कनका अपन हाथ ले देखावत बताथे, “मोर घरवाला सनिच्चर के दारू के तीन ठन अतका बड़े बोतल बिसोथे. वो ह अवेइय्या दू-तीन दिन तक ले वोला पियत रथे अऊ जब सब्बो बोतल सिरा जाथे, तभे बूता करे ला लाथे. खाय बर कभू भरपूर पइसा नई रहय. मंय अपन अऊ लइका ला भारी मुस्किल ले खवाय सकथों, अऊ अब मोर घरवाला ला दूसर लइका घलो चाही.” वो ह निरास होवत कहिथे. “मोला अइसने जिनगी जीना नई ये!”
24 बछर के कनका (बदले नांव) बेट्टा कुरुम्बा आदिवासी समाज के आय, जऊन ह गुडलूर के आदिवासी अस्पताल मं डाक्टर ला अगोरत हवय. गुडलूर सहर के ये 50 बिस्तरा वाला अस्पताल, उदगमंडलम (उटी) ले 17 कोस दूरिहा तमिलनाडु के नीलगिरी ज़िला के गुडलूर अऊ पंथलूर तालुका के 12,000 ले जियादा आदिवासी मन के इलाज करथे.
कनका के दुबर-पातर काया उघरे सिंथेटिक लुगरा पहिरे हवय अऊ अपन इकलौती नोनी सेती इहाँ आय हवय. बीते महिना ये अस्पताल ले 4 कोस दुरिहा, ओकर अपन बस्ती मं बेरा के बेरा होय जाँच के बखत, नीलगिरी के स्वास्थ्य कल्याण संघ (अश्विनी) के एक ठन स्वास्थ्य कार्यकर्ता, जऊन ह अस्पताल ले जुरे हवंय, ये देख के चिंता मं परगे के कनका के दू बछर के लइका के वजन सिरिफ 7.2 किलो हवय (दू बछर के लइका के वजन 10 ले 12 किलो बढ़िया माने जाथे). ये वजन के सेती वो ह गंभीर रूप ले कुपोषित के बरग मं आगे हवय. स्वास्थ्य कार्यकर्ता ह कनका अऊ ओकर बेटी ला तुरते अस्पताल जाय ला कहे रहिस.
कनका ला कमती आमदनी मं अपन घर चलाय ला परथे तऊन हालत ला देखत लइका के कुपोषित होय ह अचरज के बात नो हे. ओकर घरवाला जेकर उमर घलो करीबन 20 ले 30 बछर के भीतरी हवय, तीर-तखार के चाय, काफी, केरा अऊ मिर्चा के बगीचा मं हप्ता के कुछेक दिन बूता करके रोजी के 300 रूपिया कमाथे. कनका कहिथे, “वो ह मोला खाय-पिये सेती हरेक महिना 500 रुपिया देथे. ये रूपिया ले मोला पूरा घर ला चलाय परथे.”
कनका अऊ ओकर घरवाला, अपन कका अऊ काकी के संग रहिथें, दूनो करीबन 50 बछर के उमर के रोजी मजूर आंय. दूनो परिवार करा दू रासन कारड हवय, जेकर ले वो मन ला हरेक महिना 70 किलो चऊर मुफत मं, दू किलो दार, दू किलो सक्कर अऊ दू लीटर तेल कम दाम मं मिल जाथे. कनका बताथे, “कभू-कभू मोर घरवाला हमर रासन ला दारू पिये बर बेंच देथे. कतको बेर हमर करा खाय बर कुछु घलो नई रहय.”
राज के पोसन ले जुरे कार्यक्रम घलो कनका अऊ ओकर बेटी के खुराक ला पूरा करे भरपूर नई ये. गुडलूर मं ओकर बस्ती के तीर समेकित बाल विकास योजना (आइसीडीएस) बालवाड़ी मं कनका अऊ दीगर गरभ धरे माईलोगन अऊ अपन दूध पियावत महतारी मन ला हरेक हफ्ता मं एक अंडा अऊ हरेक महिना दू किलो के सुक्खा सथुमावू (गहूँ, हर चना, मूंगफली, चना अऊ सोया दलिया) के पाकिट मिलथे. तीन बछर ले कमती उमर के लइका मन ला घलो सथुमावू के पाकिट मिलथे. तीन बछर ले जियादा उमर के लइका मन ले ये आस रथे के वो मन आइसीडीएस केंद्र मं आके बिहनिया के कलेवा, मझनिया के खाय, अऊ संझा मं गुड़ अऊ मूंगफली खाय ला आवंय. गंभीर रूप ले कुपोषित लइका मन ला रोज़ के अऊ उपराहा मूंगफली अऊ गुड़ देय जाथे.
जुलाई 2019 ले सरकार ह नवा महतारी मन ला अम्मा उट्टचाठु पेट्टगम पोषण सामग्री किट देय ला सुरु करे हवय, जऊन मं 250 ग्राम घी अऊ 200 ग्राम के प्रोटीन पाउडर होथे, फेर अश्विनी के सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यक्रम समन्वयक 32 बछर के जीजी एलमन कहिथें, “पाकिट बस वो मन के घर के पठोरा मं रखाय धरे रथे. हकीकत त ये आय के आदिवासी लोगन मन अपन खाय मं गोरस अऊ घी नई बऊरें. वो मन घी छुवें तक नई. अऊ न त वोमन ला प्रोटीन पाउडर अऊ हरियर आयुर्वेदिक पाउडर बऊरे ला नई आवय, येकरे सेती वो ला एक कोंटा मं राख देथें.”
एक बखत रहिस जब निलगिरी के आदिवासी समाज खाय के जिनिस संकेले ला असानी ले जंगल जाय सकत रहिस. 40 बछर ले गुडलूर के आदिवासी समाज के संग काम करेइय्या मारी मार्सल ठेकैकारा बताथें, “आदिवासी मन ला किसम-कसिम के कांदा, जामुन, हरियर पान, अऊ फुटू मन के बारे मं भारी जानकारी हवय जऊन ला वो मन संकेलथें. वो मन खाय सेती बछर भर मछरी धरथें धन नान-नान जानवर मन के सिकार करथें. बरसात के दिन मं अधिकतर लोगन मन के घर मं आगि के ऊपर थोर बहुत गोस सुखाय जाथे, फेर, वन विभाग ह जंगल मं वो मन के जाय ला कमती कर दीस अऊ ओकर बाद पूरा पूरी रोक लगा दीस.”
2006 के वनाधिकार अधिनियम के तहत सार्वजनिक सम्पत्ति संसाधन ऊपर समाजिक अधिकार बहाल होय के बाद घलो आदिवासी लोगन मन अपन खाय के जिनिस बर पहिले जइसने जंगल ले संकेले नई सकत हवंय.
गाँव मं गिरत आमदनी घलो बढ़त कुपोसन के कारन आय. आदिवासी मुनेत्र संगम के सचिव, के टी सुब्रमनियन कहिथें के बीते 15 बछर ले आदिवासी मन बर रोजी मजूरी के बूता कमती होय हवय, काबर इहाँ के जंगल संरक्षित मुदुमलाई वन्यजीव अभ्यारण्य बन गे हवंय. ये अभ्यारण्य के भीतरी अवेइय्या बगीचा अऊ सम्पत्ति – जिहां अधिकतर आदिवासी मन ला बुता मिलत रहिस – बिक गे हवय धन वोला दीगर जगा बसाय गे हवय, जेकर सेती वो मन चाय बगीचा मन मं धन खेत मन मं कुछु दिन के बुता करे ला मजबूर हवंय.
जऊन मेर कनका अगोरत हवय उही गुडलूर आदिवासी अस्पताल मं 26 बछर के सूमा (असल नांव नई) वार्ड मं सुस्तावत हवंय. वो ह तीर के पंथलूर तालुक़ा के पनियन आदिवासी हवय, अऊ वो ह हालेच मं अपन तीसर लइका ला जनम देय हवय, जऊन ह ओकर पहिली के दू अऊ 11 बछर के नोनी मन जइसने एक झिन नोनी आय. सूमा ह ये नोनी ला ये अस्पताल मं जनम नई देय रहिस, फेर जचकी के बाद ओकर देखभाल अऊ नसबंदी कराय सेती इहाँ आय हवय.
ओकर बस्ती ले इहाँ तक आय ले जीप ले घंटा भर लागथे. वो ह बस्ती ले इहाँ तक आय ले होवइय्या खरचा डहर आरो करत कहिथे, “मोर जचकी पहिली होय ला रहिस, फेर पइसा नई होय के सेती हमन ये अस्पताल मं जचकी नई करवाय सकेन. गीता चेची [अश्विनी के स्वास्थ्य कार्यकर्ता ] आय-जाय अऊ खाय खरचा सेती 500 रुपिया देय रहिस, फेर मोर घरवाला ह जम्मो पइसा के दारू पी दीस, येकरे सेती मोला घरेच मं रहे ला परिस. दू–तीन दिन बाद मोर दरद अऊ बढ़ गे अऊ हमन ला घर ले निकरे ला परिस, फेर अस्पताल जाय बर बनेच देरी हो गे रहिस, येकरे कारन घर के तीर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) मं जचकी होईस.” दूसर दिन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के नर्स ह 108 (एम्बुलेंस सेवा) ला फोन करिस, अऊ आखिर मं सूमा अऊ ओकर परिवार जीएएच बर निकर गीन.
चार बछर पहिली सूमा के आईयूजीआर के सेती सातवाँ महिना मं गरभपात हो गे रहिस: ये हालत मं गरभ मं लइका नान कन हो जातिस धन जतका ओकर बाढ़ होय ला चाही ओकर ले कमती बाढ़ होथे. अधिकतर ये हालत मं महतारी ला होवइय्या पोसन के कमी ,खून अऊ फोलेट के कमी के कारन होथे. सूमा के अवेइय्या गरभ ऊपर घलो आईयूजीआर के असर होइस अऊ ओकर लइका के वजन जनम के बखत भारी कम रहिस (1.3 किलो, जबकि जनम के बखत आदर्श वजन कम से कम 2 किलो होथे). लइका के उमर के मुताबिक वजन के ग्राफ सबले कम फीसदी रेखा ले घलो बनेच तरी मं हवय, अऊ चार्ट मं ‘गम्भीर रूप ले कुपोषित’ बरग मं चिन्हारी करे गेय हवय.
जीएएच के दवा विशेषज्ञ, 43 बछर के डॉक्टर मृदुला राव बताथें, “गर महतारी कुपोषित हवय, त लइका घलो कुपोषित होही. सूमा के लइका ला अपन दाई के कुपोसन के असर ला झेले ला पर सकथे; ओकर देह, दिमाग अऊ तंत्रिका के विकास ओकर उमर के दीगर लइका मन के तुलना मं धीमा होही.”
सूमा के रिकार्ड बताथे के तीसर गरभ के बखत ओकर वजन सिरिफ 5 किलो बढ़िस. ये वजन, सामान्य बजन वाले गरभ धरे महतारी मन के तय वजन बढ़त ले आधा ले घलो कमती हवय, अऊ सूमा जइसने कम वजन वाले महतारी मन के हिसाब ले त आधा ले घलो बहुते कम हवय. 9 महिना के गरभ के संग वो ह सिरिफ 38 किलो के हवय.
2006 के वनाधिकार अधिनियम के तहत सार्वजनिक सम्पति संसाधन ऊपर समाजिक अधिकार बहाल होय के बाद घलो आदिवासी लोगन मन अपन खाय के जिनिस बर पहिली जइसने जंगल ले संकेले नई सकत हवंय
जीएएच के स्वास्थ्य एनिमेटर (प्रसार कार्यकर्ता), 40 बछर के गीता कन्नन सुरता करत बताथें, “मंय हफ्ता मं कतको पईंत गरभ धरे महतारी अऊ लइका ला देखे ला जावत रहंय. मंय देखत रहंय के लइका सिरिफ चड्डी पहिरे अपन दादी के गोदी मं बिन उछाह के बइठे हवय. घर मं रांधत नई रहिन, अऊ परोस के लोगन मन लइका ला खाय ला देवत रहिन. सूमा सुते रहय, दुरबल दिखय. मंय सूमा ला हमर अश्विनी साथूमावू (रागी अऊ दार के पिसान) देवत रहंय अऊ वो ला कहत रहेंव के अपन अऊ अपन लइका, जऊन ला अपन दूध पियाथे, के सेहत सेती बने करके खावय. फेर सूमा कहय, अभू घलो ओकर घरवाला रोजी मजूरी मं जऊन कुछु कमाथे ओकर बनेच अकन ला दारू पी देथे. गीता थोकन रुक के कहिथें, “सूमा घलो पिये ला सुरु कर देय रहिस.”
वइसे त गुडलूर के अधिकतर परिवार मन के इहीच कहिनी आय, फेर ये ब्लाक के स्वास्थ्य संकेतक मं सरलग बढ़ती होवत दिखत हवय. अस्पताल के रिकार्ड ह बताथे के 1999 मं 10.7 (हरेक 100,000 जिंयता जनम ऊपर) के महतारी मऊत के दर (एमएमआर) के अनुपात, 2018-19 तक 3.2 तक के तरी गिर गे रहिस, अऊ वो बखत शिशु मऊत दर (आईएमआर) 48 (हरेक 1,000 जिंयत जनम ऊपर) ले घट के 20 हो गेय रहिस. राज्य योजना आयोग के जिला मानव विकास रिपोर्ट, 2017 ( डीएचडीआर 2017 ) के मुताबिक, नीलगिरी जिला मं आईएमआर 10.7 है, जऊन ह राज के 21 के औसत ले घलो कमती हवय, अऊ गुद्लूर तालुका मं त 4.0 हवय.
बीते 30 बछर ले गुड़लूर के आदिवासी मईलोगन मन के संग काम करत आवत डॉक्टर पी. शैलजा देवी समझाथें के ये संकेतक सरी बात ला नई बतावंय. वो ह बताथें, “मृत्यु संकेतक जइसे एमएमआर अऊ आईएमआर जरुर पहिली ले बढ़िया होय हवय, फेर रोग-राई बाढ़ गे हवय. हमन ला मऊत अऊ रोग मं फरक करे ला परही. कुपोषित महतारी ह कुपोषित लइका लाच जनम दिही, जेकर ले बीमारी लगे के बनेच खतरा हवय. अइसने मं तीन बछर के लइका दस्त (डायरिया) जइसने रोग ले जान गंवाय सकत हवय अऊ ओकर दिमाग के बिकास घलो धीरे होही. आदिवासी मन के अवेइय्या पीढ़ी अइसनेच होही.”
येकर छोर, समान्य मृत्यु दर संकेतक मं आय इजाफा ला ये इलाका के आदिवासी समाज मं बढ़त दारू के लत के सेती कमतर माने जावत हवय, अऊ ये इजाफा ह आदिवासी अबादी मं भारी मात्रा मं रहत कुपोसन ऊपर परदा डाल सकथे. (जीएएच दारू के लत अऊ कुपोसन के आपस के सम्बंध ऊपर एक ठन परचा तियार करे जावत हवय; ये ह सार्वजनिक रूप ले उपलब्ध नई ये.) जइसने के डीएचडीआर 2017 के रिपोर्ट मं घलो ये कहे गे हवय, मऊत दर के काबू मं होय ले घलो, पोसन स्तर मं सुधार सायदेच न होय.
60 बछर के प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ, डॉक्टर शैलजा कहिथें, “जब हमन मऊत के दूसर कारन जइसे उल्टी-दस्त ला काबू करत रहेन, अऊ सब्बो जचकी अस्पताल मं करवावत रहेन, समाज मं दारू के लत ये सब्बो झिन ला बरबाद करत रहिस. हमन जवान महतारी मन अऊ लइका मन मं सब-सहारा सत्र के कुपोसन अऊ पोसन के कंदलाय हालत ला देखत रहेन.” डॉक्टर शैलजा जनवरी 2020 मं जीएएच ले सरकार डहर ले रिटायर हो गे रहिन, फेर वो ह अभू घलो हरेक बिहनिया अस्पताल मं मरीज मन ला देखत अऊ संगवारी मन के संग मरीज के बीमारी के चर्चा करत बिताथें, वो ह बताथें, “50 फीसदी लइका मध्यम अऊ गम्भीर रूप ले कुपोसन के सिकार हवंय. दस बछर पहिली [2011-12], मध्यम कुपोसन 29 फीसदी मं रहिस अऊ गम्भीर कुपोसन 6 फीसदी, येकरे सेती ये बढ़त ह बहुते जियादा हलाकान करेइय्या हवय.”
कुपोसन के असर ला फोर के बतावत, डॉक्टर राव कहिथें, ”पहिली, जब महतारी मन जाँच करवाय ओपीडी मं आवत रहिन, त वो मन अपन लइका मन के संग खेलत रहंय, अब त वो मन अल्लर बइठे रहिथें, अऊ लइका मन घलो सुस्त लागथें. ये अल्लर ह लइका अऊ अपन के पोसन सेहत डहर देखभाल मं कमी मं बदलत हवय.”
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 ( एनएफ़एचएस-4 , 2015-16) ले पता चलथे के नीलगिरी के देहात इलाका मं 6 ले 23 महिना उमर के 63 फीसदी लइका मन ला भरपूर खाय ला नई मिलय, फेर 6 महिना ले 5 बछर के उमर के 50.4 फीसदी लइका मन मं खून के कमी हवय (11 ग्राम प्रति डेसीलीटर ले तरी के हीमोग्लोबिन – न्यूनतम 12 सही माने जाथे. करीबन आधा (45.5 फीसदी) देहात के माइलोगन मन मं ख़ून के कमी हवय, जऊन ह ओकर गरभ ऊपर नुकसान करथे.
डॉक्टर शैलजा बताथें, “हमर तीर अभू घलो अइसने आदिवासी माईलोगन मन आथें, जेकर मं बिल्कुले घलो खून नई रहय – 2 ग्राम प्रति डेसीलीटर हीमोग्लोबिन! जब खून के कमी के जाँच करथन, तब हाइड्रोक्लोरिक एसिड रखथन अऊ वो मं खून ला डालथन, त कमती ले कमती 2 ग्राम प्रति डेसीलीटर तकेच नाप ला पढ़े जा सकथे, येकर ले कमती घलो होय सकत हवय, फेर नापे नई जाय सकय.”
खून के कमी अऊ महतारी मऊत मं करीब के नाता-गोता हवय. जीएएच के प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ, 31 बछर के डॉक्टर नम्रता मैरी जॉर्ज कहिथें, “ख़ून के कमी सेती जचकी मं खून जाय सकथे, हार्ट अटेक आय सकत हवय, अऊ मऊत घलो हो सकत हवय. येकरे कारन ले गरभ मं लइका के बाढ़ मं असर परथे अऊ जनम के बखत कमती वजन सेती नवजात के मऊत घलो हो जाथे. लइका के बिकास नई होय पावय अऊ लम्बा बखत तक के कुपोसन के सिकार हो जाथे.”
कमती उमर मं बिहाव अऊ गरभ धरे ले, लइका के सेहत ला अऊ घलो खतरा मं डार देथें. एनएफ़एचएस-4 के मुताबिक़, नीलगिरी के देहात इलाका मं सिरिफ 21 फीसदी नोनी मन के बिहाव 18 बछर ले कमती के उमर मं हो जाथे, फेर इहाँ के स्वास्थ्य कार्यकर्ता ये बात के तर्क करथें के अधिकतर आदिवासी नोनी मन के बिहाव 15 बछर के उमर मं धन जइसने वोला महवारी सुरु होथे, वइसने उमर मं कर देय जाथे. डॉक्टर शैलजा कहिथें, “हमन ला बिहाव अऊ ओकर पहिली गरभ ला ढेरियाय के अऊ घलो कोसिस करे ला होही, जब पूरा पूरी जवान होय ले पहिलेच, 15 धन 16 बछर के उमर मं गरभ धर लेथें, तब वो मन के खराब पोसन, नवा जन्मे लइका के सेहत ऊपर खराब असर करथे.”
शायला ला मरीज अऊ ओकर संग काम करेइय्या दुनो मन, चेची (दीदी) के नांव ले बलाथें. वो ह आदिवासी माइलोगन मन के मुद्दा ऊपर अथाह गियान राखथें. वो ह बताथें, “परिवार के सेहत, पोसन ले जुरे हवय, अऊ गरभ धरे अऊ अपन दूध पियावत माइलोगन ला पौष्टिक अहार के कमी सेती खतरा दुगुना हो जाथे. तनखा बाढ़े हवय, फेर पइसा परिवार तक ले पहुंचत नई ये. हमन अइसने मइनखे मन ला जानथन जऊन ह अपन रासन के 35 किलो चऊर ला बगल के दूकान मं दारू बिसोय बेंच देथें. ओकर लइका मन मं कुपोसन कइसने नई बढ़ही?”
अश्विनी मं मानसिक स्वास्थ्य सलाहकार, 53 बछर के वीना बताथें, “ समाज के संग हमर जऊन घलो बइठका होथे, चाहे कऊनो मुद्दा ऊपर, इहीच समस्या के संग सिरोथे: परिवार मं बढ़त दारू के लत.”
ये इलाका के बासिंदा मन मं अधिकतर कट्टूनायकन अऊ पनियन आदिवासी समाज के आंय, जऊन मन बिसेस रूप ले कमजोर आदिवासी समूह मं सामिल हवंय. जनजातीय अनुसंधान केंद्र, उदगमंडलम के एक अध्ययन के मुताबिक, ये मन ले 90 फीसदी ले जियादा लोगन मं बगीचा अऊ खेत मजूर आंय. इहाँ रहेइय्या बाकि समाज खास करके इरुलर, बेट्टा कुरुम्बा, अऊ मुल्लू कुरुम्बा हवंय, जऊन ह अनुसूचित जनजाति मं सामिल हवंय.
मारी ठेकैकारा बताथें, “हमन जब 80 के दसक मं इहाँ आय रहेन, तब 1976 के बंधुआ मजदूर प्रणाली अधिनियम (उन्मूलन) के बाद घलो, पनिया समाज के लोगन मन धान,बाजरा, केरा, मिर्चा अऊ साबूदाना के बगीचा मं बंधुआ मजूरी करत रहिन. वो मन बिक्कट जंगल के मंझा मं नान-नान बगीचा मं बूता करत रहिन, वो मन ये बात ले अनजान रहिन के जऊन जमीन मं वो मन बूता करत हवंय वो जमीन ओकरे मन के आय.”
मारी अऊ ओकर घरवाला स्टैन ठेकैकारा ह आदिवासी मन के ऊपर अवेइय्या मुद्दा ला आगू लाय सेती 1985 मं अकॉर्ड (सामुदायिक संगठन, पुनर्वास अऊ बिकास के बूता सेती) के गठन करिन. समे के संग, अनुदान ले चलेइय्या एनजीओ ह कतको संगठन के नेटवर्क बना लेय हवय – संगम (परिषद) बनाईन अऊ वो ला आदिवासी मुन्नेत्र संगम के देखरेख मं ले आइन, आदिवासी मन के डहर ले चलाय अऊ काबू मं राखे गीस. संगम ह आदिवासी जमीन ला दुबारा हासिल करे मं कामयाब हो गे, चाय के बगीचा लगाईन, अऊ आदिवासी लइका मन के सेती इस्कूल खोलिन. अकॉर्ड ह घलो नीलगिरी मं स्वास्थ्य कल्याण संघ (अश्विनी) के सुरुआत करिस, अऊ 1998 मं गुडलूर आदिवासी अस्पताल खोलिन. अब इहां छे डॉक्टर हवंय, एक प्रयोगशाला हवय, एक्सरा खोली, दवा के दुकान अऊ ब्लड बैंक हवंय.
डॉक्टर रूपा देवदासन सुरता करत कहिथें, “80 के दसक मं, सरकारी अस्पताल मन मं आदिवासी मन के संग दूसर दरजा के लोगन मन जइसने बेवहार करे जावत रहिस अऊ वो मन भाग जावत रहिन. स्वास्थ्य के हालत बिक्कट रहिस: गरभ के बखत माइलोगन मन मरत जात रहिन, अऊ लइका मन ला दस्त होवत रहय अऊ वो मन मर जावत रहंय. हमन ला बीमार धन गरभ धरे महतारी मरीज के घर मं घुसे के घलो मनाही रहिस. बनेच अकन बात करे अऊ आस बंधाय के बाद समाज ह हमर ऊपर बेस्वास करे ला सुरु करिन.” रूपा अऊ ओकर घरवाला डॉक्टर एन. देवदासन अश्विनी के तउन आगू रहेइय्या डॉक्टर मन ले आंय, जऊन ह आदिवासी इलाका मन मं घर-घर जावत रहिन.
सामुदायिक चिकित्सा, अश्विनी के मूल मंत्र आय; जेकर करा 17 स्वास्थ्य ऐनिमेटर (स्वास्थ्य कार्यकर्त हवंय अऊ 312 हेल्थ वॉलंटियर हवंय, अऊ सब्बो आदिवासी आंय, ये जम्मो गुडलूर अऊ पंथलूर तालुका मन मं भारी पैमाना मं घूमत रहिथें,घर–घर जा के स्वास्थ्य अऊ पोषण ले जुरे सलाह देथें.
50 बछर ले जियादा उमर के टी आर जानू, जऊन ह मुल्लू कुरुम्बू समाज के आंय, अश्विनी मं प्रशिक्षित पहली स्वास्थ्य एनिमेटर रहिन. पंथलूर तालुका मं चेरनगोडे पंचइत के अय्यनकोली बस्ती मं ओकर दफ्तर हवय अऊ आदिवासी परिवार मं शक्कर, ब्लड प्रेशर, अऊ टीबी के बेरा के बेरा जांच करथें, अऊ प्राथमिक चिकित्सा के संगे संग सामान्य स्वास्थ्य अऊ खुराक के सलाह घलो देथें. वो ह गरभ धरे महतारी अऊ अपन दूध पियावत महतारी मन के घलो धियान रखथें. वो ह कहिथें, “गाँव के नोनी मन गरभ धरे के बनेच महिना बीते, हमर तीर जचकी ले जुरे सलाह ले ला आथें. फोलेट के कमी सेती गरभ के पहिली तीन महिना मं ये दवई देय जरूरी आय, जेकर ले गरभ के भीतरी लइका के बिकास झन रुके, नई त ये ह काम नई करय.”
फेर, सूमा जइसने जवान माईलोगन सेती आईयूजीआर ले बचाय नई जाय सकय. अस्पताल मं हमर ले भेंट होय के कुछेक दिन बाद ओकर नसबंदी हो गे रहिस अऊ वो अपन परिवार के संग घर जाय के तियारी करत रहिस. वो ला उहाँ के नर्स अऊ डॉक्टर मन ले सलाह मिले रहिस. वो ला जाय के खरचा अऊ अवेइय्या हफ्ता के खुराक सेती पइसा देय गेय रहिस. ओकर जाय के टेम, जीजी एलमाना कहिथें, “ ये बेर हमन ला आस हवय के ये पइसा ले वो ह हमर बताय जिनिस मन ला बिसोय मं खरचा करही.”
पारी अऊ काउंटरमीडिया ट्रस्ट के तरफ ले भारत के गाँव देहात के किशोरी अऊ जवान माइलोगन मन ला धियान रखके करे ये रिपोर्टिंग ह राष्ट्रव्यापी प्रोजेक्ट ' पापुलेशन फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया ' डहर ले समर्थित पहल के हिस्सा आय जेकर ले आम मइनखे के बात अऊ ओकर अनुभव ले ये महत्तम फेर कोंटा मं राख देय गेय समाज का हालत के पता लग सकय.
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अनुवाद: निर्मल कुमार साहू