ये कहिनी बदलत मऊसम ऊपर लिखाय पारी के तऊन कड़ी के हिस्सा आज जऊन ह पर्यावरन रिपोर्टिंग के श्रेणी मं साल 2019 के रामनाथ गोयनका अवार्ड जीते हवय.
केरल के पहाड़ी वायनाड जिला मं खेती के अपन दिक्कत के बारे मं ऑगस्टाइन वडकिल कहिथें, “संझा 4 बजे हमन ला जाड़ ले बचे आगि बारे ला परत रहिस. फेर ये ह 30 बछर पहिली होवत रहिस. अब वायनाड मं जाड़ नई ये, कऊनो जमाना मं इहाँ कुहरी छाय रहय.” मार्च के सुरु मं जियादा ले जियादा 25 डिग्री सेल्सियस ले, अब इहाँ के तापमान बछर के ये बखत तक ले असानी ले 30 डिग्री पार कर जाथे.
अऊ वडकिल के जिनगी मं गरम दिन के आंकड़ा दुगुना ले जियादा हो गे हवय. आबोहवा मं बदलाव अऊ ग्लोबल वार्मिंग ला एक ठन इंटरैक्टिव उपकरन ले करे नाप के मुताबिक, 1960 मं, जऊन बछर ओकर जनम होय रहिस, “वायनाड इलाका मं बछर के करीबन 29 दिन कम से कम 32 डिग्री (सेल्सियस) तक तापमान हबर जावत रहिस.” ये नाप ला न्यूयॉर्क टाइम्स मं ये बछर जुलाई मं ऑनलाइन छापे गे रहिस. नाप के मुताबिक, “आज वायनाड इलाका मं 59 दिन अइसने होथे जब तापमान अऊसतन 32 डिग्री धन ओकर ले ऊपर चले जाथे.”
वडकिल कहिथें के मऊसम के तरीका मं बदलाव ले गरमी नई झेल पाय वाले फसल, जइसने के मरीच अऊ संतरा के रुख मन ला नुकसान पहुँचत हवय, जऊन ह कभू ये जिला के डेक्कन पठार के दक्खन मुड़ी के बूड़ती घाट मं भरपूर होवत रहिस.
वडकिल अऊ ओकर घरवाली वलसा करा मनंथवाडी तालुका के चेरुकोट्टुर गांव मं चार एकड़ खेत हवय. ओकर परिवार करीबन 80 बछर पहिली कोट्टयम ले वायनाड आ गे रहिस, जेकर ले इहाँ नगदी फसल कमा के अपन किस्मत अजमाय सकेंय. वो बखत लोगन मन दूसर डहर बसे बर बनेच जावत रहिन, तब राज के भंडार–उदती दिग के ये जिला मं केरल राज के मंझा मं रहेइय्या हजारों छोटे अऊ सीमांत किसान आके बसत रहिन.
फेर बखत के साथ, लागथे के वो तेजी मंदी मं बदल गे. वडकिल कहिथें, “बरसात बीते बछर जइसने बेबखत रहि, त हमन जऊन (ऑर्गैनिक रोबस्टा) कॉफ़ी ला लगाथन, तेन ह बरबाद हो जाही.” वलसा कहिथे, “कॉफ़ी नफा के फसल आय, फेर मऊसम येकर बढ़े मं सबले बड़े समस्या आय. घाम अऊ बेबखत के पानी येला बरबाद कर देथे.” ये फसल उपजाय मं लगे लोगन मन बताथें के (रोबस्टा) कॉफ़ी लगाय सेती सबले बढ़िया तापमान 23 ले 28 डिग्री सेल्सियस रथे.
वायनाड के सब्बो कॉफ़ी, जेन ह रोबस्टा परिवार (उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार झाड़ी)मं आथे, येकर खेती दिसंबर ले मार्च महिना के आखिर तक करे जाथे. कॉफ़ी के पऊधा ला फरवरी के आखिर धन मार्च के सुरु मं पहली पानी के जरूरत रथे – अऊ ये ह हफ्ता भर बाद फूले ला सुरु कर देथे. ये जरूरी आय के बरसात के पहली पानी के बाद हफ्ता भर ले पानी झन गिरय, काबर दुबारा बरसात ह फूल ला खराब कर देथे. कॉफ़ी के फल धन ‘चेरी’ के बाढ़ सेती, पहिली बरसात के हफ्ता भर बाद दूसर बरसात के जरूरत होथे. जब फूल पूरा खिले के बाद झर जाथे त फर वाले चेरी पाके ला धरथे.
वडकिल कहिथें, “बखत मं बरसात तोला उपज के 85 फीसदी गारंटी देथे.” जब हमन मार्च के सुरू मं भेंट होय रहेन, त वो ह अइसने नतीजा के आस करे रहिस, फेर वो चिंता करत रहय के अइसने होही घलो धन नई. अऊ आखिर मं अइसने नई होईस.
मार्च महिना के सुरु मं, केरल मं भारी गरमी सुरु होय के संग तापमान पहिलेच 37 डिग्री हबर गे रहय. वडकिल ह हमन ला मार्च के आखिरी मं बताय रहिस, “दूसर बरसात (रंदमथ माझा) ये बछर बनेच जल्दी आ गे अऊ सब्बो कुछु बरबाद हो गे.”
दू एकड़ मं ये फसल करेइय्या वडकिल ला येकरे कारन ये बछर 70,000 रूपिया के नुकसान होईस. इहाँ के किसान मन ले कॉफ़ी बिसोइय्या सहकारी समिति, वायनाड सोशल सर्विस सोसायटी (डब्ल्यूएसएसएस), किसान मन ला एक किलो अपरिष्कृत ऑर्गेनिक कॉफ़ी के 88 रूपिया, अऊ गैर ऑर्गेनिक कॉफ़ी के 65 रूपिया देथे.
डब्ल्यूएसएसएस के निदेशक फ़ादर जॉन चुरापुझायिल ह मोला फोन मं बताइन के वायनाड मं 2017-2018 मं कॉफ़ी के 55,525 टन के उपज मं ये बछर 40 फीसदी के घटती आय हवय. अभू तक कऊनो सरकारी आंकड़ा आगू नई आय हवय. फ़ादर जॉन कहिथें, “उपज मं बहुते जियादा घटती येकर सेती आय हवय काबर मऊसम मं बदलाव वायनाड मं कॉफ़ी सेती सबले बड़े खतरा साबित होय हवय.” पूरा जिला मं जऊन किसान मन ले हमर भेंट होय रहिस वो मन अलग-अलग बछर मं भारी बरसात अऊ कम बरसात, दूनों ले उपज अलग अलग होय के बात बताय रहिन.
कमती-जियादा बरसात ले खेत मं पानी सूख जाथे. फ़ॉदर जॉन के अनुमान हवय के “वायनाड के सिरिफ 10 फीसदी किसानेच मन बोर अऊ पंप जइसने अपासी सुविधा के संग सुक्खा धन बेबखत बरसात के बाद घलो अपन खेती कर सकथें.”
वडकिल अइसने किस्मत वाला लोगन मन ले नई आय. अगस्त 2018 मं वायनाड अऊ केरल के दीगर हिस्सा मं आय पुर के बखत ओकर पानी पंप खराब हो गे रहिस. येकर मरम्मत मं वो ला 15,000 रूपिया खरचा करे ला परिस, जऊन ह अइसने मुस्किल बखत मं बहुते बड़े रकम आय.
अपन बाकी दू एकड़ खेत मं वडकिल अऊ वलसा रबर, मरीच, केरा,धान, अऊ सुपारी कमाथें. फेर, बढ़त गरमी ह ये सब्बो फसल ला घलो असर करे सुरु कर देय हवय.”15 बछर पहिली, सिरिफ मरीच हमर रोजी रोटी के जरिया रहिस. फेर (जब ले) ध्रुथवात्तम (तेजी ले अईलाय) जइसने रोग ह जिला भर मं येला बरबाद कर दीस.” काबर के मरीच बरमासी फसल आय, येकरे सेती किसान मन के नुकसान भयंकर रहिस.
वडकिल कहिथें, “बखत बीते सात, अइसने लागथे के खेती करे के सिरफ़ एके कारन ये आय के तोला येकर सौक लगे हवय. मोर करा अतक सारा जमीन हवय, फेर मोर हालत ला देखव.” वो ह हंसत कहिथे, ये मुस्किल बखत मं बस तंय थोकन जियादा नून-मिरचा पीस के भात के संग खाय सकथस.”
वो ह कहिथे, “ये ह 15 बछर पहिली सुरु होइस. कलावस्था अइसने काबर बदलत हवय? मजा के बात ये आय के मलयालम शब्द कलावस्था के मतलब जलवायु (आबोहवा) होथे, तापमान धन मऊसम नई. ये सवाल हमन ले वायनाड के किसान मन कतको बेर पूछे रहिन.
बदकिस्मती ले, येकर एक ठन जुवाब किसान मन के बछरों बछर ले अपनाय, खेती के तौर-तरीका मं हवय.
सुमा टीआर कहिथें, “हमन कहिथन के हरेक खेत मं कतको किसिम के फसल कमाय ले बढ़िया आय, बनिस्बत येकरे के एकेच फसल लगाय जाय, जइसने के ये बखत होवत हवय.” सुमा वायनाड के एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फ़ाउंडेशन मं वैज्ञानिक हवंय, जऊन ह जमीन बऊरे अऊ बदललव के मुद्दा ला ले के 10 बछर ले काम कर चुके हवंय. एक फसली खेती, कीरा अऊ रोग-रई ला बगराथे, जेकर इलाज रसायनिक दवई अऊ खातू ले करे जाथे. ये ह जमीन के पानी मं चले जाथे धन हवा मं मेंझर जाथे, जेकर ले मटमैलापन अऊ प्रदूसन होथे – अऊ बखत के संग पर्यावरन ला गहिर ले नुकसान होथे.
सुमा कहिथें के ये सब्बो ह अंगरेज मन के जंगल काटे ले सुरु होईस. “वो मन लकरी सेती जंगल मन ला साफ कर दीन अऊ जम्मो पहाड़ मं रुख लगा दीन.” वो ह कहिथें के मऊसम मं बदलाव घलो येकरे ले जुरे हवय के “कइसने (1940 के दसक के सुरु मंइच जिला मं) भारी पैमाना मं दूसर जगा जाय के संग हमर पाछु के सब्बो नजारा घलो बदल गे. येकर पहिली, वायनाड के किसान मन खास करके अलग अलग फसल के खेती करत रहिन.”
तऊन दसक मन मं, इहाँ के माई फसल धान रहिस, कॉफ़ी धन मरीच नईं – खुदेच ‘वायनाड’ शब्द घलो ‘वायल नाडु’ धन धान के खेत के जमीन ले आथे. वो खेत ये इलाका – अऊ केरल के पर्यावरन अऊ पर्यावरन तंत्र सेती महत्तम रहिस. फेर धान के रकबा (1960 मं करीबन 40,000 हेक्टेयर रहिस) आज मुस्किल ले 8,000 हेक्टेयर हो गे हवय; जऊन ह 2017-18 के सरकारी आंकड़ा के मुताबिक, जिला के सब्बो फसली इलाका के 5 फीसदी ले घलो कम हवय. अऊ अब वायनाड मं कॉफ़ी बगीचा करीबन 68,000 हेक्टेयर इलाका मं बगरे हवय, ऊन हा केरल के कुल कॉफ़ी इलाका के 79 फीसदी हवय - अऊ 1960 मं देश भर मं सबू रोबस्टा ले 36 फीसदी जियादा रहिस, वडकिल के जनम उही बछर होय रहिस.
सुमा कहिथें, “किसान नगदी फसल सेती जमीन ला साफ करे के जागा, पहाड़ मं रागी जइसने फसल के खेती करत रहिन. खेत, पर्यावरन तंत्र ला बनाय रखे के काबिल रहिन. फेर, वो ह आगू कहिथें के बढ़त पलायन के संग नगदी फसल ह खाय के फसल ले आगू बढ़गे. अऊ 1990 के दसक मं वैश्वीकरन के आय के संग, जियादा ले जियादा लोगन मन मरीच जइसने नगदी फसल ऊपर पूरा पूरी भरोसा मं रहे ला सुरु कर दीन.
पूरा जिला मं हमन जतक घलो किसान ले भेंट करे रहेन तऊन सब्बो मन ये बड़े बदलाव के बात करिन – उपज मं घटती येकरे सेती आय हवय, काबर मऊसम के बदलाव हा वायनाड मं कॉफ़ी सेती सबले बड़े ख़तरा साबित होय हवय’
डब्ल्यूएसएसएस के पूर्व परियोजना अधिकारी, अऊ मानंथवाडी सहर के एक झिन ऑर्गेनिक किसान, ईजे जोस कहिथें, “आज किसान एक किलो धान ले 12 रूपिया अऊ कॉफ़ी ले 67 रूपिया कमावत हवंय. फेर मरीच ले वो मन ला किलो पाछू 360 ले 365 रूपिया मिलत हवय.” दाम मं अतक बड़े फेरफार ह अऊ कतको किसान मन ला धान के खेती छोड़, मरीच धन कॉफ़ी ला चुने ला मजबूर करे हवय. “अब हरेक उही उपज लेवत हवय जऊन ह सबले जियादा नफा वाले होय, न के जेकर जरूरत हवय. हमन धान ला घलो गंवावत हवन जऊन ह अइसने फसल आय, जऊन ह पानी ला रोके रखे मं मदद करथे, अऊ पानी के जरिया मन ला भर के रखथे.”
राज मं धान के जम्मो खेत मन ला घलो अबादी के जमीन सेती बदल दे गे हवय.जेकर ले ये फसल के काबिल खेती करेईया मन के काम ला कमती करत हवय.
सुमा कहिथें, “ये सब्बो बदलाव ले वायनाड के नजारा ऊपर सरलग असर परत हवय. एक फसली खेती ले माटी ला खराब करे गे हवय. बढ़त अबादी (1931 के जनगणना के बखत जिहां 100,000 ले कम रहिस, उहिंचे 2011 के जनगणना के बखत 817,420 तक हबर गे) अऊ जमीन के बंटवारा घलो येकरे संग चलत हवय, येकरे सेती ये कऊनो अचरज वाले बात नई ये के वायनाड के मऊसम तिपत जावत हवय.”
जोस घलो ये मानथें के खेती के ये बदलत तरीका ले गरमी बढ़े के करीब के रिस्ता आय. वो ह कहिथें, “खेती के तरीका मं बदलाव ह बरसात बदले ला घलो असर करे हवय.”
तीर के थविनहल पंचइत मं, अपन 12 एकड़ के खेत मं हमर संग घूमत, 70 बछर के एम जे जॉर्ज कहिथें, “ये खेत कऊनो जमाना मं मरीच ले अतका भरे रहंय के घाम ला रुख मन ले पार करे घलो मुस्किल होवत रहिस. बीते कुछेक बछर मं हमन कतको टन मरीच गंवाय हवन. मऊसम के बदलत हालत सेती पऊधा मन मं जल्दी अइला जाय जइसने रोग होवत हवंय.”
फंगस फ़ाइटोफ्थोरा सेती जल्दी अइलाय के समस्या ह जिला भर के हजारों लोगन के रोजी रोटी ला खतम कर दे हवय. जोस कहिथें, “ये ह भारी नमी का हालत मं पनपथे, अऊ ये ह बीते 10 बछर मं वायनाड मं बनेच बढ़े हवय. बरसात घलो बेबखत होवत हवय. रसायनिक खातू जियादा बऊरे घलो ये रोग ला बगरे मं मदद करे हवय, जेकर ले ट्राइकोडर्मा नांव के मददगार बैक्टीरिया धीरे-धीरे मरे लगथे, जऊन ह फंगस ले लड़े मं मदद करत रहिस.”
जॉर्ज कहिथें, पहिली हमर करा वायनाड मं वातानुकूलित मऊसम रहिस, फेर अब नईं ये. बरसात, जऊन ह सीजन मं पहिली सरलग होवत रहय, अब बीते 15 बछर मं ये मं भारी कमी आय हवय. हमन अपन बरसात सेती नामी रहेन...”
तिरुवनंतपुरम भारत मौसम विज्ञान विभाग के कहना आय के 2019 मं 1 जून ले 28 जुलाई के मंझा वायनाड मं समान्य अऊसत ले 54 फीसदी कम बरसात होय रहिस.
आमतऊर ले भारी बरसात के इलाका होय सेती, वायनाड के कुछेक हिस्सा मं कतको बेर 4,000 मिमी ले जियादा बरसात होथे. फेर कुछेक बछर ले बरसात के मामला मं जिला के अऊसत मं भारी घट- बढ़ होय हवय. 2014 के आंकड़ा 3,260 मिमी रहिस, फेर ओकर बाद आगू के दू बछर मं भारी घटती के संग ये ह 2,283 मिमी अऊ 1,328 मिमी हबर गे. ओकर बाद, 2017 मं ये ह 2,125 मिमी रहिस अऊ 2018 मं, जब केरल मं पुर आय रहिस, ये ह बढ़के 3,832 मिमी मं हबर गे.
केरल कृषि विश्वविद्यालय, त्रिशूर के जलवायु परिवर्तन शिक्षा अऊ अनुसंधान अकादमी मं वैज्ञानिक अधिकारी के रूप मं काम करत डॉ. गोपाकुमार चोलायिल कहिथें, "हाल के दसक मन मं बरसात के फेरफार सलाना बदलाव मं बदले हवय, खास करके 1980 के दसक ले अऊ 90 के दसक मं एम तेजी आय हवय, संग मं, मानसून अऊ मानसून के बाद के बखत मं जम्मो केरल मं भारी बरसात बढ़े हवय. वायानाड ये मामला मं कऊनो अपवाद नई ये.”
ये सब्बो असल मं वडकिल, जॉर्ज, अऊ दीगर किसान मन के चिंता के गवाही देथें. भलेच वो मन बरसात के ‘कमी’ ले दुखी हवंय – अऊ जिला के बनेच बखत तक के अऊसत घलो घटे के आरो करत हवंय – फेर वो मन के कहे के मतलब इहीच आय के जऊन मऊसम अऊ दिन मं वो मन ला बरसात के जरूरत अऊ आस रहिथे वो बखत बरसात बहुते कम होथे. ये जियादा बरसात के संगे संग, कम बरसात के बछर मन मं घलो हो सकथे. जतक दिन पानी गिरे के मऊसम रहिस बन वो दिन मन कम हो गे हवय, फेर येकर जोर ह बाढ़ गे हवय. वायनाड मं अभू घलो अगस्त–सितंबर मं बरसात हो सकथे, फेर इहाँ मानसून के माई महिना जुलाई आय. (अऊ 29 जुलाई मं, मऊसम विभाग ह ये जिला के संग कतको दीगर जिला मं भारी ले बहुते भारी बरसात के ‘ऑरेंज अलर्ट’ जरी करे रहिस.)
डॉ. चोलायिल कहिथें, “फसल लगाय के तरीका बदले, जंगल कटे, जमीन बऊरे के अलग-अलग ढंग ... ये सब्बो के मऊसम तंत्र उपर गहिर ले असर परे हवय.”
सुभद्रा जऊन ला मनंथवाडी के लोगन मन मया ले ‘टीचर’ कहिके बलाथें, कहिथें, “बीते बछर के पुर मं मोर कॉफ़ी के जम्मो फसल बरबाद हो गे रहिस.” 75 बछर के ये किसान (सुभद्रा बल कृष्णन) आगू खत जाथे, “ये बछर वायनाड मं कॉफ़ी सबले कम उपजिस.” वो ह एडवाक पंचइत मं अपन घर के 24 एकड़ खेती के देख रेख करथें अऊ दीगर फसल के संग कॉफ़ी, धान अऊ नरियर कमाथें. ओकर मुताबिक, “वायनाड के कतको (कॉफ़ी) किसान मन अब (आमदनी सेती) पहिली के बनिस्बत अपन मवेसी के भरोसा मं जियादा होवत जावत हवंय.”
हो सकत हवय के वो मन ‘मऊसम बदले’ शब्द नई बऊरत होहीं, फेर हमन जतक घलो किसान मन ले भेंट करेन वो सब्बो येकर असर ले चिंता मं हवंय.
अपन आखिरी ठिहा मं – सुल्तान बाथेरी तालुका के पूथडी पंचइत मं 80 एकड़ मं बगरे एडेन घाटी मं – हमन बीते 40 बछर ले खेत मजूर गिरिजन गोपी ले भेंट करेन; तऊन बखत वो ह अपन आधा पारी सिरो डरेच ला रहिस. वो ह कहिथें, “रात मं भारी जाड़ लागथे अऊ दिन मं भारी गरमी. कऊन जनि इहाँ काय हवत हवय.” मंझनिया खाय जाय के पहिली ओ ह बड़बड़ावत (धन अपन आप ले) कहिस, “ये सब्बो भगवान के लीला आय. हमन ये सब्बो ला कइसने समझे सकथन?”
जिल्द फोटू : विशाखा जार्ज
लेखिका ह ये कहिनी लिखे मं मदद करे सेती शोधकर्ता नोएल बेनो के अभार जतावत हवंय.
पारी के बदलत मऊसम ऊपर लिखाय देश भर ले रिपोर्टिंग के ये प्रोजेक्ट, यूएनडीपी समर्थित तऊन पहल के हिस्सा आय , जऊन मं आम जनता अऊ ओकर जिनगी के गुजरे बात ला लेके पर्यावरन मं होवत बदलाव के रिकार्ड करे जाथे
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अनुवाद: निर्मल कुमार साहू