आदिवासी लोगन मन के अपन कमजोरी होथे, फेर ये देखे ह महत्तम आय के वो मन एक समाज के संस्कृति भीतरी कइसने खुसरगे. जइसन, ये जमाना के सिच्छा ह एक ठन नवा प्रवृत्ति के सुरुवात करिस, अऊ हमर कतको लड़ई नवा सिछित लोगन मन के डहर ले आय घलो हवंय. आज मोर गाँव के गुरूजी गाँव मं घर नई बनावय. वो ह राजपीपला मं जमीन के टुकड़ा बिसोथे. जवान पीढ़ी विकास के चमचम विचार मं रमे हवय. अपन जमीन ले पुदक के विदेसी धरती मं रोपाय, ये मन अपन परम्परा ले मिले तरीका के जिनगी नई जींयत हवंय. अब वो मन लाल चऊर ला पचाय नई सकंय. वो मन तऊन धाक के मजा लेय ला चहिथें, जऊन ह सहर के नऊकरी ले मिलथे. अइसने गुलामी हमर संस्कृति के हिस्सा नई रहिस. अब गर वो मन सिछित हवंय अऊ नऊकरी करथें, तभे घलो वो मन ला सहर मं रहे सेती जगा नई मिलय. उहां के लोगन मन के भीतरी रहत रहे ले घलो वो मन कोंटा मं फेंकाय रहिथें. येकरे सेती ये टकराव ले बांचे बर वो मन अपन पहिचान लुकाय ला धरथें. आज ये लड़ई के मूल एक आदिवासी के पहिचान के संग भारी गहिर ले जुरे हवय.

जितेंद्र वसावा के अवाज़ मं, देहवली भीली मं कविता पाठ सुनव

प्रतिष्ठा पांड्या के अवाज़ मं, अंगरेजी मं कविता पाठ सुनव

गंवार महुआ

जब ले मोर देस के
बड़े कहेइय्या लोगन मन
हमर महुवा के रूख ला
गंवार होय के हांका पार दे हवंय
मोर लोगन मन
अपन आप ला गंवार समझे ला लगे हवंय.

तबले, मोर दाई महुवा फूल ला छुये ले डेराथे.
मोर ददा ला महुवा के नांव ह नई सुहावे
मोर भाई तब ले अंगना मं महुवा के रूख नई
तुलसी के पौधा लगा के
अपन आप ला बड़े समझे ला लगत हवय.
जब ले मोर देस के
बड़े कहेइय्या लोगन मन
हमर महुवा के रूख ला
गंवार होय के हांका पार दे हवंय
मोर लोगन मन
अपन आप ला गंवार समझे ला लगे हवंय.

तब ले अध्यात्म ला मनेइय्या मोर लोगन मन
रूख मन ले बात करे
नदिया ला देवी माने ले
डोंगरी के पूजा करे ले
पुरखौती के रद्दा मं चलके
धरती ला महतारी कहे ले
सरम करे जइसने करत हवंय
अऊ अपन पहिचान लुका के
गंवार होय ले छुटकारा पाय बर
कऊनो ईसाई होवत हवय, कऊनो हिन्दू
कऊनो जैन त कऊनो मुसलमान होवत हवय
जब ले मोर देस के
बड़े कहेइय्या लोगन मन
हमर महुवा के रूख ला
गंवार होय के हांका पार दे हवंय
मोर लोगन मन
अपन आप ला गंवार समझे ला लगे हवंय.

बजार ले घिन करेइय्या मोर लोगन मन,
बाजार ले अपन घर भरत हवंय.
वो मन अपन हाथ ले कऊनो एको जिनिस छूटे नई देवंय
गर वो मं ये सभ्यता के गंध-बास आथे
सभ्यता के सबले बड़े खोज –
व्यक्तिवाद.
हरेक मइनखे सिखत हवय ‘स्व’
स्व ले समाज नई
स्व ले सुवारथ समझत हवय.
जब ले मोर देस के
बड़े कहेइय्या लोगन मन
हमर महुवा के रूख ला
गंवार होय के हांका पार दे हवंय
मोर लोगन मन
अपन आप ला गंवार समझे ला लगे हवंय.

अपन भाखा मं महाकाव्य, गाथा गवेइय्या
मोर लोगन मन, लइका मन ला अपन भाखा छोर
अंगरेजी सीखे ला लगे हवंय
माटी महतारी के रूख–रई, नदिया, डोंगरी
लइका के सपना मं नई आवत हवंय
हमर हरेक लइका अमरीका अऊ
लंदन के सपना देखत हवय.
जब ले मोर देस के
बड़े कहेइय्या लोगन मन
हमर महुवा के रूख ला
गंवार होय के हांका पार दे हवंय
मोर लोगन मन
अपन आप ला गंवार समझे ला लगे हवंय.

अनुवाद: निर्मल कुमार साहू

Poem and Text : Jitendra Vasava

Jitendra Vasava is a poet from Mahupada village in Narmada district of Gujarat, who writes in Dehwali Bhili language. He is the founder president of Adivasi Sahitya Academy (2014), and an editor of Lakhara, a poetry magazine dedicated to tribal voices. He has also published four books on Adivasi oral literature. His doctoral research focused on the cultural and mythological aspects of oral folk tales of the Bhils of Narmada district. The poems by him published on PARI are from his upcoming and first collection of poetry.

Other stories by Jitendra Vasava
Painting : Labani Jangi

Labani Jangi is a 2020 PARI Fellow, and a self-taught painter based in West Bengal's Nadia district. She is working towards a PhD on labour migrations at the Centre for Studies in Social Sciences, Kolkata.

Other stories by Labani Jangi
Translator : Nirmal Kumar Sahu

Nirmal Kumar Sahu has been associated with journalism for 26 years. He has been a part of the leading and prestigious newspapers of Raipur, Chhattisgarh as an editor. He also has experience of writing-translation in Hindi and Chhattisgarhi, and was the editor of OTV's Hindi digital portal Desh TV for 2 years. He has done his MA in Hindi linguistics, M. Phil, PhD and PG diploma in translation. Currently, Nirmal Kumar Sahu is the Editor-in-Chief of DeshDigital News portal Contact: sahuanp@gmail.com

Other stories by Nirmal Kumar Sahu