ये कहिनी बदलत मऊसम ऊपर लिखाय पारी के तऊन कड़ी के हिस्सा आज जऊन ह पर्यावरन रिपोर्टिंग के श्रेणी मं साल 2019 के रामनाथ गोयनका अवार्ड जीते हवय.
ये ह कऊनो कलात्मक भारतीय सिनेमा के रेगिस्तान मं चलत लड़ई के नजारा जइसने जान परथे. ये नजारा मं बालू के टीला हवंय, जिहां कहूँ-कहूँ नान-नान कांदी जामे हवय, अऊ हीरो ह विलेन के बखिया धरे ऊसर भूईंय्या के बरत बालू ला धरथे. प्रकृति के पहिलीच ले देय बनेच अकन घाम अऊ धुर्रा मं अपन हिस्सा बढ़ावत, वो ह फिलिम ला सुग्घर ढंग ले खतम (विलेन सेती नई) कर देथे. भारत के अनगिनत फिलिम मं राजस्थान के कुछेक उजाड़ परे इलाका मन ला अइसने दिखाय हवंय धन मध्यप्रदेश के चंबल घाटी के बीहड़ मं घलो.
फेर, ये सुक्खा उजाड़ नजारा (वीडियो मं देखव) राजस्थान धन चंबल के कऊनो जगा के नो हे. ये ला दक्षिणी प्रायद्वीप के बनेच भीतरी, आंध्र प्रदेश के रायलसीमा इलाका मं फिल्माय गे रहिस. अनंतपुर जिला के करीबन 1,000 एकड़ मं बगरे ये खास इलाका – जऊन ह कभू बाजरा के खेत ले भरे रहय – कतको बछर ले रेगिस्तान बने हवय. ये सब्बो अक्सर विरोधाभासी कारन के सेती होय हवय – अऊ ये ह कुछु अइसने जगा ला बनाय हवय जेकर पता लगाय ला फिलिम बनेइय्या मन अपन टीम ला खोजबीन करे ला पठोथें.
दरगाह होन्नूर गांव मं, जिहां ये इलाका के बड़े जमींदार रहत रहिन, लोगन मन ला ये समझाय मुस्किल रहिस के हमन फिलिम के शूटिंग करे सेती जगा खोजेय्या लोगन मन ले नई अन. “कऊन फिलिम सेती इहां आय हवव? फिलिम कब आवत हवय?” इही वो मन के साफ सवाल रहय धन वो बखत वो मन के दिमाग मं चलत रहय. कुछेक लोगन मन ला जब ये पता चलिस के हमन पत्रकार अन, त वो मन के जाने के इच्छा तुरते खतम हो गे.
ये जगा ला जगजाहिर करेइय्या तेलुगु फिलिम – जयम मनाडे रा (जीत हमर हवय) – के बनेइय्या मन इहाँ के लड़ई के तऊन नजारा के शूटिंग साल 1998 ले 2000 के मंझा करे रहिन. कऊनो घलो मिहनती पइसा कमेइय्या फिलिम बनेइय्या जइसने, वो मन रेगिस्तान के असर ले बढ़ाय सेती ‘सेट’ के संग बदलाव करे रहिन. 34 एकड़ के जऊन जमीन मं लड़ई के शूटिंग होय रहिस ओकर 45 बछर के मालिक पुजारी लिंगन्ना कहिथें, “हमन ला अपन फसल ला उखाड़े ला परिस (जेकर सेती वो मन मुआवजा देय रहिन). हमन ला कुछु जड़ी-बूटी अऊ नान रुख-रई ला घलो हेरे ला परिस, जेकर ले वो ह जियादा असल दिखय.” बाकि के काम काबिल कैमरा चलेइय्या अऊ चतुरा फ़िल्टर ह कर दीस.
गर जयम मनाडे रा के बनेइय्या आज 20 बछर बाद, येकर आगू के कड़ी ला फिल्मावत रतिस, त वो ला बहुते कम मिहनत करे ला परतिस. बखत के मार अऊ तहस-नहस होय प्रकृति, अऊ मइनखे के अंधाधुंध दखल ह रेगिस्तान ला अतक बगरा के राख दे हवय के जतक के वो मन ला जरूरत परे सकत रहिस.
फेर, ये सुक्खा उजाड़ नजारा (वीडियो मं देखव) राजस्थान धन चंबल के कऊनो जगा के नो हे. ये ला दक्षिणी प्रायद्वीप के बनेच भीतरी, आंध्र प्रदेश के रायलसीमा इलाका मं फिल्माय गे रहिस
फेर ये रेगिस्तान के इलाका, जाने के लइक इलाका आय. खेती अभू घलो होथे – काबर के जमीन के भीतरी मं पानी ह तीर मं हवय. लिंगन्ना के बेटा, पी होन्नूरेड्डी कहिथें, “हमन ला ये इलाका मं सिरिफ 15 फीट तरी मं पानी मिल जाथे,” अनंतपुर के अधिकतर हिस्सा मं, बोर मं 500-600 फीट ले पहिली पानी नई मिलय. जिला के कुछेक हिस्सा मं त 1,000 फुट घलो पार होगे हवय. फेर इहाँ, जऊन बखत हमन बात करत हवन, चार इंच के बोर मं लबालब पानी भरे हवय. अतका पानी, भूईंय्या के अतक तीर, वो घलो अतका गरम अऊ बालू वाले इलाका मं?
तीर के एक गांव के किसान, पलथुरु मुकन्ना बताथें, “ये पूरा इलाका एक बगरे नंदिया के पट्टी मं बसे हवय.” कऊन नंदिया? हमन त अइसने कुछु नई देखे सकत हवन. वो ह कहिथें, “वो मन (करीबन पांच) दसकों पहिली, हुन्नूर से क़रीबन 8-10 कोस दूरिहा, इहाँ ले होके बोहावत वेदवती नंदिया ऊपर एक ठन बांध बनाय रहिन. फेर, हमर इलाका मं वेदवती (तुंगभद्रा के एक ठन सहायक नदी – जऊन ला अघारी घलो कहे जाथे) सूखा गे.”
(अनंतपुर ग्रामीण विकास ट्रस्ट के) इकोलाजी सेंटर के मल्ला रेड्डी कहिथें, “असल मं इहीच होय हवय. अऊ हो सकथे के नंदिया सूखा गे होय, फेर बछरों बछर ले, ये ह जमीन के भीतरी पानी के एक ठन बांध ला बनाय मं मदद करिस, जेकर सेती अब सरलग खन के निकारे जावत हवय. अतका जोर ले के ये ह अगम बिपत के आरो देवत हवय.” कुछेक लोगन मन ये इलाका ला जानथें, जऊन मं मल्ला घलो सामिल हवंय.
ये बिपत ला आय मं बेरा नई लगही. ये बिन अबादी वाले इलाका मं 12.5 एकड़ खेत के मालिक, 46 बछर के किसान वी. एल. हिमाचल कहिथें, “इहाँ 20 बछर पहिली मुस्किल ले कऊनो चूंवा रहिस. इहाँ बरसात के पानी ले खेती होवत रहिस. फेर, अब करीबन 1,000 एकड़ मं 300-400 बोर हवंय. अऊ हमन ला 30-35 फीट गहिर मं पानी मिल जाथे, कभू-कभार ओकर ले घलो ऊपर.” येकर मतलब आय के हरेक तीन एकड़ धन ओकर ले कमती मं एक ठन बोर.
ये आंकड़ा अनंतपुर सेती घलो बनेच बड़े आय, जइसने के मल्ला रेड्डी बताथें, “इहाँ करीबन 270,000 बोर हवंय, फेर जिला के धरे के ताकत 70,000 हवय. अऊ ये बछर वो मेर ले करीबन आधा सूखा गे हवंय.”
त ये ऊसर इलाका मं बोर काबर हवंय? काय के खेती करे जावत हवय? हमन जऊन इलाका मं घूमत हवन, ऊहाँ चरों डहर दिखत जिनिस ह जिला के सब्बो कोती होय मूंगफली के फसल नो हे, फेर बाजरा के आय. ये इलाका मं बाजरा के खेती इहाँ के बीजा ला बढ़ाय सेती करे जाथे. खाय धन बजार मं बेंचे सेती नई, बीजा कंपनी मन के सेती; जऊन मन किसान ले येकर सेती करार करे हवंय. तुमन तीर के कतार मं लगे नर अऊ मादा फसल ला देख सकत हव. कंपनी मन बाजरा के दू अलग अलग किसिम के एक संकर उन्नत किसिम बनावत हवंय. ये मं भारी पानी लगही. बीजा निकारे के बाद जऊन बांचही, वो ह चारा के रूप मं बऊरे जाही.
पुजारी लिंगन्ना कहिथें, “ये बिजहा ला तियार करे सेती हमन ला क्विंटल पाछू 3,800 रूपिया मिलथे.” ये मं लगेइय्या मिहनत अऊ देखरेख के जरूरत ला देखत, ये दाम ह कम लागथे – अऊ असल बात ये आय के बीजा कंपनी मन ये बीजा ला वइसनेच किसान मन ला बनेच भारी दाम मं बेचहीं. ये इलाका के एक अऊ किसान, वाई. एस. शांतम्मा कहिथें के ओकर परिवार ला 3,700 रूपिया क्विंटल पाछू मिलथे.
शांतम्मा अऊ ओकर बेटी वंदक्षी कहिथें के इहाँ खेती करे सेती पानी के समस्या नई ये. “हमन ला गांव ले घलो पानी मिलथे, फेर हमर घर मं पाइप वाले कनेक्सन नई ये.” ओकर मुड़पीरा बालू आय, जेन ह पहिली ले जियादा हवय अऊ भारी जल्दी जमा हो जाथे. अऊ कतको फीट गहिर बालू मं थोकन बखत घलो रेंगे घलो ह थका दे सकथे.
दाई अऊ बेटी के कहना हवय, “ये तुंहर मिहनत ला बरबाद करे सकत हवय.” पी. होन्नूरेड्डी राजी हवंय, अऊ हमन ला बालू के टीला के तरी के वो जगा ला दिखाथें जिहां वो ह भारी मिहनत ले बरहा बनाय रहिन, चार दिन पहिलीच. अब वो ह बालू ले तोपाय हवंय. ये जगा भारी तेजी ले सुक्खा होवत तऊन इलाका के हिस्सा आय जिहां धुर्रा ले भरे आंधी चलथे, ऊँच उठत तेज हवा गांव तक ले हबर जाथे.
रेगिस्तान के एक अऊ किसान, एम बाशा कहिथें, “बछर के तीन महिना ये गाँव मं बालू के बरसात होथे. ये हमर घर मन मं आथे, हमर खाय मं गिरथे. हवा बालू ला उड़ावत तऊन घर मन मं घलो ले जाथे जेन ह बालू के टीला के बहुते जियादा तीर मं नई यें. जाली धन उपरहा फेरका हमेसा काम नई करय. इसिक्का वरशम (बालू के बरसात) अब हमर जिनगी के हिस्सा आय, हमन येकरे संग रहिथन.”
डी.होन्नूर गांव सेती बालू कऊनो नवा जिनिस नई आय. हिमाचल कहिथे, “फेर हव. ओकर तेज बढ़गे हवय.” बनेच अकन झाड़ी अऊ रुख-रई जेन ह हवा ला रोकत रहय अब खतम हो गे हवंय. हिमाचल वैश्वीकरन अऊ बज़ार के जोड़-घट के असर के जम्मो जानकारी के संग गोठियाथें. 55 बछर के किसान एम. तिप्पैय्यह कहिथें, “अब हमन हरेक जिनिस के हिसाब नगदी मं करथन. झाड़ी, रुख-रई, अऊ जरी-बूटी येकर सेती खतम हो गे, काबर हमन जमीन के एक अंगुल मं घलो नगदी फसल के खेती करे ला चाहत रहेन.” अऊ गर बालू वो बखत बरसे लगे जब बीजा जामे ला धरत रहय, त सब्बो कुछु बरबाद हो जाथे.” पानी होय सेती उपज कमती हवय. 32 बछर के किसान, के सी होन्नूर स्वामी कहिथें, “हमन एक एकड़ के खेत मं तीन क्विंटल मूंगफली उपजात रहेन, जियादा होय त चार क्विंटल.” जिला के अऊसत उपज पांच क्विंटल हवय.
हवा ला रोके के काम करेइय्या रुख-रई मन के कऊनो दाम नई रह गे हे? ये सवाल के जुवाब मं हिमाचल कहिथें, “वो सिरिफ उही रुख मन डहर धियान दिहीं जेकर बजार मं दाम हवय.” जेन ह येकर काबिल नई ये, इहाँ बिल्कुले जामे नई सकय. “अऊ वइसने घलो, अफसर मन कहत रहिथें के वो मन रुख लगाय मं मदद करहीं, फेर अइसने नई होय हवय.”
पलथुरु मुकन्ना बताथें के “कुछु बछर पहिली, कतको सरकारी अफसर जाँच करे सेती बालू के टीला वाले इलाका मं आय रहिन.” रेगिस्तान मं जाय ह भारी खराब ढंग ले रहिस, वो मन के गाड़ी बालूच मं फंस गे, जेन ला गाँव के लोगन मन ट्रैक्टर ले खींच के बहिर निकारिन. मुकन्ना कहिथें, “हमन ओकर बाद ले वो मन ले कऊनो दीगर ला नई देखेन.” किसान मोखा राकेश कहिथें के “कभू-कभार अइसने घलो होथे, जब बस ह गांव के वो डहर बिल्कुले घलो जाय नई सकय.”
झाड़ी अऊ जंगल खतम होय ह रायल सीमा के ये जम्मो इलाका के समस्या आय. अकेल्ला अनंतपुर जिला मं, 11 फीसदी इलाका ला ‘जंगल’ के रूप मं बांट के रखे गे हवय, फेर जंगल वाला इलाका अब घटके 2 फीसदी ले कमती हो गे हवय. येकर जरूरी असर माटी, हवा, पानी अऊ तापमान मं परे हवय. अनंतपुर मं जऊन एकेच बड़े जंगल तुमन देखत हवव वो ह पवनचक्की के जंगल आय – हजारों हजार - जऊन ह चरों डहर दिखत हवय, इहाँ तक के ये नान कन रेगिस्तान के सरहद मं घलो. पवनचक्की कंपनी डहर ले बिसोय धन लीज मं लेय जमीन मं लगाय गे हवंय.
डी. होन्नूर के रेगिस्तानी जमीन मं खेती करेइय्या किसान मन के एक ठन मंडली हमन ला बताथे के इहाँ हमेसा ले इहीच हाल रहे हवय. येकर बाद वो ह एकर खिलाफ दमदार सबूत रखथें. बालू इहाँ हमेसा ले रहे हवय, फेर, बालू के तूफान लाय के ओकर ताकत बाढ़ गे हवय. पहिली जियादा जंगल-झाड़ी के इलाका रहिस. फेर अब बनेच कम होगे हवय. वो मन करा हमेसा पानी रहत रहय, फेर हमन ला बाद मं पता चलिस के नंदिया सूखा गे हवय. बीस बछर पहिली बनेच कम बोर होवत रहिस, अब सैकड़ों हवंय. ओकर ले हरेक, बीते 20 बछर ले भारी खराब मऊसम ले होय घटना के आंकड़ा ला सुरता करा देथे.
बरसात के सुभाव बदल गे हवय. हिमाचल कहिथे, “जब हमन ला बरसात के जरूरत रथे, त मंय कहिहूँ के वो ह 60 फीसदी कम होथे, बीते कुछेक बछर मं, उगादी (तेलुगु नव साल के तीर, अक्सर अप्रैल मं) बखत पानी कम बरसे रहिस.” अनंतपुर मं दक्षिण-पश्चिम अऊ उत्तर-पूर्व दूनो मानसून आथे, फेर कऊनो एक के घलो पूरा फायदा नई मिलय.
तऊन बछर मन मं घलो, जब जिला मं 535 मिमी सालाना अऊसत बरसात होवत रहिस – बखत, फइलाव अऊ बरसे ह बनेच उबेर रहत रहिस. बीते कुछेक बछर ले बरसात, फसल के सीजन के जगा दीगर फसली मऊसम मं होय लगे हवय. कभू-कभू, सुरु के 24-48 घंटा मं भारी पानी गिरथे अऊ ओकर बाद बनेच बखत तक ले सुक्खा परे रहिथे, बीते बछर, कुछेक मंडल मं फसल के सीजन (जून ले अक्टूबर) बखत करीबन 75 दिन सुक्खा ला जूझत रहिन. अनंतपुर, जिहां के 75 फीसदी अबादी देहात मं रहिथे अऊ कुल मजूर मन के 80 फीसदी लोगन मन खेती-किसानी (किसान धन मजूर) करथें, उहाँ के सेती ये ह परलय कस साबित होथे.
इकोलॉजी सेंटर के मल्ला रेड्डी कहिथें, “बीते 20 बछर मेर ले हरेक 10 बछर मं, अनंतपुर मं सिरिफ दू बछर ‘समान्य’ रहिस. बाकि 16 बछर मेर ले हरेक बछर, जिला के दू तिहाई हिस्सा ला सूखा-प्रभावित घोसित करे गे हवय. ये बखत के पहिली के 20 बछर मं, हरेक दस बछर मं तीन बेर सुक्खा परत रहिस. ये जऊन बदलाव 1980 के दसक मं आखिर मं सुरु होईस वो ह हरेक बछर तेज होवत चले गे.”
कऊनो जमाना मं बाजरा के भारी खेती वाला ये जिला ह तेजी ले मूंगफली जइसने नगदी फसल डहर बढ़े ला लगिस. अऊ नतीजा, इहाँ भारी बोर खने ला सुरु होय लगीस. (नेशनल रेनफ़ेड एरिया अथॉरिटी के एक ठन रपट मं कहे गे हवय के अब इहां कुछेक अइसने इलाका हवंय जिहां बोर पानी 100 फीसदी ले जियादा बऊरे जावत हवय)
सी के ‘बबलू’ गांगुली कहिथें, “चालीस बछर पहिली, इहाँ एक साफ तरीका दिखत रहिस – 10 बछर मं तीन बेर सुक्खा – अऊ किसान मन जानत रहिन के काय लगाना हे. अलग-अलग किसिम के 9 ले 12 फसल अऊ थिर खेती चक्र होवत रहिस.” सी के ‘बबलू’ गांगुली टिम्बकटू कलेक्टिव नांव के एनजीओ के अध्यक्ष आंय, जऊन ह तीन दसक तक ये इलाका मं देहात के गरीब लोगन मन के आर्थिक मजबूती ऊपर धियान दे हवय. खुदेच चालीस बछर तक ले इहाँ काम करे सेती, वो ला ये इलाका के खेती-बारी के बनेच जानकारी होगे हवय.
“मूंगफली (अब अनंतपुर मं 69 फीसदी इलाका मं येकर खेती होथे) ह हमर संग उहिच करिस जेन ह अफ्रीका मं सोहेल के संग करिस. जेन एक फसली खेती के नीति ला हमन अपनायेन वो मं सिरिफ पानी के हालेच मं बदलाव नई होईस. मूंगफली छाँव मं नई होय, लोगन मन रुख मन ला काटत हवंय. अनंतपुर के माटी बरबाद कर दीस. बाजरा खतम हो गे, नमी चले गे हे, जेकर ले बरसात वाले खेती डहर लहूंटे मुस्किल होवत हवय.” फसल मं बदलाव सेती खेती मं माईलोगन मन के भूमका ला घलो कम कर दीस. परम्परगत रूप ले वो मन इहाँ होवेइय्या बरसाती फसल मन के बीजा बचाके रखेइय्या रहिन. किसान मन जइसनेच हाइब्रिड नकदी फ़सल (मूंगफली के संग) सेती बजार ले बीजा बिसोय ला सुरु करिन, माईलोगन मन के भूमका मजूर जतक होके रहिगे. येकरे संगे संग, किसान मन के एकेच खेत मं किसिम-किसिम के फसल उपजाय के काबिलियत घलो दू पीढ़ी के भीतर मं गंवा गे.
चारा वाले फसल अब खेती के जम्मो इलाका के 3 फीसदी ले घलो कम हवय. गांगुली कहिथें, “अनंतपुर मं एक बखत नान-नान जुगली करेईय्या मवेसी देश मं सबले जियादा रहिन. जुगाली करेइय्या नान-नान मवेसी, कुरुबा जइसने पारम्परिक चरवाहा मन बर सबले बढ़िया सम्पत्ति रहे हवंय – वो मन के संग मं चलत सम्पत्ति. एक ठन पारम्परिक चक्र, जऊन मं पारम्परिक चरवाहा मन के मवेसी गोहड़ी फसल लुये के बाद किसान मन के खेत मं गोबर जइसने खातू देवत रहिन, अब फसल लेय के बदलत तरीका अऊ रासायनिक खातू के सेती बिगड़ गे हवय. ये इलाका मं लागू करे गे योजना गरीब मन के सेती उल्टा असर वाले साबित होय हवय.”
होन्नूर मं, हिमाचल अपन तीर-तखार के खेती ले जुरे जैव विविधता मं सरलग घटत के नतीजा मन ला समझथें. वो ह येकर नांव लेवत कहिथें, “कऊनो जमाना मं, इही गाँव मं हमर करा बाजरा, झुनगा, राहेर, रागी, कुटकी, मूंग, सेमी होवत रहिस... बरसात ऊपर आसरित खेती मं फसल लेय असान आय, फेर वो ह कमई नई देय.” मूंगफली ह कुछु बखत ये काम जरुर करिस.
मूंगफली के फसल ह करीबन 110 दिन मं पाक जाथे. ये बखत तक ले वो ह माटी ला धरे रहिथे, वो ला 60-70 दिन तक ले कटाव ले बचाथे. तऊन जमाना मं जब नो अलग-अलग किसिम के बाजरा अऊ दार लगाय जावत रहिन, त वो ह हरेक बछर जून ले फरवरी तक ले माटी के ऊपर के सुरच्छा के छांव देवत रहिस, तब कऊनो न कऊनो फसल भूईंय्या मं हमेसा लगे रहय.
होन्नुर के बासिंदा हिमाचल सुलझे मइनखे आंय. वो ह जानत हवंय के बोर अऊ नगदी फसल ह किसान मन ला भारी फायदा पहुंचाय हवय. वो ह वो मं घलो घटती के चलन ला देखत हवंय – अऊ जीविका के साधन नंदावत जावत सेती पलायन के बढ़त ला घलो. हिमाचल कहिथें, “हमेसा अइसने 200 ले जियादा परिवार होथें जेन मन बहिर जाके बूता करे ला चाहथें.” यानि 2011 के जनगणना के मुताबिक, अनंतपुर के बोम्मनहल मंडल के ये गांव के 1,227 घर मन ले छठवां हिस्सा. वो ह कहिथे, “सब्बो परिवार मेर ले करीबन 70-80 फीसदी परिवार करजा मं बूड़े हवंय.” बीस बछर ले अनंतपुर मं खेती ऊपर बिपत बनेच छाय हवय – अऊ ये आंध्र प्रदेश के वो जिला आय जेन ह किसान मन के आत्महत्या ले सबले जियादा असर वाला आय.
मल्ला रेड्डी कहिथें, “बोर के बढ़ती के बेरा सिरा गे हवय. इही हाल नगदी फसल अऊ एकफसली खेती के आय. तीनों मं अभू घलो बढ़त होवत हवय, फेर, खाय सेती उपज के जगा, “कऊनो बजार मन के सेती उपज” के मूल बदलाव ले उकसावत.
गर बदलत मऊसम के मतलब सिरिफ इहीच आय के प्रकृति ह अपन रीसेट बटन दबावत हवय, त ये काय रहिस जेन ला हमन होन्नूर अऊ अनंतपुर मं देखेन? येकर छोड़, जइसने के वैज्ञानिक हमन ला बताथें, मऊसम के बदलाव बनेच बड़े प्राकृतिक छेत्र अऊ इलाका मं होथे - होन्नूर अऊ अनंतपुर त प्रशासन के एक भाग आंय. सिरिफ एक टुकड़ा भर, बड़े कहिलाय के नाप मं बनेच नान. का ये हो सकथे के जियादा बड़े इलाका मन के नजारा मं अतक जियादा बदलाव हो सकथे के कभू-कभू ओकर भीतरी मं अवेइय्या इलाका मं अजीब किसिम के बदलाव ला बढ़ावा मिल सकथे?
इहाँ के बदलाव के करीबन सब्बो कारन मइनखे के दखल सेती जन्मे हवंय. ‘बोर के महामारी’, नगदी फसल, अऊ एकफसली खेती ला भारी अपनाय, नंदाय जैव विविधता, जऊन ह बदलत मऊसम के खिलाफ अनंतपुर ला सबले बढ़िया सुरच्छा दे सकत रहिस; भूईंय्या भीतरी के पानी के सरलग निकासी; ये अध-सुक्खा इलाका मं जऊन थोर-बहुत जंगल रहिस ओकर बरबादी; हरियर चरागान के पर्यावरन तंत्र ला नुकसान पहुंचाय, अऊ माटी के भारी कटाव; कारखाना डहर ले चलेइय्या रासायनिक खेती ला बढ़ावा देय; खेत अऊ जंगल, चरवाहा अऊ किसान मन के मंझा एक-दूसर ले जुरे संबंध के खतम होत जाय – अऊ जीविका के नुकसान; नंदिया के पूरा पूरी सूख जाय ले. ये सब्बो जिनिस ह तापमान, मऊसम अऊ आबोहवा ला साफ तरीका ले असर डारे हवय – जऊन ह बदला मं ये दिक्कत मन ला अऊ बढ़ा दे हवय.
गर अर्थशास्त्र अऊ विकास के मॉडल डहर ले चले सेती पगलाय मइनखेच ह ये बदलाव के माई कारन आय, त ये इलाका अऊ अइसने दूसर कतको इलाका ले बनेच कुछु सीखे जा सकत हवय.
हिमाचल कहिथें, “सायेद हमन ला बोर ला बंद कर देय ला चाही अऊ बरसाती खेती डहर लहूंटे ला चाही. फेर ये ह भारी कठिन आय.”
पी. साईनाथ, पीपल्स आर्काइव ऑफ़ रूरल इंडिया (पारी) के संस्थापक संपादक आंय.
जिल्द फोटू : राहुल एम/पारी
पारी के बदलत मऊसम ऊपर लिखाय देश भर ले रिपोर्टिंग के ये प्रोजेक्ट, यूएनडीपी समर्थित तऊन पहल के हिस्सा आय, जऊन मं आम जनता अऊ ओकर जिनगी के गुजरे बात ला लेके पर्यावरन मं होवत बदलाव के रिकार्ड करे जाथे.
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अनुवाद: निर्मल कुमार साहू