूई से लागे वाला हार्मोनल गर्भनिरोधक के बारे में जाने के होखेला. शमा आ सलहा एह सभके बारे में बतावेली. केतना मेहरारू लोग इहंवा चुप्पे भी आवेली.
शमा के घर के कोना वाला कमरा में एगो छोट दवाखाना बा. इहंवा अलमारी में दवाई के छोट-छोट शीशी आ गोली के पैकेट रखल बा. शमा, 40 बरिस, आउर सलहा, 50 बरिस, में से कोई के नर्स के ट्रेनिंग नइखे मिलल. बाकिर ऊ लोग मेहरारू लोग के इंट्रामस्क्युलर इंजेक्शन (मांसपेशी वाला इंजेक्शन) लगावेला. सलहा बतावत बारी, “कबो-कबो कवनो मेहरारू अकेले आवेली, भीतरे जाके सूइया लगवावेली आउर जल्दी से निकल जाली. उनका घर में केहू के कुछो जाने के जरूरत नइखे. दोसर मेहरारू लोग आपन घरवाला, चाहे ननद, भौजाई संगे आवेली.''
पछिला दस बरिस में अचानक से बहुते कुछ बदल गइल बा. पहिले हसनपुर गांव में शायदे कोई परिवार नियोजन के बारे में सोचत रहे. हसनपुर, फुलपरास ब्लॉक के सैनी ग्राम पंचायत के लगभग 2500 आबादी वाला गांव ह.
ई बदलाव कइसे आइल? एह सवाल के जवाब में शमा कहत बारी, “ई भीतर के बात ह.”
हसनपुर में पहिले गर्भनिरोधक के बहुत कम इस्तेमाल होखत रहे. एह बात सेओह घरिया राज्य भर के स्थिति पता चलत बा. एनएफएचएस-4 (2015-16) के सर्वे के हिसाब से बिहार में कुल प्रजनन दर 3.4 रहे. ई पूरा भारत के 2.2 के प्रजनन दर से बहुते जादे बा. (टीएफआर मतलब लरिका के औसत संख्या, जेकरा मेहरारू आपन प्रजनन काल में पैदा कर सकेली.)
एनएफएचएस-5 (2019-20) सर्वे में देखल गइल कि बिहार के टीएफआर यानी कुल प्रजनन दर गिर के 3 हो गइल. एकर मतलब एनएफएचएस 4 आउर 5 के बीच राज्य में गर्भनिरोधक के जादे इस्तेमाल कइल गइल. एह बखत गर्भनिरोधक के इस्तेमाल 24.1 प्रतिशत से बढ़के 55.8 प्रतिशत दर्ज कइल गइल रहे.
एनएफएचएस-4 के हिसाब से मेहरारू के नसबंदी (ट्यूबल लिगेशन), परिवार नियोजन के सबसे बड़ा साधन (86 प्रतिशत) बनल. एकरा से जुड़ल एनएफएचएस-5 सर्वे के इंतजार बा. बाकिर सरकार के नया पॉलिसी में दू गो लरिका के बीच अंतर राखे खातिर नया तरीका आजमावे पर जोर देहल गइल बा. एह तरीका में इंजेक्शन वाला गर्भनिरोधक भी शामिल कइल गइल बा.
हसनपुर में भी, जइसन कि सलहा आ शमा के अंदाज बा, जादे मेहरारू लोग गरभ रोके खातिर गोली, आउर हार्मोनल इंजेक्शन खोजेला. एह इंजेक्शन के डिपो-मेड्रोक्सी प्रोजेस्ट्रॉन एसीटेट (डीएमपीए) कहल जाला. ई देश भर में ‘डिपो-प्रोवेरा’ आउर ‘परी’ नाम से बाजार में मिलेला. सरकारी अस्पताल आ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में एह इंजेक्शन के ‘अंतरा’ ब्रांड नाम देहल गइल बा. भारत में 2017 से पहिले, ‘डिपो’ पड़ोसी देश नेपाल के रस्ते बिहार लावल जात रहे. मंगावल जात रहे.ई काम गैर-लाभकारी समूह, लोग आउर प्राइवेट कंपनी करत रहे. अभी एगो इंजेक्शन खातिर 245 से 350 रुपइया देवे के पड़ेला. अब ई सरकारी स्वास्थ्य केंद्र आउर अस्पताल में मुफ्त मिलेला.
एह इंजेक्शन में मीन-मेख निकाले वाला भी बहुते लोग हवे. खासकर के 1990 के दशक में. ओह घरिया मेहरारू लोग के हक के लड़ाई लड़ेवाला समूह आ स्वास्थ्य कार्यकर्ता लोग केतना बरिस तक एकर विरोध कइलक. ऊ लोग के एह बात के चिंता रहे कि एह सूई से माहवारी में तेज दरद के साथे बहुत जादे, चाहे बहुते कम खून आवे जइसन दिक्कत शुरू हो सकता. एकरा अलावे एह से फुंसी, बजन बढ़े, वजन बहुत कम होखे आउर बखत पर माहवारी ना आवे जइसन बहुते परेशानी पैदा हो सकत बा. ई तरीका सुरक्षित बा कि ना, एकरा बारे में साफ पता ना रहे. बहुते जांच आउर अलग-अलग समूह के प्रतिक्रिया के कारण भारत में 2017 से पहले डीएमपीए के इस्तेमाल के इजाजत ना रहे. अब त एकरा देस में ही बनावलो जाला.
अक्टूबर 2017 में बिहार में एह इंजेक्शन के उपयोग अंतरा, नाम से शुरू कइल गइल. जून 2019 तक ई सभ शहर आ गांव-देहात के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र आउर उपकेंद्र में मिले लागल. बिहार सरकार से मिलल जानकारी के हिसाब से, अगस्त 2019 तक इंजेक्शन के 424,427 खुराक दिहल गइल. ई देश में सबसे जादे गिनती बा. एक बेर सूइया लेवे वाली 48.8 प्रतिशत मेहरारू लोग एकर दोसर खुराक भी लेले रहे.
डीएमपीए के जदी दू बरिस से जादे बखत तक लेवल जाए, त खराबी कर सकत बा. अध्ययन के हिसाब से एह से बोन मिनरल डेंसिटी (हड्डी के घनत्व) में कमी आ सकत बा (अइसन मानल जाला कि इंजेक्शन बंद होखे से ई फेरू बढ़ सकेला). विश्व स्वास्थ्य संगठन के सलाह बा कि डीएमपीए लगावे वाली मेहरारू लोग के हर दू बरिस पर जांच कइल जाव.
शमा आउर सलहा जोर देके कहत बारी कि ऊ इंजेक्शन के सुरक्षा के बारे में बहुत सावधान बाड़ी. एहि से हाई बीपी के मरीज के इंजेक्शन ना लगावल जाला. कबो इंजेक्शन लगावे से पहिले ई दूनो स्वास्थ्य स्वयंसेविका लोग ओह मेहरारू के बीपी के हर हाल में जांच करेली. उनकर कहनाम ह कि अभी तक ओह लोग के कोई साइड इफेक्ट के कवनो शिकायत ना आइल ह.
ओह लोग लगे एह बात के जानकारी नइखे कि गांव के केतना मेहरारू डेपो-प्रोवेरा लगवइले बारी. बाकिर ई तरीका मेहरारू लोग क बहुत पसंद बा. ई इंजेक्शन के तीन महीना में एक बेर लगावे के जरूरत होखेला, एह कारण से आ एकर गोपनीयता चलते एकरा बहुते पसंद करल जात बा. संगही, जे मेहरारू के घरवाला शहर में काम करेला, आउर एक बरिस में कुछ महीना खातिर गांव आवेला, उनकरा खातिर थोड़का बखत ले गर्भनिरोधक के ई आसान उपाय हवे. (स्वास्थ्य सेवाकर्मी आ मेडिकल पेपर के हिसाब से इंजेक्शन के खुराक लेवे के तीन महीना बाद लरिका पैदा करे के क्षमता वापस आ जाला.)
मधुबनी में गर्भनिरोधक इंजेक्शन के लोकप्रिय होखे के एगो आउरी कारण बा. इहंवा काम करे वाला घोघरडीहा प्रखंड स्वराज्य विकास संघ (जीपीएसवीएस). विनोबा भावे आ जयप्रकाश नारायण के अनुयायी लोग 1970 के दशक के आखिर में एह संस्था के शुरू कइले रहे. लोकतंत्र के विकेंद्रीकरण आउर सामुदायिक आत्मनिर्भरता एकर आदर्श हवे. (विकास संघ के राज्य सरकार के टीकाकरण अभियान आ नसबंदी शिविरन में भी शामिल रहल बा. अइसन शिविरन के 1990 के दशक में ‘लक्ष्य’ के हिसाब से काम करे खातिर बहुत आलोचना कइल गइल बा.)
मुस्लिम बहुल आबादी वाला हसनपुर में 2000 में पोलियो टीकाकरण आ परिवार नियोजन के लोग जादे ना मानत रहे. एहि घरिया जीपीएसवीएस हसनपुर आउर दोसर गांव के मेहरारू लोग के स्वयं सहायता समूह आ महिला मंडल में संगठित करे लागल. सलाह तब अइसने एगो स्वयं सहायता समूह के सदस्य बन गइली. बाद में शमा के भी एह में शामिल कइल गइल.
पछिला तीन बरिस में शमा आउर सलहा जीपीएसवीएस के माहवारी, साफ-सफाई, पोषण आउर परिवार नियोजन के ट्रेनिंग लेली. मधुबनी जिला के करीब 40 गांव में विकास संघ काम करेला. उहंवा संगठन मेहरारू लोग के ‘सहेली नेटवर्क’ बना के ओह लोग के माहवारी से जुड़ल समाना, कंडोम आउर गर्भनिरोधक गाली वाला एगो किट देवेला शुरू कइले बा. मेहरारू लोग एकरा जरूरतमंद लोग के बेच सकेली. एह कदम उठवला के कारण, अब गर्भनिरोधक उपकरण मेहरारू के दरवाजा तक पहुंचल गइल बा. डीमपीए परी ब्रैंड के नाम से मिले लागल, त 2019 में किट-बैग में एकरो जोड़ल गइल.
मधुबनी में जीपीएसवीएस के सीईओ, रमेश कुमार के कहनाम बा, “सहेली नेटवर्क लगे लगभग 32 मेहरारू के बिक्री नेटवर्क ह. हमनी एह लोग के स्थानीय थोक व्यापारी से जोड़ देले बानी. अइसन करे से ऊ लोग अब थोक के भाव से खरीददारी करेला.'' एकरा खातिर संस्था कुछ मेहरारू के शुरू में पूंजी के सहायता कइलस. सिंह कहले, “ मेहरारू लोग अब हर सामान पर 2 रुपइया के नफा कमा सकत बा.''
हसनपुर में जब कुछेक मेहरारू लोग गर्भनिरोधक इंजेक्शन लेवे लागल त एकर नियम के बारे में नीमन से समझे के पड़ल. मेहरारू लोग के बतावल गइल कि दू खोराक के बीच तीन महीना के अंतर रखे के बा. आऊर दोसर खोराक के बाद दू हफ्ता से कम बखत में अगिला खोराक लेवे के बा. ओही घरिया शमा आउर सलहा, दोसर आउर 10 गो मेहरारू साथे लगे के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र गइली आउर उहंवा पीएचसी के एएनएम (सहायक-नर्स-दाई) से इंजेक्शन लगावे के सिखली. मधुबनी के हसनपुर में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा केंद्र नइखे. सबसे नजदीक के पीएचसी 16 आउर 20 किलोमीटर दूर, फुलपरास आ झंझारपुर में बाटे.
फुलपरास पीएचसी में इंजेक्शन लेवे आवे वाला में उजमा (नाम बदलल) भी बारी. उज्मा जवान हई. ऊ एक के बाद एक तीन गो लरिका के जनम देली. ऊ बतावत बारी, “हमार घरवाला काम खाती दिल्ली अउरी दोसरा जगह जाले. हमनी तय कइनी कि जब ऊ घरे अइहें, त सूई लिहल जादे ठीक रही. अभी बखत एतना कठिन बा कि हमनी बड़ परिवार के बारे में नइखी सोच सकत.” उजमा कहली कि अब ऊ नसबंदी जइसन “स्थायी” उपाय के बारे में सोचत बारी.
जउन मेहरारू लोग के ‘मोबाइल हेल्थ वर्कर’ के रूप में प्रशिक्षण मिलल हवे, ऊ लोग अइसन मेहरारू के भी मदद करेली, जे मुफ्त में अंतरा इंजेक्शन लेवे के चाहेली. एकरा खातिर ओह लोग के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जाके रजिस्ट्रेशन करावे के पड़ेला. सलहा आउर शमा के कहनाम बा कि आगे चलके मेहरारू लोग के आंगनबाड़ी में भी अंतरा मिले के उम्मेद बा. स्वास्थ्य आ परिवार कल्याण मंत्रालय के ओरी से गर्भनिरोधक इंजेक्शन पर एगो नियमावली बनावल गइल बा. एह हिसाब से ई इंजेक्शन तीसरा चरण में उपकेंद्रन में मिली.
शमा के कहनाम बा कि आजकल गांव के जादे मेहरारू दू गो लरिका के बाद “ब्रेक” लेवत बारी.
बाकिर हसनपुर में अइसन बदलाव आवे में बहुते बखत लाग गइल. शमा कहली, “जादे बखत लागल, बाकिर हमनी के क दिखइनी.”
शमा के घरवाला, 40 बरिस के रहमतुल्लाह अबू, हसनपुर में इलाज करेलें. अइसे, उनकरा पास एमबीबीएस के डिग्री नइखे. उनकरे मदद से शमा, इहे कोई 15 बरिस पहिले, मदरसा बोर्ड के आलिम स्तर के स्नातक परीक्षा पास कइली. घरवाला के साथ, मेहरारूवन के टोली संगे आपन काम से शमा के बहुत ताकत मिलल. ऊ घरवाला संगे मरीज के देखे जाए लगली. कबो ऊ डिलीवरी पर जाली, त कबो रोगी के आपन घर के क्लीनिक में रखेली आ उनकर आराम के ख्याल रखेली.
शमा आ सलहा के, अइसे त कबो ना लागल कि मुस्लिम आबादी वाला गांव होखे के कारण ओह लोग के गर्भनिरोध जइसन बात पर धरम आ रीति-रिवाज जइसन नाजुक मामला से जूझे के पड़ल. एकरा उलट, ऊ लोग के कहनाम बा कि बखत के साथ, समाज खुदे एह सब मामला के अलग नजर से देखे लागल
शमा के बियाह 1991 में भइल रहे, तब ऊ सिरिफ एगो किशोरी रहस. बियाह के बाद ऊ दुबियाही गांव, जे अब सुपौल में बा, से हसनपुर आइल रहली. ऊ बतावत बारी, “हम भारी परदा करत रहनी. अइसन कि आपन मोहल्ला तक ना देखले रहनी.” फेरू ऊ मेहरारू लोग के मंडली संगे काम करे लगली. इहंवे से सब कुछ बदल गइल. ऊ कहतारी, “अब हम एगो लरिका के पूरा जांच क सकतानी. हम सूइया भी दे सकेनी, पानी के बोटल चढ़ा सकेनी.”
शमा आउर रहमतुल्लाह अबू के तीन गो लरिका बारें. ऊ गर्व से बतावत बारी कि सबसे बड़का बेटा 28 बरिस के उमिर में भी अबही ले कुंवार बा. लइकी स्नातक कर लेले बारी आ अब बीएड करे के चाहत बारी. शमा कहली, “माशल्लाह, ऊ जल्दिए टीचर बन जइहें.” सबसे छोट लइका अबही कॉलेज में पढ़त बारन.
शमा हसनपुर के मेहरारू लोग के आपन परिवार छोट राखे के सलाह देवेली. ऊ लोग शमा के बात के बहुते ध्यान रखेला. ऊ बतइली, “ऊ लोग हमरा लगे कबो-कबो सेहत के अलग-अलग परेसानी लेके आवेला. तब हम परिवार नियोजन के सलाह दिहिला. परिवार जेतना छोट होई, ऊ लोग ओतने सुखी रही.”
शमा आपन घर के हवादार बरामदा में रोज क्लास भी लेवेली. इहंवा 5 से 16 बरिस के 40 गो लरिका सभ पढ़े आवेले. घर के देवाल से पेंट झर रहल बा. बाकिर एकर खंभा आउर मेहराब से बरामदा में रोशनी होखत बा. ऊ लरिका लोग के पढ़ावे के संगे संगे, कढ़ाई-सिलाई आ संगीत भी सिखावेली. इहंवा आवे वाली किशोर लइकी लोग शमा से आपन मन के बात भी कहेला.
गजाला ख़ातून, 18 बरिस, शमा के क्लास में पढ़ल बारी. ऊ शमा से सीखल एगो लाइन दोहरावेली, “माई के गोदी लरिका के पहिल स्कूल होखेला. इहंई से सेहत आ दोसर सभ बढ़िया बात सीखे के सुरुआत होखेला. माहवारी बखत कइसे आपन ख्याल रखे के चाहीं, कवन बात पर ध्यान देहल जरूरी ह, बियाह के ठीक उमर का बा, ई सब बात हम उनके से सिखले बानी. हमार घर के सभ मेहरारू अब माहवारी बखत कपड़ा के जगह पैड लेवेली. हम आपन अच्छा खान-पान के ध्यान रखिले. हम सेहतमंद रहम, त आगू हमार लरिका भी सेहतमंद पैदा होखी.”
सलहा (ऊ आपन परिवार के बारे में जादे बात कइल पसंद ना करेली) पर भी गांव के मेहरारू लोग आ समाज भरोसा करेला. ऊ अब हसनपुर महिला मंडल के नौ छोट बचत समूह के नेता बारी. एह में से हर समूह में 12-18 मेहरारू हर महीना 500 से 750 रुपइया के बचत करेली. अक्सरहा, टोली में कई गो जवान महतारी होखेली. सलहा ओह लोग से गर्भनिरोधक पर चरचा करेली आउर उनकरो एह विषय पर बात करे खातिर हौसला देवेली.
जीपीएसवीएस के मधुबनी के पूर्व अध्यक्ष जीतेन्द्र कुमार बतवले, “हमार मंडली के नाम कस्तूरबा महिला मंडल बा. एह में 300 मेहरारू लोग बाटे. हमनी गांव के मेहरारू के सही में सशक्त बनावे में लागल बानी. अइसन (हसनपुर) रूढ़िवादी समाज में भी हमनी के कोशिश जारी बा.” जितेंद्र कुमार, 1970 के दशक के अंत में, जीपीएसवीएस के संस्थापक सदस्य में से एगो रहस. ऊ एह बात पर जोर देत बारन कि उनकर काम के कारण समाज में शमा आउर सलहा जइसन स्वयंसेविक लोग पर भरोसा करे में मदद मिलेला. “इहंवा मोहल्ला में, कबो अइसन भी अफवाह फइलल रहे कि पल्स पोलियो ड्राप से लइका लोग बांझ हो सकेला. ऊ दिन रहे, आउर अब ई दिन बा. बदलाव आवे में बखत लागेला…”
अइसे त, शमा आ सलहा के कबो अइसन ना लागल कि मुस्लिम आबादी वाला गांव होखे के कारण ओह लोग के गर्भनिरोध जइसन बात पर धार्मिक सोच आ रीति-रिवाज से जूझे के पड़ी. एकर उलट, ऊ लोग के कहनाम बा कि बखत के साथे, समाज खुदे एह सब के अलग नजर से देखे लागल.
शमा कहत बारी, “हम रउआ एगो उदाहरण देहम. पछिला बरिस हमार एगो रिश्तेदार फेरू पेट से हो गइली. ऊ बीए के डिग्री लेले बाड़ी, आउर उनकरा पहिले से तीन गो लरिका भी बा. उनकर तीसर लरिका ऑपरेशन से भइल रहे. हम उनका चेतइले रहनी कि ऊ सावधान रहस, काहे कि उनकर पेट खोलल जा चुकल बा. बाकिर ऊ ध्यान ना देहली. अब उनका बहुते परेसानी हो गइल बा. उनका बच्चादानी हटावे खातिर ऑपरेशन करावे के पड़ल. ई सभ पर 3 से 4 लाख रुपइया खरचा हो गइल.” ऊ बतावत बारी कि एह तरह के बात होखे से दोसर मेहरारू लोग गरभ रोके के सुरक्षित तरीका अपनावे पर मजबूर हो जाली.
सलहा के कहनाम बा कि अब लोग बहुत महीन तरीके से सोचे लागल बा कि गुनाह, पाप का बा. ऊ कहे लगली, “हमार धरम त ईहो कहेला कि आपन लरिका के देखभाल करे के चाहीं. ओकरा अच्छा सेहत, अच्छा कपड़ा, अच्छा परवरिश मिले, ई देखे के चाहीं… एक दर्जन, आधा दर्जन बच्चा पैदा करके सड़क पर भटके के छोड़ दीहीं. हमनी के धरम ई ना कहे कि लरिका पैदा करके ओकरा आपन हाल पर छोड़ दीहीं.”
सलहा के मानल जाव त अब पुरान डर खतम हो गइल बा. ऊ कहली, “घर में सास के राज अब नइखे. बेटा कमात बा, आपन घरवाली के पइसा भेजत बा. उहे घर के मुखिया बारी. हमनी उनका दू बच्चा के बीच अंतर रखे, कॉपर-टी लगावे, गरभ रोके खातिर गोली या सूइया लेवे के सिखावत बानी. कोई के दू या तीन गो लरिका बा, त नसबंदी करावे के सलाह देवेनी.”
ई सभ कोशिश से हसनपुर के लोग पर बढ़िया असर भइल बा. सलहा के हिसाब से, “लोग लाइन पर आ गइल बा.”
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अनुवाद: स्वर्ण कांता