पढ़ला-लिखला के नाम पर ऊ खाली आपन नाम लिखे जानेली. जब ऊ संभार-संभार के देवनागरी में आपन नाम लिखली, उनकर चेहरा चमके लागल: गो-पु-ली. फेरु हंसी के एगो फव्वारा फूट पड़ल, अइसन हंसी जे रउआ के भी हंसवले बिना ना छोरी.
मिलीं चार गो लरिकन के माई गोपली गमेती से. गोपली (38 बरिस) कहतारी कि अउरत लोग ऊ सब काम कर सकेला जे करे के ठान लेवे.
उदयपुर जिला के गोगुंदा ब्लॉक में एगो करदा गांव ह. एह गांव के बहरी इलाका में मुश्किल से 30 गो घर होई. एहि बस्ती में गोपली आपन सभ चार गो लरिकन के घरे में जन्म देले बारी. ओह घरिया उनकर मदद खातिर उनकर टोला के औरत लोग के अलावा कोई ना रहत रहे. आपन चउथा लरिका के पैदा होखला के कुछेक महीना बाद, ऊ पहिल बेर आपन नसबंदी ला अस्पताल गइल रहस.
ऊ कहे लगली, “अब बखत आ चुकल बा, हमनी मान लीं कि हमार परिवार पूरा हो गइल बा.” गोगुंडा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) के एगो स्वास्थ्य सेविका बच्चा ठहरे से रोके वाला एह “ऑपरेशन” के बारे में बता गइल रहस. ई मुफ्त में रहे. बस सरकारी अस्पताल पहुंचे के रहे, जे उनका घर से इहे कोई 30 किलोमीटर रहे. ई अस्पताल चार गो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) के देख-रेख करे खातिर बनावल गइल बा.
घर में ऊ कई बेर एह बारे में चरचा कइली. बाकिर उनकर घरवाला हर बार अनसुना कर देलन. ऊ धीरज धइले रहली, महीनन तक सोचत रहली. सबसे छोट लइकी अभियो उनकरे दूध पर जिंदा रहे. ऊ बहुत सोच-विचार कइली, फेरु एक दिन फैसला कर लेली.
पुरान बात याद करके ऊ मुस्का देली, “एक दिन हम बिना केकरो से पूछले, निकल गइनी घर से. कहनी कि जात बानी ‘दवाखाना’, नसबंदी करावे.” ऊ टूटल-फूटल हिंदी आ भिली भाषा में बोलत रही. “ई सुन के घरवाला आ हमर सास घबराइल हमरा पीछे-पीछे दउड़ल.” सड़क पर ऊ तीनों लोग के आपस में थोड़िका बहस भी भइल. बाकिर ऊ लोग के जल्दिए समझ में आ गइल कि गोपली अब रुके वाला नइखी. अब जब ऊ ठान लेले बारी, त उनकरा समझावल मुश्किल बा. फेरु का, तीनों लोग एके बस में सवार भइल आ गोगुन्दा के सरकारी अस्पताल ला निकल गइल. गोपली के नसबंदी इंहवे होवे के रहे.
अस्पताल (सीएचसी) में ओह दिन नलबंदी/नसबंदी (ट्यूबल लिगेशन) करावे आइल दोसर मेहरारू लोग भी ठाड़ रहे. गोपली बतावे लगली कि उनकरा तनिको अंदाजा ना रहे उहंवा कोई नसबंदी शिविर लागल बा. नसबंदी करवावे केतना गो मेहरारू आइल बारी, इहो ठीक से पता ना रहे. गांव-देहात के अस्पताल में ना तो कोई सुविधा होला, ना जादे साधन. इहे सब कारण से छोट शहरन में बखत-बखत पर नसबंदी शिविर लगावल जाला. एह से आस-पड़ोस के गांव से आवे वाला मेहरारू लोग के नसबंदी के सुविधा मिल जाला. बाकिर एह शिविरन में साफ-सफाई के खराब हालत आ नसबंदी के लक्ष्य पूरा करे के दबाव बहुत रहेला. एह से ई योजना सभ के पिछला केतना बरिस से कड़ा आलोचना के शिकार होखे के पड़त बा.
ट्यूबल लाइगेशन, चाहे बंध्याकरण बच्चा ठहरे पर रोक लगावे के एगो स्थायी तरीका ह. एह में 30 मिनट के ऑपरेशन होखेला. एह ऑपरेशन के मदद से मेहरारूवन के फेलोपियन ट्यूब बंद कर देहल जाला. एह प्रक्रिया के नलबंदी/नसबंदी भी कहल जाला. संयुक्त राष्ट्र के 2015 के एगो रिपोर्ट के हिसाब से महिला नसबंदी दुनिया भर में गर्भनिरोध के सबसे लोकप्रिय तरीका बा. दुनिया भर के 19 प्रतिशत बियाहल, चाहे लिव-इन में रहे वाली मेहरारू लोग इहे तरीका चुनेला.
भारत में भइल राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019-21) के मानल जाव त, 15 से 49 उमिर के 37.9 प्रतिशत बियाहल औरत ट्यूबल लाइगेशन यानी नसबंदी करावेली.
नारंगी रंग के घूंघट में आंख तक आपन माथा ढंकले गोपली खातिर ई एगो बगावती कदम रहे. उनकर सेहत त ठीक रहे, बाकिर चउथा लरिका के जन्म देवला के बाद ऊ थाक गइल रहस. नसबंदी करावे के पीछे एगो कारण आउर रहे. उनकर माली हालत ठीक ना रहे.
उनकर घरवाला सोहनराम सूरत में एगो प्रवासी मजदूर बारे. साल में अधिका
दिन ऊ बाहरे रहेले. खाली होली-दीवाली जइसन तीज-त्योहार के मौका पर एक-एक महीना खातिर
घरे आवेलन. एह बेर ऊ चउथा लरिका के जन्म के कुछ दिन बाद अइलन. गोपली तबे तक आपन मन
बना लेले रहस. ठान लेले रहस कि अब उनकरा एक्को आउर लरिका ना चाहीं.
गोपली बतवली, “एतना-एतना लरिका सब के संभाले घरिया कवनो मरद लोग घर में ना रहे.” गोपली आपन फूस के छत वाला ईंटा के घर में भूइंया पर बइठल बारी. एक ओरी छीलल भुट्टा के एगो छोट ढेरी सूखत बा. गोपली जब-जब पेट से रहली, उनकर घरवाला लगे ना रहस. पेट में बच्चा लेले उनकरा आपन आधा बीघा (मोटा-मोटी 0.3 एकड़) खेत पर कामो करे के रहत रहे. इहे ना, ओह घरिया उनकरा दोसरो खेत पर काम करे के होखे. आ एतना काम कइला के बाद जब थाक के घरे आवस, त चूल्हा-चौका, लरिका सब भी संभाले के होखे. “हमनी लगे त केतना बेर लरिकन के नून-रोटी खिलावे जुगुत भी पइसा ना होत रहे. त एतना लरिका पैदा कइला के का मतलब बा, बताईं?”
जब उनकरा के पूछल गइल कि का ऊ बच्चा रोके के कोई दोसर उपाय भी कइली, ऊ लजा गइली. उनकरा आपन घरवाला के बारे में बात करे में भी लाज आवत रहे. ऊ मुस्कात बतवली कि उहंवा कवनो मरद लोग के गर्भनिरोधक इस्तेमाल करे खातिर राजी करे के कोशिश कइल बेकार बा.
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करदा गांव अरावली पहाड़ी के तलहटी में बसल बा. ई रोयडा पंचायत के हिस्सा बा. एकरा से खाली 35 किलोमीटर के दूरी पर राजसमन्द जिला में पर्यटन खातिर मशहूर कुंभलगढ़ के प्रसिद्ध किला होई. करदा गांव में गमेती, 15 से 20 परिवार के एगो बड़ा कुनबा बा. एह लोग भील-गमेती के अनुसूचित जनजातीय समुदाय से संबंध रखे वाला एके कुल के बा. ई कुनबा गांव के बहरी इलाका में बसल बा. इहंवा एगो परिवार के पास एक बीघा से जादे, खेती लायक जमीन ना होई. एह कुनबा में एगो मेहरारू भी स्कूल के पढ़ाई पूरा नइखी कइले. मरद लोग के हाल भी कवनो खास बढ़िया ना ह.
जून के आखिर आउर सितंबर के बीच, बरखा के मौसम छोड़ देहल जाव, त गमेती के मरद लोग मुश्किल से महीना भर घर में रहत होई. बरखा के दिनन में गेहूं उगावे खातिर ओह लोग पर खेत जोते के जिम्मेदारी रहेला. कोविड-19 के लॉकडाउन के मुस्किल दिनन में भी समूह के जादे मरद लोग दूर सूरत में जाके कपड़ा मिल में खटत रहे. उहंवा ऊ लोग लंबा कपड़ा के थान में से छह-छह मीटर के साड़ी काटे आ अलग करे के काम करत रहे. कटला के बाद साड़ी सब पर बाजार भेजे से पहिले, बांधनी आ कसीदाकारी कइल जाला. साड़ी काटे के काम के दिहाड़ी 350 से 400 रुपइया मिलेला.
दक्षिणी राजस्थान से दसियों बरस से लाखन की संख्या में पुरुष मजदूर लोग पलायन करत आवत बा. इहंवा से ऊ लोग सूरत, अहमदाबाद, मुंबई, जयपुर आ नई दिल्ली जइसन शहर कमाए खातिर जाला. ओह लोग के पीछे जे परिवार छूटेला, ओह में जादे मेहरारू लोग ही होखेला.
मरद लोग के ना रहला में, पूरा तरीका से अनपढ़ मेहरारू, आ खाली वर्णमाला जाने वाला गिनल-चुनल मेहरारू लोग अब आपन सेहत आउर जिनगी के फैसला लेवेला सीख लेले बा.
पुष्पा गमेती के उमिर इहे कोई 30 बरिस होई. ऊ तीन गो लरिकन के माई बारी. ऊ साफ-साफ कहत बारी कि मेहरारू लोग के बखत के हिसाब से अपना के ढाले के होई. महामारी से ठीक पहिले उनकर एगो किशोर लइका के बाल श्रम निरोधी कानून खातिर काम करे वाला कार्यकर्ता सूरत से वापिस ले आइल रहस.
पुरान दिनन में जब भी तबियत से जुड़ल कवनो इमरजेंसी होखत रहे, मेहरारू लोग घबरा जात रहे. पुष्पा याद करत बारी कि कइसे कवनो लरिका के बोखार हफ्ता भर ना उतरे, चाहे खेत पर काम करे में चोट लगला पर खून ना रुके त मेहरारू लोग कोई अनहोनी के डर से जम जात रहे. ऊ बतावत बारी, “घर में कवनो मरद के ना होखे से हमनी के पास ना त इलाज खातिर पइसा रहत रहे, ना ई बुझात रहे कि दवाखाना जाए ला कवनो सवारी के इंतजाम कइसे कइल जाव. धीरे-धीरे हमनी सब सीख गइनी.”
पुष्पा के बड़ लइका किशन एक बेर फेरु से काम पर जाए लागल बा. अबकी बेर ऊ बगल के गांव में मिट्टी खोदे वाला मशीन के ड्राइवर के साथे काम करत बा. पुष्पा आपन दोसर दुनो लरिका- 5 बरिस के मंजू आउर 6 बरिस के मनोहर के 5 किलोमीटर दूर रोयडा गांव में आंगनबाड़ी ले जाली.
ऊ कहत बारी, “हमनी के बड़ बच्चा खाती आंगनबाड़ी से कुछूओ ना मिलेला.” बाकिर हाल के बरिसन में करदा के नयका महतारी लोग घुमावदार हाईवे के मुश्किल रस्ता पार करके रोयडा पहुंचेली. इहंवा उनका आउर उनकर छोट लरिका के आंगनबाड़ी में गरम आ पौष्टिक खुराक मिलेला. पुष्पा आपन लइकी मंजू के भी कूल्हा पर बइठाके ले जाली. कबो-कबो उनका रस्ता में लिफ्ट मिल जाला.
पुष्पा बतावत बारी, “ई कोई कोरोना के पहिले के बात हवे.” लॉकडाउन के बाद मई 2021 तक मेहरारू लोग के पता ना चलत रहे कि आंगनबाड़ी केन्द्र फेरु से काम कर रहल बा कि ना.
किशन पांचवी के बाद अचानक स्कूल छोड़ देलें, आ आपन एगो दोस्त संगे सूरत काम करे जाए लगलें. पुष्पा के ना बुझाइल एकरा से कइसे निपटस. परिवार के कवनो फैसला पर उनकर काबू नइखे. ऊ कहतारी, “बाकिर अब हम लरिका लोग के बारे में फैसला के काम आपन हाथ में रखे के कोशिश करत बानी.”
उनकर घरवाला नातूराम एह घरिया करदा में एह उमर में काम करे वाला अकेला मरद बारन. सूरत में 2020 के गर्मी में, लॉकडाउन बखत पुलिस के साथ प्रवासी मजदूर लोग के हिंसक झड़प भ गइल रहे. एह सब से घबराइल नातूराम करदा में ही रहके इहंवा आस-पास काम तलाशे के फैसला कइलन. अइसे त अभी तक किस्मत उनकर जादे साथ ना देलक ह.
गोपली पुष्पा के नसबंदी के फायदा के बारे में बतवली. एह ऑपरेशन के बाद पूरा सावधानी, चाहे रख-रखाव ना होखे से मेहरारू लोग के कवनो तरह के मेडिकल समस्या होखेला, एकरा बारे में ऊ अभी तक नइखी सुनले. गर्भनिरोध के एह तरीका में ऑपरेशन फेल होखे, बच्चादानी आउर आंत में कोई तरह के नुकसान, नलियन में कवनो रुकावट आऊर जख्म में संक्रमण, चाहे सेप्सिस होखे के कवनो मामला सामने ना आइल ह. गोपली के मानना बा कि नसबंदी खाली जनसंख्या के काबू करे खातिर ही ना ह. ऊ तसल्ली भरल टोन में कहत बारी, “एकरा से सगरी चिंता-फिकिर खत्म.”
पुष्पा के तीनों लरिकन घरे में पैदा भइलन. लरिका के जन्म के समय रिश्ता में कवनो जेठानी, चाहे गमेती समुदाय के कोई उमिरगर मेहरारू लोग नयका बच्चा के नाल काटले रहे. आ फेरो एह नाल के, हिंदू लोग आपन कलाई पर जे मोट सूत के धागा पहिनेला ओकरा से, बांधल गइल रहे.
गोपली के कहनाम बा, “आजकल के नयकी गमेती महतारी लोग घर पर बच्चा जने के खतरा नइखे चाहत. उनकर एकलौती पतोह भी पेट से बारी. ”हम ओकरा या आपन होखे वाला पोता चाहे पोती के जान आउर सेहत से कोई खिलवाड़ नइखी कर सकत.”
होखे वाली महतारी, जे 18 बरिस के हई, अभी आपन पीहर में बारी. उनकर पीहर अरावली के एगो ऊंच गांव में बा. इहंवा से इमरजेंसी में बाहर निकलल मुश्किल बा. “जचगी बेरा हम उनकरा इहंवा ले आइब. जब ऊ दवाखाना जइहें, उनकरा साथे टेम्पो में दु-तीन गो आउरी मेहरारू लोग साथे जाई.” टेम्पो से गोपली के मतलब उहंवा के लोकल सवारी, तीन पहिया वाहन बा.
“वइसे भी आज कल के नयका जनानी लोग के दरद बरदाश्त ना होखेला.” गोपली उहंवा आवत-जात मेहरारू सभ के देख के ठिठियइली. ऊ मेहरारू लोग भी मुड़ी हिला के हंस देलक.
एह छोट टोला के दू-तीन गो आउरी मेहरारू लोग भी नसबंदी के करवले बा, बाकिर ऊ लोग एकरा बारे में बतियावे में बहुत लजात बा. अइसे त टोला में बच्चा रोके खातिर कवनो दोसर तरह के आधुनिक उपाय ना कइल जात बा. बाकिर गोपली के अनुसार, 'अभी के जवान मेहरारू सब जादे होशियार हई'
आसपास के इलाका में सबसे नजदीक पीएचसी मोटा-मोटी 10 किलोमीटर दूर, नंदेशमा गांव में बा. करदा के जवान मेहरारू लोग आपन पेट में बच्चा ठहरे के पुष्टि भइला के बाद एहि पीएचसी में रजिस्टर कएल जाली. ऊ लोग आपन नियमित जांच खातिर एहि जगहा जाला. एह इलाका में आवे वाली स्वास्थ्य सेविका लोग एह लोग के कैल्शियम आउर आयरन के गोली देवेला.
भंमरीबाई कालूसिंह के कहनाम बा, “करदा के मेहरारू लोग उहंवा टोली बना के जाला. कबो कबो त ऊ लोग गोगुन्दा सीएचसी तक भी चल जाला.” भंमरीबाई जात के राजपूत बारी आ एहि गांव में रहेली. आपन तबियत आ सेहत के बारे में फैसला लेवे के हिम्मत आवे से गमेती मेहरारू लोग के जिनगी के कायापलट हो गइल बा. पहिले ऊ लोग बिना मरद के, गांव से बाहर पांव ना धरत रहे. भंमरी बाई ई बात बतावल ना भूलेली.
कल्पना जोशी उदयपुर के ‘आजीविका ब्यूरो’ के कम्युनिटी ऑरगनाइजर हई. आजीविका ब्यूरो गमेटी के मरद लोग सहित दोसर प्रवासी मजदूर के हित खातिर काम करेला. कल्पना के हिसाब से जे गांव में बड़ संख्या में मरद लोग बाहर जाके काम करेला, उहंवा ‘घर में रह गइल’ मेहरारू लोग में आपन फैसला लेवे के काबिलियत आ हिम्मत धीरे-धीरे आवत बा. ऊ कहली, “ऊ लोग अब जान गइल बा इमरजेंसी में फोन कहां करे के बा, एम्बुलेंस कइसे बुलावल जाला. अधिका मेहरारू लोग अब अपना बूते खाली अस्पतालो जाला, आउर उहंवा के स्वास्थ्य कार्यकर्ता आ एनजीओ के प्रतिनिधि लोग से साफ-साफ बात भी करेला. पिछला 10 बरिस में सब कुछ बदल गइल बा.” पहिले कोई तरह के इलाज या तबियत के परेशानी होखला पर, मरद लोग के सूरत से लउट आवे के इंतजार कइल जात रहे.
एह टोला के दू-तीन गो अउरी मेहरारू लोग के भी ट्यूबल लाइगेशन करावल गइल रहे. बाकिर ऊ लोग एकरा बारे में बतावे में लजाला. इहंवा बच्चा ठहरे से बचे के नया जमाना के कवनो आउरी तरीका इस्तेमाल ना होखेला. गोपली के हिसाब से, “बाकिर नयका मेहरारू लोग जादे होशियार हई.” उनकर पतोह भी बियाह के कोई बरिस भर बाद गर्भवती बारी.
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पार्वती मेघवाल (नाम बदलल बा) के घरवाला एगो प्रवासी मजदूर हवन. ऊ करदा से 15 किलोमीटर से भी कम दूरी प बसल गांव में रहेली. उनकर कहनाम बा कि अइसन मजदूर के मेहरारू होखल बहुत मुश्किल बा. उनकर मरद गुजरात के मेहसाना में जीरा के पैकेजिंग यूनिट में काम करत रहले. पार्वती थोड़का दिन खातिर मेहसाना में उनका साथे रहे के कोशिश कइली. उहंवा चाय के दोकान खोल लेहली. बाकिर आपन तीन गो लरिकन के पढ़ाई चलते उदयपुर लवटे के पड़ल.
पार्वती के साथे 2018 में एगो गंभीर एक्सीडेंट भ गइल रहे. ओह घरिया उनकर घरवाला बाहिर रहले. नीचे गिरला से उनकर माथा में एगो कील भीतरे तक धंस गइल. जख्म ठीक होखला पर जब ऊ अस्पताल से घर अइली, दु बरिस तक कवनो तरह के मानसिक बीमारी से परेशान रहली.
ऊ बतावे लगली, “हम हमेशा आपन घरवाला, लरिकन आउर पइसा-कौड़ी के लेके फिकिरमंद रहत रहनी. फेरु ई हादसा हो गइल.” उनकरा दौरा पड़े लागल. लंबा-लंबा बखत खातिर ऊ अवसाद में चल जास. “सभे कोई हमरा चीखला-चिल्लइला आ सामान फेंकला से परेशान रहे. गांव भर में केहू हमरा लगे ना आवे. हम आपन इलाज के सब कागज फाड़ देनी, नोट फाड़ देनी, कपड़ा फाड़ देनी...” बाद में ठीक भइला पर पता चलल कि ऊ का-का करत रहस. अब ऊ आपन दिमागी बीमारी के लेके तनी शर्मिंदो रहेली.
पार्वती कहली, “फेरु लॉकडाउन शुरू हो गइल. सब कुछ दोबारा गड़बड़ा गइल. हम एक बार फेर से दिमागी रूप से टूटत-टूटत बचनी.” ओह घरिया घरवाला के 275 किलोमीटर से जादे दूर मेहसाना से पैदल घरे लौटे के पड़ल. मानसिक अवसाद पार्वती के पूरा तरह से बर्बाद कर दिहलस. उनकर सबसे छोट लइका भी घर से दूर उदयपुर में रहस. इहंवा ऊ एगो रस्टोरेंट में रोटी बनावे के काम करत रहस.
मेघवाल दलित समुदाय से संबंध रखेला. पार्वती के कहल मानल जाव, त प्रवासी मजदूर अगर दलित हवें, त ओकर मेहरारू के गांव में कमाए खातिर जादे परेशानी उठावे के पड़ेला. “रउरा लोग समझ सकीलें कि मानसिक बेमारी से जूझत, चाहे जूझ चुकल एगो दलित मेहरारू खातिर ई सब केतना भारी हो सकेला?”
पार्वती आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, आ सरकारी कार्यालय में पहिले हेल्पर के काम कइले बरी. बाकिर एक्सीडेंट, आ बाद में मानसिक बीमारी के कारण उनकरा खातिर काम करत रहल मुश्किल हो गइल रहे.
साल 2020 में दिवाली के आसपास लॉकडाउन हटल त ऊ आपन घरवाला के फैसला सुना देली. ऊ साफ कह देली कि अब ऊ उनकरा के दोबारा काम खातिर बाहर ना जाए दिहन. ऊ आपन नाता-रिश्तेदार आ एगो सहकारी संगठन से पइसा उधार लेली. गांव में किराना के एगो छोट दूकान लगवली. उनकर घरवाला गांव, आ आस-पास के इलाका में दिहाड़ी के काम खोजे के कोशिश करेलन. पार्वती के कहनाम बा, “हमरा प्रवासी मजदूर के मेहरारू नइखे रहे के. सगरे चिंता आ परेशानी के इहे जड़ बा.”
एने करदा में मेहरारू लोग में ई धारना बनल जात बा कि मरद के बिना रोजी-रोटी कमावल भारी मुश्किल के काम बा. उहंवा गांव में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के जरिए काम मिलेला. गमेती के मेहरारू लोग खातिर काम करे के ई अकेला साधन बा. करदा के बहरी इलाका में रहे वाली मेहरारू लोग 2021 तक आपन हिस्सा के काम के 100 दिन पूरा कर लेले बारी.
गोपली बतावत बारी, “ हमनी के हर साल कम से कम 200 दिन काम चाहीं.” ऊ कहे लगली कि अभी खातिर त इहंवा के मेहरारू लोग सब्जी उपजावे के कोशिश करत बा. एह सब्जी के ऊ लोग लगे के बाजार में बेच के पइसा कमा सकेला. ई फैसला भी ऊ लोग आपन घरवाला से पूछले बिना लेले बा. “वइसे, हमनी के आउर पौष्टिक खुराक लेवे के जरूरत बा, बा कि ना?
पारी आ काउंटरमीडिया ट्रस्ट देश भर में गंउवा के किशोरी आउर जनाना के केंद्र में रख रिपोर्टिंग करेला. राष्ट्रीय स्तर पर चले वाला ई प्रोजेक्ट 'पापुलेशन फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया' के पहल के हिस्सा बा. इहंवा हमनी के मकसद आम जनन के आवाज आ ओह लोग के जीवन के अनभव के मदद से महत्वपूर्ण बाकिर हाशिया पर पड़ल समुदायन के हालत के पड़ता कइल बा.
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अनुवाद: स्वर्ण कांता