ये कहिनी बदलत मऊसम ऊपर लिखाय पारी के तऊन कड़ी के हिस्सा आज जऊन ह पर्यावरन रिपोर्टिंग के श्रेणी मं साल 2019 के रामनाथ गोयनका अवार्ड जीते हवय.

काजल लता बिस्वास ह चक्रवात के कतको सुरता ले अब तक ले डरे हवंय. फेर, आईला चक्रवात ला सुन्दरबन मं आय 10 बछर बीत चुके हवय, ओकर बाद घलो 25 मई 2019 के तारीख वो ला बढ़िया करके सुरता हवय.

मंझनिया के पहिली के बखत रहिस. काजल लता कहिथें, “(कालिंदी) नदी के पानी गांव मं हबर गे अऊ सब्बो घर मन मं भर गे.” वो ह तऊन दिन अपन गांव, गोबिंदकाटी ले करीबन 2 कोस दूरिहा, कुमीरमारी गांव मं एक रिस्तेदार के घर मं रहे रहिस. “हमन 40-50 लोगन मन एक ठन डोंगा मं आसरा लेन, जऊन मं हमन सरा दिन अऊ रात बितायेन. हमन रुख-रई,डोंगा, मवेसी मन अऊ धान ला बोहावत देखेन. रतिहा मं हमन कुछु घलो देखे नई सकत रहेन. माचिस काड़ी घलो फिल गे रहय. अकास मं बिजली चमके, तभे हमन कुछु देकहे सकत रहेन.”

अपन घर के बहिर मं बइठे मंझनिया खाय सेती मछरी ला निमारत, 48 बछर के किसान, काजल लता अपन बात कहत जावत रहिथे, “तऊन रात ला कभू बिसोरे नई जाय सकय. पिये सेती एक बूंद पानी घलो नई रहिस. कइसने करके मंय एक ठन पनपनी थैली मं बरसत पानी ला भर लेंव, जेकर ले बनेच पियासी मोर दूनो बेटी अऊ भतीजी के पियास बुझिस,” तऊन नजारा ला सुरता करत ओकर अवाज कांपे ला लगथे.

दूसर बिहनिया, अपन गाँव जाय सेती डोंगा धरिस, फेर पुर के पानी मं चलत अपन घर पहुंचिस. काजल लता कहिथें, “मोर बड़े बेटी तनु श्री, जऊन ह वो बखत 17 बछर के रहिस, जिहां जियादा पानी रहिस उहाँ बूड़त बूड़त बांचिस. किस्मत ले वो ह अपन काकी के साड़ी के पल्लू ला धर ले रहिस, जेन ह वो बखत खुल गे रहिस.” ओकर आंखी तऊन डर ला बतावत रहय जेकर ले वो मं जूझे रहिन.

मई 2019 मं, ओकर डर 'फ़ानी' चक्रवात के संग लहुंट के आ गे. संजोग ले, ओकर छोटे बेटी 25 बछर के अनुश्री के बिहाव घलो उहिच बखत होय ला रहिस.

Kajal Lata Biswas cutting fresh fish
PHOTO • Urvashi Sarkar
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काजल लता बिस्वास , गोबिंदकाटी गांव मं अपन घर के बहिर मछरी निमारत, चक्रवात के रिस ला सुरता करथें ; ओकर गांव के ये कुरिया मन मं (जउनि) धान रखाय हवय, अऊ ओकर फसल के नुकसान होय हवय

बिहाव 6 मई के तय रहिस. पंचइत डहर ले लाउडस्पीकर ले अऊ सरकार डहर ले रेडियो मं फनी के बारे मं घोसना कुछेक दिन पहिली सुरु होय रहिस. काजल लता कहिथें, “हमर खराब हालत अऊ डर ला सोच के देखव.” वो ह राहत के साँस लेवत कहिथे, “हमन घबरा गे रहेन के हवा-पानी सब्बो तियारी ला बरबाद कर दिही. बिहाव ले कुछेक दिन पहिली थोर-बहुत पानी बरसे घलो रहिस. फेर भगवान करिस के चक्रवात के असर हमर गाँव मं नई परिस.”

2 मई के दिन, भारत के मऊसम विभाग ह आंध्र प्रदेश, ओडिशा (जिहां सबले जियादा असर परे रहिस), अऊ पश्चिम बंगाल मं फानी आय के चेतावनी जारी करे रहिस. फानी के बारे मं गोठियावत, 80 बछर के किसान अऊ रजत जुबली गाँव के रिटायर गुरूजी प्रफुल्ल मंडल जोर ले कहिथे, “फानी ह  सुन्दरबन ले भारी तीर ले नाहक गे. हवा के जोरदार अवाज मन ला हमन सुनत रहेन. गर ये ह हमर गांव ले टकराय रतिस, त हमन घर-दुवार अऊ जमींन जयदाद समेत बरबाद होगे रतेन...”

जइसने के मंडल अऊ काजल लता दूनेच ये बात ला बने करके जानत हवंय के सुंदरबन मं चक्रवात आय ह आम बात आय. पश्चिम बंगाल सरकार के आपदा प्रबंधन अऊ नागरिक सुरक्षा विभाग ह दक्षिण अऊ उत्तर 24 परगना, दूनो ज़िला ला चक्रवात के कारन ‘बनेच जियादा नुकसान के खतरा वाला इलाका’ के रूप मं बाँट के रखे हवय.

मंडल के गांव दक्षिण 24 परगना जिला के गोसाबा ब्लॉक मं हवय, अऊ काजल लता के गांव उत्तर 24 परगना जिला के हिंगलगंज ब्लॉक मं हवय. ये दूनों, पश्चिम बंगाल मं भारतीय सुंदरबन मं सामिल 19 ब्लॉक मन के हिस्सा आंय - उत्तर 24 परगना के 6 ब्लॉक अऊ दक्षिण 24 परगना के 13 ब्लॉक.

भारत अऊ बांग्लादेश मं फइले, सुंदरबन एक बनेच बड़े डेल्टा आय, जऊन मं सायेद दुनिया के सबले बड़े मैंग्रोव जंगल हवय, जऊन ह करीबन 10,200 वर्ग किलोमीटर मं बगरे हवय. विश्व बैंक के ‘सुंदरबन के सरलग विकास सेती लचीलापन के निर्मान’ (बिल्डिंग रिज़िलीअन्स फ़ॉर द सस्टैनबल डेवलपमेंट ऑफ़ द सुंदरबंस) नांव के 2014 के रपट मं कहे गे हवय, “सुंदरबन इलाका दुनिया के सबले बढ़िया पर्यवरन तंत्र मन ले एक आय... जम्मो मैंग्रोव जंगल के इलाका अपन असाधारन किसिम के जीव-जन्तु-परानी सेती जाने जाथे, जऊन मं नंदावत जावत कतको किसिम के प्रजाति सामिल हवंय, जइसने के रॉयल बंगाल टाइगर, नुनछुर पानी के मगरमच्छ, भारतीय अजगर, अऊ नंदिया के डाल्फिन के कतको किसिम. ये ह भारत मं मिलेइय्या 10 फीसदी ले जियादा जीव-जन्तु अऊ चिरई मन के 25 फीसदी किसिम के घर आय.”

करीबन 4,200 वर्ग किलोमीटर मं फइले भारतीय सुंदरबन करीबन 45 लाख लोगन के घर आय, ये जम्मो लोगन मन गरीबी मं जिनगी गुजारत हवंय, रोजी-रोटी सेती जूझत हवंय, इलाका के कतको दिक्कत अऊ भारी खराब मऊसम ले लड़त हवंय.

फेर, ये इलाका मं आईला के बाद ले कऊनो बड़े चक्रवात नई देखे गे हवय, येकर बाद घलो इहाँ अइसने चक्रवात के खतरा हमेसा बने रहिथे. पश्चिम बंगाल सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग सेती बनाय गे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर के 2006 के एक ठन रपट के मुताबिक राज मं 1891 ले 2004 तक ले 71 चक्रवाती तूफान आ चुके हवय. ये बखत मं, दक्षिण 24 परगना जिला के गोसाबा ब्लॉक मं सबले जियादा असर परे रहिस, जिहां 6 बड़े चक्रवात अऊ 19 सधारन चक्रवात ले जूझे रहिस.

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रजत जुबिली गांव मं, 80 बछर के प्रफुल्ल मंडल ह कतको तूफ़ान के सामना करे हवय , फेर अब ओकर परिवार बिगड़े बदलत मऊसम ले जूझत हवय

प्रफुल्ल, आइला ले पहिली के चक्रवात मन ला घलो सुरता रखे हवंय. वो ह कहिथे, “मंय 1998 के चक्रवात ला भूलाय नई सकंव (जऊन ला अजादी के बाद पश्चिम बंगाल के ‘सबले ताकतवर तूफान’ कहे जाथे, आईला ले घलो खतरनाक, जऊन ह ‘बहुते खराब चक्रवाती तूफान’ रहिस), जेकर हवा भारी तेज अऊ जानलेवा रहिस. येकर घलो पहिली, मंय 1988 के चक्रवात ला सुरता रखे हवंव.”

कोलकाता के समुद्र विज्ञानी, डॉ. अभिजीत मित्रा 2019 मं छपे अपन किताब, मैंग्रोव फॉरेस्ट्स इन इंडिया: एक्सप्लोरिंग इकोसिस्ट सर्विसेज़ मं लिखथें के ये तूफानी गुजरे बखत के बाद घलो, चक्रवाती डिप्रेशन (समंदर मं उष्णकटिबंधीय मऊसम के गड़बड़ी, 31-60 किलोमीटर हरेक घंटा के सीमा मं. 62-82 किलोमीटर के चक्रवाती तूफान के सीमा के तरी) बीते 10 बछर मं तरी के गंगा के डेल्टा मं (जिहां सुंदरबन हवय) 2.5 गुना बाढ़ गे हवय. वो ह कहिथें, “येकर मतलब आय के चक्रवात अब अक्सर आवत रहिथें.”

कतको दीगर अध्ययन ले पता चलथे के सुंदरबन के तीर बंगाल के खाड़ी मं चक्रवात के घटना मन बढ़े हवंय. ‘डाईवर्सिटी’ पत्रिका मं 2015 मं छपे एक अध्ययन, 1881 अऊ 2001 के मंझा मं होय ये बढ़ोत्तरी ले 26 फीसदी बताथे. अऊ मई, अक्टूबर, अऊ नवंबर के बखत बंगाल के खाड़ी मं कतको चक्रवात के 1877 ले 2005 तक के मिले आंकड़ा ले, 2007 के एक ठन अध्ययन बताथे के बीते129 बछर मं ये भारी चक्रवाती महिना के बखत इहाँ भारी चक्रवाती तूफान मं बनेच बढ़ोत्तरी होय हवय.

येकर कारन एक तरीका ले समंदर के सतह के तापमान मं बढ़ोत्तरी ला बताय गे हवय (साइंस ऐंड क्लाइमेट चेंज मं छपे एक ठन लेख मं ये बात कहे गे हवय). ये तापमान भारतीय सुंदरबन मं 1980 ले 2007 तक हरेक दस बछर मं 0.5 डिग्री सेल्सियस बढ़िस, जऊन ह तापमान बढ़े के दुनिया के स्तर मं हरेक दस बछर मं 0.06 डिग्री सेल्सियस के दर ले जियादा हवय.

येकर कतको भयंकर नतीजा आगू आय हवंय. कोलकाता के जादवपुर विश्वविद्यालय मं  स्कूल ऑफ़ ओशनोग्राफ़िक स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर सुगता हाज़रा कहिथें, “सुंदरबन ह बीते बेर 2009 मं एक बड़े चक्रवात ले जूझे रहिस. बंगाल के उत्तरी खाड़ी मं अवेइय्या चक्रवात मन ले घेरी-बेरी पानी भरे अऊ पार टूटे सेती ये इलाका ला भारी नुकसान उठाय ला परे हवय.”

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समंदर के बढ़त जलस्तर अऊ समंदर के तापमान मं बढोत्तरी, अऊ अइसने कतको बदलाव सुंदरबन सेती खतरा बन गे हवंय

विश्व बैंक के रिपोर्ट कहिथे, पार ह “चक्रवाती तूफान अऊ समंदर तल के बढ़े के खिलाफ रच्छा प्रनाली मन के रूप मं सुंदरबन मं खास भूमका निभाथे. डेल्टा के धसके, समंदर तल के बढ़े, अऊ बदलत मऊसम के रूप मं चक्रवात के तेज अऊ बाढ़े ले, लोगन मन के अऊ वो मन के खेत के उपज सेती खतरा बन गे हवय अऊ 19 वीं सदी मं बनाय गे 3,500 किलोमीटर के पार के टूटे ले वो मन ला बनेच नुकसान होय हवय...”

2011 के वर्ल्ड वाइल्डलाइफ़ फ़ंड के एक शोधपत्र के कहना आय के सुंदरबन मं सागर टापू के वेधशाला मं नापे गे 2002-2009 के बनिस्बत अऊसत समंदर तल 12 मिमि बछर पाछू धन 25 बछर सेती 8 मिमी बछर पाछू के दर ले बढ़िस.

तिपे (वार्मिंग) अऊ येकर चलते समंदर के तल ह बाढ़े घलो मैंग्रोव ला असर करत हवय. ये जंगल चक्रवात अऊ कटाव ले पार के इलाका मन ला बचाय मं मदद करथे, मछरी अऊ दीगर प्रजाति मन के सेती जनम करे के इलाका के रूप मं काम करथे, अऊ बंगाल टाइगर (बघवा) के रहे के जगा घलो आंय. जादवपुर यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ़ ओशनोग्राफ़िक स्टडीज़ के 2010 के एक ठन शोधपत्र, जेकर नांव, टेम्पोरल चेंज डिटेक्शन (2001-2008) स्टडी ऑफ़ सुंदरबन के कहना हवय के समंदर तल ह बाढ़े अऊ चक्रवात, जंगल के रकबा ला कम करके सुंदरबन के मैंग्रोव के सेहत ला गहिर ले असर करत हवंय.

रजत जुबिली गांव के एक झिन मछुआरा, अर्जुन मंडल, सुंदरबन मं मैंग्रोव के महत्तम ला गहिर ले जानत रहिस. वो ह सुंदरबन रूरल डेवलपमेंट सोसायटी नांव के एनजीओ के संग काम करिस. वो ह मई  2019 मं मोला कहे रहिस, “सब्बो मन बदलत मऊसम के बारे मं सुने हवंय, फेर ये ह हमन ला कइसने असर करत हवय? हमन ला येकर बारे मं अऊ जाने के जरूरत हवय.”

29 जून, 2019 मं एक ठन बघवा, अर्जुन ला तऊन बखत धर के ले गे, जब वो ह पीरखली जंगल मं केंकरा धरत रहिस. सुंदरबन मं बघवा बनेच बखत ले मइनखे मन ऊपर हमला करत चले आवत हवंय; ये हमला करे के बढ़त घटना कम से कम थोकन रूप ले, समंदर तल के बढ़े ले जंगल जमीन के घटे सेती होवत हवंय, जेकर सेती ये बघवा मन मइनखे मन के बस्ती मन के तीर आत जावत हवंय.

ये इलाका मं घेरी-बेरी चक्रवात मन के आय ले पानी के नुनछुर घलो बढ़त हवय, खास करके केन्द्रीय सुंदरबन मं, जिहां गोसाबा बसे हवय. विश्व बैंक के रपट मं कहे गे हवय, “...समंदर तल ह बढ़े के संगे संग डेल्टा मं मीठ पानी के धार मं कमी के (आंशिक) सेती, नुनछुर मं भारी इजाफा ले पर्यावरन तंत्र ऊपर उल्टा असर परत हवय.”

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सुंदरबन के बगरे पार, जऊन ह खेती सेती अऊ माटी ला नुनछुर होय ले काबू करे सेती जरूरी आंय, बढ़त समंदर जलस्तर के सेती तेजी ले टूटत हवंय

डॉ. मित्रा के संग मं लिखे एक ठन शोधपत्र सुंदरबन के पानी ला ‘भारी नुनछुर’ बताथे. डॉ. मित्रा कहिथें, “सुंदरबन के मंझा हिस्सा मं समंदर के जलस्तर बढ़े सेती पानी के नुनछुर बढ़ गे हवय. ये साफ रूप ले बदलत मऊसम से जुरे हवय.”

दीगर शोधकर्ता मन लिखे हवंय के बिद्याधरी नदी के गाद, हिमालय ले आवत ताजा पानी के धार ला मंझा अऊ उदती सुंदरबन तक आय ले रोकथे. शोधकर्ता मन जमीन के कटे, खेती, नरुवा के चिखला के जमे, अऊ मछरी पाले के कचरा के गाद ला जिम्मेवार माने हवंय. 1975 मं फरक्का बैराज बनाय घलो (पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिला मं, गंगा मं बने) केन्द्रीय सुंदरबन के बढ़त नुनछुर के एक कारन बनिस.

रजत जुबिली के बासिंदा मंडल परिवार भारी नुनछुर के असर मन ला जानथे – ओकर करा आईला के बाद ले तीन बछर तक ले बेंचे सेती धान नई रहिस. धान बेंच के होय 10,000-12,000 रूपिया के ओकर बछर भर के आमदनी खतम होगे रहिस. प्रफुल्ल सुरता करथे, “धान के खेती बंद पर जाय सेती जम्मो गांव सुन्ना परगे, काबर इहाँ के मरद मन बूता खोजे सेती तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात अऊ महाराष्ट्र चले गीन, जिहां वो मन कल-कारखाना धन घर-सड़क बनेइय्या जगा मं काम करे लगीन.”

राज भर मं, आइला ह 2 लाख हेक्टेयर ले जियादा फसल लगे इलाका अऊ 60 लाख ले जियादा लोगन मन ऊपर असर करिस, 137 लोगन के परान गीस अऊ 10 लाख ले जियादा घर तबाह हो गीस. प्रफुल्ल कहिथे, “मोर गाँव मं अइसने कऊनो घलो नई बांचे रहिस जेकर नुकसान नई होय हो. मोर घर अऊ फसल बरबाद हो गे. मोर 6 कम एक कोरी छेरी के नुकसान होगे अऊ तीन बछर तक ले धान के खेती नई कर सकेंव. सब्बो कुछू फिर ले सुरु करे परिस. वो ह भारी मुस्किल बछर रहिस. मंय गुजारा सेती बढ़ई बूता अऊ दीगर छोट-मोठ काम सुरु करेंव.”

आईला के सेती जमीन मं नुनछुर बढ़े के बाद, काजल लता के परिवार ला घलो अपन 23 बीघा (7.6 एकड़) जमीन मेर ले छे बीघा जमीन बेंचे ला परिस. वो ह कहिथे, “दू बछर तक ले कांदी के एक तिनका घलो नई जामिस, काबर माटी ह भारी नुनछुर होगे रहिस. धान घलो होय नई सकत रहिस. धीरे-धीरे सरसों, गोभी, फूलगोभी, अऊ लऊकी जइसने साग-भाजी फिर ले होवत रहंय, जऊन ह हमर खाय सेती भरपूर रहिस, फेर बेंचे लइक नई रहिस. हमर करा एक ठन तरिया घलो रहिस जऊन मं कतको किसिम के मछरी रहिन, जइसने शोल ,मोंगरी, रोहू, अऊ हमन वो ला बेंच के बछर भर मं 25,000-30,000 रूपिया काम सकत रहेन, फेर आईला के बाद, जम्मो पानी नुनछुर हो गे, येकरे सेती कऊनो मछरी नई बांचे हवय.”

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सुंदरबन के पर्यावरन तंत्र सेती मैंग्रोव जरुरी आंय, फेर वो ह घलो धीरे-धीरे कमतियात जावत हवंय

2016 में जर्नल ऑफ़ एक्सपेरिमेंटल बायोलॉजी एंड एग्रीकल्चरल साइंसेज़ मं छपे एक ठन लेख के मुताबिक, आईला सेती माटी खराब होय हवय – भारी नुनछुर अऊ भारी अम्लता समेत – जेकर नतीजा उत्तर अऊ दक्षिण 24 परगना के अधिकतर हिस्सा मं धान घलो बने करके नई जामिस. पत्रिका मं छपे एक अध्ययन ले पता चलथे के धान ला फिर ले जामे सेती, फॉस्फेट अऊ पोटास खातू ला लगत मात्रा ले जियादा बऊरे ला परही.

प्रफुल्ल के 48 बछर के बेटा, प्रबीर मंडल कहिथे, “आईला के बाद, सरकारी खातू बऊरे ह बाढ़ गे हवय. सिरिफ तभेच हमन उपज पाय सकबो. ये ह सेहत सेती खाय के लइक नो हे, येकर बाद घलो हमन ला येला खाय ला परही. नान कन रहें त हमन जेन चऊर खावत रहेन वो ह मोला अब तक ले सुरता हवय. तंय वो ला वइसनेच खाय सकत रहय जइसने के वो होवत रहय. अब, येला ला साग-भाजी के संग खाय ले घलो बने नई लगय.”

ओकर ददा करा 13 बीघा (4.29 एकड़) जमीन हवय, जेन मं बीघा पाछू 9 बस्ता धान होथे – एक बस्ता मं 60 किलो आथे. प्रबीर कहिथें, “धान के बुवई, लुवई, अऊ दोहारे के संगे संग खातू के दाम ला मिलाके देखे ले हमन जऊन खरचा करे हवन ओकर ले हमर आमदनी बनेच कमती होथे.”

2018 के एक शोधपत्र के मुताबिक, आईला आय के बाद ले सुंदरबन मं धान के उपज आधा होगे हवय - 1.6 हेक्टेयर पाछू 64-80 क्विंटल ले घट के 32-40 क्विंटल. प्रबीर के कहना आय के फेर, धान के उपज अब आईला ले पहिली के जइसने आ गे हवय, फेर ओकर परिवार अऊ गाँव के दीगर लोगन मन जून ले सितंबर तक ले पूरा पूरी अकास भरोसा रहिथें.

अऊ ये बरसात भरोसा के लइक नई रह गे हवय. प्रो. हाजरा कहिथें, “समंदर के जलस्तर ह भारी बढ़े अऊ ढेरियावत बरसात अऊ बरसात मं कमी, बदलत मऊसम के लंबाबखत के असर आंय.”

कोलकाता के स्कूल ऑफ़ ओशनोग्राफ़िक स्टडीज़ मं चलत एक शोध के मुताबिक, बंगाल के उत्तरी खाड़ी (जिहां सुंदरबन हवय) मं बीते 20 बछर मं अक्सर एक दिन मं 100 मिमी ले जियादा बरसात हवत हवय. प्रो. हाजरा बताथें के बुवाई के बखत मं अक्सर बरसात कम होथे, जइसने के ये बछर होईस - 4 सितंबर तक ले, दक्षिण 24 परगना मं करीबन 307 मिमी कमती अऊ उत्तर पूर्वी परगना मं करीबन 157 मिमी कम पानी गिरे रहिस.

अइसने सिरिफ ये बछर नई होय हवय – सुंदरबन मं बीते कुछेक बछर ले सरलग कम धन जियादा बरसात होवत हवय. दक्षिण 24 परगना मं जून ले सितंबर तक बरसात मं 1552.6 मिमी पानी गिरे रहिस. जिला के 2012-2017 के बरसात के आंकड़ा ले पता चलथे के छे ले चार बछर मं पानी कम गिरे रहिस, जऊन मं सबले कम बरसात 2017 (1173.3 मिमी) अऊ 2012 मं (1130.4 मिमी) रहिस.

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‘धान के खेती पूरा पूरी अकास भरोसा हवय, गर पानी नई गिरिस, त धान नई होय’

उत्तर 24 परगना मं येकर उलट होय हवय: एनी जियादा बरसात. इहाँ जून ले सितंबर तक 1172.8 मिमी बरसात होथे. 2012-2017 के बरसात के आंकड़ा ले पता चलथे के ये छे बछर ले चार मं सधारन ले जियादा पानी गिरे रहिस – अऊ 2015 मं सबले जियादा, यानि 1428 मिमी पानी गिरे रहिस.

काजल लता कहिथे, “असल दिक्कत बेबखत के बरसात आय. ये बछर फरवरी मं बनेच पानी गिरिस, बरसात के पानी जइसने. इहाँ तक ले के सियान डोकरा मन के कहना रहिस के वो मन ला कऊनो अइसने बखत के सुरता नई ये के फरवरी मं अतका पानी गिरे रहे होय.” ओकर परिवार ह धान के खेती ऊपर आसरित हवय, जेकर बुवई जून-जुलाई मं अऊ लुवई नवंबर-दिसंबर मं होथे. “धान के खेती पूरा पूरी अकास भरोसा हवय. गर बरसात नई होईस, त धान नई होवय.”

वो ह कहिथे के बीते चार धन पांच बछर ले, ओकर गाँव मं बरसात के महिना ला छोड़, नवंबर-दिसंबर मं घलो पानी गिरत हवय. ये महिना मं जऊन पानी गिरथे वो ह धान के फसल ला नुकसान करे सकथे. “जरूरत बखत पानी नई गिरय धन बहुते जियादा पानी गिरथे. येकर ले फसल बरबाद होवत हवय. हरेक बछर हमन ला लागथे के ये बेर हद ले जियादा (बेबखत) पानी नई गिरही. फेर बहुते जियादा पानी गिरथे अऊ जम्मो फसल बरबाद हो जाथे. येकरे सेती हमर इहाँ हाना हवय, ‘आशाय मोरे चासा’ (‘आसेच ह किसान ला मार देथे’).”

रजत जुबिली गांव के बासिंदा प्रबीर मंडल घलो संसो करत हवंय. “जून अऊ जुलाई बखत, (मोर गांव मं) पानी नई गिरिस. धान के पान सुखा गे. भगवान करिस के (अगस्त मं) पानी गिर गे. फेर काय ये ह भरपूर होही? गर बनेच जियादा पानी गिर जाही अऊ फसल बूड़ जाही, तब काय होही?”

स्वास्थ्यकर्मी (ह आल्टरनेटिव मेडिसिन मं बीए करे हवय) के रूप मं प्रबीर कहिथे के ओकर तीर अवेइय्या रोगी घलो अक्सर गरमी के सिकायत करथें. वो ह बताथे, “कतको लोगन मन ला अब झांझ लाग जाथे. ये कऊनो बखत लग सकथे अऊ जानलेवा हो सकथे.”

समंदर तल के बढ़त तापमान ला छोड़ सुंदरबन मं जमीन के घलो तापमान बढ़त हवय. न्यूयॉर्क टाइम्स के एक इंटरैक्टिव पोर्टल मं आबोहवा अऊ ग्लोबल वॉर्मिंग के आंकड़ा के मुताबिक, 1960 के बछर मं इहाँ बछर भर मं 32 डिग्री सेल्सियस धन ओकर ले जियादा तापमान वाले दिन 180 होवत रहिस, उहिंचे 2017 मं अइसने दिन ह बढ़ के 188 होगे. अइसने दिन मन के आंकड़ा सदी के आखिर तक 213 ले 258 तक हो सकथे.

बढ़त घाम, चक्रवात, समे मं नई होय बरसात, नुनछुर, नंदावत मैंग्रोव अऊ कतको ले घेरी बेरी जूझत, सुंदरबन के बासिंदा मन कभू अचिंता मं नई रहंय. कतको तूफान अऊ चक्रवात के गवाह बने प्रफुल्ल मंडल अपन चिंता ला बताथे: “कऊन जनि आगू काय होही?”

पारी के बदलत मऊसम ऊपर लिखाय देश भर ले रिपोर्टिंग के ये प्रोजेक्ट, यूएनडीपी समर्थित तऊन पहल के हिस्सा आय, जऊन मं आम जनता अऊ ओकर जिनगी के गुजरे बात ला लेके पर्यावरन मं होवत बदलाव के रिकार्ड करे जाथे.

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अनुवाद: निर्मल कुमार साहू

Reporter : Urvashi Sarkar
urvashisarkar@gmail.com

Urvashi Sarkar is an independent journalist and a 2016 PARI Fellow.

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Editor : Sharmila Joshi

Sharmila Joshi is former Executive Editor, People's Archive of Rural India, and a writer and occasional teacher.

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psainath@gmail.com

P. Sainath is Founder Editor, People's Archive of Rural India. He has been a rural reporter for decades and is the author of 'Everybody Loves a Good Drought'.

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Sharmila Joshi is former Executive Editor, People's Archive of Rural India, and a writer and occasional teacher.

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Translator : Nirmal Kumar Sahu

Nirmal Kumar Sahu has been associated with journalism for 26 years. He has been a part of the leading and prestigious newspapers of Raipur, Chhattisgarh as an editor. He also has experience of writing-translation in Hindi and Chhattisgarhi, and was the editor of OTV's Hindi digital portal Desh TV for 2 years. He has done his MA in Hindi linguistics, M. Phil, PhD and PG diploma in translation. Currently, Nirmal Kumar Sahu is the Editor-in-Chief of DeshDigital News portal Contact: sahuanp@gmail.com

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