ब्यूटी कहती हैं, "आप यहां बहुत जल्दी आ गए हैं. रविवार के दिन वे (ग्राहक) शाम 4 बजे से पहले नहीं आते हैं. मैं इसी समय यहां इसलिए मौजूद हूं, क्योंकि मैं हारमोनियम बजाना सीख रही हूं."
यह जगह चतुर्भुज स्थान है, और इसकी पहचान बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले के मुसहरी ब्लॉक के एक बहुत पुराने वेश्यालय के रूप में की जाती है. ठीक 10 बजे के बाद, मैं और वह मिले हैं. उनके ग्राहक शाम को उनसे मिलने आते हैं. इस जॉब के दौरान वह 'ब्यूटी' नाम का इस्तेमाल करती हैं. ब्यूटी 19 साल की सेक्स वर्कर हैं, और पिछले पांच साल से इस काम में हैं. वह तीन महीने की गर्भवती भी हैं.
वह इस हालत में भी काम कर रही हैं. वह हारमोनियम बजाना भी सीख रही हैं, क्योंकि "अम्मी [उनकी मां] कहती है कि संगीत का मेरे बच्चे पर अच्छा असर पड़ेगा."
उंगलियां हारमोनियम पर राग छेड़ रही हैं. ब्यूटी आगे कहती हैं, “यह मेरा दूसरा बच्चा होगा. पहले से मेरा दो साल का एक बेटा है."
जिस कमरे में हम मिल रहे हैं उसका लगभग आधा हिस्सा, ज़मीन पर रखे एक बहुत बड़े गद्दे ने छेक लिया है; जिसके पीछे की दीवार पर ऊपर 6x4 फ़ीट का शीशा लगा हुआ है. इसी कमरे को ब्यूटी अपने काम के लिए भी इस्तेमाल करती हैं. कमरा का आकार शायद 15x25 फ़ीट है. गद्दे को कुशन और तकिए से सजाया गया है, ताकि ग्राहक आराम से बैठकर या लेटकर लड़कियों को मुजरा करते देख सकें. मुजरा नृत्य कला का एक रूप है, और माना जाता है कि भारत में पूर्व-औपनिवेशिक काल में शुरू हुआ था. कहा यह भी जाता है कि चतुर्भुज स्थान भी मुगल काल से ही मौजूद है. यहां मौजूद सभी लड़कियों और महिलाओं के लिए मुजरा जानना और परफ़ॉर्म करना ज़रूरी है. ब्यूटी को भी आता है.
यहां का रास्ता मुज़फ़्फ़रपुर के मुख्य बाजार से होकर गुज़रता है. दुकानदार और रिक्शा चालक रास्ता बताने में मदद करते हैं, हर कोई जानता है कि 'वेश्यालय' कहां पर है. चतुर्भुज स्थान परिसर में सड़क के दोनों किनारों पर 2 से 3 मंजिल के एक जैसे दिखने वाले कई घर हैं. इन घरों के बाहर अलग-अलग उम्र की महिलाएं खड़ी हैं, उनमें से कुछ कुर्सियों पर बैठी ग्राहकों का इंतज़ार कर रही हैं. चमकीले और बहुत ही चुस्त कपड़े पहने हुए, ढेर सारे मेकअप और बहुत सारे बनावटी आत्मविश्वास के साथ, वे रास्ते से गुज़रने वाले हर एक इंसान पर गहरी नज़र डालती हैं.
हालांकि, ब्यूटी बताती हैं कि हम उस दिन यहां जितनी महिलाओं को देख रहे हैं, वे 'वेश्यालय' में सेक्स वर्कर्स की कुल संख्या का केवल 5 प्रतिशत होंगी. ब्यूटी कहती हैं, “देखिए, हर किसी की तरह, हम भी सप्ताह में एक दिन की छुट्टी लेते हैं. हालांकि, हमारे लिए यह सिर्फ आधे दिन की छुट्टी होती है. हम शाम 4-5 बजे तक काम पर आ जाते हैं और रात को 9 बजे तक रुकते हैं. बाक़ी दिनों में सुबह के 9 बजे से रात के 9 बजे तक काम करते हैं."
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कोई आधिकारिक आंकड़े मौजूद नहीं हैं, लेकिन एक किलोमीटर की लंबाई में फैले पूरे चतुर्भुज स्थान में सेक्स वर्कर्स की कुल संख्या 2 , 500 से अधिक हो सकती है. ब्यूटी और दूसरी औरतें, जिनसे मैं यहां बात करती हूं, कहती हैं कि हम जिस गली में हैं उस हिस्से में रहने वाली लगभग 200 महिलाएं इस काम से जुड़ी हैं. इसी हिस्से में काम करने वाली लगभग 50 महिलाएं बाहर से आती हैं. ब्यूटी उसी 'बाहरी' समूह से हैं जो मुज़फ़्फ़रपुरशहर में कहीं और रहता है.
ब्यूटी और दूसरी औरतें हमें बताती हैं कि चतुर्भुज स्थान में ज़्यादातर घर उन महिलाओं के हैं जो तीन पीढ़ी या उससे ज़्यादा वक़्त से सेक्स वर्कर हैं. मसलन अमीरा; जिनकी मां, चाची, और दादी से उन्हें यह काम मिला था. 31 वर्षीय अमीरा कहती हैं, "यहां चीज़ें इसी तरह काम करती हैं. हमारे विपरीत बाकियों (सेक्स वर्कर्स) ने पुरानी वर्कर्स से किराए पर घर लिया है और केवल काम के लिए यहां आती हैं. हमारे लिए तो यही हमारा घर है. बाहर से आने वाली महिलाएं झुग्गी-झोपड़ियों से या रिक्शा चालकों या घरेलू कामगारों के परिवारों से भी आती हैं. कुछ को तो यहां [तस्करी या अपहरण करके] लाया गया है.”
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार, अपहरण, ग़रीबी, और पहले से ही देह-व्यापार में शामिल परिवार में पैदा होना कुछ ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से महिलाएं इस पेशे में आती हैं. इससे यह भी पता चलता है कि पुरुषों द्वारा महिलाओं को सामाजिक और आर्थिक तौर पर अधीन रखना भी ज़रूरी वजहों में से एक है.
क्या ब्यूटी के मां-बाप को उसके काम के बारे में मालूम है?
इस सवाल के जवाब में वह कहती हैं, "हां, बिल्कुल, हर कोई जानता है. मैं अपनी मां की वजह से ही इस बच्चे (गर्भ) को रख रही हूं. मैंने उनसे कहा था कि मुझे गर्भपात करवाने दें. बिना पिता के एक बच्चे का पालन-पोषण करना ही बहुत है, लेकिन उन्होंने (मां) कहा कि हमारे धर्म में ऐसा करना पाप [गर्भपात] है.
यहां कई लड़कियां उम्र में ब्यूटी से भी छोटी हैं और गर्भवती भी हैं या उनके बच्चे हैं.
कई शोधकर्ताओं का कहना है कि कम उम्र की युवतियों में गर्भावस्था को कम करना, संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास के लक्ष्यों में निहित यौन और प्रजनन स्वास्थ्य संबंधी उद्देश्यों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. ख़ास तौर से एसडीजी 3 और 5 'अच्छे स्वास्थ्य और सेहत' और 'लैंगिक समानता' की बात करते हैं. उन्हें उम्मीद है कि ये लक्ष्य वर्ष 2025 तक हासिल किए जाएंगे, जिसमें सिर्फ़ 40 महीने बाक़ी हैं. लेकिन, ज़मीनी हक़ीक़त भयावह है.
एचआईवी/एड्स पर फ़ोकस करने वाले संयुक्त राष्ट्र के कार्यक्रम (UNAIDS) ने अपने प्रमुख जनसंख्या एटलस में अंदाज़ा लगाया है कि साल 2016 में भारत में लगभग 657,800 महिलाएं देह-व्यापार से जुड़ी थीं. हालांकि, नेशनल नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्कर्स (NNSW) द्वारा अगस्त 2020 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को सौंपी गई हालिया रिपोर्ट में मोटा-मोटी अनुमान लगाया गया है कि देश में महिला सेक्स वर्कर्स की संख्या लगभग 1.2 मिलियन है. इनमें से 6.8 लाख (UNAIDS द्वारा बताई गई संख्या) महिला सेक्स वर्कर्स रजिस्टर की गई हैं, जो स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय से सेवाएं प्राप्त कर रही हैं. साल 1997 में शुरू हुआ एनएनएसडब्ल्यू, भारत में महिला, ट्रांसजेंडर, और पुरुष सेक्स वर्कर्स के अधिकारों की मांग करने वाले सेक्स वर्कर्स के नेतृत्व वाले संगठनों का एक राष्ट्रीय नेटवर्क है.
ब्यूटी की उम्र का एक लड़का हमारे कमरे में घुसता है, हमारी बातें सुनता है, फिर उसमें शामिल हो जाता है. वह बताता है, “मैं राहुल हूं. मैं यहां बहुत छोटी उम्र से काम कर रहा हूं. मैं ब्यूटी और कुछ दूसरी लड़कियों को ग्राहक लाकर देने में उनकी मदद करता हूं.” इसके बाद वह चुप हो जाता है, अपने बारे में कोई और जानकारी नहीं देता है, और मुझे व ब्यूटी को बातचीत जारी रखने देता है.
ब्यूटी कहती हैं, “मैं अपने बेटे, मां, दो बड़े भाइयों, और पिता के साथ रहती हूं. मैं पांचवी कक्षा तक स्कूल गई, लेकिन फिर स्कूल छूट गया. मुझे स्कूल कभी पसंद नहीं आया. मेरे पिता के पास शहर में एक डिब्बा [सिगरेट, माचिस, चाय, पान, और अन्य सामान बेचने के लिए एक छोटा सा स्टॉल] है और कुछ नहीं. मेरी शादी नहीं हुई हूं.“
ब्यूटी खिलखिलाकर हंसते हुए कहती हैं, "मेरे पहले बच्चा का पिता वह आदमी है जिसे मैं प्यार करती हूं. वह भी मुझसे प्यार करता है. कम से कम कहता तो वह यही है. वह मेरे परमानेंट ग्राहकों [क्लाइंट्स] में से एक है." यहां कई महिलाएं नियमित और लंबे वक़्त से आने वाले ग्राहकों के लिए अंग्रेज़ी शब्द 'परमानेंट' का इस्तेमाल करती हैं. कभी-कभी, वे उन्हें 'पार्टनर' कहती हैं. ब्यूटी अपनी आवाज़ में कुछ संतुष्टि के साथ कहती हैं, “देखो, मैंने मेरे पहले बच्चे की प्लानिंग नहीं की थी. न ही इस बार की थी, ज़ाहिर है. लेकिन, उसने मुझसे कहा था, इसलिए मैंने दोनों बार बच्चा नहीं गिराया. उसने कहा था कि वह बच्चे का सारा खर्च उठाएगा, और उसने अपना वादा निभाया भी. इस बार भी, मेरे हॉस्पिटल के ख़र्चों का ख़याल वही रख रहा है.”
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के मुताबिक़, भारत में ब्यूटी जैसी, 15-19 आयु वर्ग की 8 प्रतिशत महिलाएं गर्भवती हैं. इसी आयु वर्ग की लगभग 5 प्रतिशत महिलाएं कम से कम एक बच्चे को जन्म दे चुकी हैं और 3 प्रतिशत महिलाएं पहली बार गर्भवती हुई हैं.
राहुल कहते हैं कि यहां की काफ़ी सेक्स वर्कर्स अपने 'परमानेंट' ग्राहकों के साथ गर्भनिरोधक का किसी भी रूप में इस्तेमाल करने से बचती हैं. प्रेग्नेंट होने पर, वे बच्चा गिरा देती हैं या ब्यूटी की तरह बच्चा पैदा करती हैं. यह सबकुछ उन सभी पुरुषों को ख़ुश करने के लिए होता है, जिनके साथ वे शामिल हैं, ताकि उनके साथ लंबे समय तक संबंध बनाए रखा जा सके.
राहुल कहते हैं, ''ज़्यादातर ग्राहक यहां कंडोम लेकर नहीं आते हैं. फिर हमें [दलालों] को भागना पड़ता है और उन्हें दुकान से लाकर देना पड़ता है. लेकिन, कई बार ये लड़कियां अपने परमानेंट पार्टनर के साथ बिना सुरक्षा के आगे बढ़ने को राज़ी हो जाती हैं. उस मामले में, हम दखल नहीं देते हैं."
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि देश भर में पुरुषों द्वारा जन्म नियंत्रण विधियों का इस्तेमाल बहुत सीमित है. साल 2015-2016 में पुरुष नसबंदी और कंडोम का इस्तेमाल कुल मिलाकर सिर्फ़ 6 प्रतिशत था और यह 1990 के दशक के मध्य से थमा हुआ है. साल 2015-2016 में गर्भनिरोधक के किसी भी रूप का इस्तेमाल करने वाली महिलाओं का प्रतिशत बिहार में 23 प्रतिशत था, तो आंध्र प्रदेश में 70 प्रतिशत तक था.
ब्यूटी अपने पार्टनर के बारे में कहती हैं, "हम लगभग चार साल से प्यार में हैं. लेकिन, उसने हाल ही में अपने परिवार के दबाव में शादी की. उसने मेरी इजाज़त से ऐसा किया. मैं सहमत थी. मैं क्यों न होऊं? मैं शादी के लायक नहीं हूं और उसने कभी नहीं कहा था कि वह मुझसे शादी करेगा. जब तक मेरे बच्चे अच्छी ज़िंदगी जीते हैं, मैं ऐसे ही ठीक हूं."
ब्यूटी कहती हैं, “लेकिन मैं हर तीन महीने में चेक-अप करवाती हूं. मैं सरकारी अस्पताल जाने से बचती हूं और एक प्राइवेट क्लीनिक में जाती हूं. हाल ही में, मैंने दूसरी बार प्रेग्नेंट होने के बाद सारे ज़रूरी टेस्ट (एचआईवी सहित) करवाए और अब सब कुछ ठीक है. सरकारी अस्पताल में वे हमसे अलग तरीक़े से पेश आते हैं. वे बद्तमीज़ी से बात करते हैं और हमें दूसरे दर्जे का इंसान समझते हैं."
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राहुल एक आदमी से बात करने के लिए दरवाज़े पर जाते हैं. वह (राहुल) लौटने पर कहते हैं, “मुझे इस महीने का किराए देने के लिए मकान मालिक से एक सप्ताह की मोहलत चाहिए थी. वह किराया मांग रहा था. हमने 15,000 रुपये महीने के किराए पर उनकी जगह ली है.” जैसा कि राहुल फिर से बताया, चतुर्भुज स्थान में ज़्यादातर घर महिला सेक्स वर्कर्स के हैं, जो काफी समय से यहां हैं या जिन्हें पिछली पीढ़ी से घर मिले हैं.
उनमें (पुरानी पीढ़ी) से ज़्यादातर अब ख़ुद इस काम में नहीं हैं और उन्होंने दलालों, जवान सेक्स वर्कर्स को अपनी जगह किराए पर दे दी है. कभी-कभी, उनके पूरे समूह को जगह दे दी जाती है. वे ग्राउंड फ्लोर को किराए पर दे देती हैं और पहली या दूसरी मंजिल पर ख़ुद रहती हैं. राहुल कहते हैं, "हालांकि, उनमें से कुछ ने अपनी अगली पीढ़ी को, अपनी बेटियों, भतीजी या पोतियों को यह काम सौंप दिया है और अभी भी उसी घर में रहती हैं."
एनएनएसडब्ल्यू के अनुसार, सेक्स वर्कर्स (पुरुष , महिला और ट्रांस) का एक बड़ा हिस्सा घर से काम करता है और ग्राहकों को मोबाइल फोन के ज़रिए, स्वतंत्र रूप से या किसी एजेंट के ज़रिए संभालता है. चतुर्भुज स्थान के कई लोग वर्क फ्रॉम होम की श्रेणी में आते हैं.
यहां के सभी घर एक जैसे दिखते हैं. मुख्य दरवाज़ों में लकड़ी के नेमप्लेट के साथ लोहे की ग्रिल लगी हुई हैं. इन पर उस घर के मालिक या वहां रहने वाली मुख्य महिला का नाम होता है. नामों के साथ ओहदे लिखे मिलते हैं - जैसे कि नर्तकी एवं गायिका (डांसर और सिंगर). और इसके नीचे उनके प्रदर्शन का समय लिखा होता है - आम तौर पर सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक. कुछ बोर्ड पर 'सुबह 11 बजे से रात 11 बजे तक' लिखा मिलता है. वहीं, कुछ पर बस इतना लिखा होता है कि 'रात 11 बजे तक.'
ज़्यादातर एक जैसे दिखने वाले इन घरों में एक फ्लोर पर 2-3 कमरे हैं. जैसा ब्यूटी के घर पर है, हर एक लिविंग रूम में एक बड़ा गद्दा ज़्यादातर जगह घेर लेता है, और उसके पीछे दीवार पर एक बड़ा आईना लगा होता है. बची हुई जगह मुजरे के लिए है. यह जगह ख़ास तौर से म्यूज़िक और डांस परफ़ॉर्म के लिए है. यहां की युवा महिलाएं पुरानी पीढ़ी की पेशेवर महिलाओं से मुजरा सीखती हैं; कभी-कभी सिर्फ़ देखकर और कभी-कभी निर्देश के ज़रिए. एक छोटा कमरा भी है, शायद 10x12 आकार का होगा. यह बेडरूम की तरह इस्तेमाल होता है. यहां एक छोटी सी रसोई भी है.
राहुल कहते हैं, ''हमने कुछ बूढ़े ग्राहकों से एक मुजरा शो के लिए 80,000 रुपये तक तक मांगें हैं." वह पैसा या जोड़-जाड़ कर जो भी पैसा मिलता है, वह तबला, सारंगी, और हारमोनियम बजाने वाले हमारे तीन उस्तादों [कुशल संगीतकारों] के बीच में बंट जाता है, और फिर नर्तकी और दलालों में बंट जाता है." लेकिन इतनी बड़ी रक़म मिलना दुर्लभ है, और अब तो केवल याद का हिस्सा है.
क्या इस मुश्किल समय में ब्यूटी की पर्याप्त कमाई हो पा रही है? सवाल के जवाब में वह कहती हैं, 'जिस दिन क़िस्मत मेहरबान हो जाए, हां, लेकिन ज़्यादातर दिनों में नहीं. पिछला एक साल हमारे लिए बेहद ख़राब रहा है. यहां तक कि हमारे सबसे रेगुलर ग्राहक भी इस समय आने से बचते रहे. और जो आए, उन्होंने पैसे कम दिए.'
क्या इस मुश्किल समय में ब्यूटी की पर्याप्त कमाई हो पा रही है?
सवाल के जवाब में वह कहती हैं, "जिस दिन क़िस्मत मेहरबान हो जाए, हां, लेकिन ज़्यादातर दिनों में नहीं. पिछला एक साल हमारे लिए बेहद ख़राब रहा है. यहां तक कि हमारे सबसे रेगुलर ग्राहक भी इस समय आने से बचते रहे. और जो आए, उन्होंने पहले से बहुत कम पैसे दिए. हालांकि, हमारे पास यह (पैसे) रखने के अलावा, कोई और विकल्प नहीं है, चाहे वे जो कुछ भी दें, भले ही यह जोख़िम हो कि उनमें से कोई कोविड संक्रमित हो सकता है. इसे समझिए: अगर इस भीड़-भाड़ वाले इलाक़े में अगर एक व्यक्ति वायरस से संक्रमित होता है, तो सभी की जान जोख़िम में पड़ जाएगी.”
ब्यूटी का कहना है कि वह भारत में कोरोनावायरस की दूसरी लहर आने से पहले तक 25,000 से 30,000 रुपए महीने कमा लेती थी, लेकिन अब मुश्किल से 5,000 कमा पाती हैं. दूसरी लहर के बाद लगे लॉकडाउन ने उनके और यहां की अन्य सेक्स वर्कर्स के मुश्किल जीवन को और भी ज़्यादा कठिन बना दिया है. वायरस का डर भी बहुत बड़ा है.
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चतुर्भुज स्थान की महिलाएं पिछले साल मार्च में केंद्र सरकार द्वारा घोषित प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण योजना योजना का लाभ नहीं उठा पा रही हैं. उस पैकेज के तहत 20 करोड़ गरीब महिलाओं को तीन महीने के लिए 500 रुपए मिलेंगे. लेकिन, इसके लिए उनके पास जन-धन खाता होना ज़रूरी था. देह-व्यापार के इस केंद्र में जितने लोगों से मैंने बात की उनमें से एक भी महिला के पास जन-धन खाता नहीं था. वैसे बात यह भी है, जैसा कि ब्यूटी पूछती है: "मैडम, हम 500 रुपए में क्या ही कर लेते?"
एनएनएसडब्ल्यू के अनुसार, वोटर आईडी, आधार और राशन कार्ड या जाति प्रमाण-पत्र जैसे पहचान-पत्र हासिल करने में, सेक्स वर्कर्स को आम तौर पर मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. कई अकेली महिलाएं हैं जिनके बच्चे हैं और जो कहीं भी रहने का सबूत नहीं दे पाती हैं. इसके अलावा, जाति प्रमाण-पत्र लेने के लिए ज़रूरी कागज़ भी दिखा पाना उनके संभव नहीं होता. उन्हें अक्सर राज्य सरकारों द्वारा दिए जाने वाले राशन और राहत पैकेज से वंचित कर दिया जाता है.
ऑल इंडिया नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्कर्स की अध्यक्ष और नई दिल्ली में रहने वाली कुसुम कहती हैं, "जब राजधानी दिल्ली में भी सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिली, तो आप देश के ग्रामीण इलाक़ों की स्थिति की कल्पना कर सकते हैं, जहां नीतियां और लाभ वैसे भी देर से पहुंचते हैं या कभी नहीं पहुंचते." कई सेक्स वर्कर हैं, जो इस महामारी से बचने के लिए एक के बाद एक क़र्ज़ लेने को मजबूर हैं.”
ब्यूटी के हारमोनियम पर रियाज़ का समय ख़त्म होने को है: "छोटी उम्र के ग्राहक [क्लाइंट्स] मुजरा देखना पसंद नहीं करते हैं और आते ही सीधे बेडरूम में घुसना चाहते हैं. हम उन्हें बताते हैं कि डांस देखना ज़रूरी है [जो आमतौर पर 30 से 60 मिनट तक चलता है], भले ही वे थोड़े समय के लिए देखें. अगर ऐसा नहीं होगा, तो हम अपनी टीम के लिए और मकान का किराए भरने के लिए पैसे कैसे कमाएंगे? हम ऐसे लड़कों से कम से कम 1,000 रुपये लेते हैं.” वह बताती हैं कि सेक्स के लिए रेट अलग हैं. “यह ज़्यादातर घंटे के आधार पर तय होता है. साथ ही, हर क्लाइंट के हिसाब से अलग होता है.”
सुबह के 11:40 बज रहे हैं और ब्यूटी हारमोनियम बंद करके रख देती हैं. वह अपना हैंडबैग लाती हैं और उसमें से आलू का पराठा निकालती है, वह कहती हैं, "मुझे अपनी दवाएं [मल्टीविटामिन और फ़ोलिक एसिड] लेनी हैं, इसलिए बेहतर होगा कि मैं अब अपना नाश्ता कर लूं. जब भी मैं काम पर आती हूं, मेरी मां मेरे लिए खाना बनाती है और पैक करके देती हैं."
तीन महीने की प्रेग्नेंट ब्यूटी आगे कहती है, "मैं आज शाम ग्राहक आने की उम्मीद कर रही हूं. हालांकि, रविवार की शाम को अमीर ग्राहक मिलना इतना आसान नहीं है. मुक़ाबला काफ़ी बढ़ गया है."
पारी और काउंटरमीडिया ट्रस्ट की ओर से ग्रामीण भारत की किशोरियों तथा युवा औरतों पर राष्ट्रव्यापी रिपोर्टिंग का प्रोजेक्ट 'पापुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया' द्वारा समर्थित पहल का हिस्सा है, ताकि आम लोगों की आवाज़ों और उनके जीवन के अनुभवों के माध्यम से इन महत्वपूर्ण लेकिन हाशिए पर पड़े समूहों की स्थिति का पता लगाया जा सके.
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जिग्यासा मिश्रा ठाकुर फैमिली फाउंडेशन से एक स्वतंत्र पत्रकारिता अनुदान के माध्यम से सार्वजनिक स्वास्थ्य और नागरिक स्वतंत्रता पर रिपोर्ट करती हैं। ठाकुर फैमिली फाउंडेशन ने इस रिपोर्ट की सामग्री पर कोई संपादकीय नियंत्रण नहीं किया है।
अनुवाद: नीलिमा प्रकाश