वीडियो देखें: मणिपुर के अनुभवी पुंग वादक इस कला से जुड़े दर्शन के बारे में बता रहे हैं

सरुंगबम खोमेई ने पांच साल की उम्र में पुंग (ढोल) सीखना शुरू कर दिया था. क़रीब 35 साल की उम्र में, वह उस्ताद पुंग वादक बन गए. अब उनकी उम्र 76 साल हो चुकी है और वह मणिपुर की राजधानी इंफाल के हौरेईबी अवांग लेईकाई में रहते हैं, जहां वह हमें पुंग की परंपरा और संकीर्तन की संस्कृति के बारे में बताते हैं.

पुंग में दो सिरे होते हैं और मेईतेई समुदाय में इसे संगीत वाद्ययंत्रों का राजा माना जाता है. इसके बिना कुछ भी पूरा नहीं होता; न गीत और न ही मार्शल आर्ट की परंपराओं से व्युत्पन्न हुआ अद्वितीय नृत्य पुंग चोलोम.

अनुवाद: मोहम्मद क़मर तबरेज़

Anubha Bhonsle & Sunzu Bachaspatimayum

Anubha Bhonsle is a 2015 PARI fellow, an independent journalist, an ICFJ Knight Fellow, and the author of “Mother, Where’s My Country?', a book about the troubled history of Manipur and the impact of the Armed Forces Special Powers Act. Sunzu Bachaspatimayum is a freelance journalist and a national award-winning filmmaker based in Imphal.

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Translator : Mohd. Qamar Tabrez
dr.qamartabrez@gmail.com

Mohd. Qamar Tabrez is the Translations Editor, Hindi/Urdu, at the People’s Archive of Rural India. He is a Delhi-based journalist, the author of two books, and was associated with newspapers like ‘Roznama Mera Watan’, ‘Rashtriya Sahara’, ‘Chauthi Duniya’ and ‘Avadhnama’. He has a degree in History from Aligarh Muslim University and a PhD from Jawaharlal Nehru University, Delhi.

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