‘वह घर तो अब समंदर में डूब गया है’
आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी ज़िले में, उप्पडा गांव के निवासी अपनी वृत्ति के सहारे अनुमान लगाते हैं कि समुद्र आगे किस चीज़ को अपनी ज़द में लेगा. तेज़ी से धुंधली पड़ती तटरेखा ने उनकी आजीविका, सामाजिक संबंधों, और सामूहिक स्मृति को बदलकर रख दिया है
28 फ़रवरी, 2022 | राहुल एम.
जलवायु परिवर्तन के पंखों पर कीड़ों की लड़ाई
भारत में स्वदेशी कीड़ों की प्रजातियां तेज़ी से विलुप्त हो रही हैं — जबकि इनमें से कई हमारी खाद्य सुरक्षा के लिए काफ़ी मूल्यवान हैं। लेकिन मनुष्य इन कीड़ों को उतना प्यार नहीं दे रहा है जितना कि वह स्तनधारी पशुओं को देता है
22 सितंबर, 2020 | प्रीति डेविड
लक्षद्वीप से गायब होती मूंगे की चट्टानें
भारत का सबसे छोटा केंद्र शासित प्रदेश, जो समुद्र तल से औसतन 1-2 मीटर ऊपर है — और जहां हर सातवां व्यक्ति मछुआरा है — अपनी मूंगे की चट्टानों को खो रहा है और कई स्तरों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का सामना कर रहा है
12 सिंतबर, 2020 | श्वेता डागा
ठाणे में बारिश दुष्ट हो गई है
महाराष्ट्र के शहापुर तालुका की आदिवासी बस्तियों में रहने वाले धर्मा गरेल और अन्य लोग भले ही ‘जलवायु परिवर्तन’ की बात न करें, लेकिन वे रोज़ाना इसके सीधे प्रभावों का सामना कर रहे हैं, जिसमें अनियमित वर्षा और घटती पैदावार शामिल है
25 अगस्त, 2020 | ज्योति शिनोली
चुरूः गर्म लहर, सर्द लहर — मुख्य रूप से गर्म
जून 2019 में, राजस्थान के चुरू में वैश्विक तापमान 51 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। हालांकि, कई लोगों के लिए यह बढ़ती हुई गर्मी में सिर्फ़ एक मील का पत्थर और मौसम में अन्य अजीब बदलाव था जो स्पष्ट रूप से जलवायु परिवर्तन की ओर इशारा करते हैं
02 जून, 2020 | शर्मिला जोशी
जब यमुना की ‘मरी हुई मछली ताज़ा होगी’
प्रदूषकों और लापरवाही ने दिल्ली की जीवन रेखा को नाले में बदल दिया है। हर साल हज़ारों मछलियां मर जाती हैं जबकि यमुना के मूल संरक्षकों के पास कहीं और जाने की जगह नहीं है। इन सभी की वजह से जलवायु संकट और गरहाता जा रहा है
22 जनवरी, 2020 | शालिनी सिंह
बड़ा शहर, छोटे किसान, और एक मरती हुई नदी
शहर के किसान? हां, एक तरह से – राष्ट्रीय राजधानी में, संघर्ष कर रहे हैं क्योंकि बंद पड़ी यमुना नदी और उसके किनारे के मैदानों का विनाश इस पूरे क्षेत्र में जलवायु संकट को बढ़ाने के साथ ही उन किसानों की आजीविका को भी तबाह कर रहा है
19 दिसंबर, 2019 | शालिनी सिंह
उपनगरीय मुंबई में कम होती पोम्फ्रेट मछलियां
घटती मछलियों के बारे में बताने के लिए वरसोवा कोलीवाडा के बहुत से लोगों के पास कोई ना कोई कहानी है – इसके विभिन्न कारण हैं, स्थानीय स्तर पर प्रदूषण से लेकर विश्व-स्त्रीय तापमान तक। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को शहर के तटों तक लाने में दोनों का संयुक्त योगदान रहा है
4 दिसंबर, 2019 | सुबूही जिवानी
तमिलनाडु की समुद्री शैवाल इकट्ठा करने वाली महिलाएं
तमिलनाडु के भारतीनगर में मछुआरा समुदाय की महिलाओं की असामान्य गतिविधि उन्हें नावों की तुलना में पानी के भीतर ज़्यादा देर तक रखती है। लेकिन जलवायु परिवर्तन और समुद्री संसाधनों का दोहन उनकी आजीविका को बर्बाद कर रहा है
31 अक्टूबर, 2019 | एम पलानी कुमार
बारिश में देरी और संकट से घिरे भंडारा के किसान
विदर्भ का यह जिला, जहां लंबे समय तक पर्याप्त जल संसाधन थे, वर्षा के नए पैटर्न को देख रहा है। अब ‘जलवायु के हॉटस्पॉट’ के रूप में सूचीबद्ध, भंडारा में ये बदलाव धान के किसानों के लिए अनिश्चितता और नुकसान ला रहे हैं
23 अक्टूबर, 2019 | जयदीप हरडीकर
‘कपास अब सिर दर्द बन गया है’
ओडिशा के रायगडा जिले में रासायनिक खादों से सराबोर बीटी कपास की एकल कृषि फैल रही है – जिससे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंच रहा है, क़र्ज़ बढ़ता जा रहा है, अपरिवर्तनीय रूप से स्वदेशी ज्ञान समाप्त हो रहा है, और जलवायु संकट के बीज बोए जा रहे हैं
7 अक्टूबर, 2019 | अनिकेत आगा और चित्रांगदा चौधरी
ओडिशा में जलवायु संकट के बीज की बुवाई
रायगडा में, बीटी कपास का रक़बा 16 वर्षों में 5,200 प्रतिशत बढ़ गया है। परिणाम: स्वदेशी बाजरा, चावल की किस्मों और वन खाद्य पदार्थों से भरपूर इस जैव विविधता वाले क्षेत्र में एक खतरनाक पारिस्थितिक बदलाव देखने को मिल रहा है
7 अक्टूबर, 2019 | चित्रांगदा चौधरी और अनिकेत आगा
गुजरात के सिकुड़ते चारागाहों के बीच भेड़ों की गिनती
गुजरात में अपनी भेड़ों के लिए चारागाह की तलाश में कच्छ के पशुचारकों को लंबी दूरियों तक चलना पड़ता है, जबकि दूसरी तरफ़ चारागाह गायब होते जा रहे हैं या दुर्गम हैं, और जलवायु का प्रतिरूप पहले से कहीं ज़्यादा अनियमित हो चुका है
23 सितंबर, 2019 | नमिता वाइकर
सुंदरबनः ‘घास का एक पत्ता भी नहीं उगा...’
पश्चिम बंगाल के सुंदरबन में लोग लंबे समय से गरीबी की मार तो झेल ही रहे थे, अब उन्हें जलवायु परिवर्तन का भी सामना करना पड़ रहा है – जिसमें शामिल है आवर्ती चक्रवात, अनियमित बारिश, लवणता में वृद्धि, बढ़ती गर्मी, घटते जंगल और भी बहुत कुछ
10 सितंबर, 2019 | उर्वशी सरकार
‘खुशी के दिन अब केवल पुरानी यादें हैं’
अरुणाचल प्रदेश में पूर्वी हिमालय के ऊंचे पहाड़ों पर, घुमंतू ब्रोकपा समुदाय जलवायु परिवर्तन को पहचान रहा है और पारंपरिक ज्ञान के आधार पर उससे मुकाबला करने की रणनीति बना रहा है
2 सितंबर, 2019 | रितायन मुखर्जी
43 डिग्री तापमान पर ओलावृष्टि से लातूर में तबाही
महाराष्ट्र के लातूर जिले के ग्रामीणवासी पिछले एक दशक से गर्मियों में भारी और तीव्र ओलावृष्टि से परेशान हैं। कुछ किसान बागों को पूरी तरह से छोड़ रहे हैं
26 अगस्त, 2019 | पार्थ एम एन
सांगोले में ‘सब कुछ उल्टा हो चुका है’
महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के सांगोले तालुका के गांवों से ऐसी खबरें बड़ी संख्या में आ रही हैं कि अच्छी बारिश और सूखे के दिनों का पुराना चक्र कैसे टूट चुका है - और इसका कारण क्या है तथा प्रभाव क्या पड़ रहे हैं
19 अगस्त, 2019 | मेधा काले
‘आज हम उन मछलियों को डिस्कवरी चैनल पर तलाश कर रहे हैं’
तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले के पाम्बन द्वीप पर मछुआरों द्वारा तथा मछुआरों के लिए चलाया जाने वाला सामुदायिक रेडियो, कडल ओसई, इस सप्ताह तीन साल का हो गया। अब इसका नवीनतम प्रसारण जलवायु परिवर्तन पर केंद्रित है
12 अगस्त, 2019 | कविता मुरलीधरन
‘जलवायु इस तरह से क्यों बदल रही है?’
वायनाड, केरल में कॉफी और काली मिर्च के किसान तापमान में वृद्धि तथा अनियमित वर्षा के कारण जिले में होने वाले नुकसान से जूझ रहे हैं, जिसके निवासियों को कभी यहां की ‘वातानुकूलित जलवायु’ पर गर्व हुआ करता था
5 अगस्त, 2019 | विशाका जॉर्ज
‘पर्वत के देवता को हमने शायद नाराज़ कर दिया’
लद्दाख के ऊंचे चरागाहों में घुमंतू चांगपा पशुपालकों की याक से संबंधित अर्थव्यवस्था पर संकट के बादल छाए हुए हैं जिसका कारण है उनके नाज़ुक पर्वतीय पारिस्थितिक तंत्र में प्रमुख जलवायु परिवर्तन
22 जुलाई, 2019 | रितायन मुखर्जी
जलवायु से परेशान कोल्हापुर की भैंसें
राधानगरी, कोल्हापुर में इंसानों तथा वन्यजीवों के बीच टकराव बढ़ता जा रहा है, जहां गौर भैंसें आसपास के खेतों पर धावा बोल रही हैं। यह सब वनों की कटाई, फसल में बदलाव, सूखे और मौसम के उतार-चढ़ाव की वजह से हो रहा है
17 जुलाई, 2019 | संकेत जैन
रायलसीमा में रेत की बारिश
आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में फसलों के स्वरूप में परिवर्तन, घटते जा रहे वन-क्षेत्र, बोरवेल की संख्या में अथाह वृद्धि, एक नदी की मौत, और भी बहुत कुछ – ने भूमि, वायु, जल, वन और जलवायु पर नाटकीय प्रभाव डाला है
8 जुलाई, 2019 | पी साईनाथ
हिंदी अनुवादः मोहम्मद क़मर तबरेज़